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बातें अपने दिल की : June 2015
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Monday, June 29, 2015. एक साँप के प्रति. बात बस इतनी सी थी. कि उसने अपनी टाँगे मेरे टाँगों पर रख दी थी. और सोचा था. कि जैसे नदी ने अपने में आकाश भर रखा है. जैसे एक ऑक्टोपस ने एक मछली का सर्वांग दबा रखा है. वैसे एक सांप और सेब के गिरफ्त में सारी पृथ्वी है. मैंने कई बार चाहा है कि मुझे एक पवित्र सांप मिले. एक पवित्र सांप. जो चुपके से आये और कुछ पावन कर जाए. पावन, अति-पावन. लेकिन सदियों से. मुझे, या भाई अमीरचंद फोतेदार. को वो सांप नहीं मिलता है. मिलता है. एक तक्षक सांप. काला सांप और. अपना अपना अ...परखनì...
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बातें अपने दिल की : April 2015
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Friday, April 10, 2015. तुम हड्डियाँ चबाओ. जो बिलखते हैं उन्हें और बिलखाओ. मगर मेरे दोस्त! तुम हड्डियाँ चबाओ. यहाँ जगत की उर्वशियाँ और सबके कुबेर. कोई आधा-पौने नहीं, सब सेर सवा सेर. किसकी आत्मा? किसकी करुणा? किसकी किस्मत का फेर? यौवन के उफान पर फिर मूंछ लो टेर. 8216;रिब्स’ पर ‘बारबेक्यू’ न सही ‘बफैलो’ ही लगाओ. मगर मेरे दोस्त! तुम हड्डियाँ चबाओ. क्या है मृत्यु, क्या है जीवन, क्या लवण है? कौन सीता, कौन शंकर? क्या भजन है? मगर मेरे दोस्त! तुम हड्डियाँ चबाओ. दूध किसका? और मेरे दोस्त! आह उट्ठे! मगर क्र&#...
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बातें अपने दिल की : November 2015
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Thursday, November 26, 2015. छोटी सी बात. अपने ही ह्रदय की. अनिश्चित सीमाओं में. और अनिश्चितताओं के बीच. बंधी है अब भी वही तस्वीर. वही गीत (‘होरी’ गीत). वही संगीत, कल्पना और उसका रोमांच. और अपनी जमीन का वह विशाल चुम्बक. मेरे खेत, धान की बालियाँ और मेरी माँ. छोटा सा दिन और छोटा सा जीवन. अपनी अँजुरी में क्या-क्या लूँ. अपनी बातों में क्या-क्या कहूं. सुबह होती है, शाम होता है. जीवन का बस इतना काम होता है. निहार रंजन, बनगाँव, २७ नवम्बर २०१५). निहार रंजन. Subscribe to: Posts (Atom). बहुत दिनो...प्या...
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बातें अपने दिल की : September 2015
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Wednesday, September 30, 2015. ले लिया मौसम ने करवट. ले लिया मौसम ने करवट. व्योम से बादल गए हट. कनक-नभ से विहग बोले. 8216;तल्प-प्रेमी' उठो झटपट. ले लिया मौसम ने करवट. खिली कोंढ़ी, जगे माली. कुसुम-पूरित हुई डाली. गई पीछे रात काली. वेणी भरने चली आली. श्लेष-वांछित, तप्त-रदपट. ले लिया मौसम ने करवट. रहे कब तक धरती सोती. किसानों ने खेत जोती. क्पोत-क्पोती कब से बैठे. फिर भी क्यों न बात होती. यही पृच्छा मन में उत्कट. ले लिया मौसम ने करवट. जग उठे हैं श्वान सारे. उनकी वेदना है. खोल दो लट. Sunday, September 20, 2015.
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बातें अपने दिल की : December 2015
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Saturday, December 26, 2015. प्राण मेरे तुम कहाँ हो. उठ चुकी हैं सर्द आहें. कोसती है रिक्त बाहें. उर की वीणा झनझना कर पूछती है आज मुझसे. गान मेरे तुम कहाँ हो. प्राण मेरे तुम कहाँ हो? दिन ये बीते जा रहे हैं, रात लम्बी हो रही है. पा रहा है क्या ये जीवन, क्या ये दुनिया खो रही है. क्या पता था दो दिनों का साथ देकर मान मेरे ? मान मेरे तुम कहाँ हो. प्राण मेरे तुम कहाँ हो? क्षितिज में है शून्यता, छाया अँधेरा. जम चुका है तारिकाओं का बसेरा. चान मेरे तुम कहाँ हो. निहार रंजन. Subscribe to: Posts (Atom). बहुत द...
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बातें अपने दिल की : February 2016
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Tuesday, February 9, 2016. बाइबल से निकले हुए भाव थे शायद-. 8220;गॉड कैननॉट गिव यू मोर दैन यू कैन टेक”. कर्ण-विवरों में आशा की ध्वनियाँ. कोठे पर नाचनेवाली की पायल. अक्सर, अच्छी लगती है- बहुत अच्छी. और साथ ही यह भी-. 8220;व्हाटऐवर हैप्पेंस, हैप्पेंस फॉर द बेस्ट”. जुमले नहीं है ये. सिद्धहस्तों के सूत्र हैं-जीवन सूत्र. लेकिन मेरे ही पड़ोस में रहती है-. श्रीमती(? महलखा चंदा. बर्तन धोती है, बच्चों के पेट भरती है. कितने नालायक बच्चे है. जबसे स्कूल छूटा . बस आवारागर्दी. दो बरस से जब. पूछ लूँ? बहुत दि...रेड...
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बातें अपने दिल की : August 2015
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Monday, August 31, 2015. मैंने उस छोर पर देखा था. विशाल जलराशि. और पास आकर देखा तो सब मृगजल था. सब रेगिस्तान था. मकानों में लोग थे, हवस और शान्ति थी. वातायन था, झूठ था, जीवन था. लेकिन मेरा दम घुट रहा था. और कुछ लोगों से मुझसे कह दिया था. 8220;माँ रेवा! तेरा पानी निर्मल’’. मैं भागता नर्मदा के पास चला आया. दुर्गावती की निशानियाँ धूल बन रही थी. फिर पानी का गिलास उठाकर. ज्ञात हुआ इसमें जहर है. मैं यहाँ भी प्यासा रह गया. उस छोर पर पानी बिन प्यास. इस छोर पर पानी संग प्यास. निहार रंजन. Subscribe to: Posts (Atom).
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बातें अपने दिल की : November 2016
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Sunday, November 13, 2016. मुरैनावाले के लिए. तुम्हारे शब्द ध्वनिमात्र थे या. खून का रिसता दरिया. पता नहीं चल पाया कि तुम्हारे आत्मा की आवाज़. या तुम्हारे सिगरेट का का धुंआ. इसी व्योम की अप्रतिबंधित यात्रा को निकले थे. बस निकल कर विलीन होने को). बहुत अँधेरे में जीते थे तुम. और तुम्हारी फूलन देवी). प्रेम शब्द जीवन में छलावा भर से ज्यादा है? अपने ही घोंसले में कैद थे तुम. कितने छद्म की गांठों पर. बहुत महीनी से तलवार चलायी तुमने. मन, हृदय और लिंग. इसका पता किसे है? निहार रंजन. Subscribe to: Posts (Atom).
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बातें अपने दिल की : October 2016
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Saturday, October 22, 2016. विचयन-प्रकाश. तुमने मुझे खून दिया. मैंने तुम्हारा खून लिया. तुमने मुझे खून से सींचा. और मैंने चाक़ू मुट्ठी में भींचा. शब्द नवजात की तरह नंगे हो गए. बस अफवाह पर दंगे हो गए. परकीया के हाथ पर बोला तोता. तुमने ही चूड़ियाँ बजाई, तुमने ही खेत जोता. झंडे पर शार्दूल, ह्रदय में मार्जार. रसूलनबाई का हाल ज़ार-जार. धान के खेतों के बीच की चमकती दग्धकामा. बिदेसिया के प्रीत रामा! हो रामा! लालारुख का अंगीठिया रुखसार. जैसे कोई आयुध, वैसी रतनार. मेरी मनस्कांत. निरिच्छ. निहार रंजन. मैं ...अपना...
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बातें अपने दिल की : October 2015
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Thursday, October 8, 2015. ना कोई ‘प्रील्यूड’, ना ‘इंटरल्यूड’. बस शब्दों का संगीत है. कुछ ध्वनियाँ ह्रदय से, नभ से. शेष इसी दुनिया के ध्वनियों का समुच्चार है. आपका बहुत आभार है. बीड़ियाँ सुलगती रही और ह्रदय. अविरत, निर्लिप्त. प्रेम, परिवार और समाज. कुछ स्याह अँधेरा, कुछ धुँआ. अंध-विवर से दूर दीखता एक वातायन. जीवन, संघर्ष या सामूहिक पराजय. यह किसने तय किया कि सफलता. या चाँदनी की निमर्लता. सबका ध्येय नहीं, प्रमेय नहीं. तो क्या मृत्यु का वीभत्स रूप. रोक सका है. तय कर सकता है काल. निहार रंजन. परखना, महस...