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रचना डायरी: संस्मरण - "ककउआ होटल" अर्थात् दर्द एक कस्बे की कविता का
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रचना डायरी. पद्मनाभ गौतम का रचनाकर्म. मंगलवार, 25 सितंबर 2012. संस्मरण - "ककउआ होटल" अर्थात् दर्द एक कस्बे की कविता का. अमीरों की हवस सोने की दूकानों में फिरती है,. ग़रीबी कान छिदवाती है, तिनके डाल लेती है।. पत्थर को तोड़ के शीशा बना दिया. लोगों ने उस को तोड़ के भाला बना दिया. सोच देखिये शायर की! यह बात बोलने पर तो सारा कुनबा ही हमारे ही उपर आ गया! पद्मनाभ गौतम. अलांग, अरूणाचल प्रदेश. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. Pinterest पर साझा करें. नई पोस्ट. उत्तर...
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रचना डायरी: March 2013
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रचना डायरी. पद्मनाभ गौतम का रचनाकर्म. रविवार, 10 मार्च 2013. कथाक्रम" जनवरी-मार्च 2013 अंक मे प्रकाशित दो कविताएँ. Http:/ kathakram.in/jan-mar13/Poetry.pdf. सर्दियों की आहट सुनते ही. बुनना शुरू कर देती है. वह मेरा स्वेटर हर साल,. लपेट कर उंगलियों में. सूरज की गुनगुनी किरनें,. एक उल्टा-दो सीधा. या ऐसा ही कुछ. बुदबुदाते हुए,. हजार कामों में. फंसी-उलझी. बुन पाती है रोज इसे. बस थोड़ा ही,. आहिस्ता-आहिस्ता. उसकी उंगलियाँ. बिखेरना शुरू ही करती हैं. अपना जादू. कि सूरज बदल लेता है. अपना पाला. पसीना और. कुल ...
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रचना डायरी: May 2015
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रचना डायरी. पद्मनाभ गौतम का रचनाकर्म. शुक्रवार, 1 मई 2015. पुरवाई: माया एन्जेलो की कविताएँ. पुरवाई: माया एन्जेलो की कविताएँ. माया एन्जेलो , मूल नाम - मार्गरेट एनी जॉन्सन- 1928.2014 अमेरिकी-अफ्रीकी कवयित्री को अश्वेत स्त्री-पुरूषों की आवाज के रूप में जाना गया. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. Pinterest पर साझा करें. नई पोस्ट. पुराने पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. सदस्यता लें संदेश (Atom). कुल पृष्ठ दृश्य. लोकप्रिय पोस्ट. शहर की कविता. नई कविता - दुःख. उत्तर पूर&#...कुछ...
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रचना डायरी: पुरवाई: माया एन्जेलो की कविताएँ
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रचना डायरी. पद्मनाभ गौतम का रचनाकर्म. शुक्रवार, 1 मई 2015. पुरवाई: माया एन्जेलो की कविताएँ. पुरवाई: माया एन्जेलो की कविताएँ. माया एन्जेलो , मूल नाम - मार्गरेट एनी जॉन्सन- 1928.2014 अमेरिकी-अफ्रीकी कवयित्री को अश्वेत स्त्री-पुरूषों की आवाज के रूप में जाना गया. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. Pinterest पर साझा करें. पुरानी पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. सदस्यता लें टिप्पणियाँ भेजें (Atom). कुल पृष्ठ दृश्य. लोकप्रिय पोस्ट. शहर की कविता. नई कविता - दुःख. उत्तर पूर&...कुछ...
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रचना डायरी: तमाशा लोगों का है
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रचना डायरी. पद्मनाभ गौतम का रचनाकर्म. शनिवार, 28 सितंबर 2013. तमाशा लोगों का है. डिब्रूगढ़ मे मदारी का खेल देख कर. एक तरफ होता था नेवला. एक तरफ सांप. और मदारी की हांक. करेगा नेवला सांप के टुकड़े सात. खाएगा एक छै ले जाएगा साथ. कभी नहीं छूटा रस्सी से नेवला. और पिटारी से सांप. ललच कर आते गए लोग,. ठगा कर जाते गए लोग. खेल का दारोमदार था. इस एक बात पर. उब कर बदलते रहें तमाशाई,. जारी रहे खेल अल्फाज़ का,. तमाशा साँप और नेवले का नहीं. तमाशा था अल्फाज़ का. अब न सांप है न नेवला. पद्मनाभ गौतम. नई पोस्ट. जी भर क...
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रचना डायरी: कुछ विषम सा - गजल संग्रह
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रचना डायरी. पद्मनाभ गौतम का रचनाकर्म. बुधवार, 3 अक्तूबर 2012. कुछ विषम सा - गजल संग्रह. 2004 मे प्रकाशित संग्रह "कुछ विषम सा" की गज़लें . शांति के आलाप मे रणनाद कैसा. संधि ध्वज के शीर्ष पर उन्माद कैसा. भस्म हो यदि होलिका विस्मय नहीं है. पर स्वतः जल जाए वह प्रहलाद कैसा. लो पिघल कर बह चली जलधार खारी. अश्रुओं को हर्ष क्या अवसाद कैसा. खो चुकी ध्वनि लौट कर आनी नहीं है. वीतरागी शब्द का प्रतिसाद कैसा. सूर्य अणु विस्फोट प्रतिक्षण कर रहा पर. सोच समझ नादानी क्यूँ. घर के रस्ते पर लगती. नृत्य, नर्त...गीत थक कर...
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रचना डायरी: सुनो, यह चीखते हुए मेरे रोने की भी आवाज़ है
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रचना डायरी. पद्मनाभ गौतम का रचनाकर्म. मंगलवार, 24 सितंबर 2013. सुनो, यह चीखते हुए मेरे रोने की भी आवाज़ है. जिस घड़ी चाह कर. कुछ कर नहीं सकता हूँ मैं,. बन जाता हूँ. एक जोड़ी झपकती हुई आँखें,. निर्लिप्त, निर्विकार. मुझे देख चीखता है हड़ताली मजदूर,. और गूँजता है आसमान में नारा. 8221;प्रबंधन के दलालों को. जूता मारो सालों को”-. तब बस एक जोड़ी. आँखें ही तो होता हूँ मैं,. भावहीन, झपकती हुई आँखें. जिस समय होता है स्खलित. नशेड़ची बेटे, बदचलन बेटी. या पुंसत्वहीनता का. अवसाद भुगतता अफसर. इस जिद पर. कि जर...
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रचना डायरी: "अवगुंठन की ओट से सात बहने" मे संग्रहित कविताएँ ...
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रचना डायरी. पद्मनाभ गौतम का रचनाकर्म. मंगलवार, 30 जुलाई 2013. अवगुंठन की ओट से सात बहने" मे संग्रहित कविताएँ . 1 जगत रास. मुँह अंधेरे उठती है वह. उसके पैरों की आहट से. हड़बड़ाकर कर जागा. कलगीदार मुर्गा. बाँग दे कर. बन जाता है. सूरज का झंडाबरदार. तेज तेज डग भरकर. आता सूरज. हार जाता है हर रोज. उससे पहले. नहा लेने की होड़़ में. झाड़ू की गुदगुदी से. कुनमुनाकर जाग उठी. अलसाई धरती को. फँसाकर अपनी. उँगलियों में ,. घुमा देती है वह. एक लट्टू की तरह,. हो जाता है शुरू. आलंग की. एक और दिन. इसके बाद. और तब उसकी.
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रचना डायरी: सिताब दियारा पर प्रकाशित लंबी यात्रा कविता "शिला पथार" के लिए लिंक ...
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रचना डायरी. पद्मनाभ गौतम का रचनाकर्म. रविवार, 8 सितंबर 2013. सिताब दियारा पर प्रकाशित लंबी यात्रा कविता "शिला पथार" के लिए लिंक . Http:/ sitabdiyara.blogspot.in/2013/09/blog-post 8.html? इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. Pinterest पर साझा करें. नई पोस्ट. पुरानी पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. सदस्यता लें टिप्पणियाँ भेजें (Atom). कुल पृष्ठ दृश्य. लोकप्रिय पोस्ट. शहर की कविता. नई कविता - दुःख. कुछ विषम सा - गजल संग्रह. कुछ पुरानी पत्रिका...दुनिया से...मार्गदर&#...Http:/ ka...
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