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उम्मीद तो हरी है .........: 06/30/15
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उम्मीद तो हरी है . दौर पतझड़ का सही, उम्मीद तो हरी है. मंगलवार, जून 30, 2015. स्त्रियां जानती हैं. स्त्री को. बचा पाने की. जुगत में जुटे. पुरुषों की बहस. स्त्री की देह से प्रारंभ होकर. स्त्री की देह में ही. हो जाती है समाप्त - -. स्त्रियां. पुरषों को बचा पाने की जुगत में भी. रखती हैं घर को व्यवस्थित. सजती संवरती भी हैं - -. स्त्रियां जानती हैं. पुरुषों के ह्रदय. स्त्रियों की धड़कनों से. धड़कते हैं - -. पुरुषों की आँखें. नहीं देख पाती. स्त्रियों की आँखें. देखती हैं. ज्योति खरे". द्वारा. नई पोस्ट. सुबह ...
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उम्मीद तो हरी है .........: 10/08/15
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उम्मीद तो हरी है . दौर पतझड़ का सही, उम्मीद तो हरी है. गुरुवार, अक्तूबर 08, 2015. चुप्पियों की उम्र क्या है - - -. अपराधियों की दादागिरी. साजिशों का दरबार. वक़्त थमता तो बताते. जुर्म की रफ़्तार - -. गुनाह का नमूना. ढूंढ कर हम क्या करेंगें. सत्य की गर्दन कटी है. झूठ के हाँथों तलवार- -. न्याय के चौखट तुम्हारे. फ़रियाद सहमी सी खड़ी है. सिसकियाँ सच बोलती हैं. कोतवाली सब बेकार - -. आ गये थे यह सोचकर. पेट भर भोजन करेंगे. छेद वाली पत्तलों का. दुष्ट जैसा व्यवहार - -. मरने लगी इंसानियत. आग धीमी जल रही. बिटि...
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उम्मीद तो हरी है .........: 06/18/15
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उम्मीद तो हरी है . दौर पतझड़ का सही, उम्मीद तो हरी है. गुरुवार, जून 18, 2015. होना तो कुछ चाहिए. कविता संग्रह का विमोचन. वरिष्ठ कवि ज्योति खरे के पहले कविता संग्रह "होना तो कुछ चाहिए" का विमोचन समारोह. 24 मई को हिंदी भवन,दिल्ली में आयोजित किया गया.समारोह की अध्यक्षता. भारतीय ज्ञानपीठ के निदेशक और सुप्रसिद्ध कवि श्री लीलाधर मंडलोई जी ने की,. साहित्यकार और कला समीक्षक डॉ राजीव श्रीवास्तव ने अपने उद्बो...संग्रह की सभी कवितायें नये दौर की ब...सातवें और आठवें दशक की, स&#...नवनीत जैसी पत&#...कार्...
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उम्मीद तो हरी है .........: 02/26/15
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उम्मीद तो हरी है . दौर पतझड़ का सही, उम्मीद तो हरी है. गुरुवार, फ़रवरी 26, 2015. आज भी रिस रहा है - - -. तराशा होगा. पहाड़ को. दर्दनाक चीख. आसमान तक तो. पहुंची होगी- -. आसमान तो आसमान है. वह तो केवल. अपनी सुनाता है. दूसरों की कहां सुनता है- -. कांपती सिसकती. पहाड़ की सासें. ना जाने कितने बरस. अपने बचे रहने के लिए. गिड़गिड़ाती रहीं- -. पहाड़ की कराह. को अनसुना कर. उसे नया शिल्प देने. इतिहास रचने. करते रहे. प्रहार पर प्रहार- -. अब जब कभी. कोई इनके करीब आता है. छू कर महसूसता है. इनका दर्द. द्वारा. गम अगरबत्...
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May 2013 ~ जिन्दगी के रंग
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जिन्दगी के रंग. जिन्दगी के रंग कई रे साथी रे. मुखपृष्ठ. This is default featured slide 1 title. Go to Blogger edit html and find these sentences.Now replace these sentences with your own descriptions. This is default featured slide 2 title. Go to Blogger edit html and find these sentences.Now replace these sentences with your own descriptions. This is default featured slide 3 title. Go to Blogger edit html and find these sentences.Now replace these sentences with your own descriptions. जीवनशै...गणि...
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मैं और मेरी कविताएं : February 2015
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मुखपृष्ठ. मेरी कविताएं. रविवार, 22 फ़रवरी 2015. अपनो छोटो सो घरगूला. हिराने अंगना. बिसरे चूल्हा. कहाँ डरे अब. बरा पे झूला. भूले चकिया. सूपा, फुकनी. नहीं दिखे ढिग. छुई की चिकनी. गेरू के फूल. गाँव गलिन की. गुईयाँ संगे. सबने अपनों. छोटो सो घरगूला. प्रस्तुतकर्ता. संध्या शर्मा. 6 टिप्पणियां:. इस संदेश के लिए लिंक. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. Pinterest पर साझा करें. सोमवार, 16 फ़रवरी 2015. हे उद्दात लहरों . क्या यही सभ्यता है. आंखर चाय. कोई कवितì...उबले...
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December 2010 ~ जिन्दगी के रंग
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जिन्दगी के रंग. जिन्दगी के रंग कई रे साथी रे. मुखपृष्ठ. This is default featured slide 1 title. Go to Blogger edit html and find these sentences.Now replace these sentences with your own descriptions. This is default featured slide 2 title. Go to Blogger edit html and find these sentences.Now replace these sentences with your own descriptions. This is default featured slide 3 title. Go to Blogger edit html and find these sentences.Now replace these sentences with your own descriptions. महात्म...उस वî...
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मैं और मेरी कविताएं : January 2014
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मुखपृष्ठ. मेरी कविताएं. मंगलवार, 21 जनवरी 2014. मंज़िल की ज़ानिब. लम्हा नहीं थी एक मैं जहान में सदा रही हूँ,. ख़यालों में रहे हमेशा मैं तुमसे जुदा नही हूँ. किस्से गढे इस जीस्त-ए-सफ़र ने हजारों बार ,. शेर-ए- हक़ीक़ी मैं कब से गुनगुना रही हूँ. ग़म-ए-दौरां में मिलती कैसे हैं ये खुशियाँ,. दिल-ए-नादां तुझे मैं कब से समझा रही हूँ. मुमकिन हैं पहचान लेगें इक दिन वे मुझे,. अफ़साना-ए-दिलबर मैं कब से सुना रही हूँ. ख़ुदा करे विसाल-ए-यार हो वह दिन भी आए,. प्रस्तुतकर्ता. संध्या शर्मा. इसे ईमेल करें. मरीचिका. अज्ञा...
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मैं और मेरी कविताएं : February 2014
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मुखपृष्ठ. मेरी कविताएं. सोमवार, 24 फ़रवरी 2014. छोटी सी अभिलाषा. प्रकृति की अनुपम रचना. तुम्हारा विराट अस्तित्व. समाया है मेरे मन में. और मैं . रहना चाहती हूँ हरपल. रजनीगंधा से उठती. भीनी-भीनी महक सी. तुम्हारे चितवन में. चाहती हूँ सिर्फ इतना. कि मेरा हर सुख हो. तुम्हारी स्मृतियों में. और दुःख . केवल विस्मृतियों में! प्रस्तुतकर्ता. संध्या शर्मा. 18 टिप्पणियां:. इस संदेश के लिए लिंक. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. Pinterest पर साझा करें. आ जाओ वसंत. 5 सप्...
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मैं और मेरी कविताएं : March 2014
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मुखपृष्ठ. मेरी कविताएं. बुधवार, 26 मार्च 2014. सत्ता सुख और लोककल्याण- अभी रोग दूर होना शेष है. प्रथम दौर को शांत करना ही ध्येय नहीं है, प्रायश्चित करने से पाप दूर हुआ अभी रोग दूर होना शेष है।. प्रस्तुतकर्ता. संध्या शर्मा. 10 टिप्पणियां:. इस संदेश के लिए लिंक. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. Pinterest पर साझा करें. लेबल: चुनाव. लोककल्याण. सत्ता सुख. शनिवार, 15 मार्च 2014. बिरज में होली रे कन्हाई …. खेलत फाग अबीर हिलमिल. झूमें न्या...दुवार दुव...बिरज म...