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|| आकाश के उस पार ||: लकीरें
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आकाश के उस पार. लकीरें. उस सुबह जब आँख खोलीं , थीं लकीरें. किसने आखिरकार खींची ये लकीरें ,. कल तलक हम साथ हँसते , साथ रहते. आज दोनों को अलग करतीं लकीरें. साथ थे , पर आज से दोनों अलग हैं ,. अब नहीं वो शाम की महफ़िल सजेंगीं ,. उस राह पर तो आज भी निकलेगा तू , पर. अब नहीं वो राह मेरे घर रुकेंगीं ,. चौपाल पर बैठूंगा जाके रोज , लेकिन. अब नहीं साझे की वो चिलमें जलेंगीं,. प्यार अपना आज कम लगने लगा है ,. प्यार से शायद बड़ी हैं ये लकीरें. इस साल भी रमजान होगा घर हमारे ,. Posted by Akash Mishra. ये कलम हì...
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|| आकाश के उस पार ||: प्रियतम का प्यार - हास्य कविता ?
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आकाश के उस पार. प्रियतम का प्यार - हास्य कविता? सारी रात प्रियतम हमरे ,. दिल लगाकर पीटे हमको ,. फर्श पोंछने का दिल होगा ,. चोटी पकड़ घसीटे हमको ,. गला दबाया प्यार से इतने ,. अँखियाँ जइसे लटक गयीं हो ,. गाली इतनी मीठी बांचे ,. शक्कर सुनकर झटक गयी हो ,. पिस्तौल दिखा रिकवेस्ट किये ,. हम और किसी को न बतलायें ,. हम ; मन में ये फरियाद किये ,. ये प्यार वो फिर से न दिखलायें. वो तो अपनी सारी चाहत ,. सिर्फ हमीं पर बरसाते थे ,. चाय से ले कर खाने तक की ,. रोज रात को शयन कक्ष में ,. हम भी शक्ति-स...ये जì...
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|| आकाश के उस पार ||: बचपन
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आकाश के उस पार. शायद ही कोई ऐसा होगा जिसे अपना बचपन वापस नहीं चाहिए -. अगर मांग पाता खुदा से मैं कुछ भी ,. तो फिर से वो बचपन के पल मांग लाता. वो फिर से मैं करता कोई मीठी गलती ,. वो कोई मुझे ; प्यार से फिर बताता. वो जिद फिर से करता खिलौनों की खातिर ,. वो फिर से मचलता ; झूलों की खातिर. वो ललचायी नजरें दुकानों पे रखता ,. वो आँखों से टॉफी के हर स्वाद चखता. वो बचपन के साथी फिर से मैं पाता ,. वो तुतली जुबाँ में साथ उनके मैं गाता. वो गर पाक हो पाते इक बार ये मन. Posted by Akash Mishra. 13 October 2012 at 16:35.
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|| आकाश के उस पार ||: आकर खुद अनुभव कर जाओ
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आकाश के उस पार. आकर खुद अनुभव कर जाओ. एक चिट्ठी राम के नाम -. मूरत में बसने वाले राम ,. दुनिया में फिर आ जाओ ,. भूखे कैसे सोते हैं ,. आकर खुद अनुभव कर जाओ. मगर जन्म लेना अबकी तुम ,. किसी गरीब के घर में ,. बचपन कैसे खोते हैं ,. आकर खुद अनुभव कर जाओ. मंदिर के भीतर तुम अपनी ,. मूरत पाओगे ; संपन्न-सुखी ,. बाहर बच्चे क्यूँ रोते हैं ,. आकर खुद अनुभव कर जाओ. रहकर दुनिया में देखो ,. तेरे नाम पे कितने क़त्ल हुए ,. लाशों को कैसे ढोते हैं ,. आकर खुद अनुभव कर जाओ. आकर खुद अनुभव कर जाओ. Posted by Akash Mishra. I writ...
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|| आकाश के उस पार ||: December 2012
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आकाश के उस पार. दादा - एक गीत. माली दादा' , काफी प्रचलित शब्द है ज्यादातर घरों में आप माली को दादा कहते हुए सुनेंगे. एक माली हमारे घरों में भी होते हैं , जिन्होंने बड़े प्यार और मेहनत से सींचकर हमारे परिवार की फुलवारी बनायी होती है ,. घर के बुजुर्ग ,. हमारे 'दादा'. अंगना की फुलवारी ,. तुमसे बनी थी सारी ,. तुमने ही बीज डारे ,. तुमने की रखवारी ,. फिर क्यूँ खफा हुए ,. हमसे ओ दादा , हो. फिर क्यूँ जुदा हुए ,. हमसे ओ दादा , हो. चारों तरफ थीं दुआएं तेरी ,. रूठी बहार सारी ,. फिर से लौट आओ ,. पर आँखे&...आज जब य&#...
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|| आकाश के उस पार ||: March 2013
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आकाश के उस पार. होली, एक ऐसा त्यौहार जिसमें चेहरे पर लगा रंग सारे भेद मिटा देता है होली के दिन सब हंसी-मजाक माफ होता है (बशर्ते कि वो दायरे से बाहर न हो). काश कि हर दिन ऐसा ही खुशियों से भरा होता -. होली का असली मजा, यारों के संग आये. इतना मलो गुलाल कि, रंग भेद मिट जाए. धरती ने किया सिंगार ,. कि होरिया मा रंग बरसे. बरसे प्यार दुलार ,. कि होरिया मा रंग बरसे. सखियाँ बैठीं अवध की नगरिया ,. कान्हा के संग है सौतन मुरलिया ,. आई बिरज से धार ,. कि होरिया मा रंग बरसे. निकल दुआरे आ ,. दिल से. हाँ,. Soon to be an e...
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|| आकाश के उस पार ||: November 2013
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आकाश के उस पार. आओ ढूंढें. खुशी से भरा एक जहाँ आओ ढूंढें ,. उम्मीदों भरा आसमां आओ ढूंढें. जिसका महल खून से न रंगा हो ,. ऐसे खुदा का निशां आओ ढूंढें. मुहब्बत हमारी जो खो सी गयी है ,. उसे अपने ही दरमियाँ आओ ढूंढें. कागज के फूलों को कब तक सजाएं ,. गुलों से सजा गुलिस्तां आओ ढूंढें. आँखों का पानी इधर ही गिरा था ,. शहर के शरीफों यहाँ आओ ढूंढें. Posted by Akash Mishra. Subscribe to: Posts (Atom). View my complete profile. आओ ढूंढें. आओ रोटी सेंकते हैं. घर बगल में जल रहा है , आओ रोट...लकीरें. उस सुबह जब आ&...
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|| आकाश के उस पार ||: आओ ढूंढें
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आकाश के उस पार. आओ ढूंढें. खुशी से भरा एक जहाँ आओ ढूंढें ,. उम्मीदों भरा आसमां आओ ढूंढें. जिसका महल खून से न रंगा हो ,. ऐसे खुदा का निशां आओ ढूंढें. मुहब्बत हमारी जो खो सी गयी है ,. उसे अपने ही दरमियाँ आओ ढूंढें. कागज के फूलों को कब तक सजाएं ,. गुलों से सजा गुलिस्तां आओ ढूंढें. आँखों का पानी इधर ही गिरा था ,. शहर के शरीफों यहाँ आओ ढूंढें. Posted by Akash Mishra. 24 November 2013 at 06:19. उम्दा कहा है. चला बिहारी ब्लॉगर बनने. 24 November 2013 at 08:25. जीते रहो! 24 November 2013 at 14:40. सूचनì...
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|| आकाश के उस पार ||: गुजरात - 27 फरवरी 2002
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आकाश के उस पार. गुजरात - 27 फरवरी 2002. २८ फरवरी २००२ :. टाफ़ी का वो आधा भरा डिब्बा ,. सोचता हूँ ,. किसी को दे दूँ ,. पर उम्मीद है. तुम आओगी और तुतलाकर टाफी खिलाने की जिद करोगी. हर रोज जब दफ्तर को निकलता हूँ ,. सोचता हूँ ,. शायद तुम दरवाजे पर ही मिलोगी ,. गाड़ी से मस्जिद तक चलने की जिद करोगी. मैं आज भी शाम को कहीं घूमने नहीं जाता ,. बस मेज के उपर रखे लूडो को देखता हूँ ,. और सोचता हूँ ,. शायद आज शाम तो तुम लूडो खेलने की जिद करोगी. आज भी मेरे सिरहाने पर ,. सोचता हूँ ,. हर रोज ,. हर रोज ,. This is one of th...
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|| आकाश के उस पार ||: आओ रोटी सेंकते हैं
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आकाश के उस पार. आओ रोटी सेंकते हैं. घर बगल में जल रहा है , आओ रोटी सेंकते हैं ,. एक मुद्दा पल रहा है , आओ रोटी सेंकते हैं. फिर गरीबों की गली में , रात भर रोया कोई ,. फिर शहर से एक भूखा , खुद-ब-खुद मिट जायेगा ,. फिर कहीं नारा उठेगा , मंदिरों का जोर से ,. मुल्क सारा इस ज़रा सी , बात पे बौरायेगा ,. तोड़ देगी दम कहीं , इंसान की लाज-ओ-शरम ,. और कहीं सुनसान में , एक आबरू लुट जायेगी ,. रात में उनकी ही जैसे , आत्मा मर जायेगी ,. अब तलक जो आग , उनके घर की आफत थी , वो कल. Posted by Akash Mishra. आपकी प्रव...सार...