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काव्य-प्रसंग: July 2011
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रविवार, जुलाई 24, 2011. राजेश रेड्डी की ग़ज़लें. शाम को जिस वक्त खाली हाथ घर जाता हूँ मैं. मुस्कुरा देते हैं बच्चे और मर जाता हूँ मैं. जानता हूँ रेत पर वो चिलचिलाती धूप है. जाने किस उम्मीद में फिर भी उधर जाता हूँ मैं. सारी दुनिया से अकेले जूझ लेता हूँ कभी. और कभी अपने ही साये से भी डर जाता हूँ मैं. ज़िन्दगी जब मुझसे मजबूती की रखती है उमीद. फैसले की उस घड़ी में क्यूँ बिखर जाता हूँ मैं. होना है मेरा क़त्ल ये मालूम है मुझे. मेरी ज़िंदगी के मआनी बदल दे. खु़दा! प्रस्तुतकर्ता. 1 टिप्पणी:. दृश्य: एक. जो क...
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उसने कहा था...: August 2012
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उसने कहा था. Tuesday, August 14, 2012. मैं क्यों लिखता हूं. पोलिश कवि तादयुस्ज रोज़विच. की कविता. बिल जॉन्सन के. अंग्रेज़ी अनुवाद के आधार पर हिन्दी में अनुवाद उदय प्रकाश का. साथ में पिकासो की कलाकृति 'बस्ट ऑफ ए मैन राइटिंग'.). कभी-कभी 'जीवन' उसे छिपाता है. जो जीवन से ज़्यादा बड़ा है. कभी-कभी पहाड़ उस सबको छुपाते हैं. जो पहाड़ों के पार है. इसीलिए पहाड़ों को खिसकाया जाना चाहिए. लेकिन पहाड़ों को खिसकाने लायक. न तो मेरे पास तकनीकी साधन हैं. न भरोसा. और यही वजह है कि. Posted by Madhavi Sharma Guleri. TVs and ...
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सोची-समझी: December 2011
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सोची-समझी. Friday, 30 December 2011. जाना एक साल का : फ़ेसबुक पर मेरे पहले साल को जैसा मैंने देखा-समझा. कल एक और साल अतीत से जुड़ जाएगा. कई अर्थों में अच्छा व अन्य कई अर्थों में बहुत बुरा साल रहा है यह. निजी तौर पर यह मिला-जुला-सा रहा है. मुझे फेसबुक से जुड़े भी कल एक साल पूरा हो जाएगा. कैसा रहा? मोहन श्रोत्रिय. Wednesday, 28 December 2011. ताकि सनद रहे और बखत-ज़रूरत काम आए. बुद्धिजीवियों के नाम. एक-एक पंक्ति के संदेशनुमा. स्टेटसों की. वन-लाइनर्ज़ की बन आई है. समझ नहीं आता. लगभग वैसे ही. इस मध्य वर...
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उसने कहा था...: February 2014
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उसने कहा था. Thursday, February 27, 2014. मातृभाषा. की कलाकृति 'फार्मर्स वाइफ ऑन ए स्टेपलैडर'.). जैसे चींटियां लौटती हैं बिलों में. कठफोड़वा लौटता है. काठ के पास. वायुयान लौटते हैं एक के बाद एक. लाल आसमान में डैने पसारे हुए. हवाई अड्डे की ओर. ओ मेरी भाषा. मैं लौटता हूं तुम में. जब चुप रहते-रहते. अकड़ जाती है मेरी जीभ. दुखने लगती है. मेरी आत्मा।. Posted by Madhavi Sharma Guleri. Links to this post. Labels: कुछ और रचनाएं. Sunday, February 2, 2014. सौ साल पहले उसने कहा था. 8216; उसने कहा था. गुले...
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दयार: चिट्टा मुकुट
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Friday, August 14, 2015. चिट्टा मुकुट. मुदित सेठी. दा चारकोल कनै पेंसला नै बणाह्या इक स्केच कनै इक अंग्रेजी कविता।. कविता दा पहाड़ी कनै हिंदी अनुवाद तेज सेठी. जाई नै दूर बद्दळां तैं उप्पर. खड़ोत्तीयो उच्ची पक्की भगत*. इक्क चट्टान दूह्री. बैंगणी सलेट्टी भूरी. लपो:ह्यीयो वर्फा नै चुफीर्दीया. झाक्का करदी झरोखुये जे:ह ते. धूरीया दे जम्मेयो चोळे विच्चे ते. वाह भई क:देह्या छैळ. हया चिट्टा मुकुट. भगत : ठिण्ड या बट्टण्क (बटण्क) बटंक. स्थित है ऊंची सशक्त दृढ़-तत्पर. मुड़ी हुई. कितना सुन्दर. Friday, August 14, 2015.
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पारिजात
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पारिजात. एक बार क्यूँ न वक़्त को मुल्तवी किया जाए! फिर घूँट भर चांदनी गटकी जाए. उँगलियों से आकाश पर चाँद उकेरा जाए. चुपचाप एक रेस्तरां में बेवजह बैठे हुए. कोंफी से निकलती भाप को. हथेलियों में रोक. उसे पसीने में तब्दील होते देखा जाए. और आँखों में आती बूंदों को भीतर उंडेल लिया जाए. चलो आज वक़्त को मुल्तवी किया जाए. Tuesday, July 26, 2011. July 26, 2011 at 11:43 PM. रश्मि प्रभा. July 27, 2011 at 1:01 AM. घूँट भर चांदनी गटकी जाए.waah. July 29, 2011 at 6:16 AM. बाबुषा. July 30, 2011 at 6:44 AM. क्यì...
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पारिजात
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पारिजात. मैं थी.तुम नहीं थे. सामने था बदहवास समंदर. और थी.अपनी आँखें पोंछते हुए. कमरे में कांपती सीली हवा. उस किनारे फैली थी. बुद्ध के मंदिर में. पावन सुनहली रौशनी. और मेरी उदास आँखों में. मौन प्रार्थना. जबमेरी आवाज़ टूट रही थी. आकाश दरक रहा था. तब भी.बस. मैं थी.तुम नहीं थे! Sunday, July 17, 2011. Labels: बरबस लिखा हुआ. संगीता स्वरुप ( गीत ). July 17, 2011 at 6:41 PM. जबमेरी आवाज़ टूट रही थी. आकाश दरक रहा था. तब भी.बस. मैं थी.तुम नहीं थे! July 18, 2011 at 1:21 AM. July 18, 2011 at 6:10 AM.
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पारिजात
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पारिजात. कैसी विवशता है. अब लिख नहीं पाती खुला आकाश. आँक नहीं पाती उड़ते परिंदे. मेरी लिखी उद्भ्रांत नदी. सिमटी सिमटी सी लगती है. खुरचती हूँ नाखूनों से. दिल में उग आई दीवार को. ताकि बना सकूं एक सुराख़. सीने में उलझी सांस के लिए. अपने हिस्से के सूरज को देखे. एक अरसा हो गया! Sunday, July 24, 2011. संगीता स्वरुप ( गीत ). July 24, 2011 at 11:58 AM. ताकि बना सकूं एक सुराख़. सीने में उलझी सांस के लिए. अपने हिस्से के सूरज को देखे. एक अरसा हो गया! July 24, 2011 at 7:56 PM. July 24, 2011 at 10:19 PM.
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पारिजात: फिर से लिखो मुझे..!!
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पारिजात. फिर से लिखो मुझे! एक बार फिर से लिखो मुझे. बहुत संभव है. तरल शब्दों में,. अबके नहीं बहेगा अस्तित्व. और शायद.बच रहेगा. मेरे हिस्से का गंगाजल! Friday, May 27, 2011. May 27, 2011 at 11:57 PM. कितना सुन्दर ख्याल है.मन को छु गया! संगीता स्वरुप ( गीत ). May 28, 2011 at 12:53 AM. वाह .सुन्दर भाव. Subscribe to: Post Comments (Atom). View my complete profile. उस लम्हा.ठहर जाती हूँ! फिर से लिखो मुझे! चर्चा मंच. फकीर ही फकीर" (चर्चा अंक-2547). लिखो यहां वहां. अनूप सेठी. मौलश्री.