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रजनीश का ब्लॉग: June 2014
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Thursday, June 26, 2014. बारिश का इंतज़ार. बारिश . बारिश का इंतज़ार. जैसे बरसों से था. वक़्त की गरम धूप. पसीना भी सुखा ले गई थी. दिल पे बनी. मोटी दरारों में. कदम धँसने लगे थे. लगता है. भागते भागते. सूरज के करीब. पहुँच गया था मैं. जो इकट्ठा किया था. अपने हाथों से. अपनी किस्मत का पानी. वो भाप बना. उम्मीद के बादलों में. समा गया था. और जब गिरा पानी. बादलों से पहली बार. तो यूं लगा कि. भर जाएगा मेरा कटोरा. पूरा का पूरा. पर बादलों में. कहाँ था वो कालापन. कुछ मतलबी हवाओं संग. तरस खाकर,. Labels: इंतज़ार. कोई सस...
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रजनीश का ब्लॉग: February 2014
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Thursday, February 20, 2014. एक धारा. एक धारा. बहती हुई. रेत पत्थरों के समंदर में. बिखर जाती है. टूट जाती है. खंड-खंड हो. खो जाती है. उसका रास्ता ही. बन जाता है. उसका दुश्मन. उसके हमसफर ही. बन जाते हैं. उसके लुटेरे. और एक जलमाला. पैदा होते होते. वाष्पित हो जाती है. एक धारा. बूंद-बूंद बढ़ती है. और धाराओं को मिलाती. पाटों को सींचती. जीवन बांटती. पहाड़ों को चीरती. सपने बसाती. समंदर हो जाती है. उसका रास्ता ही. उसे बनाता है. धारा है संभावना. बहने की ललक है ऊर्जा. प्रवाह की दिशा. बदल सकता है. अपना राग. इतना...
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रजनीश का ब्लॉग: March 2014
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Monday, March 24, 2014. नया पुराना. होती है नई शुरुआत. हर दिन सुबह के आँगन में. और हर दिन. ढलती शाम के साथ. पहुँच जाता हूँ. उसी पुरानी रात के दरवाजे पर. जो लोरियां सुनाकर. सुला देती है हर बार. कि फिर देख सकूँ. एक नई शुरुआत का सपना. होती है शुरुआत. हर दिन एक नए सफर की. जो गलियों चौराहों से होता. पहुँच जाता है. थका हारा हर शाम. उसी चौखट पर. जो देती है आसरा. कि जुड़ सकें चंद साँसे. और ले लूँ मैं कुछ दम. फिर नए सफर के लिए. होती है शुरुआत. जो पेशानीयों पर पड़े बल और. बाहर वहाँ दरअसल. वो भीतर है. रंग स...
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रजनीश का ब्लॉग: April 2015
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Wednesday, April 22, 2015. दास्तान-ए-कदम. अपने सफ़र में. आगे की ओर ही. मेरे कदम निकले. ऐसा तो नहीं. एक ही रास्ते पर चले. ऐसा तो नहीं. कहीं ना मुड़े. ऐसा तो नहीं. कहीं ना फ़िसले. ऐसा तो नहीं. कभी ना हों थके. ऐसा तो नहीं. कई बार मेरे कदम ठिठके. सोचा कि फिर से करें शुरू. एक नई कोशिश. एक नई इबारत नया पन्ना. पर रुकना ना हुआ. और सोचा. अधूरी लाइन. कर लें पूरी. कई बार कदम मुड़े. और पहुँचे वापस वहीं. जहां था. कोई पिछला पड़ाव. जहां से शुरू की थी. एक नई कविता. एक नई कहानी. कई बार कदम चलते रहे. कदम रुक भी गए,. और मि...
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रजनीश का ब्लॉग: October 2014
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Wednesday, October 15, 2014. बारिश के बाद. बारिश के इंतज़ार में. रुक गई थी कलम. किताब पर पड़ी रही. आसमां तकते तकते. स्याही भी सूख चली थी. पन्ने झुलस रहे थे. तब बादल उमड़ पड़े. और फिर बारिश आ गई. कुछ छींटे पन्नों पर पड़े. और भीग गए कुछ शब्द. धुल गई कुछ लाइनें. एक पन्ना फिर कोरा हो गया. कुछ लाइनों को मिटाने की कोशिश की थी. पर बूंदें उन्हें अनछुआ छोड़ गईं. भीगी किताब को सुखाया. बारिश के जाने के बाद. बदली शक्ल वाली किताब लिए. यही सोचता रहा. क्यूँ हुई ये बारिश . बारिश का इंतज़ार. रजनीश (15.10.2014). याद और प&#...
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रजनीश का ब्लॉग: March 2015
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Sunday, March 22, 2015. हर दिन एक कहानी. हर दिन एक कहानी. लम्हा-दर-लम्हा. लिखती ज़िंदगानी. एक कहानी. थोड़ी सी आरजू थोड़े से अरमां. थोड़ी सी प्यास थोड़ा सा पानी. थोड़ी सी कसमें थोड़े से वादे. थोड़ी सी नई थोड़ी पुरानी. एक कहानी. थोड़ी सी जीत थोड़ी सी हार. थोड़ा सा प्यार थोड़ी तकरार. थोड़ा सा गम थोड़ी खुशी. थोड़ी गुलामी थोड़ी मनमानी. एक कहानी. थोडा सा दर्द थोड़ा सा जोश. थोड़ी मदहोशी थोड़ा सा होश. थोड़ी बातूनी थोड़ी खामोश. थोड़ी अनजानी थोड़ी पहचानी. एक कहानी. थोड़ी मोहब्बत थोड़ी इबादत. एक कहानी. एक कहानी. Labels: कहानी. प्य...
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रजनीश का ब्लॉग: September 2013
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Monday, September 30, 2013. अब क्या कहें. प्यार क्या है. क्या कहें. तकरार क्या है. क्या कहें. राह सूनी, ना पैगाम कोई. इंतज़ार क्या है. क्या कहें. हैं ना वो. ना तस्वीर उनकी. दीदार क्या है. क्या कहें. थोड़ी फकीरी. है मुफ़लिसी भी. बाज़ार क्या है. क्या कहें. दुश्मन नहीं. ना दोस्त कोई. तलवार क्या है. क्या कहें. दिल में दर्द. है सर भी भारी. बीमार क्या है. क्या कहें. घर नहीं. ना शहर कोई. दीवार क्या है. क्या कहें. जुबां कहती. निगाहें चुप हैं. इज़हार क्या है. क्या कहें. हर गली बस बैर मिलता. अब खिल गई. पेड&#...
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रजनीश का ब्लॉग: July 2013
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Friday, July 19, 2013. क्या करूँ? क्या करूँ. क्या लिखूँ चंद लाइनें. उकेर दूँ जननियों का दर्द. निरीह कोमल अनजान मासूम. नन्ही जान की व्यथा. और नमक डाल दूँ थोड़ा. पहले ही असह्य पीड़ा में. क्या करूँ. क्या लिखूँ दूसरी दुनिया से. और कोसूँ. एक तंत्र को जो बना. मुझ जैसे लोगों से ही. और थोप दूँ सारी जिम्मेवारी. आत्मकेंद्रित पाषाण हो चुकी. अपरिपक्व लोलुप बीमार मानसिकता पर. खुद बरी हो जाऊँ. और भूल जाऊँ सब कुछ. वक्त की तहों मे. नंगी सच्चाईयों को दबा दबा कर. क्या करूँ. क्या करूँ. क्या करूँ. Sunday, July 14, 2013.
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रजनीश का ब्लॉग: January 2015
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Monday, January 26, 2015. हम हैं गणतन्त्र . हम हैं गणतन्त्र. संप्रभुता सम्पन्न. समाजवादी है मन. धर्मनिरपेक्ष लोकतन्त्र. हम हैं गणतन्त्र. हम हैं आजाद. उड़ें ऊंचे आकाश. हो सबका विकास. प्रगति बने मंत्र. हम हैं गणतन्त्र. है स्वर्णिम इतिहास. संस्कृति है पास. विश्व अपना कुटुंब. सबसे प्रेम बने मंत्र. हम हैं गणतन्त्र. निर्धन का उत्थान. नारी को मिले स्थान. जय जवान जय किसान. युवाशक्ति बने मंत्र. हम हैं गणतन्त्र. विज्ञान का प्रसार. ज्ञान का संचार. सदी 21वीं हमारी. हो मजबूत अर्थतन्त्र. रजनीश ( 26.01.15 ). बसा ज...
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रजनीश का ब्लॉग: May 2013
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Monday, May 27, 2013. जैव विविधता. सूरज की श्वेत किरणों में. समाये हैं सब रंग. किरणों के अभाव में है. काला भयावह अंधेरा. श्वेत और काले आयामों के बीच. सांस लेती है एक खूबसूरत तस्वीर. सूरज चलाता है ब्रश. मिला सब रंगों को इक संग. श्वेत किरणें बरसती. धरती के कैनवास पर. और सांस लेते रंग चहुं ओर. बिखेरते इंद्रधनुषी छटा. एक ऐसा कैनवास. जो फैला जल थल और नभ पर. सुंदरता जन्म लेती है. इस विविधता में. और साँसे लेता है जीवन. अपने असंख्य स्वरूपों में. एक रंग का अस्तित्व और. उसकी सुंदरता. United Nations –. कई ज़&...