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वाग्वैभव: December 2013
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वाग्वैभव. स्वरचित रचनाएं. भाव सजाऊं तो छंद रूठ जाते हैं छंद मनाऊं तो भाव छूट जाते हैं यूँ अनगढ़ अनुभव कहते सुनते अल्हड झरने फूट जाते हैं -वन्दना. कथा लघु -कथा. कह मुकरियाँ. क्षणिकाएं. ग़ज़ल/अगज़ल. छंद आधारित. दोहागीत. मुक्तक /कता. व्यंग्य. स्त्री विमर्श. Sunday, December 29, 2013. नक्श फ़रियादी है . इक तसल्ली इक बहाना जो मिले ताखीर. हम न पूछेंगे खुदाया क्या सिला तदबीर. आँख पर बाँधे हुए कानून काली पट्टियाँ. हौसला कैसे बढ़े ऐसे में दामनगीर. हमक़दम होने लगा है जब हुनर अकसीर. लेखन Vandana Ramasingh. जाग&#...
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वाग्वैभव: July 2013
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वाग्वैभव. स्वरचित रचनाएं. भाव सजाऊं तो छंद रूठ जाते हैं छंद मनाऊं तो भाव छूट जाते हैं यूँ अनगढ़ अनुभव कहते सुनते अल्हड झरने फूट जाते हैं -वन्दना. कथा लघु -कथा. कह मुकरियाँ. क्षणिकाएं. ग़ज़ल/अगज़ल. छंद आधारित. दोहागीत. मुक्तक /कता. व्यंग्य. स्त्री विमर्श. Saturday, July 27, 2013. पतंगें थाम कर इठला रहा हूँ. हकीकत है कि जो मुस्का रहा हूँ. रफू कर जख्म को सिलता रहा हूँ. हताहत हो के रह जा श्राप मुझको. कि सर दीवार से टकरा रहा हूँ. सभी शामिल रहे उस कारवां में. लेखन Vandana Ramasingh. Thursday, July 11, 2013.
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वाग्वैभव: January 2015
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वाग्वैभव. स्वरचित रचनाएं. भाव सजाऊं तो छंद रूठ जाते हैं छंद मनाऊं तो भाव छूट जाते हैं यूँ अनगढ़ अनुभव कहते सुनते अल्हड झरने फूट जाते हैं -वन्दना. कथा लघु -कथा. कह मुकरियाँ. क्षणिकाएं. ग़ज़ल/अगज़ल. छंद आधारित. दोहागीत. मुक्तक /कता. व्यंग्य. स्त्री विमर्श. Monday, January 26, 2015. फासले भी हैं जरूरी. मीत बनकर ये खड़े हैं शीत पावस घाम. पंक्ति पौधों की सुहानी दृश्य मन अभिराम. धडधडाती रेल गुजरे गूँजता जब शोर. सह रही घर्षण निरंतर धारती पर ओज. रूपमाला छंद. लेखन Vandana Ramasingh. लेबल: कविता. जो थके...कहते...
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वाग्वैभव: June 2013
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वाग्वैभव. स्वरचित रचनाएं. भाव सजाऊं तो छंद रूठ जाते हैं छंद मनाऊं तो भाव छूट जाते हैं यूँ अनगढ़ अनुभव कहते सुनते अल्हड झरने फूट जाते हैं -वन्दना. कथा लघु -कथा. कह मुकरियाँ. क्षणिकाएं. ग़ज़ल/अगज़ल. छंद आधारित. दोहागीत. मुक्तक /कता. व्यंग्य. स्त्री विमर्श. Friday, June 21, 2013. हिमगिरि के उत्तुंग शिखर पर बैठ शिला की शीतल छाँह. एक पुरुष भीगे नयनों से देख रहा था प्रलय प्रवाह. नीचे जल था ऊपर हिम था एक तरल था एक सघन. वयस्त बरसने लगा अश्रुमय यह प्रलय हलाहल नीर. यदि नहीं तो जरा आकल...लेखन Vandana Ramasingh.
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वाग्वैभव: September 2013
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वाग्वैभव. स्वरचित रचनाएं. भाव सजाऊं तो छंद रूठ जाते हैं छंद मनाऊं तो भाव छूट जाते हैं यूँ अनगढ़ अनुभव कहते सुनते अल्हड झरने फूट जाते हैं -वन्दना. कथा लघु -कथा. कह मुकरियाँ. क्षणिकाएं. ग़ज़ल/अगज़ल. छंद आधारित. दोहागीत. मुक्तक /कता. व्यंग्य. स्त्री विमर्श. Monday, September 30, 2013. हुआ सम्मान नारी का यहाँ नर नाम से पहले. सिया हैं राम से पहले व राधे श्याम से पहले. समेटा है मेरा अस्तित्व धारोंधार तुमने. कसक उठती है सोचें हम जरा परिणाम से पहले. लेखन Vandana Ramasingh. Sunday, September 22, 2013. सप्तर...
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वाग्वैभव: May 2015
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वाग्वैभव. स्वरचित रचनाएं. भाव सजाऊं तो छंद रूठ जाते हैं छंद मनाऊं तो भाव छूट जाते हैं यूँ अनगढ़ अनुभव कहते सुनते अल्हड झरने फूट जाते हैं -वन्दना. कथा लघु -कथा. कह मुकरियाँ. क्षणिकाएं. ग़ज़ल/अगज़ल. छंद आधारित. दोहागीत. मुक्तक /कता. व्यंग्य. स्त्री विमर्श. Friday, May 15, 2015. न डर तू सलोनी. बहुत तेज है धूप संसार की. सुलभ छाँव तेरे लिए प्यार की. उदासी मिटा वेदना मैं हरूँ. अरी लाडली तू बता क्या करूँ. व्यथा पीर आये सताए मुझे. मगर आँच छूने न पाए तुझे. सरलमन बहन तू सरस काव्य है. लेखन Vandana Ramasingh. ज़ì...
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वाग्वैभव: August 2013
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वाग्वैभव. स्वरचित रचनाएं. भाव सजाऊं तो छंद रूठ जाते हैं छंद मनाऊं तो भाव छूट जाते हैं यूँ अनगढ़ अनुभव कहते सुनते अल्हड झरने फूट जाते हैं -वन्दना. कथा लघु -कथा. कह मुकरियाँ. क्षणिकाएं. ग़ज़ल/अगज़ल. छंद आधारित. दोहागीत. मुक्तक /कता. व्यंग्य. स्त्री विमर्श. Friday, August 30, 2013. बाड़े. मंत्रियों पंडितों से विचार विमर्श कर पाया कि यह किसी परिवर्तन का संकेत है. तब तो जल्द ही कुछ सोचना होगा राजा परेशान हो उठा. राजा के मन में सपने का भय अब भी था. लेखन Vandana Ramasingh. Saturday, August 24, 2013. लेखन ...
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वाग्वैभव: June 2014
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वाग्वैभव. स्वरचित रचनाएं. भाव सजाऊं तो छंद रूठ जाते हैं छंद मनाऊं तो भाव छूट जाते हैं यूँ अनगढ़ अनुभव कहते सुनते अल्हड झरने फूट जाते हैं -वन्दना. कथा लघु -कथा. कह मुकरियाँ. क्षणिकाएं. ग़ज़ल/अगज़ल. छंद आधारित. दोहागीत. मुक्तक /कता. व्यंग्य. स्त्री विमर्श. Wednesday, June 11, 2014. 8216; फूल कौन तोड़ेगा डालियाँ समझती हैं '. मुस्कुरा किसे देखे बालियाँ समझती हैं. लाज के हैं क्या माने कनखियाँ समझती हैं. रंग की हिफ़ाज़त में क्यूँ न घर रहा जाए. लेखन Vandana Ramasingh. लेबल: ग़ज़ल/अगज़ल. Subscribe to: Posts (Atom).
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वाग्वैभव: March 2014
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वाग्वैभव. स्वरचित रचनाएं. भाव सजाऊं तो छंद रूठ जाते हैं छंद मनाऊं तो भाव छूट जाते हैं यूँ अनगढ़ अनुभव कहते सुनते अल्हड झरने फूट जाते हैं -वन्दना. कथा लघु -कथा. कह मुकरियाँ. क्षणिकाएं. ग़ज़ल/अगज़ल. छंद आधारित. दोहागीत. मुक्तक /कता. व्यंग्य. स्त्री विमर्श. Sunday, March 30, 2014. जिस्मो जाँ अब अदालती हो क्या. साँस दर साँस पैरवी हो क्या. क्यूँ उदासी का अक्स दिखता है. ये बताओ कि आरसी हो क्या. थरथराते हैं लब जो रह-रहकर. कुछ खरी सी या अनकही हो क्या. लेखन Vandana Ramasingh. Sunday, March 16, 2014. शिष...
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वाग्वैभव: December 2014
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वाग्वैभव. स्वरचित रचनाएं. भाव सजाऊं तो छंद रूठ जाते हैं छंद मनाऊं तो भाव छूट जाते हैं यूँ अनगढ़ अनुभव कहते सुनते अल्हड झरने फूट जाते हैं -वन्दना. कथा लघु -कथा. कह मुकरियाँ. क्षणिकाएं. ग़ज़ल/अगज़ल. छंद आधारित. दोहागीत. मुक्तक /कता. व्यंग्य. स्त्री विमर्श. Tuesday, December 30, 2014. दिखने लगी बैचैनी अब नन्हीं बयाओं में. बारूद कहीं फैला लाज़िम ही फ़िज़ाओं में. दिखने लगी बैचैनी अब नन्हीं बयाओं में. जब कुछ न असर दिखता दुनिया की दवाओं में. लेखन Vandana Ramasingh. प्रतिक्रियाएँ:. Sunday, December 28, 2014. जì...