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कुछ शब्द: May 2009
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कुछ शब्द. Friday, May 29, 2009. हौले हौले जहर कोई जिस्म में घुलता रहा. सुनिये एक और गज़ल। गुरूदेव. पंकज सुबीर जी. के आशीर्वाद के बिना इसे पूरा करना संभव नहीं था।. मुश्किलों से राह की हंस कर गले मिलता रहा. मैं कि था बस इक मुसाफ़िर उम्र-भर चलता रहा. सत्य के उपदेश का व्यापार करते जो रहे. झूठ उनके साये में ही फूलता फलता रहा. दुख मिटाने के लिये कोई मसीहा आएगा. आदमी यूं रोज अपने आप को छलता रहा. वक्त को पहचानने में भूल जिसने भी है की. 2122 2122 2122 212). Links to this post. Monday, May 25, 2009. हर इक यì...
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कुछ शब्द: June 2011
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कुछ शब्द. Tuesday, June 21, 2011. सच को लिखना कठिन बहुत है झूठ नहीं लिख पाता हूं. बहुत दिन हो गये यहां कुछ लिखे हुये इसलिये बिना किसी भूमिका के एक कविता-. कविता के मंदिर तक आकर बाहर ही रुक जाता हूं. सच को लिखना कठिन बहुत है झूठ नहीं लिख पाता हूं. की नश्वरता को मैं. शाश्वत स्वर कैसे कहता. दो दिन जहां ठहरना उसको. अपना घर कैसे कहता. भावों के निर्बंध गगन को. शब्द सीप में क्या भरता. मन के दिव्य प्रेम का गायन. करता तो कैसे करता. चंदन माला पर क्या लिखना. देवालय जब सूना हो. Links to this post. प्रतिष...यून...
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कुछ शब्द: April 2009
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कुछ शब्द. Wednesday, April 22, 2009. उसको भी रहबरी का लगा शौक देखिये. कभी-कभी अजीब सी उलझनें आ जाती हैं। लगता है एक दिन में सिर्फ़ २४ घंटे ही क्यों हैं? कई दिनों से कुछ लिखना चाह रहा था पर कुछ न कुछ व्यवधान आ जा रहा था। इसी बीचं. गुरूदेव. के पारस-परस से संवरी हुई एक गज़ल आ गई. जो आपके सम्मुख प्रस्तुत है।. यूं घाव बेहिसाब दिये, पर दवा नहीं. भी मुझे ज़माने से कोई गिला नहीं. ये धूप पांव रोक ही लेती मिरे अगर. बन छांव साथ चलती जो मां की दुआ नहीं. वज़न-२२१ २१२१ १२२१ २१२). Links to this post. Posted by रविक&...
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कुछ शब्द: January 2011
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कुछ शब्द. Saturday, January 1, 2011. प्रेम तब और प्रेम अब. नव-वर्ष की सुभकामनाओं सहित-. प्रेम तब. उस भूमि की प्यास बुझे न कभी बरसे न जहां नभ की बदली. उस फूल का जीवन व्यर्थ हुआ जिस फूल पे बैठे नहीं तितली. दिल का तुम हाल सुनो सजनी तड़पे जल के ज्यों बिना मछली. रितुराज वसंत में आन मिलो विपदा मन की सब जाय टली. बाइक पे चलते तनके वह रोड पे कार से होड़ लगायें. होठ से स्पर्श न पानी करें वह पीकर बीयर प्यास बुझायें. रविकांत पांडेय. Posted by रविकांत पाण्डेय. Links to this post. Subscribe to: Posts (Atom). बिल&#...
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कुछ शब्द: May 2010
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कुछ शब्द. Monday, May 31, 2010. सारे रंगों को समेटती "धूप से रूठी चांदनी". पिछले दिनों शिवना प्रकाशन. सीहोर से प्रकाशित कवयित्री (डा.) सुधा ओम ढींगरा का काव्य-संग्रह. धूप से रूठी चांदनी" पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। "धूप से रूठी चांदनी" से सुधा जी के. संवेदनशील व्यक्तित्व का पता चलता है जिसे एक तरफ़ अपनी जड़ों से दूर होने का एहसास है तो. वहीं दूसरी ओर रिश्तों में आया खोखलापन. मानवीय मूल्यों का ह्रास और औरत होने की पीड़ा. सूनेपन का. हर विषय पर लेखनी चलाई है। हृदय क&#...गई इन कविताओं की...ताने...
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कुछ शब्द: October 2010
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कुछ शब्द. Thursday, October 28, 2010. तीन छंद सांस्कृतिक प्रदूषण पर. बिना किसी भूमिका के तीन छंद हाजिर करता हूं, पढ़ें और बतायें-. मानसरोवर मध्य हंस नहीं दिखते हैं. हंस की बजाय वहां कौवे मिलने लगे. फूलों वाली राह पर इतने हैं कांटे आज. पांव गर रखिये तो पांव छिलने लगें. अहिंसा. प्रेम कौन पूछता है. हिंसा घृणा. वैर के हैं फूल खिलने लगे. भारत की शाखों पर जितने थे पत्ते यारों. पश्चिम की आंधी आई सारे हिलने लगे. भारतीय संस्कृति सर धुन रोती आज. काम बस इतना है दीपक जलाइये. Links to this post. शीघ्रì...मात...
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कुछ शब्द: January 2009
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कुछ शब्द. Sunday, January 11, 2009. मीरदाद की किताब यदि आपने नहीं पढ़ी है तो आप एक अद्भूत आनंद से वंचित हैं. आनेवाली हर पीढ़ी मिखाईल. में छपने के बाद नेईमी ने ही दुबारा इसे अरबी. से परे होती है। जिन्हे इस बात पर भरोसा न हो वो "मीरदाद की किताब" आजमा. And whom, or what, is one to love? Is one to choose a certain leaf upon the Tree of life and pour upon it all one's heart? What of the branch that bears the leaf? What of the stem that holds the branch? What of the bark that shields the stem? तरह सवाल क&#...
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कुछ शब्द: September 2009
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कुछ शब्द. Monday, September 14, 2009. विष और अमृत दोनों ही हैं शामिल मेरे गीतों में. इन्ही दो स्वरों को पिरोने की कोशिश की है-. सागर के मंथन का है हासिल मेरे गीतों में. दोनों ही हैं शामिल मेरे गीतों में. एक तरफ मैं बातें करता बरछी, तीर, कटारों की. काली का करवाल, साथ में बहते शोणित-धारों की. क्षार-क्षार करने को आतुर दहक रहे अंगारों की. टूट-टूट कर पल-पल गिरते सत्ता के दीवारों की. दूजे पल मैं राह दिखाता भटक रहे नादानों को. Posted by रविकांत पाण्डेय. Links to this post. Wednesday, September 2, 2009. फसलí...
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कुछ शब्द: January 2010
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कुछ शब्द. Wednesday, January 27, 2010. दर्द बेचने निकले हैं श्री पंकज सुबीर, कौन है जो मोल लेगा? और सुनिये एक गज़ल-सजायें दी है मुझे उसने मुस्कुराने पर. गोपालदास. की ये पंक्तियां सुनिये, माहौल बनाने के लिये-. इसीलिये. इतिहासों. स्याही. कानूनों. मैंने. अंधेरे. खुशियों. सिपाही. पुरस्कृत. मैंने. श्रृंगार. इसीलिये तो नगर-नगर. तो जोरदार तालियों से स्वागत कीजिये श्री. खुशी के दीप जलाये थे जिसके आने पर. कटे हैं हाथ यहां तो हुनर दिखाने पर. भरम न पालिये हंसकर गले लगाने पर. Links to this post. सभी देशव&...ने&...