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आचार्य संजीव 'सलिल' की लघु कथाएँ: laghukatha: shabd aur arth -sanjiv
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आचार्य संजीव 'सलिल' की लघु कथाएँ. शनिवार, जून 14, 2014. Laghukatha: shabd aur arth -sanjiv. बोध कथा:. शब्द और अर्थ. संजीव 'सलिल'. हैरान होते हुए कोशकार ने पूछा- ' अभी-अभी तो मैंने तुम सबको सही स्थान पर रखा था, तुम बाहर क्यों आ गये? इसलिए कि तुमने हमारे जो अर्थ लिखे हैं वे सरासर ग़लत लगते हैं. एक स्वर से सबने कहा. एक-एक कर बोलो तो कुछ समझ सकूँ.' कोशकार ने कहा. प्रस्तुतकर्ता sanjiv verma. चिप्प्पियाँ laghukatha. 0 टिप्पणियाँ:. एक टिप्पणी भेजें. पुरानी पोस्ट . मुख्यपृष्ठ. दिव्य नर्मदा. लघु कथा.
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हिंदी गीति काव्य सलिला : : January 2010
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हिंदी गीति काव्य सलिला :. शनिवार, 2 जनवरी 2010. गीतिका: तितलियाँ - संजीव 'सलिल'. गीतिका. तितलियाँ. संजीव 'सलिल'. यादों की बारात तितलियाँ. कुदरत की सौगात तितलियाँ. बिरले जिनके कद्रदान हैं. दर्द भरे नग्मात तितलियाँ. नाच रहीं हैं ये बिटियों सी. शोख-जवां ज़ज्बात तितलियाँ. बद से बदतर होते जाते. जो, हैं वे हालात तितलियाँ. कली-कली का रस लेती पर. करें न धोखा-घात तितलियाँ. हिल-मिल रहतीं नहीं जानतीं. क्या हैं शाह औ' मात तितलियाँ. सलिल' भरोसा कर ले इन पर. प्रस्तुतकर्ता. 1 टिप्पणी:. लेबल: doha geetika. शुभ भ&#...
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आचार्य संजीव 'सलिल' की लघु कथाएँ: alekh: laghukatha ek parichay
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आचार्य संजीव 'सलिल' की लघु कथाएँ. शनिवार, अक्तूबर 11, 2014. Alekh: laghukatha ek parichay. लघुकथा : एक परिचय. संजीव वर्मा 'सलिल'. आधुनिक लघु कथा:. सशक्त लघुकथा अधिक शब्दों कि नहीं बात को सामने रखने के सही तरीके की मांग करती है. आनंद लें कुछ अच्छी लघुकथाओं का-. 1 काजी का घर -सआदत हसन मंटो. काजी ने कहा: 'यह काजी का घर है, कसम खा और चला जा.'. 2 सहानुभूति. खलील जिब्रान. बहुत कठिन काम है तुम्हारा! दुःख है मुझे! शुक्रिया हुज़ूर! मेहतर ने जवाब दिया. वैसे आप क्या करते हैं? मेहतर का जवाब आया. एक ने कहा...लड़का...
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हिंदी गीति काव्य सलिला : : kavya ka rachna shastra: 1
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हिंदी गीति काव्य सलिला :. गुरुवार, 9 अक्तूबर 2014. Kavya ka rachna shastra: 1. काव्य का रचना शास्त्र : १. ध्वनि कविता की जान है. ध्वनि कविता की जान है, भाव श्वास-प्रश्वास।. अक्षर तन, अभिव्यक्ति मन, छंद वेश-विन्यास।।. देखे-सुने को समझने और समझाने की बेहतर बुद्धि थी।. सकल सृष्टि का हित करे, कालजयी आदित्य।. जो सबके हित हेतु हो, अमर वही साहित्य।।. होता नहीं दिमाग से, जो संचालित मीत।. दिल की सुन दिल से जुड़े, पा दिलवर की प्रीत।।. जन-जन का आनंद जब, बने आत्म-आनंद।. काव्य के तत्व:. लक्ष्य ग्र...
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हिंदी गीति काव्य सलिला : : March 2009
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हिंदी गीति काव्य सलिला :. शनिवार, 14 मार्च 2009. सबकी अपनी-अपनी राम कथाएँ हैं।. सबकी अपनी-अपनी करुण - व्यथाएँ हैं. अपने-अपने पिंजरों में हैं कैद सभी।. और चाहते हैं होना स्वच्छंद सभी।. श्वास-श्वास में कथ्य-कथानक हैं सबमें-. सत्य कहूँ गुन-गुन करते हैं छंद सभी।. अलग-अनूठे शिल्प-बिम्ब-उपमाएँ हैं. सबकी अपनी-अपनी राम कथाएँ हैं. अक्षर-अजर-अमर हैं आत्माएँ सबकी।. प्रेरक-प्रबल-अमित हैं इच्छाएँ सबकी।. माँग-पूर्ती, उपभोक्ता-उत्पादन हैं सब।. रास रचता वह, सब बृज बालाएँ है. प्रस्तुतकर्ता. लेबल: गीत. नंदन। न...मान...
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हिंदी गीति काव्य सलिला : : July 2014
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हिंदी गीति काव्य सलिला :. सोमवार, 7 जुलाई 2014. Chhand salila: durmila chhand -sanjiv. छंद सलिला:. दुर्मिला छंद. जाति लाक्षणिक, प्रति चरण मात्रा ३२ मात्रा, यति १०-८-१४, पदांत गुरु गुरु, चौकल में लघु गुरु लघु (पयोधर या जगण) वर्जित।. लक्षण छंद. दिशा योग विद्या / पर यति हो, पद / आखिर हरदम दो गुरु हों. छंद दुर्मिला रच / कवि खुश हो, पर / जगण चौकलों में हों. संकेत: दिशा = १०, योग = ८, विद्या = १४). कितनी भी आफत / आये पर भू/ल नहीं डट रहो हिलो भी. पूंजीपतियों! Chhand salila: durmila chhand -sanjiv. राय प&#...
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हिंदी गीति काव्य सलिला : : chhand salila: durmila chhand -sanjiv
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हिंदी गीति काव्य सलिला :. सोमवार, 7 जुलाई 2014. Chhand salila: durmila chhand -sanjiv. छंद सलिला:. दुर्मिला छंद. जाति लाक्षणिक, प्रति चरण मात्रा ३२ मात्रा, यति १०-८-१४, पदांत गुरु गुरु, चौकल में लघु गुरु लघु (पयोधर या जगण) वर्जित।. लक्षण छंद. दिशा योग विद्या / पर यति हो, पद / आखिर हरदम दो गुरु हों. छंद दुर्मिला रच / कवि खुश हो, पर / जगण चौकलों में हों. संकेत: दिशा = १०, योग = ८, विद्या = १४). कितनी भी आफत / आये पर भू/ल नहीं डट रहो हिलो भी. पूंजीपतियों! Chhand salila: durmila chhand -sanjiv. Simple टí...
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हिंदी गीति काव्य सलिला : : October 2014
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हिंदी गीति काव्य सलिला :. गुरुवार, 9 अक्तूबर 2014. त्रिपदिक जनक छंद:. चेतनता ही काव्य है. अक्षर-अक्षर ब्रम्ह है. परिवर्तन सम्भाव्य है. आदि-अंत 'सत' का नहीं. शिव' न मिले बाहर 'सलिल'. सुंदर' सब कुछ है यहीं. शब्दाक्षर में गुप्त जो. भाव-बिम्ब-रस चित्र है. चित्रगुप्त है सत्य वो. कंकर में शंकर दिखे. देख सके तो देख तू. बिन देखे नाटक लिखे. देव कलम के! शब्द सिपाही सब तुम्हें. तभी सृजन-पथ सूझते. श्वास समझिए भाव को. रचना यदि बोझिल लगे. सहन न भावाभाव को. सृजन कर्म ही धर्म है. समझ समय है प्रलय का. लक्ष्य ...लक्...
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आचार्य संजीव 'सलिल' की लघु कथाएँ: महीयसी mahadevi
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आचार्य संजीव 'सलिल' की लघु कथाएँ. शनिवार, सितंबर 06, 2008. महीयसी mahadevi. प्रस्तुतकर्ता sanjiv verma. 3 टिप्पणियाँ:. 20 अप्रैल 2009 को 12:44 am. Waakai achchi kahaaniyaan hain ,bahut kuch seekhne ko milta hai aapse ,aaj pahli baar aapke blog par aayen hain ,aur ab yah galti baar baar aur jaldi jaldi hogi ,. Aachary ji naman aapko. 23 अप्रैल 2009 को 10:00 pm. Vangya ke saath saath bhar por gyan hai badhaaii. Kripaya mera Ytraa vritant awashya padhe. गुड्डोदादी. नन्हे भाई. लघु कथा. This Day in History.