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#दर्द के #व्यापारी-#हिन्दीकवितायें | *** दीपक भारतदीप की हिंदी सरिता-पत्रिका*** mastram Deepak Bharatdeep ki hindi patrika***
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द पक भ रतद प क ह द सर त -पत र क * * mastram Deepak Bharatdeep ki hindi patrika* *. ल खक स प दक- द पक भ रतद प, ग व ल यर. दर द क #व य प र -#ह न द कव त य. अनज न म भटक. स झ सकत ह. ज नकर चल तब ह क र स त. उस समझ त ह ए अपन अक ल क. च र ग ब झ सकत ह. कह द पक ब प शहर बड़ ह. ह दस क डर स सहम ज त. एक वहम स बचत. अ ग र ज म भटक इस तरह. उनक ख श करन क ल य. च ह जब ब झ सकत ह. 8212;—————. कभ अपन च हर पर भ. जख म कर ल त ह. तब भर ब ज़ र रक त. बह न क रस म भ कर ल त ह. कह द पक ब प ख श स. ज न नह स ख ज़म न. झगड़ क ढ ढत बह न. वह अमन क घर भ.
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मस्तराम का दर्शन और साहित्य: जिन्दगी का सच कोई नहीं जानता-हिंदी शायरी
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मस्तराम का दर्शन और साहित्य. मस्तराम "आवारा" कभी कभी कविता और कहानी लिखने की भी मूर्खता करता है,. Saturday 5 April 2008. जिन्दगी का सच कोई नहीं जानता-हिंदी शायरी. कुछ सवालों के जवाब नहीं होते. कुछ सवाल ही अपने आप में जवाब होते. लाजवाब हैं वह लोग जो. सवालों के जाल से दूर होते. किसी के सवाल को दो जवाब. कुछ का कुछ समझ जाये. तो फिर बवाल मच जाये. न दो जवाब तो भी मुसीबत. ऐसे में बेहतर हैं न किसी की सुने. न किसी को कुछ बताएं. जिन्दगी के कई सवाल ऐसे हैं. वह कभी नहीं होते. व्यंग्य. साहित्य. उसे जल्द&#...हमने...
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मस्तराम का दर्शन और साहित्य: देखने का होता है अपना-अपना नजरिया-हिंदी शायरी
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मस्तराम का दर्शन और साहित्य. मस्तराम "आवारा" कभी कभी कविता और कहानी लिखने की भी मूर्खता करता है,. Sunday 13 April 2008. देखने का होता है अपना-अपना नजरिया-हिंदी शायरी. देखने का होता है. नजरिया अपना-अपना. किसी के लिये कोई चीज हकीकत है. किसी के लिये होती है सपना. कोई कार पर कार बदलता है. कोई पैदल ही चलता. उसके लिए अपनी कार होती है सपना. कोई रहता है ऊंची इमारतों और. चमकदार महलों में. तो कोई ईंट और पत्थर ढोकर. उनका निर्माण कर मजदूर. और अपनी देह पर भी होता बस. अपने दिल का सच बताकर वह. व्यंग्य. अपनी ध...
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दीपक भारतदीप | दीपक भारतदीप की धर्म सन्देश-पत्रिका
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द पक भ रतद प क धर म सन द श-पत र क. ल खक स प दक द पक भ रतद प,ग व ल यर (मध य प रद श). Author Archives: द पक भ रतद प. स च स र ह ई जर र ह -ह द श यर. May 8, 2016. क य क प रज स वय क. स ह क र स वय क धन. क य क गर ब स वय क. कह द पकब प स च स. आदत ह ज य. तभ क ई ज दग समझ. 8212;——-. ल खक एव कव -द पक र ज क कर ज ‘ भ रतद प,. ग व ल यर मध यप रद श. Writer and poem-Deepak Raj Kukreja “”Bharatdeep””. कव , ल खक एव स प दक-द पक ‘भ रतद प’,ग व ल यर. Poet, Editor and writer-Deepak ‘Bharatdeep’,Gwalior. पर ल ख गय ह अन य ब ल ग.
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मनस्वी पुरुष ही जीवन का आनंद उठाते हैं-गुरू पूर्णिमा पर विशेष हिन्दी लेख | दीपक भारतदीप की धर्म सन्देश-पत्रिका
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द पक भ रतद प क धर म सन द श-पत र क. ल खक स प दक द पक भ रतद प,ग व ल यर (मध य प रद श). मनस व प र ष ह ज वन क आन द उठ त ह -ग र प र ण म पर व श ष ह न द ल ख. July 12, 2014. भर त हर न त शतक म कह गय ह क. 8212;——————–. क वच त प थ व शय य क वच दप च पर वङ कशयन क वच छ क ह र क वच दप च श ल य दनर च. क वच त कन ध ध र क वच दप च द व य भवरधर मनस व क र य र थ न गपयत द ख न च स खम. द पक र ज क कर ज ‘ भ रतद प’. ग व ल यर मध यप रद श. Deepak Raj Kukreja “Bharatdeep”. कलक, ल खक और स प दक-द पक र ज क कर ज ‘भ रतद प’,ग व ल यर. 2शब दल ख स रथ.
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मस्तराम का दर्शन और साहित्य: दिखावे के लिए अमन का पैगाम-हिंदी शायरी
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मस्तराम का दर्शन और साहित्य. मस्तराम "आवारा" कभी कभी कविता और कहानी लिखने की भी मूर्खता करता है,. Saturday 12 April 2008. दिखावे के लिए अमन का पैगाम-हिंदी शायरी. आदमी देखना चाहता. हर चीज पर लिखा अपना नाम. जिंदगी भर करता इसके लिए काम. अपनी ख्वाहिशें पूरी करने के लिये. कई जगह टेकता अपना मत्था. ले जाता अपने घर के लोगो का जत्था. नख से शिख तक माया का मोह. मूंह में जपता राम. देखें हैं मस्तराम आवारा ने. इस दुनियां में कई लोग. बंदा उसे समझ लेता अपना काम. सब मिल जाता है पर. व्यंग्य. साहित्य. हमने एक ले...
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दीपक भारतदीप | ** दीपक भारतदीप की अमृत संदेश-पत्रिका** Mastram Deepak Bharatdeep's Hindi amrit sandesh patrika
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द पक भ रतद प क अम त स द श-पत र क * Mastram Deepak Bharatdeep's Hindi amrit sandesh patrika. क षण क ए और श यर. छ ड आए वह गल य. म र पर चय. Author: द पक भ रतद प. व ज ञ पन क मज -ह द श यर. र पहल पर द पर. इधर न यक उधर खलन यक. खड़ कर द य. च द पल क न टक. शब द क ज ल ब नकर. बड़ कर द य. कह द पकब प प रच र पर. चल रह स स र. व ज ञ पन क मज न. बढ़ द मन क भ ख. र ट क कड़ कर द य. 8212;———. ल खक एव कव -द पक र ज क कर ज ‘ भ रतद प,. ग व ल यर मध यप रद श. Writer and poem-Deepak Raj Kukreja “”Bharatdeep””. पर ल ख गय ह अन य ब ल ग.
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