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Aarzoo: May 2011
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Tuesday, May 24, 2011. अन्नदाता अब कहाँ जायेंगे. अन्न माँगा, दिया हमने. आबरू ना दे पाएंगे. रक्षक ही जब भक्षक बने. अन्नदाता अब कहाँ जायेंगे. महंगा बीज , महंगा खाद. फिर भी सस्ता है. ग़ुरबत में जी लेंगे. देश को न भूखा. सुलायेंगे. जब भक्षक बने. अन्नदाता अब कहाँ जायेंगे. प्रकृति की मार हम पे. पड़ती रहती थम थम. पसीना तो बहा सकते लेकिन. खून कब तक बहायेंगे. जब भक्षक बने. अन्नदाता अब कहाँ जायेंगे. भू माफिया. मिलकर कर रही अत्याचार. अब तक सहते रहे लेकिन. अब और ना सह पाएंगे. जब भक्षक बने. Posted by Deepak Saini. धन...
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Aarzoo: March 2010
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Thursday, March 11, 2010. Ek baar jo Tum aa Jate. एक बार जो तुम आ जाते,. मेरे अधरों पे बनकर गीत,. श्वास वीणा का बन संगीत,. मन से तुमको हम गुनगुनाते,. एक बार जो तुम आ जाते,. सिर चढाते चरणों कई धूल,. स्वंय बन कर हम फूल,. पथ मे तुम्हारे बिछ जाते,. एक बार जो तुम आ जाते,. चंदा बन दुनिया मे मेरी,. ना होती ये रात अन्धेरी,. आँसू मेरे तारे बन जाते,. एक बार जो तुम आ जाते,. कितना स्नेह कितना प्यार,. मिलता मुझे नया संसार,. सर्वस्व तुम पे हम वार जाते,. एक बार जो तुम आ जाते,. Posted by Deepak Saini. सुगन्ध...चाह...
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Aarzoo: November 2016
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Friday, November 4, 2016. हमें प्यार हो गया. इतनी महँगाई, और हमें प्यार हो गया. दिल का गुलशन गुलजार हो गया. दिल और आँखों के तो आ गए मजे. जेब का लेकिन बंटा धार हो गया. हम सुबह से भूखे प्यासे लगे रहे जुगाड़ में. शाम को पिज्जा हट में उनका शनिवार हो गया. मिस काल मारकर चलाते रहे अपना काम. उन्होंने किया फोन, और उनका रिचार्ज को गया. अपनी बाइक आधे दाम में बेच दी? जन्मदिन था उनका, मजबुरी देना उपहार हो गया. मिलने का वादा, और अपनी जेब खाली. Posted by Deepak Saini. Subscribe to: Posts (Atom). उड़न तश्तरी . ब्ल&#...
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Aarzoo: December 2010
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Friday, December 31, 2010. एक फूल चुन के लाया हूँ मै दिल के गुलशन से,. पत्तिया इसकी मेरे प्यार की रंग हें मेरी धडकन के,. रस भरा इसमें जितना जितनी खुशबू समाये,. उतनी खुशियाँ जीवन में सनम आपके आ जाये,. चाहत है यही आप सदा इसी तरहा खिले,. पल पल रहो में आपकी आशाओ के दीप जले,. ईद सा हो दिन आपका दिवाली सी रात,. मन ये देता आपको दुआओ की सोगात,. हर कामना जीवन की हो जाये आपकी पूरी,. कभी ना रहे अपकी कोई आरजू अधूरी ,. Posted by Deepak Saini. Monday, December 27, 2010. सब ठीक है. Posted by Deepak Saini. वो रब क&...
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Aarzoo: May 2012
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Friday, May 4, 2012. पैसा तो हाथ का मैल है (पुरानी कहावत ). बड़े वी आई पी मैल हो? दिखाई ही नहीं देते,. किस हाथ पर कितने चढ़े हो. पता भी नहीं लग पाता. जो दिन रात पसीना बहाता है. दो रोटी के चक्कर में. नहा भी नहीं पाता है. हाथ धोना तो दूर. मुंह भी बस इक बार धुल पाता है. उसके साथ क्या पंगा है तुम्हारा? क्या चिढ है उसके हाथ से. जो तुम दूर भागते हो. वे जो महंगे हैंड वाश लगाते है. बीस बार हाथ धोते है. दो बार नहाते है. मेहनत से वास्ता नहीं. बस हराम की खाते है. घोटाला करके. Posted by Deepak Saini. दीपक ब...
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Aarzoo: September 2010
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Thursday, September 9, 2010. जिन्दा हूॅ अभी के साॅस बाकी हें ,. चलाये रखता हें धडकन वा अहसास बाकी हें,. नब्ज थमने लगी ,आॅखे खुली हे फिर भी ,. सबब ये हें आने की उसके आस बाकी हें,. बेवफा कहता उसे वो रिस्ता तोड जाती ,. मुहब्बत का मेरी अधूरा किस्सा छोड जाती ,. वो गयी हें करके वादा आऊगी एक दिन,. मेरे होठो पर अभी वो प्यास बाकी हें,. तडपा.तडपा के यूॅ मेरा वो इम्मितहान लेती हें,. जुदाई के खंजरो से वो मेरी जान लेती हें,. रूक गयी साॅसे बन्द हो गयी धडकन ,. Posted by Deepak Saini. सच बताऊ इस डर से ,. सबब यही ब...
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Aarzoo: February 2011
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Monday, February 28, 2011. मै निठल्ला हूँ. मै निठल्ला हूँ. दिन भर कुछ नही करता. बस सोचता हूँ. बेमतलब की बातों मे. मतलब खोजता हूँ. जब भी टी0वी0 खोलता हूँ. विज्ञापन दिखाई देता है. अर्धनग्न लडकी. साबुन दिखा रही है. या शरीर, समझ नही आता है. शैम्पू के विज्ञापन मे. टांगे दिखा रही है. टूथपेस्ट बेचने के लिए. होठो से होठ मिला रही है. बच्चे चाव से देखते है. मम्मी शरमा रही है. थोडी देर बाद. गीत चल जाता है. उसमे भी नग्न नायिका. नायक नजर आता है. टी0वी0 बन्द कर. अखबार खोलता हूँ. 8220;सदन बंद रहा“. आज भी हुआ. बस ऐस...
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Aarzoo: October 2010
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Saturday, October 30, 2010. आज खुद पे यूँ ना शर्माया होता. आज खुद पे यूँ ना शर्माया होता. किसी का दिल जो तुने ना दुखाया होता. लौट जाने दिया उसे खाली हाथ दर से. कम से कम पानी तो पिलाया होता. चाहता तो बचा भी सकता था उसको. अपने हिस्से का निवाला उसे खिलाया होता. तेरा राज भी यूँ चर्चा ए आम न होता. किसी का राज जो तूने छूपाया होता. सरे बाजार ना लुटती इज्जत घर की. किसी बहन के काँधे से आँचल जो ना हटाया होता. रौशनी रहती तेरे घर मे भी आज रात. Posted by Deepak Saini. Thursday, October 28, 2010. Posted by Deepak Saini.
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Aarzoo: July 2014
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Tuesday, July 29, 2014. प्रिय मित्रो, प्रणाम. आज बहुत दिनों के बाद कोई कविता बनी है कविता क्या दिल का दर्द बाहर आया है. फीकी हो गयी मिठास शीर की. चटपटी न लगी आज फुलकियां. हर निवाले के संग आँखों में. आती, जलती दुकानो की झलकियाँ. शर्मसार है आज इंसानियत यहाँ. क्या झांकते हो खोलके खिड़कियां? सलामत दोस्त को घर पहुचाना कसूर था. बड़ी बहादुरी दिखाई चला के उसपे गोलियाँ. एक मुद्दत लगी थी उसको रोजी चलाने में. क्या हिन्दू क्या मुसलमां सब एक से है. Posted by Deepak Saini. Subscribe to: Posts (Atom). कडुवा सच. प्र...