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सुन रही हो ना: नहीं बदली इंतजार की सूरत 13
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Monday, February 25, 2008. नहीं बदली इंतजार की सूरत 13. धुँधलका सुबह का / बना सांध्य का झुटपुटा. शीतल समीर भागा / डर से सूरज के. लगे लहराने आँचल श्यामल / मटमैले. घूम-फिर कर / फिर सो गई चिड़िया. वेणियों में महकने लगे. या महकने लगे वेणियों से / गंधराज. कुछ दरक रहा है / सैलाबों से लड़ता है मन. छवि दर्पण पर भारी है. देती होंगी किन्हीं को. यादें जीने का सहारा. मन के हर चैनल पर / चित्र तुम्हारा. सब कुछ धुला-धुला सा. सब कुछ बदला मौसम सा. नहीं बदली इंतजार की सूरत. Posted by मितान. अशोक सिंघई. संपर्क :.
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सुन रही हो ना: तुम और मैं 17
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Monday, February 25, 2008. तुम और मैं 17. तुम इतनी पास हो मेरे. तुम इतनी साथ हो मेरे. जैसे धरती और गगन. खो जाया करता था मैं. मड़ई-मेलों की मस्तियों में. मन की बंजारा बस्तियों में. डूब जाया करता था मैं. नदी के जल में. भीतर / और भीतर बहता हुआ. आज भी जब घिर जाता हूँ. डूब जाया करता हूँ मैं. अंतस्तल की गहराई में. लगते हाथ और फिसलते जाते सीप. स्मृतियों के / आशाओं के. मैं उठता जाता अनुभूतियों से. ऊपर / और ऊपर सहता हुआ. तुम इतनी पास हो मेरे. तुम इतनी साथ हो मेरे. जैसे गंध और पवन. Posted by मितान.
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सुन रही हो ना: चोरी कभी कभी 9
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Monday, February 25, 2008. चोरी कभी कभी 9. हाँ / करता हूँ / मैं भी. चोरी कभी-कभी. कर लेता हूँ चोरी कभी-कभी. सुनसान रातों मे. टहलता मरोदा की सूनसान सड़कों पर. बातें करता ऊँचे-ऊँचे पेड़ों से. नज़र बचाकर तारों की. तोड़ लेता हूँ कुछ फूल मोंगरे के. ताकि महका सकूँ. घर के उस कोने को. पाती है जहाँ विश्राम प्रिया मेरी. होता है यह अपराध. जाने-अनजाने में. मैंने किया सर्वदा. जब-जब अवसर मिला. हाँ / कर लेता हूँ / मैं भी. चोरी कभी-कभी. Posted by मितान. Subscribe to: Post Comments (Atom). अशोक सिंघई. संपर्क :.
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सुन रही हो ना: पत्थर के आँसू 18
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Monday, February 25, 2008. पत्थर के आँसू 18. आँसू सामने मेरे. तुम्हारी आँखों से नि:सृत. मेरी आत्मा तक रिस जाते हैं. पत्थर का मन भी. पसीजता है. बरसात लगती है घेरने. एक लपट सी उठती है. खौलने लगता है रूधिर. शिराओं के भीतर ही भीतर. हाहाकार घुट जाता है. पत्थर के होंठ नहीं हिलते. पत्थर की आँख नहीं भींगती. सरल है आँसू बहाना. कठिन है आँसू पी जाना. हो सके तो / मेरे बाद भी. आँसू मत बहाना. कम से कम / इतना करो वादा. और इसे सचमुच निभाना. आँखों से उच्चारित. यह गीत / सामने मेरे. मत गुनगुनाना. मौत मेरी. इस संग...
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सुन रही हो ना: शरद-पूनो की रात 8
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Monday, February 25, 2008. शरद-पूनो की रात 8. तेरी दहकाई रोशनियों में. गुम हो जाती है. चाँदनी मेरी. वो भी शरद-पूनो की रात. मेरा वश चले तो. बुझा दूँ सारी बत्तियाँ. मेरी दृष्टि जाती है जहाँ तक. कम से कम तो वहाँ तक. अँधेरे में ही खिलता है चाँद. और आँख-मिचौली खेलती है. चाँदनी साथ अँधेरे के. मैं पपीहा सा राह तकता. आखिर कब दिखे स्वाति नक्षत्र. पर तुम तो गुम रहती हो. बत्तियों के बुझ जाने तक. रोशनियों के बीच. दृष्टि-ताल में तैरतीं. वो भी शरद-पूनो की रात. Posted by मितान. Subscribe to: Post Comments (Atom).
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सुन रही हो ना: अभिव्यक्ति का संकट 15
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Monday, February 25, 2008. अभिव्यक्ति का संकट 15. क्या बताऊँ. शब्द नहीं हैं. अभिव्यक्त करने को. क्या था अहसास. जब टपके थे आँसू तुम्हारे. होठों पर मेरे. क्या बताऊँ. देह होती है गर्म. पर सर्द रातों में. गुनगुने लिहाफों में. कुछ अधिक गर्म. लगती है देह. जैसे कुनकुने पानी से. सिक रही है देह. दिल, दिमाग और आत्मा तक. क्या बताऊँ. भरपूर नज़र भर. देख लेने की कोशिश. कुछ और नजर नहीं आता. न दुनिया न दीन. खुद भी खोता जाता. लगता जैसे थम गया सब कुछ. स्थिर हो गई धरा. क्या बताऊँ. रसोईघर से आती. छलक जाता मन. भर लो मन.
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सुन रही हो ना: दुर्लभ दर्शन 10
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Monday, February 25, 2008. दुर्लभ दर्शन 10. दिखता नहीं अब. चाँद पूरा साफ-साफ. आँखें हो चलीं बूढ़ीं. अपने मन से बह रही हो. हवा ऐसी दिखती नहीं अब. खुश़बू हो गई लापता. बातें हो चलीं झूठीं. कहाँ है अब कोई जो चल रहा हो. कारवाँ ऐसा दिखता नहीं अब. मंज़िल हो गये किस्से तिलस्मी. रातें हो चलीं जूठीं. सदी की सदी / सरक रही है. व्यग्रता ऐसी. प्रयासों की दिखती नहीं अब. साक्षात्कार सूरज का कहाँ नसीब. साँसें लग रहीं रूठीं. Posted by मितान. Subscribe to: Post Comments (Atom). फ्री डाउनलोड. अशोक सिंघई. संपर्क :.
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सुन रही हो ना: दर्द की दवा 3
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Monday, February 25, 2008. दर्द की दवा 3. श्वाँस गंध से ही. जान जाता हूँ. हो चुकी उपस्थिति तुम्हारी. उतना ही गर्म हो जाता. वातायन हमारा. जितना शाम को गर्मा देते हैं. झिलमिलाते. अनन्त दूरियों से झाँकते / सितारे. तुम्हारी पगध्वनि से जान जाता हूँ. तय कर ली है. तुमने / कितनी दूरी. और एक अँगुली रख दी. ठीक वहीं पर. दर्द टीस रहा था जहाँ पर. तुमसे बेहतर भला और कौन जान सकता है. दर्द मुझे होता है कहाँ पर. मैं इतना भुरभुरा हो गया. अगरबत्ती की राख जैसा. धूल से भी गया-बीता. राख होकर. अदृश्य होकर. गंध होकर. सर्व...