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उम्मीद तो हरी है .........: 06/30/15
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उम्मीद तो हरी है . दौर पतझड़ का सही, उम्मीद तो हरी है. मंगलवार, जून 30, 2015. स्त्रियां जानती हैं. स्त्री को. बचा पाने की. जुगत में जुटे. पुरुषों की बहस. स्त्री की देह से प्रारंभ होकर. स्त्री की देह में ही. हो जाती है समाप्त - -. स्त्रियां. पुरषों को बचा पाने की जुगत में भी. रखती हैं घर को व्यवस्थित. सजती संवरती भी हैं - -. स्त्रियां जानती हैं. पुरुषों के ह्रदय. स्त्रियों की धड़कनों से. धड़कते हैं - -. पुरुषों की आँखें. नहीं देख पाती. स्त्रियों की आँखें. देखती हैं. ज्योति खरे". द्वारा. नई पोस्ट. सुबह ...
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उम्मीद तो हरी है .........: 06/18/15
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उम्मीद तो हरी है . दौर पतझड़ का सही, उम्मीद तो हरी है. गुरुवार, जून 18, 2015. होना तो कुछ चाहिए. कविता संग्रह का विमोचन. वरिष्ठ कवि ज्योति खरे के पहले कविता संग्रह "होना तो कुछ चाहिए" का विमोचन समारोह. 24 मई को हिंदी भवन,दिल्ली में आयोजित किया गया.समारोह की अध्यक्षता. भारतीय ज्ञानपीठ के निदेशक और सुप्रसिद्ध कवि श्री लीलाधर मंडलोई जी ने की,. साहित्यकार और कला समीक्षक डॉ राजीव श्रीवास्तव ने अपने उद्बो...संग्रह की सभी कवितायें नये दौर की ब...सातवें और आठवें दशक की, स&#...नवनीत जैसी पत&#...कार्...
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उम्मीद तो हरी है .........: 02/26/15
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उम्मीद तो हरी है . दौर पतझड़ का सही, उम्मीद तो हरी है. गुरुवार, फ़रवरी 26, 2015. आज भी रिस रहा है - - -. तराशा होगा. पहाड़ को. दर्दनाक चीख. आसमान तक तो. पहुंची होगी- -. आसमान तो आसमान है. वह तो केवल. अपनी सुनाता है. दूसरों की कहां सुनता है- -. कांपती सिसकती. पहाड़ की सासें. ना जाने कितने बरस. अपने बचे रहने के लिए. गिड़गिड़ाती रहीं- -. पहाड़ की कराह. को अनसुना कर. उसे नया शिल्प देने. इतिहास रचने. करते रहे. प्रहार पर प्रहार- -. अब जब कभी. कोई इनके करीब आता है. छू कर महसूसता है. इनका दर्द. द्वारा. गम अगरबत्...
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उम्मीद तो हरी है .........: 08/20/15
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उम्मीद तो हरी है . दौर पतझड़ का सही, उम्मीद तो हरी है. गुरुवार, अगस्त 20, 2015. विश्व फोटोग्राफी दिवस पर - -. वर्षों से. प्यार के लिए. उपासे हैं. नर्मदा के घाट पर. प्यासे हैं - - -. अपनी आंखों में उतार लाया हूँ नर्मदा को - 19.8.2015. ग्वारीघाट - - जबलपुर. द्वारा. गुरुवार, अगस्त 20, 2015. प्रतिक्रिया. इस सन्देश हेतु लिंक. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. Pinterest पर साझा करें. नई पोस्ट. पुराने पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. कुल पेज दृश्य. ब्लॉग आर्काइव. सुबह होत&...अपने...
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उम्मीद तो हरी है .........: 05/01/15
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उम्मीद तो हरी है . दौर पतझड़ का सही, उम्मीद तो हरी है. शुक्रवार, मई 01, 2015. कामरेड आगे बढ़ो - - - -. तुम्हारी भीतरी चिंता. तुम्हारे चेहरे पर उभर आयी है. तुम्हारी लाल आँखों से. साफ़ झलकता है. कि,तुम. उदासीन लोगों को. जगाने में जुटे हो - -. कामरेड आगे बढ़ो. हम तुम्हारे साथ हैं. मसीह सूली पर चढ़ा दिये गये. गौतम ने घर त्याग दिया. महावीर अहिंसा की खोज में भटकते रहे. गांधी को गोली मार दी गयी. संवेदना की जमीन पर. कोई नया वृक्ष नहीं पनपा. क्योंकि. संवेदना की जमीन पर. नयी संस्कृति. नये अंकुर. जो लोग. के दí...
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उम्मीद तो हरी है .........: 10/13/15
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उम्मीद तो हरी है . दौर पतझड़ का सही, उम्मीद तो हरी है. मंगलवार, अक्तूबर 13, 2015. मिट्टी से सनी उंगलियां - - - -. पूरब से ऊगता. तमतमाता आग उगलता सूरज. नंगे पाँव चलता है. मटके का पानी पी पी कर. थके मुसाफिर की तरह- -. आसमान में टंके सलमे सितारों वाली. नीली चुनरी ओढ़कर रात. केंचुली से लिपटे सांप की तरह. सरकती है- -. ईंट के चूल्हे में सिंक रही रोटियों की कराह. भूख को समझाती हैं. गोद में लेटकर दूध पीता बच्चा. फटे आँचल के छेद से झांककर देख रहा है. चंदे के रुपयों से. ज्योति खरे". द्वारा. नई पोस्ट. फेसबì...
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उम्मीद तो हरी है .........: 10/08/14
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उम्मीद तो हरी है . दौर पतझड़ का सही, उम्मीद तो हरी है. बुधवार, अक्तूबर 08, 2014. शरद का चाँद - - - -. ख़ामोशी तोड़ो. सजधज के बाहर निकलो. उसी नुक्कड़ पर मिलो. जहाँ कभी बोऐ थे हमने. शरद पूर्णिमा के दिन. आँखों से रिश्ते - - -. और हाँ! बांधकर जरूर लाना. अपने दुपट्टे में. वही पुराने दिन. दोपहर की महुआ वाली छांव. रातों के कुंवारे रतजगे. आंखों में तैरते सपने. जिन्हें पकड़ने. डूबते उतराते थे अपन दोनों - - -. मैं भी बाँध लाऊंगा. एक दूसरे को दिये हुए वचन. वह पन्ना. जिसमें. पहली बार लगायी. द्वारा. नई पोस्ट. गम अगरबत...
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उम्मीद तो हरी है .........: 09/12/16
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उम्मीद तो हरी है . दौर पतझड़ का सही, उम्मीद तो हरी है. सोमवार, सितंबर 12, 2016. बिटिया, जीत तो तुम्हारी ही होती है - -. सुबह होते ही. फेरती हो स्नेहमयी उंगलियाँ. उनींदी घास हो जाती है तरोताजा. गुनगुनाने की आवाज सुनते ही. निकलकर घोंसलों से. टहनियों पर पंख फटकारती. बैठ जाती हैं चिरैयां. बतियाने. मन ही मन मुस्कराती हैं. जूही,चमेली,रातरानी. नाचने लगती हैं. कांच के भीतर रखी. बेजान गुड़ियां भी. जलने को मचलने लगता है चूल्हा. जिसे तुम बचपन में. पायलों की आहट सुनकर. वह जानता है. द्वारा. नई पोस्ट. दौर पतझर क&#...
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उम्मीद तो हरी है .........: 01/03/15
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उम्मीद तो हरी है . दौर पतझड़ का सही, उम्मीद तो हरी है. शनिवार, जनवरी 03, 2015. इस बरस और कई कई बरस - -. कई वर्षों से इकठ्ठे. टुकनियां भर निवेदनों को. एक ही झटके में झटककर. मन के हवालात में. अपराधियों की कतार में. खड़ा कर दिया. मैंने तो कभी नहीं किया निवेदन. ना ही दिए कोई संकेत. ना ही देखा समूची पलकों को खोलकर. कनखियों से देखना. अपराध है क्या? तुम भी तो खरोंच देती हो. कनखियों से देखते समय. मेरी मन की देह को. और भींग जाती हो. ऊग जाती हैं. पोंछकर बूंदों को. स्वीकार कर लो. आ जाये मिठास. इस बरस और कई कई बरस - -.
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