kagadansh.blogspot.com
कागदांश: May 2010
http://kagadansh.blogspot.com/2010_05_01_archive.html
कागदांश. गुरुवार, 27 मई 2010. अंकिता पुरोहित कागदांश की हिन्दी कविता. अंकिता पुरोहित "कागदांश" की हिन्दी कविता. मैं ही थकती हूं. तोड़ते है पत्थर. हर रोज भरपूर मेहनत से. बहाते है पसीना. होम कर निज बदन. माना निकाल ही लेंगे. चमचमाता हीरा ।. अभी लगन है. श्रम के प्रति. कर रहे अपना काम. विश्वास से,. ईमान से,. रोकते नहीं उल्टे. आंधी और तुफान. जैसे कि पा ही लेंगे. अपना मुकाम।. मैं देखती हूं. सुनती हूं. वे नहीं थकते. मैं ही थकती हूं. देखते-देखते।. उनकी आंखों में. सपना हैं।. शुक्रवार, 7 मई 2010. खेलती जब. अंक...
kagadansh.blogspot.com
कागदांश: April 2011
http://kagadansh.blogspot.com/2011_04_01_archive.html
कागदांश. शुक्रवार, 29 अप्रैल 2011. चिड़कळी. ऎक डाळी सूं. दूजी डाळी. भच्च कूदै चिड़कली. पकडै अर मारै फिड़कली।. आभै उडै. काच्ची डाळी. डरै नीं. डाळी रै टूटण सूं. उण नै रै’वै. पूरो विसवास. आपरी आंख माथै. अर पांख माथै।. उडणो सिखावै मा. आंख-पांख. देण विधना री. हूंस पाळै. खुद चिड़कली. उड़ै खुद, मारै फिड़कली. हूंस पाण उडै चिड़कली! प्रस्तुतकर्ता. कोई टिप्पणी नहीं:. लेबल: राजस्थानी कविता. नई पोस्ट. पुराने पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. सदस्यता लें संदेश (Atom). मेरे पापा की किताब. Hanumangarh junction, rajasthan, India. रा...
kagadansh.blogspot.com
कागदांश: March 2013
http://kagadansh.blogspot.com/2013_03_01_archive.html
कागदांश. गुरुवार, 21 मार्च 2013. घर री राड़. घर री राड़. मा सिखाई सेवा. मायतां री. मा रा मायत. मा रा सासू-सुसरा. म्हारा दादो-दादी. मा घणीं ई करती चाकरी. नीं होई गळती सूं. पछै तो होयां ई सरती ।. मा री. गळती माथै. होंवतो घर में गोधम. सांकडै़ आंवता पिता जी. बोलतां ही हो जांवता मून. ल्यो ले ल्यो. इण रो तो वकील भी है. आप रै बाप माथै गयो है. दादी हांसती. मा भी हांस जांवती. बस इयां मिट जांवती. घर री राड़ ।. म्हनै लागतो. बडेरा कदै ई. राड़ नीं करै. बाड़ करै घर रै ।. प्रस्तुतकर्ता. मा बतायो-. जठै कद हो. सदस्...
kagadansh.blogspot.com
कागदांश: August 2010
http://kagadansh.blogspot.com/2010_08_01_archive.html
कागदांश. गुरुवार, 26 अगस्त 2010. भगवती पुरोहित का राजस्थानी गीत. प्रस्तुतकर्ता. 1 टिप्पणी:. नई पोस्ट. पुराने पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. सदस्यता लें संदेश (Atom). ओम पुरोहित ’कागद’ री राजस्थानी कविता. मेरे पापा की किताब. मेरे द्वारा अनूदित कविता संग्रह. मेरे बारे में. Hanumangarh junction, rajasthan, India. मेरा पूरा प्रोफ़ाइल देखें. ब्लॉग आर्काइव. भगवती पुरोहित का राजस्थानी गीत. इस गैज़ेट में एक त्रुटि थी. राजस्थानी कविता. हिन्दी कविता. म्हारी ब्लोग सुची. कांकड़. धूप के नोट! 2 सप्ताह पहले. 2 माह पहले. मन री...
rajasthanikavita.blogspot.com
मंडाण: निर्मल कुमार शर्मा री कवितावां
http://rajasthanikavita.blogspot.com/2014/09/blog-post.html
राजस्थानी कविता संचयन / संपादक- नीरज दइया. मुखपृष्ठ. निर्मल कुमार शर्मा री कवितावां. निर्मल कुमार शर्मा. कवितावां- नुंवै पोत री. लाडूडाँ ज्यूँ भुरती ईंटा, पंजीरी ज्यूँ खिरती रेत. घेवर ज्यूँ छिदियोड़ी छातां, पापड़ ज्यूँ फड़फड़ता गेट. सीरे ज्यूँ पसरयोड़ी नालियाँ, डंकोली ज्यूँ बांका पेम्प. कच्चोडी ज्यूँ थोथी सड़काँ, सम्मोसे ज्यूँ तीखा रेम्प. अजब बनाई रचना, थांरी हुर्र बोलू. थानें इंजीनीयर बतलाऊँ, या हलवाई बोलूं! बिन हाथ लगाया, दरद जाण गया. परची मोटी करी तय्यार. रपट पढी ना एक भी बार. आदमी ने ख...धरती...
kavikagad.blogspot.com
’कागद’ राजस्थानी: August 2013
http://kavikagad.blogspot.com/2013_08_01_archive.html
कागद राजस्थानी. 2405; ओम पुरोहित "कागद"-. हिंदी. राजस्थानी. 2405; कागद हो तो हर कोई बांचै. शुक्रवार, 9 अगस्त 2013. म्हे अर बै*. म्हे तो. बरसां खाई कोनीं. धाप'र रोटी. अर बै खाग्या. म्हारी बोटी-बोटी! घालता रैया बोट. बै छापता रैया नोट. म्हारै पल्लै आज. साल दर साल है. बोट ई बोट. अर बांरै पल्लै. अकरा अकरा नोट! प्रस्तुतकर्ता ओम पुरोहित'कागद'. 1 टिप्पणियाँ. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. Pinterest पर साझा करें. लेबल: कविता. 0 टिप्पणियाँ. लेबल: दूहा. म्हा&...बरसा...
kavikagad.blogspot.com
’कागद’ राजस्थानी: January 2012
http://kavikagad.blogspot.com/2012_01_01_archive.html
कागद राजस्थानी. 2405; ओम पुरोहित "कागद"-. हिंदी. राजस्थानी. 2405; कागद हो तो हर कोई बांचै. शनिवार, 21 जनवरी 2012. एक कविता. बात री बात*. बात री कांईं बात. बात री कांईं बिसात. बात बात में. बात री बात चलै. बात बात में बात टळै. बाकी रैवै बात. बाकी बात सारु. फेर बात टुरै. बात फुरै. बात सारु बातेरी झुरै! बात हो जावै. बात रै जावै. बात बण जावै. बात ठण जावै. बात नै नट जावै. तो कोई बात सूं हट जावै. कोई बात डट जावै ।. बात कैवणी पड़ै. बात देवणी पड़ै. चुगलखोरां नै. बात लेवणी पड़ै. बात बिगड़ जावै. आगली बात. होठ...
kagadansh.blogspot.com
कागदांश: June 2010
http://kagadansh.blogspot.com/2010_06_01_archive.html
कागदांश. शुक्रवार, 11 जून 2010. अंकिता पुरोहित कागदांश की हिन्दी कविता. अंकिता पुरोहित "कागदांश" की हिन्दी कविता. पिताजी. देखते है सब. मॉं की ममता को,. ममत्व को,. नहीं देख पाता कोई. पिता को. उनके खुशी भरे मन को. बनती है जब बेटी कुछ. सब सराहते हैं. मॉं के संस्कार ।. नहीं देख पाता कोई. पिता को. उनके मन में. छिपे हुए नाज को,. उनके आत्म विश्वास को।. होती है जब विदा बेटी. देखते है सब. मॉं के आंसुओ को! नहीं देख पाता कोई. पिता को,. उनके मन में छिपे. दर्द को. विदा करते वक्त. तो वह है बेटी. नई पोस्ट. पुस...
kagadansh.blogspot.com
कागदांश: बा मिठास कठै
http://kagadansh.blogspot.com/2013/03/blog-post.html
कागदांश. गुरुवार, 21 मार्च 2013. बा मिठास कठै. बा मिठास कठै. घर तो घर हो. म्हारो घर. घर में ई रैई. चौबीस बसंत. जठै कद हो. सुखां रो अंत ।. जद कदै ई. निकळती घर सूं. मा पापा जी. भाई अर बाई री. कई जोडी़ आंख. घर सूं ई. लारै चालती. जकी रुखाळती. म्हारो मारग. कित्तो मिठास हो. बां आंख्यां में ।. आज भी है. घर री मालकण भी. म्हैं खुद हूं. पण कठै बा बात. दिखै ई कोनीं अठै. जकी लारै छूटगी. बा मिठास कठै. अठै री आंख्यां में ।. प्रस्तुतकर्ता. लेबल: राजस्थानी कविता. कोई टिप्पणी नहीं:. नई पोस्ट. घर री राड़. पुस्...राज...