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मौन के खाली घर में... ओम आर्य: August 2010
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मौन के खाली घर में. ओम आर्य. यही करता रहा है. Friday, August 20, 2010. अब और बंजर होने की जगह नहीं हो. वे टूटें. भूकंप के मकानों की तरह. और फटें. बादलों की तरह. हम कहीं दूर सूखे में बैठ कर. देखें उनका टूटना और फटना. लिखे उनके दुख और खुश होवें. टूट पड़ें सड़क पे. लाल बत्ती के हरी होते हीं. और बाजू में. बच कर निकलने के लिए संघर्ष करते. साइकिल वाले की साँसों का. उथल-पुथल देखते हुए. पार कर जाएँ सफ़र. रात की तेज बारिश में. बह गयी हों सारी यादें. तब भी सुबह उठ कर हम टाल जाएँ. अपनी मासूमियत. उधर पत्थर फ...
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हलंत: February 2011
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Saturday, 19 February 2011. सन्नाटे में बेरंग तस्वीरें. पुराना पड़ रहा हूँ नए पानी के साथ. खाली बोतल उदासी का सबब है और आधी खाली हुई बोतल के बाकी हिस्से में उदासी छुटी रह जाती है…. गाय का गला या घर की दीवार, मेरे भीतर अनगिनत ध्वनियाँ हैं. रीत गया कुछ अभी बीता नही. तस्वीरों में रह गए लोग. होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे…. प्रस्तुतकर्ता. इस पोस्ट से संबंधित लिंक. लेबल फ़ोटोग्राफी. Tuesday, 15 February 2011. यूँही निर्मल वर्मा - 1. स्मृतियों से भी. पिक्चर-पोस्टकार्ड. का प्रोग्राम. जैसे एक झी...क्ष...
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पढ़ते-पढ़ते: September 2012
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Friday, September 28, 2012. डान पगिस : बातचीत. इजरायली कवि डान पगिस की एक और कविता. बातचीत : डान पगिस. अनुवाद : मनोज पटेल). Posted by मनोज पटेल. Labels: डान पगिस. Wednesday, September 26, 2012. अफ़ज़ाल अहमद सैयद : कौन क्या देखना चाहता है. रोकोको और दूसरी दुनियाएं' संग्रह से अफ़ज़ाल अहमद सैयद की एक और कविता. कौन क्या देखना चाहता है : अफ़ज़ाल अहमद सैयद. लिप्यंतरण : मनोज पटेल). वेंडी डी. हशरात के खिलाफ हमारी जंग. उनकी खुशकिस्मती से. इस बार गर्मियों में. जाने का मंसूबा. तर्क कर चली हैं. आरिज़...मुस...
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मौन के खाली घर में... ओम आर्य: February 2011
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मौन के खाली घर में. ओम आर्य. यही करता रहा है. Tuesday, February 8, 2011. रूह में नंगे जाना होता है. मैं चलता गया था उसकी तरफ. दूरी कितनी तय हुई मालूम नही. रास्ते में मै कही ठहरा नही जिस्म पर. और वो भी. रूह से पहले तक. दिखायी नही दी एक बार भी. अचानक से हुआ कि छू लूं. जैसे ही दिखी पर. अदृश्य हो गयी हाथ बढाते ही. तब लगा मैं. लिबास साथ लिये आ गया था. लौटना पड़ा मुझे. रूह में नंगे जाना होता है. Tuesday, February 08, 2011. Labels: अदृश्य. Saturday, February 5, 2011. और ये नया साल भी. तुम तक पहु...रूह...
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नवागंतुक: February 2008
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रेडियो साक्षात्कार. वीडियो. कवितायें. ताजा तरीन. नेपाली पत्रिका साहित्य सरिता में मेरी कविता का नेपाली अनुवाद. आते जाते लोग. मुझे पढने वाले मित्र. चेप्पियाँ. Objectivism atheism self belief hindi poem hypocrisy. अनुभूति. आलोक शंकर. परछाइयाँ. हिन्दी. Thursday, February 21, 2008. राम नही बसते धरती के मंदिर और शिवालो में. या चन्दन टीका करके बस भोग लगाने वालो में. वे मर्यादा की प्रधानता का प्रतीक हैं , संबल है. Posted by Alok Shankar. हिन्दी. Wednesday, February 20, 2008. आलोक शंकर. Posted by Alok Shankar.
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नवागंतुक: September 2010
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रेडियो साक्षात्कार. वीडियो. कवितायें. ताजा तरीन. नेपाली पत्रिका साहित्य सरिता में मेरी कविता का नेपाली अनुवाद. आते जाते लोग. मुझे पढने वाले मित्र. चेप्पियाँ. Objectivism atheism self belief hindi poem hypocrisy. अनुभूति. आलोक शंकर. परछाइयाँ. हिन्दी. Sunday, September 19, 2010. प्रतिध्वनि. किसी आश्वस्त घाटी में कभी आवाज यदि गूँजे. समझना यह तुम्हारी ही प्रतिध्वनि लौट कर आयी ।. यही आवाज जिसकी धार धड़कन तक पहुँचती है. तभी आवाज़ अपनी लौटकर वापस चली आई ।. Posted by Alok Shankar. Monday, September 6, 2010. मí...
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नवागंतुक: February 2009
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रेडियो साक्षात्कार. वीडियो. कवितायें. ताजा तरीन. नेपाली पत्रिका साहित्य सरिता में मेरी कविता का नेपाली अनुवाद. आते जाते लोग. मुझे पढने वाले मित्र. चेप्पियाँ. Objectivism atheism self belief hindi poem hypocrisy. अनुभूति. आलोक शंकर. परछाइयाँ. हिन्दी. Thursday, February 19, 2009. एक और कविता. देखना ,. तुम्हारे शब्द हिलें नहीं. गाड़ देना जमीन में उन्हें. और रख देना उनके ऊपर पत्थर. ताकि हिला न पाएं अपनी पलकें. और निकल न पाएं कोंपल बनकर -. इस तरह रखना उन्हें. कठोर , नमीरहित हो कर. वज्र ऐसा. Find me on Twitter.
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नवागंतुक: May 2009
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रेडियो साक्षात्कार. वीडियो. कवितायें. ताजा तरीन. नेपाली पत्रिका साहित्य सरिता में मेरी कविता का नेपाली अनुवाद. आते जाते लोग. मुझे पढने वाले मित्र. चेप्पियाँ. Objectivism atheism self belief hindi poem hypocrisy. अनुभूति. आलोक शंकर. परछाइयाँ. हिन्दी. Thursday, May 28, 2009. स्वप्न यूँ मरते नहीं हैं. हो गया इतिहास लोहित. यदि हमारे ही लहू से. है खड़ा विकराल अरि. द्रुत छीनता विश्रान्ति भू से. बादलों की हूक से. पर्वत-हृदय डरते नहीं हैं. तीन रंगों से बनी जो. पर उगी कोई उदासी. है कठिन चलना अगर. उसने उ...