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आँसू: July 2015
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Friday, July 10, 2015. बड़ा अजीब सा मंझर है ये मेरी जिन्दगी की उलझन का. बड़ा अजीब सा मंझर है ये मेरी जिन्दगी की उलझन का. गहरी ख़ामोशी में डूबा हुआ है सजर ये मेरे अपनों का. सिले होठों के भीतर तूफानों की सरसराहट से टूटते सब्र. लगता है जहर बो दिया हो किसीने अपने अरमानों का. आवाजों को निगलते मेरी बातों के अंजाम का खौफ. खुली हवाओं में घुला हो जहर तहजीब व् सलीकों का. जीने का हुनर सीखते २ रूठ गयी है जिन्दगी मुझसे. आपनो से इतनी नफरत कि बस भाग जाऊकही. डॉ आलोक त्रिपाठी (२०१५). Subscribe to: Posts (Atom).
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आँसू: June 2015
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Sunday, June 21, 2015. प्रेम या आशक्ति. प्रेम शब्द का सन्धि विग्रह यूँ होता है. वासना - क्षणिक एवं तीव्र आवेगित होती है. कामना - सामान गुणों के कारण उत्त्पन्न आशक्ति. एवं श्रद्धा-स्वयं से श्रेष्ठ होने के कारण उत्त्पन्न आशक्ति. Http:/ legendofanomad.files.wordpress.com/2013/01/oie 18161755xwxttq28.jpg. आँसू: अब तो सपनों के भी भावार्थ बदल गए. आँसू: अब तो सपनों के भी भावार्थ बदल गए. अब तो सपनों के भी भावार्थ बदल गए. एक अरसे से खुद को समझाता आ रहा हूँ. साल दर साल गुजर गए, एहसास बदल गए. Thursday, June 18, 2015.
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आँसू: September 2011
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Saturday, September 24, 2011. ये जिन्दगी नजर आयी मुझे . गर्मी की दोपहर में बालो में उग आये एक बूँद की तरह. या फिर जलती हुयी जमीं से उड़ते हुए वाष्प की तरह. कभी एक अजनवी सी मुस्कराहट की तरह. सर्द हवावों के झोकों में उड़ते जुल्फों में उलझे हुए सूखे फूल की तरह. कभी मुझे देखती हुयी. सी उलझी उनकी नजर की तरह. या फिर तेज़ी गुजर गयी उनकी एक मुस्कुराहट की तरह. कभी -२ तो नजर आयी अपने दिल में छुपा. लेने की चाहत की तरह. कभी ये नजर आयी. या फिर उनकी. पाई उस चाहत के इकरार की तरह. यादों में. मुकुराहट. और मेरी...
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आँसू: April 2014
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Tuesday, April 29, 2014. कि उसे अपनाना है तो उसे अपना न बना. वो जो जलता रहा उम्र भर चिराग बन कर. उसके वफाओं का कुछ तो सिला दे पाता. लहूलुहान जज्बातों का दर्द समाये पलकों पे. सहमे आंसू. उंगलियों का किनारा तो दे पाता. जिसका हाल. जल रहा हो माझी के ख्यालों में. उसके मुस्तकबिल की आरज़ू क्या करे. तमाम उम्र के. दर्दो को हम क्या समहल पाते. कुछ दूर साथ चलने का सहारा तो बन पाता. लडखडाते चिरागों ने दी है गवाही कि. उसकी बदनसीबी की जो मेरे दर तक ले आयी. नजर में फकत. था लेकिन. Saturday, April 19, 2014. Xenobiotics and ...
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आँसू: March 2013
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Thursday, March 7, 2013. मुझे गिला 'दर्द' के होने से नही, बस उसके छलक जाने से है. ये जहाँ क्या जान पाता मेरे हर पल की मुस्कराहट का सबब. उम्र के इस मोड पे जरा जरा सा होश आने लगा है मुझको,. किताबों की इबारत में समझने लगा हूँ जमाने का अदब. अभी भी सीख लूं ज़माने के चलन, कि कई इम्तिहान बाकी है. जाने क्यूँ दिल से खौफों का सिलसिला जाता नही है अब. ये चेहरा जाने कैसे कर देता है चुगली कि समझ जाते है सब. डॉ आलोक त्रिपाठी 2013. Subscribe to: Posts (Atom). PPt on Immuno. Biochem. A Scholar’s Diary.
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आँसू: August 2015
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Friday, August 21, 2015. कशिश जाने कैसी रोके है इसे बिखर जाने से. तरन्नुम बिखरी है फ़िज़ाओं में फिर भी. फिसल रहे है जाने क्यों अल्फ़ाज़ होठों से. निगाहों को अश्कों से मोहब्बत सी होगई. नही फिसल रहे जाने क्यों अश्क आँखों से. चेहरा आईना न हुआ फ़िज़ाओं की रौनक का. कशिश जाने कैसी रोके है इसे बिखर जाने से. स्याह समुन्दर के किनारों पर उभरा अक्स कैसा. कुछ तो रोके है मेरी चीख को निकल जाने से. कुछ यूँ अंधरे है अपनी ही इबारत नही दिख रही. डॉ अलोक त्रिपाठी (C) 2015. Friday, August 14, 2015. Subscribe to: Posts (Atom).
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आँसू: August 2010
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Tuesday, August 24, 2010. तुम ही मेरे पलकों के सावन में हो. तुम ही मेरे अल्को के चिंतन में हो. तुम ही मेरे सांसो की पुरवईयों में में. तुम ही तो जीवन के पछुआ बयारो में हो. तेरे सांसो से उठती है दिल के सागर में मौजे. तुम ही तो जीवन के शाश्वत दर्शन में हो. तुम्हारे ओठो पे उगते ओस के गुलशन. जीती हुई बूंदों के नश्वर जीवन में हो. तुम ही तो अलौकिकता के बादल के घनश्याम हो. तुम ही तो समस्ती के सृजित साधन में हो. मानवता की मानवीय अभिवक्ति हो तुम. Monday, August 23, 2010. इंतजार . Subscribe to: Posts (Atom). A meth...
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आँसू: October 2011
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Monday, October 31, 2011. ये मिजाज़. ये मिजाज़. ज़माने की चलन. खफा खफा सा रहता है. मंजिलों पे काबिज़. है जो शख्स. मुझसे कुछ डरा डरा सा रहता है. मेरा इल्म. मेरा हूनर. मेरी तबियत से इत्फाक नहीं रखते. मेरी हर कोशिश के बाद भी ये जमाना. खफा खफा सा रहता है. और वो जो रूठ के चले. गए मुझसे कभी. के लिए. क्यूँ उनकी यादो का मंझर मेरे दिल में जवां. जवां सा रहता. की अब मुझको वईज की बातो. से डर नहीं लगता. जिन्होंने कभी भी वफ़ा नहीं निभाई. मुझसे अब. उनके लिए लिए भी ये. पैमाना. Saturday, October 29, 2011.
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आँसू: November 2011
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Wednesday, November 9, 2011. अंदाज बदलने में ज़माने लगे है. आपने तो यूँ ही बेअंदाज बना दिया हमे. हमे तो अंदाज बदलने में ज़माने लगे है. छोड़ी नहीं वफायें येही थी बस मेरी खता. अब उस पराये शख्स को हम अपने से लगे है. बड़ी जल्दी कर लिया फैसला अपने नसीब का. बस हमे उन्हें पराया बनने में ज़माने लगे है. ये सच है की प्यार कभी शर्तो पे नहीं होता. और हम उन्हें फ़कत एक चाहने वाले लगे है. कभी मासूम था मै, बेगना भी था खुद से. Subscribe to: Posts (Atom). PPt on Immuno. Biochem. A Scholar’s Diary. View my complete profile.