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आखर कलश: 6/1/13 - 7/1/13
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Archive for 6/1/13 - 7/1/13. खुद मुख्तार औरत व अन्य कविताएँ- देवयानी भारद्वाज. नरेन्द्र व्यास. Friday, June 28, 2013. रोज गढती हूं एक ख्वाब. सहेजती हूं उसे. श्रम से क्लांत हथेलियों के बीच. आपके दिए अपमान के नश्तर. अपने सीने में झेलती हूं. सह जाती हूं तिल-तिल. हंसती हूं खिल-खिल. देवयानी भारद्वाज. मैं अपना चश्मा बदलना चाहती हूँ. मेरे पास भरोसे की आँख थी. मैंने पाया कि चीज़ें वैसी नहीं थीं. जैसी वे मुझे नज़र आती थीं. फिर एक दिन. कुछ ऐसी किरकिरी. हुई महसूस. मिला मुझे यह चश्मा. अन्य उसके हाथ&#...लेकि...
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आखर कलश: 9/1/11 - 10/1/11
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Archive for 9/1/11 - 10/1/11. सरोजिनी साहू का कहानी संग्रह "रेप तथा अन्य कहानियाँ" (दिनेश कुमार माली द्वारा हिंदी भाषा में अनूदित)- समीक्षा: अलका सैनी. नरेन्द्र व्यास. Wednesday, September 14, 2011. समीक्षा. दिनेश कुमार माली. जाने माने प्रकाशक " राज पाल एंड संज. द्वारा प्रकाशित पुस्तक " रेप तथा अन्य कहानियाँ. दिनेश कुमार माली. अलका सैनी. कहानी संग्रह: रेप तथा अन्य कहानियाँ. कहानीकार: सरोजिनी साहू. अनुवादक: दिनेश कुमार माली. प्रथम संस्करण: 2011. पुस्तक समीक्षा. नरेन्द्र व्यास. Thursday, September 1, 2011.
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आखर कलश: 4/1/11 - 5/1/11
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Archive for 4/1/11 - 5/1/11. ग़ज़ल - प्राण शर्मा. नरेन्द्र व्यास. Tuesday, April 26, 2011. संक्षिप्त परिचय- प्राण शर्मा. हाथों से उनके कभी पानी पिया जाता नहीं. दुश्मनों से दुश्मनों के घर मिला जाता नहीं. हर किसी दूकान से क्या-क्या लिया जाता नहीं. घर सजाने के लिए क्या-क्या किया जाता नहीं. माना, पीने वाले पीते हैं उसे हँसते हुए. ज़हर का प्याला मगर सबसे पिया जाता नहीं. जब भी देखो गलियों और बाज़ारों में फिरते हो तुम. आप हैं कि आप से इक पल जिया जाता नहीं. प्राण शर्मा. नरेन्द्र व्यास. Saturday, April 23, 2011.
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आखर कलश: 7/1/12 - 8/1/12
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Archive for 7/1/12 - 8/1/12. सपना टल गया- ओम पुरोहित की कविताएँ. नरेन्द्र व्यास. Monday, July 16, 2012. ओम पुरोहित 'कागद'. सपनों की उधेड़बुन. वे सारे सपने. जिन्हें बुना था. अपने ही खयालों में. मान कर अपने! सपनों के लिए. चाहिए थी रात. हम ने देख डाले. खुली आंख. दिन में सपने. किया नहीं. हम ने इंतजार. सपनों वाली रात का. हमारे सपनों का. एक सिरा. रह जाता था. कभी रात के. कभी दिन के हाथ में. जिस का भी. चल गया जोर. वही उधेड़ता रहा. हमारे सपने! कतराने लगे हैं. झपकती आंख. पेड़ खड़े रहे. धरती से थी. इसी लिए. बा...
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आखर कलश: 2/1/11 - 3/1/11
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Archive for 2/1/11 - 3/1/11. डॉ. अंजना बख्शी की कविताएँ. नरेन्द्र व्यास. Tuesday, February 22, 2011. डॉ. अंजना बख्शी: एक संक्षिप्त परिचय. समकालीन हिन्दी कविता में एक उभरता हुआ नाम।. जन्म : 5 जुलाई 1974 को दमोह, मध्य प्रदेश में।. शिक्षा : हिन्दी अनुवाद विषय मेम एम०फ़िल० तथा एम० सी०जे० यानी जनसंचार एवं पत्रकारिता में एम० ए०।. देश की छोटी-बड़ी अनेक पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ प्रकाशित।. तस्लीमा के नाम एक कविता. कभी कभी खुद से लड़ते हुए. बचपन से अब तक की उड्नो में ,. खिचती रही तुम. वाली एक सी...तुम्...
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आखर कलश: 5/1/11 - 6/1/11
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Archive for 5/1/11 - 6/1/11. चंचला पाठक की कविताएँ. नरेन्द्र व्यास. Monday, May 30, 2011. संक्षिप्त परिचयः. नाम : श्रीमती चंचला पाठक. जन्म : ९ फरवरी, १९७१. जन्मस्थान : गुरारू, जिला गया (बिहार). शिक्षा : एम.ए. दर्शनशास्त्र, संस्कृत, बी.एड. पीएच.डी. शोधरत् (अथर्ववेद). पेशा : शिक्षिका. अभिरुचि : लेखन. मैं सृजन हूँ. आकार की नियति ही है-. समाहित हो जाना अन्यत्र।. कहाँ तक ढूँढोगे-. स्वयं की परिभाषा? आओ, आलिंगन कर लो. मैं ही सृजन हूँ।. मुझ दर्पण में तो देखो. अनन्त का आलम्बन. संरक्षित! गिद्ध को,. मौन म...
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आखर कलश: 12/1/11 - 1/1/12
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Archive for 12/1/11 - 1/1/12. सांवर दइया की कविताएं. नरेन्द्र व्यास. Friday, December 30, 2011. सांवर दइया. जब देखता हूं. जब देखता हूं. धरती को. इसी तरह रौंदी-कुचली. देखता हूँ. जव देखता हूँ आकाश को. इसी तरह अकड़े-ऎंठे. देखता हूँ. अब मैं. किस-किस से कहता फिरूँ. अपना दुख -. यह धरती : मेरी माँ! यह आकाश : मेरा पिता! बीजूका : एक अनुभूति. सिर नहीं. है सिर की जगह. औंधी रखी हंडिया. लाठी का टुकड़ा. हाथों की जगह पतले डंडे. वस्त्र नहीं है ख़ाकी. फिर भी. क्या मजाल किसी की. मेरी जड़ें. यह गर्व फिजूल. पूरब म...
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आखर कलश: 8/1/11 - 9/1/11
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Archive for 8/1/11 - 9/1/11. प्रकृति का आँगन {ताँका }- डॉ. हरदीप कौर सन्धु. नरेन्द्र व्यास. Thursday, August 25, 2011. प्रकृति का आँगन. ताँका. ताँका शब्द का अर्थ है लघुगीत. जापानी काव्य की एक. पुरानी काव्य शैली है । हाइकु का उद्भव इसी काव्य शैली. से हुआ माना जाता है. 2404; इसकी संरचना 5 7 5 7 7=31वर्णों की होती है।. लेते हैं जन्म. एक ही जगह. काँटे. एक सोहता सीस. दूसरा दे चुभन. लेकर फूल. तितलियों को गोद. रस पिलाता. वेध देता बेदर्द. भौरों का तन काँटा. चंचल चाँद. आँख-मिचौली. धरती ने पहना. न जाएँ! ता&#...
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आखर कलश: 11/1/10 - 12/1/10
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Archive for 11/1/10 - 12/1/10. गोविन्द गुलशन की ग़ज़लें. नरेन्द्र व्यास. Monday, November 29, 2010. श्री गोविन्द गुलशन. सम्प्रति -: विकास अधिकारी (नेशनल इंश्योरेन्स कम्पनी-ग़ाज़िया बाद) सम्पर्क सूत्र -: `ग़ज़ल' 224,सैक्टर -1,चिरंजीव विहार.ग़ाज़िया बाद - २०१००२. ऐसे ही विलक्षण प्रतिभा के धनि श्री गोविन्द गुलशन जी की कुछ ग़ज़लें आप सबकी नज़र है. ग़ज़ल १. दिल में ये एक डर है बराबर बना हुआ. मिट्टी में मिल न जाए कहीं घर बना हुआ. इतरा रहा है क़तरा समंदर बना हुआ. ग़ज़ल २. ग़ज़ल ३. ये ख़ज़ा...तय हुआ ह&...