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-: July 2013
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इन्हें भी देखें. लघुकथाएं. व्यंग्यश्री-२०१४. हिंदी व्यंग्य. कुछ यादें- बेतरतीब सी . कार्टून्स. अपने गिरेबां में ! बुधवार, 24 जुलाई 2013. तुम यहां! प्राकृतिक आपदा से हजारों तीर्थयात्री मारे गए. मंदिर नष्ट हो गया. बस्तियां उजड़ गई. पूरा देवधाम वीरान हो गया ।. मातादीन भी सपरिवार देव-दर्शन और पुण्य कमाने के लिए गए थे. गिरते-पड़ते घर पहुंचे। भारी मन से दरवाजे का ताला खोला।. अंदर देखते ही उनकी चीख निकल गई -. यहीं थे क्या. प्रस्तुतकर्ता. जवाहर चौधरी. 1 टिप्पणी:. इसे ईमेल करें. नई पोस्ट. 160;  ...160; &#...
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-: May 2015
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इन्हें भी देखें. लघुकथाएं. व्यंग्यश्री-२०१४. हिंदी व्यंग्य. कुछ यादें- बेतरतीब सी . कार्टून्स. अपने गिरेबां में ! बुधवार, 27 मई 2015. घर किसका? 8216;‘ घर! 8217;’ जगदीश्वर ने पूछा ।. 8216;‘ मेरा घर। बेचना है।’’. 8216;‘ तुम्हारा घर! तुम्हारा घर कहां? 8216;‘ मेरा घर प्रभु, जिसमें मैं रहता हूं।’’. 8216;‘ परिहास कर रहे हो जगदीश्वर।’’. 8216;‘ सो तो ठीक है, लेकिन . ’’. 8216;‘ आप मुझे भ्रमित कर रहे हैं जगदीश्वर ।’’. 8216;‘ फिर ! प्रस्तुतकर्ता. जवाहर चौधरी. कोई टिप्पणी नहीं:. इसे ईमेल करें. नई पोस्ट. प्रक&#...
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-: January 2013
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इन्हें भी देखें. लघुकथाएं. व्यंग्यश्री-२०१४. हिंदी व्यंग्य. कुछ यादें- बेतरतीब सी . कार्टून्स. अपने गिरेबां में ! शुक्रवार, 18 जनवरी 2013. बहुमुखी. प्रस्तुतकर्ता. जवाहर चौधरी. कोई टिप्पणी नहीं:. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. Pinterest पर साझा करें. नई पोस्ट. पुराने पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. सदस्यता लें संदेश (Atom). कुल पृष्ठ दृश्य. नाटक - " नुक्ता ". मानस-गगन प्रतीक्षा प्रकाशन , इंदौर. शिल्पायन , दिल्ली. ब्लॉग आर्काइव. बहुमुखी. कर्मफल . . . . 160; ...कहत...
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मानस-गगन की स्मृति को समर्पित: महंगाई - 2
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मानस-गगन की स्मृति को समर्पित. गगन मौर्य - मानस चौधरी. व्यंग्यश्री २०१४. अपने गिरेबां में. हिंदी व्यंग्य. लघुकथाएं. कुछ यादें, बेतरतीब सी . शुक्रवार, 25 जून 2010. महंगाई - 2. प्रस्तुतकर्ता. जवाहर चौधरी. कोई टिप्पणी नहीं:. एक टिप्पणी भेजें. नई पोस्ट. पुरानी पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. सदस्यता लें टिप्पणियाँ भेजें (Atom). कुल पृष्ठ दृश्य. परिचय / F. I . R . जवाहर चौधरी. इन्दौर, मघ्य प्रदेश, India. मेरा पूरा प्रोफ़ाइल देखें. लोकप्रिय पोस्ट. महंगाई - १. महंगाई - 3. डायन महंगाई मार गई! महंगाई - 2. भरो भरो!
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अपने गिरेबां में: October 2010
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अपने गिरेबां में. ग़ालिब-ए-खस्ता के बगैर, कौन से काम बंद हैं . रोइए ज़ार ज़ार क्या, कीजिये हाय हाय क्यों . इन्हें भी देखें . व्यंग्यश्री - 2014. हिंदी व्यंग्य. कुछ यादें, बेतरतीब सी . लघुकथाएं. कार्टून्स. शुक्रवार, 29 अक्तूबर 2010. जिन्दगी ३६५० दिन! क्या किया अब तक. पूंजी सा समय खर्च दिया. पाया क्या. देखते देखते दिन कपूर हुए. कहां गए! न गिनना समय से नजरें चुराना नहीं है क्या. दिन खिसक गए । दस साल में. दिनों में सिमट जाती है । इसमें आ...दिन खर्च होने के बाद बचे. दिन और हासिल हुई न&...रही केवल. सुबह&...
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अपने गिरेबां में: आँख वालों में अंधा राजा !! / LEADER WITHOUT EYES.
https://jawaharchoudhary.blogspot.com/2010/09/leader-without-eyes.html
अपने गिरेबां में. ग़ालिब-ए-खस्ता के बगैर, कौन से काम बंद हैं . रोइए ज़ार ज़ार क्या, कीजिये हाय हाय क्यों . इन्हें भी देखें . व्यंग्यश्री - 2014. हिंदी व्यंग्य. कुछ यादें, बेतरतीब सी . लघुकथाएं. कार्टून्स. सोमवार, 13 सितंबर 2010. आँख वालों में अंधा राजा! आजादी की लड़ाई में वे देश का नेतृत्व कर रहे थे. वहीं स्त्री शिक्षा. बाल विवाह. बाल विवाह रोकना है तो सरकार रोके. कानून काम करे. पुलिस देखे । हम तो जनभावना और परंपरा के खिलाफ नह&...यदि वर्तमान युग में भी हमार...प्रस्तुतकर्ता. जवाहर चौधरी. हिंद&...एक बì...
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..: January 2015
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ब्लॉग के अन्य प्रष्ठों को देंखें. व्यंग्यश्री - २०१४. अपने गिरेबां में. लघुकथाएं. कुछ यादें बेतरतीब सी. कार्टून्स. बुधवार, 28 जनवरी 2015. सुनो जगदीश्वर! कृपया इरशाद कहें जगदीश्वर,. कुछ कालजयी कविताएं पेश करता हूं,. आशीर्वाद दीजिएगा,. मेरी पहली कविता है. मंजर में खंजर. ठहरो कवि,. ये क्या हो रहा है! जानते नहीं हो कि मंदिर में किसी भी व्यसन के साथ आना मना है. बाहर सूचनापट्ट पर भी साफ साफ लिखा हुआ है।. तुम यहां कविता नहीं सुना सकते हो।. कवि ने तर्क दिया।. अब भुगतेगा कौन. मुझे तो आश्चर...कवि ने जग...कवि...
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..: December 2014
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ब्लॉग के अन्य प्रष्ठों को देंखें. व्यंग्यश्री - २०१४. अपने गिरेबां में. लघुकथाएं. कुछ यादें बेतरतीब सी. कार्टून्स. गुरुवार, 25 दिसंबर 2014. इलाज और बीमारी के बीच कूदफांद. जो कभी बीमारी घोषित थे , सत्ता में आने के बाद इलाज हैं । जिससे बचने का ढोल पीटा जा रहा था अब वो शिलाजीत है. देश को मर्द बनाने की दवा। साम. नहीं हुआ तो संस्कृति रक्षक खराब क्र देंगे. मनना होगा कि. विकास आगे नहीं. पांच हजार वर्ष पीछे है।. भविष्य में डर. वह मान लेती है कि. क्या हो गया. क्या बताऊ. हो गया है।. 8216; गेटआउट. क्या ...दिख...