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अदबी-दुनिया: ग़ज़ल
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गज़लगंगा.dg. अरे भाई साधो. You can replace this text by going to "Layout" and then "Page Elements" section. Edit " About ". युग-ज़माना - नये दौर की एक ज़रूरी पत्रिका. क़तील शिफाई. पवन श्रीवास्तव. फैज़ अहमद फैज़. मीराजी. मुहम्मद अलवी. क़तील शिफाई पाकिस्तान के रहने वाले उर्दू के मशहूर. बहुरूपिया: मैं लिखना चाहता हूँ एक कविता . कोई आशिक किसी महबूबा से. Labels: मुहम्मद अलवी. ऐसा वैसा कैसा है. मैंने उसको देखा है. घर वाले सब झूठे हैं. सच्चा घर में तोता है. पकी फसल है चारो ओर. मुहम्मद अलवी. Posted by devendra gautam.
अदबी-दुनिया: ग़ज़ल
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गज़लगंगा.dg. अरे भाई साधो. You can replace this text by going to "Layout" and then "Page Elements" section. Edit " About ". युग-ज़माना - नये दौर की एक ज़रूरी पत्रिका. क़तील शिफाई. पवन श्रीवास्तव. फैज़ अहमद फैज़. मीराजी. मुहम्मद अलवी. क़तील शिफाई पाकिस्तान के रहने वाले उर्दू के मशहूर. बहुरूपिया: मैं लिखना चाहता हूँ एक कविता . कोई आशिक किसी महबूबा से. Labels: मुहम्मद अलवी. अजब नहीं कि फिर एक बार मैं बदल जाऊं. ज़मीं से दूर कहीं और ही निकल जाऊं. मुहम्मद अलवी. Posted by devendra gautam. Designed by Dedicated Server.
अदबी-दुनिया: जुनूने-शौक़ अब भी कम नहीं है
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गज़लगंगा.dg. अरे भाई साधो. You can replace this text by going to "Layout" and then "Page Elements" section. Edit " About ". युग-ज़माना - नये दौर की एक ज़रूरी पत्रिका. क़तील शिफाई. पवन श्रीवास्तव. फैज़ अहमद फैज़. मीराजी. मुहम्मद अलवी. दोनों जहान तेरी मुहब्बत में हार के. जुनूने-शौक़ अब भी कम नहीं है. जुनूने-शौक़ अब भी कम नहीं है. Labels: मजाज़. जुनूने-शौक़ अब भी कम नहीं है. मगर वो आज भी बरहम नहीं है. बहुत मुश्किल है दुनिया का सवंरना. बहुत कुछ और भी है इस जहां में. मजाज़ लखनवी. Posted by devendra gautam.
अदबी-दुनिया: July 2011
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गज़लगंगा.dg. अरे भाई साधो. You can replace this text by going to "Layout" and then "Page Elements" section. Edit " About ". युग-ज़माना - नये दौर की एक ज़रूरी पत्रिका. क़तील शिफाई. पवन श्रीवास्तव. फैज़ अहमद फैज़. मीराजी. मुहम्मद अलवी. क़तील शिफाई पाकिस्तान के रहने वाले उर्दू के मशहूर. बहुरूपिया: मैं लिखना चाहता हूँ एक कविता . कोई आशिक किसी महबूबा से. Labels: क़तील शिफाई. ये मोजेज़ा भी मुहब्बत कभी दिखाए मुझे. कि संग तुझ पे गिरे और चोट आये मुझे. क़तील शिफाई. Posted by devendra gautam. Posted by devendra gautam.
अदबी-दुनिया
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गज़लगंगा.dg. अरे भाई साधो. You can replace this text by going to "Layout" and then "Page Elements" section. Edit " About ". युग-ज़माना - नये दौर की एक ज़रूरी पत्रिका. क़तील शिफाई. पवन श्रीवास्तव. फैज़ अहमद फैज़. मीराजी. मुहम्मद अलवी. क़तील शिफाई पाकिस्तान के रहने वाले उर्दू के मशहूर. बहुरूपिया: मैं लिखना चाहता हूँ एक कविता . कोई आशिक किसी महबूबा से. Labels: क़तील शिफाई. ये मोजेज़ा भी मुहब्बत कभी दिखाए मुझे. कि संग तुझ पे गिरे और चोट आये मुझे. क़तील शिफाई. Posted by devendra gautam.
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ग़ज़लगंगा.dg: 03/17/10
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किससे-किससे जाकर कहते ख़ामोशी का राज़. अपने अंदर ढूंढ रहे हैं हम अपनी आवाज़. किताबों की दुनिया. अरे भाई साधो. अदबी-दुनिया. बुधवार, 17 मार्च 2010. जेहनो-दिल में रेंगती हैं. जेहनो-दिल में रेंगती हैं अनकही बातें बहुत. दिन तो कट जातें हैं लेकिन सख्त हैं रातें बहुत. तुम अभी से बदगुमां हो दोस्त! ये तो इब्तिदा है. जिंदगी की राह में होंगी अभी घातें बहुत. दिल की पथरीली ज़मीं तो फिर भी खाली ही रही. कोई बतलाये कहां. संजो के रखूं , क्या करूं. देवेंद्र गौतम. प्रस्तुतकर्ता devendra gautam. लेबल: ग़ज़ल. कागजì...
ग़ज़लगंगा.dg: 03/01/10
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किससे-किससे जाकर कहते ख़ामोशी का राज़. अपने अंदर ढूंढ रहे हैं हम अपनी आवाज़. किताबों की दुनिया. अरे भाई साधो. अदबी-दुनिया. सोमवार, 1 मार्च 2010. फ़ना होते हुए. फ़ना होते हुए दीवार-ओ-दर की. बड़ी मुद्दत पे याद आयी है घर की. बना लेना घरौंदे इल्म-ओ-फन के. अभी कुछ खाक छानो दर-ब-दर की. खुदा रूपोश होता जा रहा है. के आंखें खुल रहीं हैं अब बशर की. रवां होता गया अपने जुनूं में. हवा जिसको नज़र आयी जिधर की. हम अपनी मंजिलों से आशना हैं. ज़रुरत क्या है हमको राहबर की. देवेंद्र गौतम. इसे ईमेल करें. नई पोस्ट. दम ले...
ग़ज़लगंगा.dg: 02/16/10
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किससे-किससे जाकर कहते ख़ामोशी का राज़. अपने अंदर ढूंढ रहे हैं हम अपनी आवाज़. किताबों की दुनिया. अरे भाई साधो. अदबी-दुनिया. मंगलवार, 16 फ़रवरी 2010. कुछ रोज आसपास रहे. कुछ रोज आसपास रहे, फिर कहां गए. खुशरंग जिंदगी के मनाज़िर कहां गए. बातिन में भी नहीं हैं बज़ाहिर कहां गए. जिनकी मुझे तलाश है आखिर कहां गए. महरूमियों के दर पे खड़े सोचते हैं हम. वो हौसले हयात के आखिर कहां गए. हर गाम पूछने लगीं सदरंग मंजिलें. नग्मे सुना रहे थे जो ताइर कहां गए. देवेंद्र गौतम. 0 टिप्पणियाँ. इसे ईमेल करें. नई पोस्ट. कागज...
ग़ज़लगंगा.dg: 02/28/10
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किससे-किससे जाकर कहते ख़ामोशी का राज़. अपने अंदर ढूंढ रहे हैं हम अपनी आवाज़. किताबों की दुनिया. अरे भाई साधो. अदबी-दुनिया. रविवार, 28 फ़रवरी 2010. ज़िल्लतें कितनी सहीं. ज़िल्लतें कितनी सहीं तब जाके नाकारा हुआ. तुम न समझोगे कि मैं किस तर्ह आवारा हुआ. शाम के बुझते हुए माहौल के पेशे-नज़र. मैं भी अब वापस चला घर को थका हारा हुआ. इन दिनों हर चीज़ की तासीर उल्टी हो गयी. बर्फ के पहलू में मैं बैठा तो अंगारा हुआ. और मैं जाता कहां तकदीर का मारा हुआ. देवेंद्र गौतम. 0 टिप्पणियाँ. इसे ईमेल करें. नई पोस्ट. सदस्यत...
ग़ज़लगंगा.dg: 03/05/10
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किससे-किससे जाकर कहते ख़ामोशी का राज़. अपने अंदर ढूंढ रहे हैं हम अपनी आवाज़. किताबों की दुनिया. अरे भाई साधो. अदबी-दुनिया. शुक्रवार, 5 मार्च 2010. तुम भी बदले, हम भी बदले. तुम भी बदले, हम भी बदले, अब वो दिन वो रात कहां . मिलने को मिलते हैं लेकिन अब पहली सी बात कहां. उसकी सीप सी आंखें छलकीं, दो मोती फिर मुझतक आये. मेरे दिल का टूटा प्याला, रक्खूं ये सौगात कहां. हम सहरा वाले हैं हमसे मौसम के अहवाल न पूछ. देवेंद्र गौतम. प्रस्तुतकर्ता devendra gautam. 0 टिप्पणियाँ. इसे ईमेल करें. लेबल: ग़ज़ल. कागजी...
ग़ज़लगंगा.dg: 02/11/10
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किससे-किससे जाकर कहते ख़ामोशी का राज़. अपने अंदर ढूंढ रहे हैं हम अपनी आवाज़. किताबों की दुनिया. अरे भाई साधो. अदबी-दुनिया. गुरुवार, 11 फ़रवरी 2010. हादिसा ऐसा. हादिसा ऐसा कि हर मौसम यहां खलने लगे. बारिशों की बात निकले और दिल जलने लगे. फितरतन मुश्किल था लेकिन जो हमें बख्शा गया. रफ्ता-रफ्ता हम उसी माहौल में ढलने लगे. ऐसा हो कलम की नोक बन जाये उफक. वक़्त का सूरज मेरी तहरीर में ढलने लगे. अक्ल की उंगली पकड़ ले, दिल के आंगन से निकल. देवेंद्र गौतम. प्रस्तुतकर्ता devendra gautam. लेबल: ग़ज़ल. नई पोस्ट. काग...
ग़ज़लगंगा.dg: 02/26/10
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किससे-किससे जाकर कहते ख़ामोशी का राज़. अपने अंदर ढूंढ रहे हैं हम अपनी आवाज़. किताबों की दुनिया. अरे भाई साधो. अदबी-दुनिया. शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2010. कोई क्या है, पता चलता है. कोई क्या है, पता चलता है कुछ भी? किसी की शक्ल पे लिक्खा है कुछ भी? गवाही कौन देगा अब बताओ? किसी ने भी नहीं देखा है कुछ भी. अगर ताक़त है तो कुछ भी उठा लो. कि मांगे से नहीं मिलता है कुछ भी. खयालों के उफक पे खामुशी है. न उगता है न अब ढलता है कुछ भी. देवेंद्र गौतम. प्रस्तुतकर्ता devendra gautam. 0 टिप्पणियाँ. नई पोस्ट. विजेट...यहा...
ग़ज़लगंगा.dg: 03/20/10
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किससे-किससे जाकर कहते ख़ामोशी का राज़. अपने अंदर ढूंढ रहे हैं हम अपनी आवाज़. किताबों की दुनिया. अरे भाई साधो. अदबी-दुनिया. शनिवार, 20 मार्च 2010. नवाहे-दिल में है. नवाहे-दिल में है आंखों के रू-ब-रू न सही. तेरा ही अक्स है, इस आईने में तू न सही. बहुत सताएगी मिलने की आरजू इक दिन. कि मुझको तेरी, तुझे मेरी जुस्तजू न सही. नज़र मिले न मिले फिर भी बात कर लेना. हमारे दर्मियां कुछ वज्हे-गुफ्तगू न सही. हमारे दौर की रफ़्तार तो सलामत है. दरे-खयाल पे अब दस्तके-अदू न सही. देवेंद्र गौतम. लेबल: ग़ज़ल. नई पोस्ट. काग...
ग़ज़लगंगा.dg: 03/08/10
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किससे-किससे जाकर कहते ख़ामोशी का राज़. अपने अंदर ढूंढ रहे हैं हम अपनी आवाज़. किताबों की दुनिया. अरे भाई साधो. अदबी-दुनिया. सोमवार, 8 मार्च 2010. कदम- दर-कदम कुछ. कदम- दर-कदम कुछ नसीहत रही है. बुजुर्गों की हमपे इनायत रही है. मयस्सर नहीं उनको धुंधली किरन भी. जिन्हें रौशनी की जरूरत रही है. न तहज़ीब ढूंढो कि इन बस्तियों में. न सूरत रही है न सीरत रही है. कभी बैठकर राह तकते किसी की. मगर इतनी कब मुझको फुर्सत रही है. घरोंदे बनाकर उन्हें तोड़ देना. देवेंद्र गौतम. 0 टिप्पणियाँ. इसे ईमेल करें. नई पोस्ट. कागज&...
ग़ज़लगंगा.dg: 03/02/10
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किससे-किससे जाकर कहते ख़ामोशी का राज़. अपने अंदर ढूंढ रहे हैं हम अपनी आवाज़. किताबों की दुनिया. अरे भाई साधो. अदबी-दुनिया. मंगलवार, 2 मार्च 2010. महलों से बेहतर . महलों से बेहतर होते हैं. फूस के घर भी घर होते हैं. मीठे-मीठे काट के रख दें. ऐसे भी खंज़र होते हैं. घर में दीवारें होती हैं. दीवारों में दर होते हैं. जिनपर आंख नहीं टिक पातीं. कुछ ऐसे मंज़र होते हैं. खुद पे जोर नहीं चलता तो. आपे से बाहर होते हैं. हमको खुद हैरत होती है. शाम को जिस दिन घर होते हैं. देवेंद्र गौतम. लेबल: ग़ज़ल. नई पोस्ट. कागज&...
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गज़लगंगा.dg. अरे भाई साधो. You can replace this text by going to "Layout" and then "Page Elements" section. Edit " About ". युग-ज़माना - नये दौर की एक ज़रूरी पत्रिका. क़तील शिफाई. पवन श्रीवास्तव. फैज़ अहमद फैज़. मीराजी. मुहम्मद अलवी. Labels: मीराजी. ज़माने में कोई बुरे नहीं है. फ़क़त इक तसलसुल का झूला रवां है. ये मैं कह रहा हूँ. की जो शय अकेली रहे उस की मंज़िल फ़ना ही फ़ना है. मैं हूँ एक ,और मैं अकेला हूँ इक अजनबी हूँ. ये क्या हैं? ये मैं कह रहा हूँ. ज़माना हूँ मैं ,...की मुझ में फ...दोनोæ...दोन...
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自從你走後媽媽都很少跟其他的動物進行溝通了,沒有你在身邊我好像少了一份信心,這一年家裡都有一些轉變,換了工人,搬了家,工作也轉了, 細佬已經4歲了,到現在佢仲仍然以為你同亞寶留係DR.IAN度,係佢心裡面根本唔知道你同亞寶永遠都唔會再返嚟,但我們一家都仍然好掛住你哋三個小朋友,但願你三個小朋友現在生活在一起,互相照顧,要回來時便回來吧! 你們離開我的日子一天一天地過去,媽媽還是多麼多麼的想念你們,一點都沒有減少,每次想起你們時我的心都會隱隱作痛,你們在彩虹橋那裡快樂嗎? 已經兩個月沒有更新這個網誌了,因為實在很忙,忙著搬家,連動物傳心的CASE都沒有時間跟進,相信很多朋友都等得好心急了,真的很抱歉啊! 因為忙卻讓我多了時間聽音樂(最喜歡忙著聽音樂),竟然給我發現了一首很動聽很感人的歌,SHE- ELLA創作給她已離開了的狗狗- 薔薔, 每次聽到這首歌都會不禁落淚,讓我想起我的幾頭小動物,占占.忌廉.亞寶.亞BI你們有跟我一起聽這首歌嗎? 作詞: Ella 作曲: Ella. 薔薔你要記得我 你不要走丟 快快找到天使 . 我一路聽你講, 一路覺得係Bibi話比我知佢既心情. 真係好準呀! 好多謝ADBIE...
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