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इडियट्स की डायरी: February 2010
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इडियट्स की डायरी. मंगलवार, फ़रवरी 16, 2010. जेहाद इस्लाम और हिंदुत्व. शायद इसका उत्तर न भी हो सकता है . क्या आप बताएंगें तथाकथित उल्लेमाओं? जेहाद का नाम आते ही कश्मीर में मार दिए गए लाखों निर्दोष दीखते है? तालिबान दिखता है? इस्लाम और जेहाद के तिलिस्म में टूटता पाकिस्तान दिख रहा है? तुम सनातनी नहीं हो सकते? आपका इडियट. प्रस्तुतकर्ता. 6 टिप्पणियां:. इस संदेश के लिए लिंक. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. Pinterest पर साझा करें. लेबल: इस्लाम. एक अंक - -. उस ननî...
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इडियट्स की डायरी: March 2011
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इडियट्स की डायरी. सोमवार, मार्च 21, 2011. होली की हास्य व्यंग कविता. होली की हास्य व्यंग कविता. श्री सीमेंट चौराहे पर. भीड़ जुटी मस्तानो की. जब होली का चंग बजा. चौराहे पर हुरदंग मचा. तब शुक्ला जी पिचकारी उठायें. बीच भीड़ में नज़र आयें. जोशी जी पर तान पिचकारी. धीरे -धीरे कमर लचकाएं. बोले जोशी जी तुम भी आओ. संग-संग ठुमका लगाओ. पिए भांग की मस्ती में. दोनों आ गए गश्ती में. जोशी बोले मै नाचूँगा. मुन्नी बुलाओ तो ठुमका लगाऊंगा. ये सुनकर जे.के.जैन आये. तब चंग पर थाप लगी. अंग-अंग पर आग लगी. नहीं वि...बाते...
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इडियट्स की डायरी: June 2011
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इडियट्स की डायरी. शनिवार, जून 04, 2011. वृक्ष की कथा-व्यथा. काफी अरसे पहले एक कविता लिखी थी लगा आज शेयर करू 5 जून से बढ़िया और क्या समय हो सकता था इसके लिए . आओ आज सुनाता हूँ मैं. अपना दुखड़ा अपनी जुबानी. धरती के वाशिंदों की. लालच लोभ की स्वार्थ कहानी. एक सुबह मै जागा. उठकर बाहर था मै भागा. देखा भीड़-भाड़ खड़ी थी. हाथ में कुल्हाड़ी पड़ी थी. आये थे मुझे काटने. हरियाली सब लुटने. मै बोला चिल्लाया. हाथ जोड़ गिड़गिड़ाया. भैया मत काटो. मुझे मत लूटो. मै ठहरी बादल की रानी. बादल का संगी बनकर. मुझे रहन...कभी...
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इडियट्स की डायरी: October 2010
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इडियट्स की डायरी. शनिवार, अक्तूबर 30, 2010. जीवन के फलसफे को पढना नहीं आया. दोस्त तेरे संग संग चलना नहीं आया. गुजरा था कभी संग बचपने फकीरी में. वक्त बदलते ही पहचानना नहीं आया. रहमतो की बारिश से तू बन बैठा अमीर. कह गए अबतक जीने का सहुर नहीं आया. इब्तिदा किये थे सजदा करेंगे साथ साथ. छोड़ गए तनहा कहा रब में डूबना नहीं आया. फरमाबदार बनकर बैठे थे कलतक एक- दुसरे के. नेवला खीच कहते हो दर पे कोई भूखा नहीं आया. सरेआम कह गए तुझे यारी निभाना नहीं आया. कुचले है सर राम रहीम के इस कदर. 1 टिप्पणी:. प्रयास . नयी च&...
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इडियट्स की डायरी: गंगा के तट पर उपजी एक प्रेम कथा का कुछ भाग
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इडियट्स की डायरी. बुधवार, जुलाई 29, 2015. गंगा के तट पर उपजी एक प्रेम कथा का कुछ भाग. याद है तुझे? जब पहला ख़त भेजा था मैंने ! तब भी क्या समय था! तेरे शब्दों और ख्यालों में ही तो जीता था मैं . कितने ही पत्र लिखे मैंने ! आरजु विनती कर करके थक गया था मैं! पर तुम कहाँ सुनती थी ? पर आज देखो न .साथ हो तो लग ही नहीं रहा .की तुम (वही) हो. कैसे झिड़ककर चल देती थी तब.माय फूट कहकर ! जानती हो ? तुम्हारी माय फूट कहने का जो स्टाइल था न उफ़्फ़! पर तुम भी न कितना अभिनय करती थी ? अच्छा ! जानते हो ! मेरा अहं...उनके...
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इडियट्स की डायरी: January 2010
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इडियट्स की डायरी. रविवार, जनवरी 31, 2010. यादें. आज इन महापुरुषों के स्मृति में एक कविता .अपने डायरी के उन पुराने पन्नो से जो करीब आज से 7 वर्ष पूर्व लिखी गयी थी. कही दूर.सुदूर. अन्तरिक्ष के अंतरतम से पुकार कर. मानो कह रहे हो - -. तुम कहा ढूंढ़ रहे हो मुझे? मै यहाँ ही तो हूँ तेरे सामने. इन तारो के बीच में से एक. जो "चेखव" की कथाओं का तिलिस्म है . उस युग्लिना की तरह जुजुत्सू ,पराभूत. बीच की कड़ी . तो भला मै कैसे मरता. ऐसे मरता भी है क्या कोई? टिमटिमाते है सभी. कल रात भी आया था. चुपके से . मज़लू...नंग...
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इडियट्स की डायरी: September 2010
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इडियट्स की डायरी. गुरुवार, सितंबर 02, 2010. कुछ अनगढ़ी शब्द चित्र संस्मरण. कहाँ से लाती हो कविता? कैसे बुनते हो शब्द! प्रकृति में फैले इन्द्रधनुषी रंगों की तरह,. कहाँ से आते है ये भाव? आसमान में तैरते शब्दों से. कैसे जोड़ लेते हो रिश्ते? मै भी तो जानू,. कैसे लिख ली जाती है कविता? कुछ "अनुपम" कुछ " नवीन". जल में फैले तरंगो की तरह. कहाँ से आते है श्रद्धा के ये चंद शब्द. बिम्बों में कहाँ से झांकता है,. सृजन की अकूत संभावनाओं का चाँद. कैसे नापते हो? श्रधा" की ग़ज़ल. विचारो की पौध. अपनी राखी. जीवन क...
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इडियट्स की डायरी: April 2015
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इडियट्स की डायरी. शनिवार, अप्रैल 11, 2015. क्या लिखू! बहन अनु मेरे लिए शब्द गूथने की एक कड़ी हो तुम! अरसे बाद आज इस ब्लॉग पर दुबारा लिखने की शुरुआत भी इसी के प्रेरणा से …. क्या लिखू. शब्द लिखूं. गद्य लिखूं. सच लिखूं. यक्ष लिखू. गीत लिखूं. लफ्ज लिखू. शेष लिखूं. अशेष लिखूं. ख़ुशी लिखूं. हँसी लिखूं. उम्र लिखूं. ताउम्र लिखू. भाव लिखूं. आव लिखू. प्रीत लिखूं. प्यार लिखूं. मीत लिखूं. रीत लिखूं. धुन लिखूं. गुण लिखू. देव लिखूं. दास लिखूं. शील लिखूं. भील लिखू. गीता का सार लिखू. खास लिखूं. लिखूं! नई पोस्ट. सैयद...
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शहरोज़ का रचना संसार: December 2009
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शहरोज़ का रचना संसार. हमारे बारे. हाल-बेहाल. साहित्य-अदब. नारी-विमर्श. पहला पन्ना. गुरुवार, 31 दिसंबर 2009. अफ़ज़ल से हम हिसाब करें. यह मीनारों मेहनत से उठती अज़ानें. मशीनों में ढलते यह ग़म के तराने. नए साल की खै़रियत चाहते हैं. इबादत में डूबे यह कल कारख़ाने. यह माटी की महिमा है, माथे से लगा लो. यह पत्थर की मूरत है, सर को झुका लो. यह लाशें तरसती रही hain कफ़न को. नए साल में पहले इसको संभालो. बहुत पहले नर्मेश्वर उपाध्याय. दहशत पसार पाए न पैर अपने मुल्क में. Posted by शहरोज़. Labels: सामयिक. या आलीश...ज़ाह...
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इडियट्स की डायरी: July 2010
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इडियट्स की डायरी. बुधवार, जुलाई 28, 2010. चांदनी चली चार कदम, धुप चली मिलो तक. चांदनी चली चार कदम, धुप चली मिलो तक. सुख नहीं देता है सुख, दुःख चले सालो तक. जीवन की परिपाटी यही, रेंगती रहती है निशदिन. काँटों और फूलो को देखो, जीवन सहेजता है दिन -दिन. यह जीवन क्या! कैसा जीवन? जिसमे कांटे फूल न हो. सरक नहीं सकती है सरिता, जिसमे दोनों कूल न हो. सरिता सरकती है पर, तालाब टिका सालो तक . चांदनी चली चार कदम, धुप चली. यौवन का ज्वार भी, सरकता है कुछ ही दिन. क्या कहे! किस से कहे! बाढ़ आती है त...पर मंद-मं...आशा...