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Anil Dayama 'Ekla'Friday, 10 June 2016. वर्षों बीत गये तुम्हें. इस राह गुजरे. फूल, पत्ते मुरझा चुके. दो बूँद से खिलने वाला आक भी. पड़ चुका है पीला. दरख्तों की छाँव भी. खुद तक सिमटती जा रही है. जैसे ओढ़े हो खुद ही. चिड़िया भी परिण्डो को सूखा देख. माँ-माँ पुकार रही. जैसे गिन रही है अंतिम साँस. खाल लपेटे पड़ा कंकाल. तक रहा आकाश. जैसे अंतिम इच्छा हो. दो बूँद पानी. अन्न के बिना तो काल पसरता सदा ही. जल भी अबकी बार. बटोर रहा. काल के हाथों पुरस्कार. छाई हुई सफेदी चारों ओर. देती चमक. किसी आँख को. तेरा न होना. थक जाते. नव वर्...
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