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Sharad Singh: July 2015
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मित्रों का स्वागत है. डॉ. शरद सिंह सम्मानित. मेरी कुछ ग़ज़लें. Poems on Senior citizens by Dr (Miss) Sharad Singh .डॉ (सुश्री) शरद सिंह की वरिष्ठ नागरिकों पर कविताएं. मेरी यात्राएं. शुक्रवार, जुलाई 31, 2015. प्रेमचंद की "धनिया" . Premchand ki Dhaniya. A poem of Dr Sharad Singh. प्रस्तुतकर्ता. Dr (Miss) Sharad Singh. कोई टिप्पणी नहीं:. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. Pinterest पर साझा करें. लेबल: कविता. डॉ शरद सिंह. प्रेमचंद. Dr Sharad Singh addressed in. Dr Sha...
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आरंभन: 08/01/2011 - 09/01/2011
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गुरुवार, 25 अगस्त 2011. अच्छा है. यूँ समंदर में अकेले डूब जाना अच्छा है. यूँ आसमा में दूर तन्हा उड़ जाना अच्छा है. कोई छोड़ दे रस्ते में साथ अपना तो. ज़िन्दगी ये तन्हा और तन्हा जी जाना अच्छा है. यूँ शिशिर की रात में ठिठुर जाना अच्छा है. यूँ पवन के झोकों में बह जाना अच्छा है. कोई ग़म दे दस्तक अगर दिल पे बार- बार. तो ऐसी याद से दूर और दूर हो जाना अच्छा है. उनके ख़्वाबों में खुद से अन्जान हो जाना अच्छा है,. यकलख्त मिल जाए यहाँ गर भीड़ में सनम. भीड़ में गुमनाम. प्रस्तुतकर्ता. लेबल: कविता. इस संदेश ...इसे...
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आरंभन: 05/01/2011 - 06/01/2011
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शनिवार, 7 मई 2011. I m alone in crowd. I m sleepless in night. U r not here,my mother,. To tell me what's right. I feel lost in this huge. I feel like m broken inside. Distress hits me repeatedly. Like a rock is hit by tide. And u r not here to encourage me. Then how can i fight? I m unable to see my destination. It's so dark outside. It's so dark as i can't see anything,. It's darker than the blackest night. And u r not here , my mother,. To show me the light. प्रस्तुतकर्ता. बुधवार, 4 मई 2011. I DON'T K...
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आरंभन: 03/01/2013 - 04/01/2013
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शुक्रवार, 1 मार्च 2013. इंतज़ार. दरवाजा खुला रखो, इंतज़ार करो. कभी किसी मुसाफिर से प्यार करो. कलियों! आज ज़रा देर से खिलो. प्यासे भँवरे को और बेक़रार करो. तनहाई में कमरे से भी बात करो. कभी दीवारों को अपना राज़दार करो. तुम्हारी नफरत से मैं नहीं डरने वाला. रास्ता अब कोई और इख्तियार करो. बुत-ए-पत्थर का अब भरम छोड़ो. आओ सजदा-ए-दिल-ए-यार करो. प्रस्तुतकर्ता. 1 टिप्पणी:. इस संदेश के लिए लिंक. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. लेबल: इंतज़ार. दोस्ती. नई पोस्ट. कोई प...
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आरंभन: 01/01/2012 - 02/01/2012
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सोमवार, 30 जनवरी 2012. अभी हारा नहीं हूँ मैं. बेशक हार हुयी है मेरी. पर हारा नहीं हूँ मैं. मुझको लाचार न समझो तुम. बेचारा नहीं हूँ मैं. रुका हूँ, गिरा हूँ, ज़मीं पर पड़ा हूँ. पर ज़िंदा हूँ अभी,. किस्मत का मारा नहीं हूँ मैं. फिर उठूँगा, बढ़ूँगा,. फ़लक तक चढ़ूँगा. मैं सूरज हूँ,. उगना ढलना आदत है मेरी. टूट के पल में खो जाये. वो तारा नहीं हूँ मैं. बेशक हार हुयी है मेरी. पर अभी हारा नहीं हूँ मैं. प्रस्तुतकर्ता. 6 टिप्पणियां:. इस संदेश के लिए लिंक. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! लेबल: कविता. 1 मेरी...
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आरंभन: 11/01/2011 - 12/01/2011
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मंगलवार, 29 नवंबर 2011. ज़िंदगी का कुआँ. जाने क्यों तुम इसे. मौत का कुआं कहते हो. मेरे लिए तो इसका हर ज़र्रा. ज़िंदगी से बना है. कभी ध्यान से देखो. ये ज़िंदगी का कुआँ है. जैसे ज़िंदगी हमें. गोल गोल नचाती है. वैसे मेरी मोटर भी. चक्करों मे चलती है. रंग बदलता है जीवन. नित नए जैसे. वैसे ही ये अपने. गियर बदलती है. ध्यान भटकने देना. दोनों जगह मना है. कभी ध्यान से देखो. ये ज़िंदगी का कुआँ है. रफ्तार सफलता की. ऊपर ले जाती है. और आकांक्षा गुरुत्व है. संतुलन उस से ही है. कभी आओ मेरे घर. ऐ खुदा! मैंन...Facebook ...
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आरंभन: 02/01/2012 - 03/01/2012
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मंगलवार, 21 फ़रवरी 2012. तुझे भूलना मुमकिन भी हो जाता लेकिन. तेरी याद दिलाने का जहां में दस्तूर बहुत है. न की कद्र तेरी जब थी जानाँ पास तू मेरे. आज जब कद्र करता हूँ तो तू दूर बहुत है. हमारा इश्क ग़र परवान चढ़ता तो क्यूँ कर. मैं मगरूर बहुत हूँ और तू मजबूर बहुत है. सैकड़ो ज़ख्म सह कर भी जी लेता है इंसान. मगर जाँ लेने को दिल पे इक नासूर बहुत है. ठुकरा दिया "विक्रम" जिसे वो फिर न मिलेगा. जहां में किस्सा ये चाहत का मशहूर बहुत है. प्रस्तुतकर्ता. 4 टिप्पणियां:. इसे ईमेल करें. नई पोस्ट. हे प्रभु! कोई प्...
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आरंभन: 12/01/2011 - 01/01/2012
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शुक्रवार, 2 दिसंबर 2011. कुछ शेर यूं ही. खुशबू, भँवरे, बहार और गुलाब भी होगा. उसका नूर है यहाँ, तो आफताब भी होगा. उसकी कत्थई आँखों में हैं मस्तियाँ कितनी. उसकी आँखों का दूसरा नाम शराब भी होगा. मैं फकीर बनके रोज़ उसके दर पे जाता हूँ. जाने कब अपने घर वो वहाब भी होगा. ये पल मे बनते है पल ही मे टूट जाते हैं. मेरे ख्वाबो सा क्या कोई हबाब भी होगा. मेरी मुफ़लिसी पे तू अब न हंसा कर सुन ले. तेरी हर बात का इक दिन जवाब भी होगा. ऐ खुदा! प्रस्तुतकर्ता. अनुराग सिंह. 8 टिप्पणियां:. इसे ईमेल करें. नई पोस्ट. मेर&#...
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आरंभन: 06/01/2012 - 07/01/2012
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सोमवार, 25 जून 2012. वो वक़्त मिलन के. ज़माने बाद आज खुशियाँ दर पे आई,. चंद लम्हों की मुलाकात संग लाई ।. पहनकर सफ़ेद परियों सा चोला,. आईने के सामने अपनी लटो को खोला।. मिलन की बात पर हम निखर आए थे,. अचानक आईने में वो नज़र आए थे ।. कहे की ओढ़ लो कोई काली सी ओढ़नी ,. बन जाओ आज तुम मेरी रागिनी।. धड़कने तेज़ मध्यम सी होने लगी,. जब उनकी हथेली हमे छूने लगी ।. आ गए वो हमारे इतने पास,. जितना की धड़कन और होती है सांस।. सहसा कोई आवाज़ कानों में पड़ी,. लगा हर ओर धुआं सा है,. इसे ईमेल करें. नई पोस्ट. 1 मेरì...
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