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गुमशुदा चेहरे gumshuda-chehre

गुमशुदा चेहरे. मेरी कहानिया इस ब्लॉग की नज़र हैं. ताकि सनद रहे.वक़्त ज़ुरूरत काम आये. वरना बकौल ग़ालिब -. आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक. कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक! कुल पृष्ठ दृश्य. शुक्रवार, 20 सितंबर 2013. फिर क्यों? ऐसा नही है. कि रहता है वहाँ घुप्प अन्धेरा. ऐसा नही है. कि वहां सरसराते हैं सर्प. ऐसा नही है. कि वहाँ तेज़ धारदार कांटे ही कांटे हैं. ऐसा नही है. कि बजबजाते हैं कीड़े-मकोड़े. ऐसा भी नही है. कि मौत के खौफ का बसेरा है. फिर क्यों. फिर क्यों. फिर क्यों. फिर क्यों. अनवर सुहैल. साह...

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गुमशुदा चेहरे. मेरी कहानिया इस ब्लॉग की नज़र हैं. ताकि सनद रहे.वक़्त ज़ुरूरत काम आये. वरना बकौल ग़ालिब -. आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक. कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक! कुल पृष्ठ दृश्य. शुक्रवार, 20 सितंबर 2013. फिर क्यों? ऐसा नही है. कि रहता है वहाँ घुप्प अन्धेरा. ऐसा नही है. कि वहां सरसराते हैं सर्प. ऐसा नही है. कि वहाँ तेज़ धारदार कांटे ही कांटे हैं. ऐसा नही है. कि बजबजाते हैं कीड़े-मकोड़े. ऐसा भी नही है. कि मौत के खौफ का बसेरा है. फिर क्यों. फिर क्यों. फिर क्यों. फिर क्यों. अनवर सुहैल. साह...
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गुमशुदा चेहरे. मेरी कहानिया इस ब्लॉग की नज़र हैं. ताकि सनद रहे.वक़्त ज़ुरूरत काम आये. वरना बकौल ग़ालिब -. आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक. कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक! कुल पृष्ठ दृश्य. शुक्रवार, 20 सितंबर 2013. फिर क्यों? ऐसा नही है. कि रहता है वहाँ घुप्प अन्धेरा. ऐसा नही है. कि वहां सरसराते हैं सर्प. ऐसा नही है. कि वहाँ तेज़ धारदार कांटे ही कांटे हैं. ऐसा नही है. कि बजबजाते हैं कीड़े-मकोड़े. ऐसा भी नही है. कि मौत के खौफ का बसेरा है. फिर क्यों. फिर क्यों. फिर क्यों. फिर क्यों. अनवर सुहैल. साह...

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गुमशुदा चेहरे gumshuda-chehre: November 2012

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गुमशुदा चेहरे. मेरी कहानिया इस ब्लॉग की नज़र हैं. ताकि सनद रहे.वक़्त ज़ुरूरत काम आये. वरना बकौल ग़ालिब -. आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक. कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक! कुल पृष्ठ दृश्य. मंगलवार, 13 नवंबर 2012. दो पाटन के बीच. उपन्यास अंश. दो पाटन के बीच. अनवर सुहैल. सलमा खटती, दिन-भर खटती. कभी न थकती, कभी न थकती'. या फिर 'मम्दू पहलवान हैं क्या? सलमा ठहरी अपने लाचार-बेज़ार अब्बू की बिटिया।अम्मी होत&#2...प्रस्तुतकर्ता. कोई टिप्पणी नहीं:. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! नई पोस्ट. Gyarah sitambar ke baad.

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गुमशुदा चेहरे gumshuda-chehre: आर्कुटिंयन : कहानी : अनवर सुहैल

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गुमशुदा चेहरे. मेरी कहानिया इस ब्लॉग की नज़र हैं. ताकि सनद रहे.वक़्त ज़ुरूरत काम आये. वरना बकौल ग़ालिब -. आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक. कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक! कुल पृष्ठ दृश्य. बुधवार, 18 सितंबर 2013. आर्कुटिंयन : कहानी : अनवर सुहैल. अनवर सुहैल. साहनी साहब ने आरकुट लागिन किया।. जूसीपुस्सी69 आन-लाईन मिली।. साहनी साहब ने चैटिंग पैड पर टाईप किया-‘‘हैलो बेब’’. तत्काल जवाब मिला-‘‘हाय सैक्सी’’. 8216;‘आज क्या पहन रखा है? 8216;‘क्या कुछ पहनना जरूरी है? 8216;‘ओ, मीन्स? यानी अब तक ज&#2367...इसक&#2366...

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गुमशुदा चेहरे gumshuda-chehre: March 2011

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गुमशुदा चेहरे. मेरी कहानिया इस ब्लॉग की नज़र हैं. ताकि सनद रहे.वक़्त ज़ुरूरत काम आये. वरना बकौल ग़ालिब -. आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक. कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक! कुल पृष्ठ दृश्य. रविवार, 27 मार्च 2011. गहरी जड़ें : अनवर सुहैल. गहरी जड़ें % अनवर सुहैल. Kqjkrk rks vlx j HkkbZ ds dku [kM s gks tkrsA vkWVks vkxs fudy tkrk vkSj vlx j HkkbZ O;xz ls njokt s dh vksj ns[kus yxrsA. Vlx j HkkbZ cM h cspSuh ls tQ j dh izrh{kk dj jgs gSaA. TQ j mudk NksVk HkkbZ gSA. Bl ekeys dks T;knk fnu Vkyuk vc Bhd ughaA.

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गुमशुदा चेहरे gumshuda-chehre: फिर क्यों ?

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गुमशुदा चेहरे. मेरी कहानिया इस ब्लॉग की नज़र हैं. ताकि सनद रहे.वक़्त ज़ुरूरत काम आये. वरना बकौल ग़ालिब -. आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक. कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक! कुल पृष्ठ दृश्य. शुक्रवार, 20 सितंबर 2013. फिर क्यों? ऐसा नही है. कि रहता है वहाँ घुप्प अन्धेरा. ऐसा नही है. कि वहां सरसराते हैं सर्प. ऐसा नही है. कि वहाँ तेज़ धारदार कांटे ही कांटे हैं. ऐसा नही है. कि बजबजाते हैं कीड़े-मकोड़े. ऐसा भी नही है. कि मौत के खौफ का बसेरा है. फिर क्यों. फिर क्यों. फिर क्यों. फिर क्यों. अपनी बात.

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गुमशुदा चेहरे gumshuda-chehre: बिलौटी (भाग पांच)

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गुमशुदा चेहरे. मेरी कहानिया इस ब्लॉग की नज़र हैं. ताकि सनद रहे.वक़्त ज़ुरूरत काम आये. वरना बकौल ग़ालिब -. आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक. कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक! कुल पृष्ठ दृश्य. शुक्रवार, 13 सितंबर 2013. बिलौटी (भाग पांच). बिलौटी. सामाजिक. गड़बड़ा. ठीकेदार. मामूली. बांधे. निगाहे. बिलौटी. दास्तान. आंखों. सिनेमा. न्योछावर. बिलौटी. सीमाएं।. असुरक्षित. परछाइयां।. बिलौटी. मिटाता. 2366;ांति. 2366;ामिल. मोचों. कांपते. अहसानों. ज्यादा. बिलसपुरहिन. बिलौटी. भूनेसरवा. कुत्ता. टुकड़ा. बेचैन ...और त&#237...

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रचना डायरी: संस्मरण - "ककउआ होटल" अर्थात् दर्द एक कस्बे की कविता का

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रचना डायरी. पद्मनाभ गौतम का रचनाकर्म. मंगलवार, 25 सितंबर 2012. संस्मरण - "ककउआ होटल" अर्थात् दर्द एक कस्बे की कविता का. अमीरों की हवस सोने की दूकानों में फिरती है,. ग़रीबी कान छिदवाती है, तिनके डाल लेती है।. पत्थर को तोड़ के शीशा बना दिया. लोगों ने उस को तोड़ के भाला बना दिया. सोच देखिये शायर की! यह बात बोलने पर तो सारा कुनबा ही हमारे ही उपर आ गया! पद्मनाभ गौतम. अलांग, अरूणाचल प्रदेश. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. Pinterest पर साझा करें. नई पोस्ट. उत्तर...

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रचना डायरी: March 2013

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रचना डायरी. पद्मनाभ गौतम का रचनाकर्म. रविवार, 10 मार्च 2013. कथाक्रम" जनवरी-मार्च 2013 अंक मे प्रकाशित दो कविताएँ. Http:/ kathakram.in/jan-mar13/Poetry.pdf. सर्दियों की आहट सुनते ही. बुनना शुरू कर देती है. वह मेरा स्वेटर हर साल,. लपेट कर उंगलियों में. सूरज की गुनगुनी किरनें,. एक उल्टा-दो सीधा. या ऐसा ही कुछ. बुदबुदाते हुए,. हजार कामों में. फंसी-उलझी. बुन पाती है रोज इसे. बस थोड़ा ही,. आहिस्ता-आहिस्ता. उसकी उंगलियाँ. बिखेरना शुरू ही करती हैं. अपना जादू. कि सूरज बदल लेता है. अपना पाला. पसीना और. कुल ...

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रचना डायरी: May 2015

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रचना डायरी. पद्मनाभ गौतम का रचनाकर्म. शुक्रवार, 1 मई 2015. पुरवाई: माया एन्जेलो की कविताएँ. पुरवाई: माया एन्जेलो की कविताएँ. माया एन्जेलो , मूल नाम - मार्गरेट एनी जॉन्सन- 1928.2014 अमेरिकी-अफ्रीकी कवयित्री को अश्वेत स्त्री-पुरूषों की आवाज के रूप में जाना गया. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. Pinterest पर साझा करें. नई पोस्ट. पुराने पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. सदस्यता लें संदेश (Atom). कुल पृष्ठ दृश्य. लोकप्रिय पोस्ट. शहर की कविता. नई कविता - दुःख. उत्तर पूर&#...कुछ...

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रचना डायरी: पुरवाई: माया एन्जेलो की कविताएँ

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रचना डायरी. पद्मनाभ गौतम का रचनाकर्म. शुक्रवार, 1 मई 2015. पुरवाई: माया एन्जेलो की कविताएँ. पुरवाई: माया एन्जेलो की कविताएँ. माया एन्जेलो , मूल नाम - मार्गरेट एनी जॉन्सन- 1928.2014 अमेरिकी-अफ्रीकी कवयित्री को अश्वेत स्त्री-पुरूषों की आवाज के रूप में जाना गया. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. Pinterest पर साझा करें. पुरानी पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. सदस्यता लें टिप्पणियाँ भेजें (Atom). कुल पृष्ठ दृश्य. लोकप्रिय पोस्ट. शहर की कविता. नई कविता - दुःख. उत्तर पूर&...कुछ...

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रचना डायरी: तमाशा लोगों का है

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रचना डायरी. पद्मनाभ गौतम का रचनाकर्म. शनिवार, 28 सितंबर 2013. तमाशा लोगों का है. डिब्रूगढ़ मे मदारी का खेल देख कर. एक तरफ होता था नेवला. एक तरफ सांप. और मदारी की हांक. करेगा नेवला सांप के टुकड़े सात. खाएगा एक छै ले जाएगा साथ. कभी नहीं छूटा रस्सी से नेवला. और पिटारी से सांप. ललच कर आते गए लोग,. ठगा कर जाते गए लोग. खेल का दारोमदार था. इस एक बात पर. उब कर बदलते रहें तमाशाई,. जारी रहे खेल अल्फाज़ का,. तमाशा साँप और नेवले का नहीं. तमाशा था अल्फाज़ का. अब न सांप है न नेवला. पद्मनाभ गौतम. नई पोस्ट. जी भर क...

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रचना डायरी: कुछ विषम सा - गजल संग्रह

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रचना डायरी. पद्मनाभ गौतम का रचनाकर्म. बुधवार, 3 अक्तूबर 2012. कुछ विषम सा - गजल संग्रह. 2004 मे प्रकाशित संग्रह "कुछ विषम सा" की गज़लें . शांति के आलाप मे रणनाद कैसा. संधि ध्वज के शीर्ष पर उन्माद कैसा. भस्म हो यदि होलिका विस्मय नहीं है. पर स्वतः जल जाए वह प्रहलाद कैसा. लो पिघल कर बह चली जलधार खारी. अश्रुओं को हर्ष क्या अवसाद कैसा. खो चुकी ध्वनि लौट कर आनी नहीं है. वीतरागी शब्द का प्रतिसाद कैसा. सूर्य अणु विस्फोट प्रतिक्षण कर रहा पर. सोच समझ नादानी क्यूँ. घर के रस्ते पर लगती. नृत्य, नर्त...गीत थक कर...

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