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सोचालय: May 2013
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I do not expect any level of decency from a brat like you. Friday, May 31, 2013. रेडियो बरक्स हिंदी फ़िल्मी गीत. ये उन गीतों में है जो सुनकर ये जलन होती है कि काश ऐसे हम भी लिख सकते! Links to this post. Wednesday, May 29, 2013. याद बरक्स हिंदी फ़िल्मी गीत. 8217;’ तो यह भी याद रह जाता है।. Links to this post. Tuesday, May 28, 2013. रिजेक्शन by कपिल. ईर ने कहा ब्याह करब. बीर कहिस कि हमहूं ब्याह करब. फत्ते भी बोलिस कि ब्याह करब. Http:/ hamareydaurmaink.blogspot.in/2013/05/blog-post 28.html. Links to this post.
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होकर भी नहीं होना..: February 2011
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होकर भी नहीं होना. क्योंकि अक्सर यहाँ होते हुये भी मैं यहाँ नहीं होता।. Sunday, February 6, 2011. नोट्स…. 2- उस दिन जब वो पारदर्शी काँच के उस पार थी, मैं उसे देख सकता था… उसे महसूस कर सकता था… उसके होठों को पढ सकता था… लेकिन हाथ बढाकर भी उसे छू नहीं सकता था…. कंप्लीटली इनकंप्लीट…. मेरे कुछ नोट्स ‘निर्मल‘. के लिये…. तस्वीर मानव के ब्लॉग. Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय). Links to this post. Labels: कुछ एं वें ही. निर्मल वर्मा. Subscribe to: Posts (Atom). इधर भी हैं अपन. अज़दकी अलमारी. वे दिन. एक आलसी ...
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लेखनी जब फुर्सत पाती है...: April 2011
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लेखनी जब फुर्सत पाती है. कविता एक असल हरामज़ादी हो सकती है. वह विकृति पैदा करती है - महमूद दरवेश. जहीर भूल गए? तुम्हें आना था! प्रस्तुतकर्ता सागर. On Tuesday, April 19, 2011. मैं याद दिला दूँ तुझे. जहीर तुम्हें आना था, वक्त पर. तुम्हारी अम्मा अकेले पी एम सी एच जाती है. अफ़सोस है कि व्यक्ति एक ही है पर. पर तुम्हारे अब्बा से ज्यादा अपने शौहर का एहतराम करती है. जहीर तुम्हें आना था ना. हाल्ट पर बिकते बासी लाल साग ही लिए चले आते. जब भी घर आओ तो. तराजू पर तौलना था. वक़्त रहते. View my complete profile.
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लेखनी जब फुर्सत पाती है...: October 2012
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लेखनी जब फुर्सत पाती है. कविता एक असल हरामज़ादी हो सकती है. वह विकृति पैदा करती है - महमूद दरवेश. त्योहार के दिन. प्रस्तुतकर्ता सागर. On Tuesday, October 23, 2012. त्योहार आते हैं तो सुबह से मन का डोर कहीं खिंचा लगता है. अन्दर ही अन्दर थोड़ी उदासी रहती है. जैसे मज़ार पर भीनी भीनी अगरबत्ती जलती रहती है. कोई अन्दर से थपकी दे कर ध्यान अपनी तरफ खींचे रहता है. त्योहार. आते हैं तो. खटिया पर बैठे. गुटका चबाते. मामा की. कही टूटी टूटी बातें. याद आती है. त्योहार. त्योहार. याद आती है. त्योहार. आते ही ग&...सब कì...
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लेखनी जब फुर्सत पाती है...: May 2012
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लेखनी जब फुर्सत पाती है. कविता एक असल हरामज़ादी हो सकती है. वह विकृति पैदा करती है - महमूद दरवेश. बहुत सारे अच्छे गानों का पिक्चराइजेशन बुरा है।. प्रस्तुतकर्ता सागर. On Friday, May 25, 2012. वहीं, बहुत सारे पिटे हुए फिल्मों का निर्माण सहृदयता से हुआ।. इस संदेश के लिए लिंक. View my complete profile. बहुत सारे अच्छे गानों का पिक्चराइजेशन बुरा है।. WordPress theme by 9th sphere.
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पागलखाना PAAGAL-KHAANAA: May 2014
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पागलखाना PAAGAL-KHAANAA. बुधवार, 14 मई 2014. भगवान और हत्यारे के बीच संदेशों के आदान-प्रदान पर कुछ अटकलें. व्यंग्य. अगर भगवान स्वयं आता है तो वह हत्या भी स्वयं क्यों नहीं कर देता? क्या भगवान हत्या को छोटा काम समझता है? अगर हत्या छोटा काम है तो क्या भगवान ने इंसान को छोटे काम करने के लिए बनाया है? या भगवान ख़ुद सामने आने से डरता है? क्यों? क्या इससे भगवान की इमेज ख़राब होती है? भगवान की हैंडराइटिंग कैसी है? कब तक चलेगी यह नेट-प्रैक्टिस? संजय ग्रोवर. कोई टिप्पणी नहीं:. इसे ईमेल करें. संदेशí...चित...
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सोचालय: June 2014
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I do not expect any level of decency from a brat like you. Wednesday, June 25, 2014. विदाई का रोना. संस्कृतियों के बीच अपनी मौलिक आदतों, स्वभावों, जूनूनों का एटेंडेंस लगाता हुआ एक ज़िंदा किरदार! अं हं हं हह. हो बाबू आबे तोरा खाना के एत्ते दुलार से खिलैथों हो. पिताजी अब आपको इतने प्यार से खाना कौन खिलाएगा). अं हं हं हह. खाय घड़ी पंखा के झुलैथों हो. आपके खाते वक्त अब पास में बैठकर पंखा कौन डुलाएगा). अं हं हं हह. लल्ला रे.हमरा भुली जैभे? प्यारे, मुझे भूल जाओगे? भगवान के लिए अपनी दì...फिर कान क...पड़ो...
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सोचालय: July 2014
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I do not expect any level of decency from a brat like you. Wednesday, July 2, 2014. कलम का हुस्न. हां तो मैं परसों ही उत्सुकतावश स्टेशनरी की दुकान पर गया और रेनांल्ड्स की एक नई चमचमाती कलम खरीद कर लाया हूं जिसकी भरपाई ओवरटाइम करके की जाएगी।. इसी क्रम में मंटो का यह कथन. और अमोस ओज़ के उपन्यास का यह अंश. उल्लेखनीय है।. Links to this post. Subscribe to: Posts (Atom). मृत्यु से पहले फडफडाते पंखों का स्पर्श. View my complete profile. कलम का हुस्न. लिपस्टिक. Autobiography of Dada Saheb Falke.
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सोचालय: July 2013
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I do not expect any level of decency from a brat like you. Wednesday, July 31, 2013. गले की नस पर चाक़ू के धार की जांच. Links to this post. Wednesday, July 3, 2013. कि अचानक एक अधिकारी आवाज़ देकर बाॅस के चेंबर में बुलाता है। बाॅस का केबिन? वह केबिन में जाता है। मन में एल लाख सवाल है। सिर्फ सवाल ही तो है। उफ सवालों का शोर कितना है? कैसे हुआ? यह भला हो कैसे सकता है? क्या कान जो सुन रहा है, दिल उसे समझ भी रहा है? मैं सच्चा हूं या जग झूठा है? Links to this post. Subscribe to: Posts (Atom).
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लेखनी जब फुर्सत पाती है...: March 2011
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लेखनी जब फुर्सत पाती है. कविता एक असल हरामज़ादी हो सकती है. वह विकृति पैदा करती है - महमूद दरवेश. प्रस्तुतकर्ता सागर. On Tuesday, March 29, 2011. सिर्फ मंजिलें ही क्यों लिखो. पड़ाव भी लिखो. लिखो कि यह इक आत्मविश्लेषण करने जैसा है. सिर्फ सुस्वादु भोजन मत लिखो. अपमान लिखो, अंतराल लिखो. हिचकियाँ लिखो. लिखो चढ़ाई के बारे में ही नहीं. लिखो सिर्फ पेड़ पर टंगे पत्तों पर नहीं. सांस लेते मनुष्यों पर लिखो. कार्बन छोड़ते चिमनियों पर लिखो. लिखो, कविता लिखो. इमारत लिखो तो लिखो. फिर बेहतर होते ...यह अपने लि...