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भिनगढ़ी
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भिनगढ़ी - मेरा गाँव, जो इस महानगर में रहते हुवे भी मेरे मन में समाया हुवा है. Wednesday, February 23, 2011. अंत हुआ शीत का. लो आ गया बसंत. बिगड़ैल संत सा. छा गया बसंत. आर्किड के फूलों पर. तितलियों की हलचल. नाच रहे वृक्ष ओढ़. फूलों का ऑंचल. धूल से अबीर ले. पंखुडि़यों से गुलाल. धरा व आकाश में. उड़ा रहा बसंत. चल पड़ी बयार. छोड़ अपना घरबार,द्वार. खिड़की,किवाड़. हर किसी के. खटखटाने लगी. रंग बिरंगे में जेन्सम में. खासी किशोरियां. चर्च को तैयार. मधुर स्वर में. कोरस गाने लगीं. पवन ताल ठोक रहा,. जोशी ज...वसं...
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भिनगढ़ी: स्वागत है
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भिनगढ़ी - मेरा गाँव, जो इस महानगर में रहते हुवे भी मेरे मन में समाया हुवा है. Saturday, January 29, 2011. स्वागत है. ब्लॉग जगत के. विद्वतजनों. स्वागत है आपका मेरे ब्लॉग ‘भिनगढ़ी’. दुःख -. व्याधि. दिन में ही तो घटते हैं. जिंदगी. मुश्किल।. घायलों. रिश्ते. कम्भाक्तों. कहाँ।. गोलियां. मेरे कविता संग्रह 'उलझन' से. हरीश जोशी. दीपक बाबा. January 29, 2011 at 7:19 AM. हरकीरत ' हीर'. January 29, 2011 at 7:48 AM. हरीश जी स्वागत है आपका . अच्छी रचनायें हैं . इन्हें सुधार लें . अरुण चन्द्र रॉय. हरकीरत हीर. डैशब&...
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*ब्लॉग पहेली-चलो हल करते हैं *: December 2011
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ब्लॉग पहेली-चलो हल करते हैं *. शनिवार, 31 दिसंबर 2011. ब्लॉग पहेली -७ का परिणाम. नव वर्ष २०१२ के उपलक्ष्य में रविवार के स्थान पर आज शनिवार को ही ब्लॉग पहेली -७ का परिणाम घोषित कर रही हूँ ]. ब्लॉग पहेली -७ का परिणाम. नव- वर्ष २०१२ की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ ब्लॉग पहेली -७ का परिणाम इस प्रकार है -. वर्ग में छिपे ब्लोगर्स के नाम इस प्रकार थे -. सर्व प्रथम सही जवाब देकर विजेता बने हैं -. श्री उपेन्द्र नाथ जी. ब्लॉग पहेली-७. विजेता. श्री उपेन्द्र नाथ. शिखा कौशिक. प्रस्तुतकर्ता. नव वर्ष ' २०१२' की...
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भिनगढ़ी: January 2011
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भिनगढ़ी - मेरा गाँव, जो इस महानगर में रहते हुवे भी मेरे मन में समाया हुवा है. Sunday, January 30, 2011. दो कविताएं और आपकी सेवा में - फिलहाल इतना ही. सारी गड़बड़ियों की. जड़ है ये व्यवस्था. इसकी जड़ों को सींचने के लिए. ही करने पड़ते हैं. ढेर सारे प्रपंच. और प्रपंचों के बीच ही. उपजती हैं गड़बड़ियां. तो व्यवस्था कौन बनाता है. तो फिर सारी गड़बड़ियों की. जड़ है ये समाज. इसी समाज में तो. उपजते हैं. सारे संताप. लूटमलूट-मारकाट. तो फिर ये समाज. कौन बनाता है. हम और तुम. की जड़ हैं. हम और तुम. दुःख -. भार...
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सिंहावलोकन: गणेशोत्सव - 1934
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अपने बारे में. मेरी पसंद. अभिलेखागार. ऐतिहासिक छत्तीसगढ़. अभिलेख सूची. स्मारक सूची. पोस्ट सूची. स्थान-नाम. पुलिस मितानी. रामचन्द्र-रामहृदय. धरोहर और गफलत. अस्सी जिज्ञासा. सोनाखान, सोनचिरइया और सुनहला छत्तीसगढ़. बनारसी मन-के. राजा फोकलवा. रेरा चिरइ. केदारनाथ. भाषा-भास्कर. समलैंगिक बाल-विवाह! लघु रामकाव्य. गुलाबी मैना. मिस काल. विजयश्री, वाग्देवी और वसंतोत्सव. काल-प्रवाह. अनूठा छत्तीसगढ़. कलचुरि स्थापत्य: पत्र. छत्तीसगढ़ वास्तु - II. छत्तीसगढ़ वास्तु - I. गेदुर और अचानकमार. मौन रतनपुर. बस्...
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भिनगढ़ी: February 2011
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भिनगढ़ी - मेरा गाँव, जो इस महानगर में रहते हुवे भी मेरे मन में समाया हुवा है. Wednesday, February 23, 2011. अंत हुआ शीत का. लो आ गया बसंत. बिगड़ैल संत सा. छा गया बसंत. आर्किड के फूलों पर. तितलियों की हलचल. नाच रहे वृक्ष ओढ़. फूलों का ऑंचल. धूल से अबीर ले. पंखुडि़यों से गुलाल. धरा व आकाश में. उड़ा रहा बसंत. चल पड़ी बयार. छोड़ अपना घरबार,द्वार. खिड़की,किवाड़. हर किसी के. खटखटाने लगी. रंग बिरंगे में जेन्सम में. खासी किशोरियां. चर्च को तैयार. मधुर स्वर में. कोरस गाने लगीं. पवन ताल ठोक रहा,. रचता है. मेर...
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भिनगढ़ी: दो कविताएं और आपकी सेवा में - फिलहाल इतना ही
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भिनगढ़ी - मेरा गाँव, जो इस महानगर में रहते हुवे भी मेरे मन में समाया हुवा है. Sunday, January 30, 2011. दो कविताएं और आपकी सेवा में - फिलहाल इतना ही. सारी गड़बड़ियों की. जड़ है ये व्यवस्था. इसकी जड़ों को सींचने के लिए. ही करने पड़ते हैं. ढेर सारे प्रपंच. और प्रपंचों के बीच ही. उपजती हैं गड़बड़ियां. तो व्यवस्था कौन बनाता है. तो फिर सारी गड़बड़ियों की. जड़ है ये समाज. इसी समाज में तो. उपजते हैं. सारे संताप. लूटमलूट-मारकाट. तो फिर ये समाज. कौन बनाता है. हम और तुम. की जड़ हैं. हम और तुम. हम और तुम. हर...
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भिनगढ़ी
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भिनगढ़ी - मेरा गाँव, जो इस महानगर में रहते हुवे भी मेरे मन में समाया हुवा है. Friday, February 18, 2011. क्या है कवि. एक राज-मिस्त्री. जो शब्द-रूपी र्इटों को. विचारों के गारे से. जोड़-जोड़ कर. बनाता है. कविता का महल. या एक दर्जी. जो शब्दों को कपड़े. की तरह काट छांट कर. अलग-अलग डिजाइनों. में संवार कर. रचता है. मनभावन परिधान. या एक बढ़र्इ. जो बेजान. लकड़ी से शब्दों. को रंधे से छील. करता है निर्मित. विविध संरचनाएं. कविता को. नया रूप देने के लिए. या एक संगतराश. जो पत्थर से. कठोर शब्दों. को तराश कर. मेरì...