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Inner Voice: July 2012
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Fursat ke do pal. ऐसे ही. तुम्हारा प्यार. Posted by संगीता मनराल. कितनी मुरादों से तुम्हें पाया है. शायद तुम्हें यकीन ना हो. पर फिर भी. मैं अपनी पलक से गिरने वाले. उस छोटे बाल के टुकडे को. हथेली पर सजाकर. आंख मूंदकर तुम्हें मांगती. और फिर उसे तेज़ फूंक से उड़ा देती. कई टूटते सितारों को मैंने. तुम्हारा प्यार पाने के लिए. ज़मीन पर गिरने दिया. और वो संतरी, छोटा. पंख वाला कीड़ा. जिसे हाथ पर रखकर. पास-फेल पास-फेल. किया करती थी. आज तक मुझे. मेरे श्रम की. याद दिलाता है. लालित्य. चिट्ठाजगत. इनर वायॅस.
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Inner Voice: April 2008
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Fursat ke do pal. ऐसे ही. दुविधा. Posted by संगीता मनराल. लालित्य. चिट्ठाजगत. ब्लागवाणी. इनर वायॅस. दराजें. उड़न तश्तरी . गाने की छाप: एक विश्लेषण. कबाड़खाना. ज़ुल्फ़ बिखरा के निकले वो घर से. नरेश सक्सेना की कविता : कत्लगाहों की तरफ़ फुसलाते शब्द -आशीष मिश्र. काम करनेवाली लड़की का ब्लडी ब्लंडरिंग जीवन: दो. शब्दों का सफर. महिषासुर के कितने ठिकाने! घुघूतीबासूती. रेडियो वाणी. Links for 2016-08-23 [del.icio.us]. JUGALBANDI जुगलबंदी. Invitation 'paradox' a solo show by vijendra s vij. हरी मिर्च.
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Inner Voice: June 2008
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Fursat ke do pal. ऐसे ही. बीते जमाने की बातें. Posted by संगीता मनराल. आज अम्मा और पिन्टू ने ठान रखा है की बाबूजी के आते ही उन्हें बोलेगें कलर टीवी लेने को. Posted by संगीता मनराल. उसने अपनी काली चमकीली आखों को. मेरे चहरे पर टिका कर कहा. तुम प्यार नहीं कर सकते. मैं जानना चाहता था, क्यों? वो बोली तुम शादीशुदा हो. तुम्हें कोई हक नहीं. गैर प्यार का. करना है तो अपनी. पत्नी से, बच्चों से करो. मैं हैरान था, असमंजस में. सिर्फ देख रहा था उसे ये कहते. और सोचता रहा,. Posted by संगीता मनराल. मस्ती हम. घुघ...
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Inner Voice: August 2010
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Fursat ke do pal. ऐसे ही. Posted by संगीता मनराल. मासूमियत. मुझे मन करता है उन्हें देखने का उन सब खेलो से जो हम खेला करते थे लेकिन वो सब कहीं गुम हो गया है कैसे, पता नहीं? फोटो: Forwarded मेल में मिला अच्छा लगा, लगा लिया). लालित्य. चिट्ठाजगत. ब्लागवाणी. इनर वायॅस. दराजें. उड़न तश्तरी . गाने की छाप: एक विश्लेषण. कबाड़खाना. ज़ुल्फ़ बिखरा के निकले वो घर से. काम करनेवाली लड़की का ब्लडी ब्लंडरिंग जीवन: दो. शब्दों का सफर. महिषासुर के कितने ठिकाने! घुघूतीबासूती. रेडियो वाणी. JUGALBANDI जुगलबंदी.
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Inner Voice: August 2008
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Fursat ke do pal. ऐसे ही. धर्म के नाम पर. Posted by संगीता मनराल. धर्म के नाम पर. मंदिर गिरा, मस्जिद गिरी और गिरा गुरूद्वारा. धर्म सभी का एक है, लगता फिर भी ये नारा. लगता है ये नारा लेकिन, समझे कितने भाई. हम सब बंदे नेक हैं, कहते सब दंगाई. नेकी धर्म सब भूल कर नाम प्रभू का लेते. राम, गुरू कि धूनी पर प्राण सभी के लेते. कोई हिन्दुत्व का चोला पहने, नोचे गैर शरीर. कोई जिहाद कि गूँज मे, भीचें किसी की चीख. धर्म की लगाई आग में जलते कितने लोग. मेरी दोस्त मंजू". Posted by संगीता मनराल. लालित्य. JUGALBANDI जु...
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Inner Voice: May 2011
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Fursat ke do pal. ऐसे ही. Posted by संगीता मनराल. उन्होंने रिक्शा कर लिया है, और थोड़ी ही देर में वे धीरे धीरे आँखों से ओझल हो गये. लालित्य. चिट्ठाजगत. ब्लागवाणी. इनर वायॅस. दराजें. उड़न तश्तरी . गाने की छाप: एक विश्लेषण. कबाड़खाना. ज़ुल्फ़ बिखरा के निकले वो घर से. नरेश सक्सेना की कविता : कत्लगाहों की तरफ़ फुसलाते शब्द -आशीष मिश्र. काम करनेवाली लड़की का ब्लडी ब्लंडरिंग जीवन: दो. शब्दों का सफर. महिषासुर के कितने ठिकाने! घुघूतीबासूती. रेडियो वाणी. Links for 2016-08-23 [del.icio.us]. हरी मिर्च.
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Inner Voice: December 2008
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Fursat ke do pal. ऐसे ही. अमन चाहिये, सुकून चहिए, जिन्दगी चाहिये". Posted by संगीता मनराल. कोख मे पल रहे बच्चे कि आवाज़ सुनाई देती है. माँ, माँ सुन रही हो? क्या सच ये विधी का विधान है, सृष्टी का अंत या कुछ और हम सब परेशान हैं, अभी कितने दिन और? क्या लौट नहीं सकते सुकून भरे दिन, कितने दिन और? पता नहीं आदमी क्या चाहता है, कहाँ भाग रहा है क्या पता? पता नहीं क्यों? लालित्य. चिट्ठाजगत. ब्लागवाणी. इनर वायॅस. दराजें. उड़न तश्तरी . गाने की छाप: एक विश्लेषण. कबाड़खाना. शब्दों का सफर. हरी मिर्च. ऐसे ही.
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Inner Voice: January 2012
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Fursat ke do pal. ऐसे ही. Posted by संगीता मनराल. माँ जोडती है घर को. जैसे नन्ही गोरैया. लाती है एक एक तिनका. अपने घरोंदे में लगाने को. सर्द रातों में. फुटपाथ पर पड़ी देह ठिठुरती है. एक टुकड़ा कम्बल के लिए. माँ पसीजती है. ले आती है अपना. सबसे कीमती. पुराना हो चुका शाल. लालित्य. चिट्ठाजगत. ब्लागवाणी. इनर वायॅस. दराजें. उड़न तश्तरी . गाने की छाप: एक विश्लेषण. कबाड़खाना. ज़ुल्फ़ बिखरा के निकले वो घर से. शब्दों का सफर. महिषासुर के कितने ठिकाने! घुघूतीबासूती. रेडियो वाणी. Links for 2016-08-23 [del.icio.us].
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Inner Voice: July 2008
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Fursat ke do pal. ऐसे ही. तुमने सिखाया था प्यार. Posted by संगीता मनराल. तुमने सिखाया था प्यार. क्या वही है. जहाँ तुम लेकर गये मैं बस. चलती रही बेखबर. मेरी हर तमन्नायें. तुम से शुरू होकर. तुम पर खत्म थी. लेकिन तुम समझाते रहे. नहीं ये प्यार नहीं है. आज अरसे बाद मन किया है,. तुम्हें सोचकर कुछ लिखने का. नसों मे कसाव आ जाता है. तुम्हारा ख्याल लाकर. और तुम कहते रहे. नहीं ये प्यार नहीं है. लालित्य. चिट्ठाजगत. ब्लागवाणी. इनर वायॅस. दराजें. उड़न तश्तरी . कबाड़खाना. शब्दों का सफर. हरी मिर्च. ऐसे ही.
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Inner Voice: October 2008
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Fursat ke do pal. ऐसे ही. जीवन एक रेखागणित. Posted by संगीता मनराल. दो जीवन समान्तर. चलकर भी कभी. बिछुङ जाते हैं. एक नारियल बेचने वाला. अपनी वृत की गोल. परिधी में घूमकर भी कभी. खो जाता है. और वो प्रेमी अपनी. पत्नी और प्रेमिका के. प्रेम मे पङकर. एक त्रिभुज के तीन कोनों में. असंतोष और भय से. बचता हुआ. भटक - भटक कर. थक जाता है. रिश्ते. बदल जाते है कभी. जैसे किन्ही दो. रेखाओं का कोण. किसी आकृति की. रुपरेखा बदलकर उसे. वर्ग से आयताकार बनाकर. उन रेखाओं के बीच की. तुम यहीं तो हो". जल बुझ, जल बुझ. और तब तुम.