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पैलाग: क़र्ज़ में डूबे लोगों के लिए आत्महत्या एक ऐसा इंश्योरेन्स है जिसका प्रीमियम भरने क&
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कवितायेँ. कथा-कहानी. गुरुवार, 23 जून 2011. क़र्ज़ में डूबे लोगों के लिए आत्महत्या एक ऐसा इंश्योरेन्स है जिसका प्रीमियम भरने की भी ज़रूरत नहीं पड़ती. सबूत : आत्महत्या! तो आपने झूठ ही लिखा होगा कि आपका पैसा मार्केट में डूब गया. भला मार्केट का पैसा मार्केट में डूब सकता है? गणितीय आधार पर नहीं. 2-2=0. दर्शन-शास्त्र के आधार पर भी नहीं (तुम क्या लेकर आये थे.). तो फिर आपको झूठ लिखने की ज़रूरत क्या पड़ी? मौत के बाद किस चीज़ का डर? बदनामी का? बाई द वे. वो हाथ! क्यूँ? कोई देख ना ले? लेकिन आप तो कहत...ये सब क&#...
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पैलाग: May 2010
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कवितायेँ. कथा-कहानी. गुरुवार, 13 मई 2010. घोड़ा कैसे चलता है? वादा किया था न तुमसे.ऐसे ही शुरुआत होगी मेरी पहली किताब की? अच्छा, लिखूंगा क्या उसमें? कुछ भी लिख दो, कौनसा कोई पढने वाला है? मैं पढूंगी ना.". अब इसका वादा मैं नहीं कर सकती.". हाँ बाबा पूरी, बार बार.". ऊँ हूँ! क्लिनिक ऑल क्लेअर". तुम बोलती तो तुम्हारे होंठ एक अजीब सी हरकत करते थे मेरे सीने में. हाँ, दिल को खुश रखने को गालिब ये ख्याल अच्छा है.". ग़ालिब". ग़ालिब". ग़ालिब". ख़्याल". ओफ्फो क्या मुसीबत है? खाना लगा दूं? मम्म लाल? और एनी-व...
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पैलाग: गेट कन्फ्यूज्ड टू गेट रिड ऑफ़ इट.
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कवितायेँ. कथा-कहानी. गुरुवार, 27 अक्तूबर 2011. गेट कन्फ्यूज्ड टू गेट रिड ऑफ़ इट. Confused Man By :. हर एहसास, हर सोच, इतनी तात्कालिक/क्षणिक हैं कि उनके आगे (पीछे और उनसे अलग) हो जाना निश्चित ही नहीं तीव्र भी है. खुद इन एहसासों से भी. किन्तु इस तात्कालिकता में 'अनिश्चितता' अथवा 'शंका' कहीं नहीं है. विरोध नहीं करते आप! बहाव में रहते हो! बाँध नहीं बनाते! विचार ख़त्म, आस्था ख़त्म. आस्था ख़त्म विचार ख़त्म. गिव मी सेकंड थॉट नाऊ! प्रस्तुतकर्ता. दर्पण साह. इसे ईमेल करें. अ-से अनुज. उत्तर दें. केवल प्...यही...
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पैलाग: August 2010
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कवितायेँ. कथा-कहानी. गुरुवार, 26 अगस्त 2010. जब १५ मिनट की ब्रेक हुई तो वो मुझे माचिस का इंतज़ार करते हुए मिली. एक्सक्यूज़ मी लाइटर होगा आपके पास? नोट: लेखक का उद्देश्य कहानी को सेनसेशनल बनाने का (कतई नहीं) है! एक्सक्यूज़ मी! व्हिच सॉन्ग? हं आ.". न न परेंट्स के साथ रहती हूँ.". नहीं मेरा मतलब गाना? ओह अच्छा! गोट्टा गो! कह के अपने कानों से मेरे कानो में लगा दिया. और ८ जी. बी. का आई पí...मेरा एकोन स्टीरियो हो गया! अगले ब्रेक में पहचान लूँगा उसे? यदि प्रेम कहानियोæ...लेकिन बाद म...५ मि.". क्...
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पैलाग: ...एक दिन हम भी कहानी हो जायेंगे.
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कवितायेँ. कथा-कहानी. बुधवार, 4 जनवरी 2012. एक दिन हम भी कहानी हो जायेंगे. चलो बात करते हैं, इश्वर की. आप क्या समझते हैं? क्या है इश्वर? एक कहानीकार? क्या वो भी पड़ा रहता होगा यूनिक कहानियों के चक्कर में? और तब कहीं जाकर एक जीवन बनता होगा? क्या होता अगर सच में कोई व्यक्ति हो और इश्वर ने उसके कर्म, उसका भवितव्य अभी लिखना हो? बुरा लगता है न सोचकर की इश्वर कहानी का लेखक! और कुछ नहीं. इश्वर मस्ट बी प्लेइंग डाइस विद अस.'. कितना ही फिक्शन मान के पढ़ें कहा...वो कहते हैं ना. प्रकाश में ...यक़ीनन कुछ...बच्...
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पैलाग: पापा क्या हो पा ?
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कवितायेँ. कथा-कहानी. बुधवार, 4 जनवरी 2012. पापा क्या हो पा? पापा क्या हो पा". ये वाक्यांश किसी भी भाषा में नहीं है, पर ये अपने आप गढ़ा हुआ भी नहीं. बस इतना जान लीजिये कि इसका अर्थ "पापा क्या होते हैं? बोलो तो ज़रा? और ये बात मेरे पिताजी जानते हैं! यकीन कीजिये इससे ज़्यादा मुश्किल काम और कुछ हो ही नहीं सकता. चाहता हूँ छोटा बच्चा बन जाऊं. जूते पहने हुए. पैरों को नीचे लटकाकर. या बिमारी की कोई बात ही क्यूँ हो? पापा क्या हो पा? और हमारा वही उत्तर, "भगवान.". पापा क्या हो पा? चिंता दोन...कम से कम मí...
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पैलाग: July 2010
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कवितायेँ. कथा-कहानी. मंगलवार, 13 जुलाई 2010. यूज़ टू. चलो ना छोना. तुम्हारा फ्री चेक अप तो एनी-वे ड्यू है.". श्वेता! अभी पूरा साल पड़ा हुआ है लव. ". देखो. हार्डली २ महीने ही बचे हैं मेडीक्लेम के रिन्यूवल में.". चलो ना प्लीज़.". गोया हॉस्पिटल नहीं 'लोट्स टेम्पल' या 'सेलेक्ट सिटी वॉक' हो या फ़िर लॉन्ग ड्राइव.). मुझे हिंदी फिल्मों का जुमला याद आ रहा है. पर गोद लेंगे तो लड़की.". हाईली अनप्रोफेशनल विद रेस्पेक्ट टू 'कोर्ट'. जह...भाई सा'ब एक कॉफ़ी.". सत्तर रुपये? मैं कौन सा फ्र&...आई टेल यू द...कुछ...
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पैलाग: म्माज़ बॉय
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कवितायेँ. कथा-कहानी. बुधवार, 18 मई 2011. म्माज़ बॉय. घर से कौन लड़की नहीं भागना चाहती भला? तब जबकि उसे मुझे लेकर कहीं भाग खड़ा होना चाहिए था. मुझसे उलट एक बहुत अच्छा इन्सान था वो, अपने माँ बाप का आज्ञाकारी! ख़ास तौर पर अपनी माँ का. म्माज़ बॉय'. अगर मेरा रोना चिल्लाना गिड़गिड़ाना मेरे जिन्दा होने का सबूत था तो यक़ीनन 'सकुशल'. बिना विरोध किये. मुस्कुरा रही थी. मन ही मन. प्रैंक्स'. और हाँ! वो मोड़ जिनको मैं हमेशा के लिए छोड़ आई. सच बताऊँ पापा? फुर्र्र! उसे इमोशनली ब्लैकमे...जैसे उसके क...मैं...सच बत...
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पैलाग: May 2011
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कवितायेँ. कथा-कहानी. बुधवार, 18 मई 2011. म्माज़ बॉय. घर से कौन लड़की नहीं भागना चाहती भला? तब जबकि उसे मुझे लेकर कहीं भाग खड़ा होना चाहिए था. मुझसे उलट एक बहुत अच्छा इन्सान था वो, अपने माँ बाप का आज्ञाकारी! ख़ास तौर पर अपनी माँ का. म्माज़ बॉय'. अगर मेरा रोना चिल्लाना गिड़गिड़ाना मेरे जिन्दा होने का सबूत था तो यक़ीनन 'सकुशल'. बिना विरोध किये. मुस्कुरा रही थी. मन ही मन. प्रैंक्स'. और हाँ! वो मोड़ जिनको मैं हमेशा के लिए छोड़ आई. सच बताऊँ पापा? फुर्र्र! उसे इमोशनली ब्लैकमे...जैसे उसके क...मैं...सच बत...