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कारवॉं karvaan: कविता कोश सम्मान 2011
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कारवॉं karvaan. नयी मंज़िल के मीरे-कारवाँ भी और होते हैं पुराने ख़िज़्रे-रह बदले वो तर्ज़े-रहबरी बदला -फ़िराक़ गोरखपुरी. सोमवार, 8 अगस्त 2011. कविता कोश सम्मान 2011. कविता कोश सम्मान 2011. प्रथम कविता कोश सम्मान समारोह जयपुर में सफलतापूर्वक संपन्न. और नरेश सक्सेना. एवं पाँच युवा कवियों ( दुष्यन्त. अवनीश सिंह चौहान. श्रद्धा जैन. पूनम तुषामड़. और सिराज फ़ैसल ख़ान. श्री ऋतुराज. श्री नंद भारद्वाज. संकल्प शर्मा. रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'. माया मृग. मीठेश निर्मोही. राघवेन्द्र. कविता कोश ट...सिरा...
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कारवॉं karvaan: August 2007
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कारवॉं karvaan. नयी मंज़िल के मीरे-कारवाँ भी और होते हैं पुराने ख़िज़्रे-रह बदले वो तर्ज़े-रहबरी बदला -फ़िराक़ गोरखपुरी. बुधवार, 8 अगस्त 2007. समझदारों का गीत - गोरख पांडे. हवा का रूख कैसा है , हम समझते हैं. हम उसे पीठ क्यॊं दे देते हैं , हम समझते हैं. हम समझते हैं खून का मतलब. पैसे की कीमत समझते हैं. क्या है पक्ष में विपक्ष में क्या हे हम समझते हैं. हम इतना समझते हैं कि समझने से डरते हैं और चुप रहते हैं. चुप्पी का मतलब हम समझते हैं. मगर हम क्या कर सकते हैं. Links to this post. नई पोस्ट. प्रे...संप...
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कारवॉं karvaan: May 2008
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कारवॉं karvaan. नयी मंज़िल के मीरे-कारवाँ भी और होते हैं पुराने ख़िज़्रे-रह बदले वो तर्ज़े-रहबरी बदला -फ़िराक़ गोरखपुरी. शुक्रवार, 23 मई 2008. नरीमन प्वाइंट पर - कविता - सैलानी सिंह. कुंवारी लड़की. बेचती है गजरे. लुभाती है नये-पुराने जोड़ों को. गजरों की गंध से. चंद जोड़ा वड़ा-पाव के वास्ते. कुंवारी लड़की बेचती है गजरे. कुंवारी लड़की नहीं जानती. बिस्तर की सलवटों के मायने. देहों के संसर्ग का अर्थ. देह की भूख की गंध का. उसे नहीं पता. उसे पता है. पेट की भूख. वड़ा-पाव की गंध. Links to this post. आवाज...
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कारवॉं karvaan: June 2008
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कारवॉं karvaan. नयी मंज़िल के मीरे-कारवाँ भी और होते हैं पुराने ख़िज़्रे-रह बदले वो तर्ज़े-रहबरी बदला -फ़िराक़ गोरखपुरी. सोमवार, 30 जून 2008. दिल्ली में सुबह - कविता - कुमार मुकुल. सीढि़यों से. गलियों में. उतरा ही था. कि हवा ने गलबहियां देते. कहा - इधर नहीं उधर. फिर कई मोड़ मुड़ता सड़क पर आया. तो बाएं बाजू ख्ड़ी प्रागैतिहासिक इमारत ने. अपना बड़ा सा मुंह खोल कहा - हलो. मैंने भी हाथ हिलाया और आगे बढ़ गया फुटपाथ पर-. लाल तलमलाता सा पुल चढ़ता. उनके साथ थे कुत्ते. हां-हां चलो. ठस्स कुर&#...अपने नव&#...
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कारवॉं karvaan: October 2007
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कारवॉं karvaan. नयी मंज़िल के मीरे-कारवाँ भी और होते हैं पुराने ख़िज़्रे-रह बदले वो तर्ज़े-रहबरी बदला -फ़िराक़ गोरखपुरी. शुक्रवार, 26 अक्तूबर 2007. यह जो महंत बैठे हैं दुर्गा के कुंड पर - शेर - ओ - सुखन. यह जो महंत बैठे हैं दुर्गा के कुंड पर,. अवतार बन के कूदेंगे परियों के झुंड पर। - इंशा. गया शैतान मारा एक सिजदे के न करने से. अगर लाखों बरस सिजदे में सर मारा तो क्या मारा। - जौक. जौक' जो मदरसे के बिगड़े हुए हैं मुल्ला. प्रतिक्रियाएँ:. 1 टिप्पणी:. Links to this post. इसे ईमेल करें. करने को त&...तुम...
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कारवॉं karvaan: April 2008
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कारवॉं karvaan. नयी मंज़िल के मीरे-कारवाँ भी और होते हैं पुराने ख़िज़्रे-रह बदले वो तर्ज़े-रहबरी बदला -फ़िराक़ गोरखपुरी. शनिवार, 12 अप्रैल 2008. हमने भगवान को पत्थर समझ के छोड दिया - आर चेतनक्रांति. क्या जाने करता है क्या महबूब का जलवा. सिजदे से उठा करते हैं होकर के कोई और।. दुनिया से जब मिला नहीं जो हमने था मांगा. देते फिरे दुनिया को जो था पास हमारे।. ना कोई शब्द ना आवाज ना स्पर्श कोई. हमने भगवान को पत्थर समझ के छोड़ दिया।. प्रतिक्रियाएँ:. कोई टिप्पणी नहीं:. Links to this post. और चांद. कोई ...
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कारवॉं karvaan: July 2007
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कारवॉं karvaan. नयी मंज़िल के मीरे-कारवाँ भी और होते हैं पुराने ख़िज़्रे-रह बदले वो तर्ज़े-रहबरी बदला -फ़िराक़ गोरखपुरी. शुक्रवार, 27 जुलाई 2007. शेर - ओ - सुखन. चली सिम्ते - गैब से इक हवा कि चमन सुरूर का जल गया. मगर एक शाखे - निहाले - गम जिसे दिल कहें वो हरी रही। - सिराज. आदमीअत और शै है इलम है कुछ और शै. कितना तोते को पढाया पर वो हैवां रहा । - जौक. मिरे सलीके से , मेरी निभी मुहब्बत में. उम्र , मैं नाकामियों से कम लिया। - मीर. प्रतिक्रियाएँ:. 2 टिप्पणियां:. Links to this post. नई पोस्ट. प्रे...
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कारवॉं karvaan: December 2008
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कारवॉं karvaan. नयी मंज़िल के मीरे-कारवाँ भी और होते हैं पुराने ख़िज़्रे-रह बदले वो तर्ज़े-रहबरी बदला -फ़िराक़ गोरखपुरी. शुक्रवार, 26 दिसंबर 2008. कुछ लोग चुरा लेते हैं आपका समय - कविता - रामकृष्ण पांडेय. कुछ लोग चुरा लेते हैं आपका समय. और आपको पता ही नहीं चलता. फिर उस पर घोड़े की तरह सवार होकर. चले जाते हैं दूर, बहुत दूर, बहुत आगे. आपको छोड़कर बहुत दूर,बहुत पीछे. आप खड़े रह जाते हैं. ठगे हुए से,हतप्रभ अपना पुनरमुल्यांकन करते. शाम के साथ पक्षियों की तरह. महाविस्फोट. पूर्ववत।. Links to this post. ज...
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कारवॉं karvaan: September 2008
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कारवॉं karvaan. नयी मंज़िल के मीरे-कारवाँ भी और होते हैं पुराने ख़िज़्रे-रह बदले वो तर्ज़े-रहबरी बदला -फ़िराक़ गोरखपुरी. रविवार, 28 सितंबर 2008. सफेद चाक हूं मैं - कुमार मुकुल. अंधेरी. उदास सड़कों पर. जीवन की. उष्ण, गर्म हथेली से. घिसा जाता. सफेद चाक हूं मैं. क्या. कभी मिटूंगा मैं. नहीं रह जाउंगा. मैं नहीं. जीवन बजेगा. कुछ देर. खाली हथेली सा. डग - डग - डग . प्रतिक्रियाएँ:. 5 टिप्पणियां:. Links to this post. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Labels: कविता. Links to this post. Pintere...
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कारवॉं karvaan: November 2007
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कारवॉं karvaan. नयी मंज़िल के मीरे-कारवाँ भी और होते हैं पुराने ख़िज़्रे-रह बदले वो तर्ज़े-रहबरी बदला -फ़िराक़ गोरखपुरी. शनिवार, 24 नवंबर 2007. आजाद - सुमित्रानंदन पंत की एक शिक्षाप्रद कविता. पैगम्बर के एक शिष्य ने. पूछा, 'हजरत बंदे को शक. है आजाद कहां तक इंसॉं. दुनिया में,पाबंद कहां तक? खड़े रहो! बोले रसूल तब,. अच्छा, पैर उठाओ उूपर'. जैस हुक्म! मुरीद सामने. खड़ा हो गया एक पैर पर! ठीक , दूसरा पैर उठाओ '. बोले हंस कर नबी फिर तुरत,. यह तो नामुमकिन है हजरत'. तुमसे एक पैर उठ उूपर,. Links to this post.