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ख़ुदा के वास्ते !: तुम यहीं हो...
http://khudakewastey.blogspot.com/2014/07/blog-post_13.html
ख़ुदा के वास्ते! खुदा के हाथों में मत सौंप सारे कामों को, बदलते वक्त पर कुछ अपना इख्तियार भी रख।'- निदा फाज़ली. Sunday, 13 July 2014. तुम यहीं हो. ये आहटें,ये खुश्बुएं,ये हवाओं का थम जाना,. बता रहा है कि तुम यहीं हो सखा,. मेरे आसपास.नहीं नहीं. मेरे नहीं मेरी आत्मा के पास. मन के बंधन से मुक्त. तन के बंधन भी कब के हुए विलुप्त. छंद दर छंद पर तुम्हारी सीख कि. धैर्य से जीता जा सकता है सबकुछ. रखती हूं धैर्य भी पर. जीवन की निष्प्राणता से तनिक. अलकनंदा सिंह. Subscribe to: Post Comments (Atom). ये आह...
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ख़ुदा के वास्ते !: मां की मज्जा का मोल
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ख़ुदा के वास्ते! खुदा के हाथों में मत सौंप सारे कामों को, बदलते वक्त पर कुछ अपना इख्तियार भी रख।'- निदा फाज़ली. Monday, 9 September 2013. मां की मज्जा का मोल. मूक परछाईं सी- हठात बैठी वह,. कभी आंगन की उन ईंटों को कुरेदती -. कभी आत्मा के चिथड़ों को समेटती. इधर उधर ताकती,दीवारों को तराशती. बूझती उनसे अगले पल की कहानी. ढूंढ़ती नजरें. अपनी शुद्धता की निशानी. क्योंकि आज खून से खौलती आंखों को. उसने अपने शरीर का मोल देकर. खरीद ही लिया इस समय को -. उसकी आधुनिकता को,. अगर काम न आता- तो वह. हे सखा&...मूक...
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ख़ुदा के वास्ते !: स्त्री के 'उन' चार दिनों का प्रवास...
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ख़ुदा के वास्ते! खुदा के हाथों में मत सौंप सारे कामों को, बदलते वक्त पर कुछ अपना इख्तियार भी रख।'- निदा फाज़ली. Monday, 9 December 2013. स्त्री के 'उन' चार दिनों का प्रवास. Painting: Self portrait by Freida Kahlo. जीवन के अंकुर से चलकर. क्षणभंगुर होते जाने तक यूं तो. स्त्री के 'इन' चार दिनों के प्रवास ने. पूरी सृष्टि को उलझाया है,. आज मुझे अपने गौरव का ये पन्ना. बस, बरबस ही याद आया है।. प्रकृति और प्रेम की हैं ये निशानी,. इन' चार दिनों की एक धुरी पर. बस,. दोनों में ह...कष्ट से ...आते म...
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ख़ुदा के वास्ते !: वहां- उस गांव में, कौन रहता है अब...?
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ख़ुदा के वास्ते! खुदा के हाथों में मत सौंप सारे कामों को, बदलते वक्त पर कुछ अपना इख्तियार भी रख।'- निदा फाज़ली. Saturday, 12 September 2015. वहां- उस गांव में, कौन रहता है अब? वहां- उस गांव में, कौन रहता है अब? जहां सुबह तुलसी चौरे पर दिया बालती. जोर जोर से घंटियां हिलाती अम्मा से. हम, सुबह अंधेरे ही उठा देने के गुस्से में,. कहते अम्मा बस करो, हम जाग गए हैं,. अम्मा आरती गातीं, आंखों को तरेरतीं,. हमें चुप रहने का संकेत करतीं थीं जब? वही सुबह है अब भी . मगर,. लटकी हुई चौखट को, तब. वो आंगन क...सुर...
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ख़ुदा के वास्ते !: लम्हा लम्हा सरकी रात
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ख़ुदा के वास्ते! खुदा के हाथों में मत सौंप सारे कामों को, बदलते वक्त पर कुछ अपना इख्तियार भी रख।'- निदा फाज़ली. Tuesday, 11 March 2014. लम्हा लम्हा सरकी रात. थके थके कदम चांदनी के. लम्हा लम्हा सरकी रात. बिसर गई वो बात, कहां बची. अब रिश्तों की गर्म सौगात. चिंदी चिंदी हुये पंख, फिर भी. कोटर में बैठे बच्चों से. कहती चिड़िया ना घबराना. कितनी ही बड़ी हो जाये बात. पलकें भारी होती हैं जब. ख़ुदगर्जी़ से लद लदकर. जिनमें बस्ती हो जाती ख़ाक. अलकनंदा सिंह. Subscribe to: Post Comments (Atom). ये आहट...
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ख़ुदा के वास्ते !: बेटियां - दो कवितायें
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ख़ुदा के वास्ते! खुदा के हाथों में मत सौंप सारे कामों को, बदलते वक्त पर कुछ अपना इख्तियार भी रख।'- निदा फाज़ली. Monday, 10 October 2016. बेटियां - दो कवितायें. मेरी बेटियां. मेरी बेटियां. मेरा जुनून हैं,. ये मेरे मन में नाचते हर्फ हैं. जो मुझे ताकत बख्शते हैं. जो फरिश्ते हैं दोनों. वो मेरी बेटियां हैं. देखो उनके नन्हें पैरों की आवाज. आज भी गूंजती हैं. मेरी इन दीवारों से. जुगनुओं की तरह. मैं अपनी मां को कभी भूलती नहीं,. जोर से डपट देती हैं मुझे. न जाने कितने तारे. अलकनंदा सिंह. मूक परछाईæ...ये ...
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ख़ुदा के वास्ते !: प्रेमचंद की पुण्यतिथि पर उनकी कहानी: पूस की रात
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ख़ुदा के वास्ते! खुदा के हाथों में मत सौंप सारे कामों को, बदलते वक्त पर कुछ अपना इख्तियार भी रख।'- निदा फाज़ली. Saturday, 8 October 2016. प्रेमचंद की पुण्यतिथि पर उनकी कहानी: पूस की रात. आज मशहूर कथाकार प्रेमचंद की पुण्यतिथि है। इस अवसर पर आप भी पढि़ए उनकी प्रसिद्ध कहानी पूस की रात।. पूस की रात. माघ-पूस की रात हार में कैसे कटेगी? उससे कह दो, फसल पर दे देंगे. अभी नहीं. जरा सुनूं तो कौन-सा उपाय करोगे? कोई खैरात दे देगा कम्मल? पूस की अंधेरी रात! जानते थे, मै यहां हल&...और एक-एक भगवान ऐसे पड...हल्...
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ख़ुदा के वास्ते !: राष्ट्रीय ख्याति के अंबिका प्रसाद दिव्य पुरस्कारों हेत&
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ख़ुदा के वास्ते! खुदा के हाथों में मत सौंप सारे कामों को, बदलते वक्त पर कुछ अपना इख्तियार भी रख।'- निदा फाज़ली. Thursday, 15 December 2016. राष्ट्रीय ख्याति के अंबिका प्रसाद दिव्य पुरस्कारों हेतु पुस्तकें आमंत्रित. श्रेष्ठ साहित्यिक पत्रिकाओं के संपादकों को भी दिव्य प्रशस्ति - पत्र प्रदान किये जायेंगे ।. अन्य जानकारी हेतु मोबाइल नं. 09977782777, दूरभाष - 0755-2494777एवं ईमेल - jagdishlinjalk@gmail.com. पर सम्पर्क किया जा सकता है ।. अंबिका प्रसाद दिव्य. राजो किंजल्क. Subscribe to: Post Comments (Atom).
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ख़ुदा के वास्ते !: अहिल्या - ना शबरी..
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ख़ुदा के वास्ते! खुदा के हाथों में मत सौंप सारे कामों को, बदलते वक्त पर कुछ अपना इख्तियार भी रख।'- निदा फाज़ली. Tuesday, 24 September 2013. अहिल्या - ना शबरी. हे सखा.हे ईश्वर.क्षीर नीर करके. दुनिया को भरमाया तुमने. पर मुझे न यूं बहला पाओगे. सखी हूं तुम्हारी , कोई माटी का ढेर नहीं,. ना ही अहिल्या - ना शबरी मैं. जो पैरों पर आन गिरूंगी. मैं हूं - तुम्हारा आधा हिस्सा. ठीक ठीक समझ लो तुम, कि. सपनों का समय नहीं बचा अब,. संग चलकर साथ कुछ बोना है,. अलकनंदा सिंह. Labels: अहिल्या. कृष्ण. मूक परछ...