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कविता कोश के पन्नों से

कविता कोश के पन्नों से. 160;  कविता को समझने का प्रयास. रविवार, 2 अगस्त 2009. जिसने ख़ून होते देखा / अरुण कमल. जिसने ख़ून होते देखा / अरुण कमल. नहीं, मैंने कुछ नहीं देखा. मैं अन्दर थी। बेसन घोल रही थी. नहीं मैंने किसी को. समीर को बुला देंगी. समीर, मैंने पुकारा. और वह दौड़ता हुआ आया जैसे बीच में खेल छोड़. कुछ हाँफता. नहीं, नहीं, मैं चुप रहूंगी, मेरे भी बच्चे हैं, घर है. वह बहुत छोटा था अभी. एकदम शहतूत जब सोता. बहुत कोमल शिरीष के फूल-सा. मैंने किसी को. कि अचानक. दूध और ख़ून. धीरे-धीरí...और वह दौड...

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कविता कोश के पन्नों से. 160;  कविता को समझने का प्रयास. रविवार, 2 अगस्त 2009. जिसने ख़ून होते देखा / अरुण कमल. जिसने ख़ून होते देखा / अरुण कमल. नहीं, मैंने कुछ नहीं देखा. मैं अन्दर थी। बेसन घोल रही थी. नहीं मैंने किसी को. समीर को बुला देंगी. समीर, मैंने पुकारा. और वह दौड़ता हुआ आया जैसे बीच में खेल छोड़. कुछ हाँफता. नहीं, नहीं, मैं चुप रहूंगी, मेरे भी बच्चे हैं, घर है. वह बहुत छोटा था अभी. एकदम शहतूत जब सोता. बहुत कोमल शिरीष के फूल-सा. मैंने किसी को. कि अचानक. दूध और ख़ून. धीरे-धीर&#237...और वह दौड...
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कविता कोश के पन्नों से | kavitakoshse.blogspot.com Reviews

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कविता कोश के पन्नों से. 160;  कविता को समझने का प्रयास. रविवार, 2 अगस्त 2009. जिसने ख़ून होते देखा / अरुण कमल. जिसने ख़ून होते देखा / अरुण कमल. नहीं, मैंने कुछ नहीं देखा. मैं अन्दर थी। बेसन घोल रही थी. नहीं मैंने किसी को. समीर को बुला देंगी. समीर, मैंने पुकारा. और वह दौड़ता हुआ आया जैसे बीच में खेल छोड़. कुछ हाँफता. नहीं, नहीं, मैं चुप रहूंगी, मेरे भी बच्चे हैं, घर है. वह बहुत छोटा था अभी. एकदम शहतूत जब सोता. बहुत कोमल शिरीष के फूल-सा. मैंने किसी को. कि अचानक. दूध और ख़ून. धीरे-धीर&#237...और वह दौड...

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कविता कोश के पन्नों से: April 2009

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कविता कोश के पन्नों से. 160;  कविता को समझने का प्रयास. शुक्रवार, 24 अप्रैल 2009. हरिजन गाथा / नागार्जुन. हरिजन गाथा / नागार्जुन. ऎसा तो कभी नहीं हुआ था! महसूस करने लगीं वे. एक अनोखी बेचैनी. एक अपूर्व आकुलता. उनकी गर्भकुक्षियों के अन्दर. बार-बार उठने लगी टीसें. लगाने लगे दौड़ उनके भ्रूण. अंदर ही अंदर. ऎसा तो कभी नहीं हुआ था. ऎसा तो कभी नहीं हुआ था कि. हरिजन-माताएं अपने भ्रूणों के जनकों को. ऎसा तो कभी नहीं हुआ था. ऎसा तो कभी नहीं हुआ था कि. तेरह के तेरह अभागे-. अकिंचन मनुपुत्र. ऎसा नवजातक. कौन स&#23...

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कविता कोश के पन्नों से: June 2009

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कविता कोश के पन्नों से. 160;  कविता को समझने का प्रयास. सोमवार, 22 जून 2009. समुद्र-मंथन / शरद बिल्लोरे. समुद्र-मंथन. मैं समुद्र-मंथन के समय. देवताओं की पंक्ति में था. लेकिन बँटवारे के वक़्त. मुझे राक्षस ठहरा दिया गया और मैंने देखा. कि इस सबकी जड़ एक अमृत-कलश है,. जिसमें देवताओं ने. राक्षसों को मूर्ख बनाने के लिए. शराब नार रखी है।. मैं वेष बदल कर देवताओं की लाईन में जा बैठा. मगर अफ़सोस अमृत-पान करते ही. मेरा सर धड़ से अलग कर दिया गया।. और यह उसी अमृत का असर है. फिर सारा संसार. इस विषय मे&#230...ने ...

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कविता कोश के पन्नों से: फूल और काँटा / अयोध्यासिंह हरिऔध

http://www.kavitakoshse.blogspot.com/2009/07/blog-post.html

कविता कोश के पन्नों से. 160;  कविता को समझने का प्रयास. गुरुवार, 9 जुलाई 2009. फूल और काँटा / अयोध्यासिंह हरिऔध. हैं जन्म लेते जगह में एक ही,. एक ही पौधा उन्हें है पालता. रात में उन पर चमकता चांद भी,. एक ही सी चांदनी है डालता ।. मेह उन पर है बरसता एक सा,. एक सी उन पर हवाएँ हैं बहीं. पर सदा ही यह दिखाता है हमें,. ढंग उनके एक से होते नहीं ।. छेदकर काँटा किसी की उंगलियाँ,. फाड़ देता है किसी का वर वसन. प्यार-डूबी तितलियों का पर कतर,. भँवर को अपना अनूठा रस पिला,. कविता कोश. की भावना से...फूल लेकर ...निज...

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कविता कोश के पन्नों से: August 2009

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कविता कोश के पन्नों से. 160;  कविता को समझने का प्रयास. रविवार, 2 अगस्त 2009. जिसने ख़ून होते देखा / अरुण कमल. जिसने ख़ून होते देखा / अरुण कमल. नहीं, मैंने कुछ नहीं देखा. मैं अन्दर थी। बेसन घोल रही थी. नहीं मैंने किसी को. समीर को बुला देंगी. समीर, मैंने पुकारा. और वह दौड़ता हुआ आया जैसे बीच में खेल छोड़. कुछ हाँफता. नहीं, नहीं, मैं चुप रहूंगी, मेरे भी बच्चे हैं, घर है. वह बहुत छोटा था अभी. एकदम शहतूत जब सोता. बहुत कोमल शिरीष के फूल-सा. मैंने किसी को. कि अचानक. दूध और ख़ून. धीरे-धीर&#237...और वह दौड...

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कविता कोश के पन्नों से: May 2009

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कविता कोश के पन्नों से. 160;  कविता को समझने का प्रयास. मंगलवार, 26 मई 2009. तुम कभी थे सूर्य / चन्द्रसेन विराट. तुम कभी थे सूर्य. तुम कभी थे सूर्य लेकिन अब दियों तक आ गये. थे कभी मुख्पृष्ठ पर अब हाशियों तक आ गये. यवनिका बदली कि सारा दृष्य बदला मंच का. थे कभी दुल्हा स्वयं बारातियों तक आ गये. वक्त का पहिया किसे कुचले कहां कब क्या पता. थे कभी रथवान अब बैसाखियों तक आ गये. देख ली सत्ता किसी वारांगना से कम नहीं. घूम फिर कर देह की गोलाईयों तक आ गये. में यहां. दुष्यंत जी. समय सबका नियन्त&#2366...राजन&#236...

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आओ कि कोई ख़्वाब बुनें ......: कुछ तो करना है ....

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आओ कि कोई ख़्वाब बुनें . कुछ तो करना है . ये माना कि मेरी. एक आवाज़ के उठ जाने से. कुछ नहीं होगा. लेकिन ये भी तय है . मेरे इस वक्त चुप रह जाने से. आने वाली पीढियों तक. कुछ नहीं होगा ।. अन्ना हजारे के समर्थन में. अनूप भार्गव. Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार. 164;¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤. आदरणीया अनूप भार्गव जी. सादर नमस्कार! आज है आपका जन्मदिवस…. जन्मदिवस के शुभ अवसर पर आपको बहुत बहुत बधाई और मंगलकामनाएं! राजेन्द्र स्वर्णकार. 4:51 am, September 09, 2011. अनूप जी,. सशक्त रहा ! Aap ki dosti...

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आओ कि कोई ख़्वाब बुनें ......: मुक्तक

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आओ कि कोई ख़्वाब बुनें . मीठी यादों की एक निशानी देखूँ. जज़्बों में पहचान पुरानी देखूँ. मैं जिसमे किरदार हुआ करता था. तेरे चेहरे पे वो कहानी देखूँ ।. अनूप भार्गव. लेकिन ओह! तेरे चेहरे पर वो कहानी देखूँ. किरदार गये वक्तों में .था तो मैं ही. पर , अलास (अंग्रेज़ी वाला ) हीरो था कोई और. और मैं सिर्फ. कॉमेडी रोल की चार लाईना ही .). अब जूते चप्पल मत मारियेगा :-). 2:49 am, June 16, 2008. नीरज गोस्वामी. अनूप जी. 3:43 am, June 16, 2008. 4:38 am, June 16, 2008. बहुत उम्दा. 9:49 am, June 16, 2008. Dr Chandra Kumar Jain.

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आओ कि कोई ख़्वाब बुनें ......: तुम जब से रूठी हो

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आओ कि कोई ख़्वाब बुनें . तुम जब से रूठी हो. तुम जब से रूठी हो. मेरे गीत अपना अर्थ खो बैठे हैं. मेरे ही गीत मुझ से ही खफ़ा हो. मुझ से दूर जा बैठे हैं. माना कि तुम मुझ से नाराज़ हो. लेकिन मेरे गीतों से तो नहीं. क्या तुम उनको भी मनानें नही आओगी? मेरे गीत फ़िर से नया अर्थ पानें को बेताब हो रहे हैं ।. अनूप भार्गव. Labels: कविता. संजय बेंगाणी. 1:29 am, November 20, 2006. 2:10 pm, November 20, 2006. अनूप भार्गव. संजय भाई:. 3:02 pm, November 20, 2006. भुवनेश शर्मा. शुक्रिया. 3:37 pm, November 20, 2006. कह देन&...

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आओ कि कोई ख़्वाब बुनें ......: तुम

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आओ कि कोई ख़्वाब बुनें . तुम कई बार. चुपचाप,. मेरे ज़हन में. आ कर बैठ जाती हो. कि मुझे. अपनी तनहाई. का भरम होने लगता है ,. और मैं. फ़िर से. तुम्हारे बारे में. सोचने लग जाता हूँ ।. अनूप भार्गव. Tum har bar.achchi kavita hai. 12:19 pm, July 24, 2013. सुनील गज्जाणी. AAP KE BLOG PAR AANNA ACHCHA LAGA /. 3:44 am, April 26, 2014. Start self publishing with leading digital publishing company and start selling more copies. Publish ebook with ISBN, Print on Demand. 1:51 am, October 14, 2015. तनहाई का भरम.

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आओ कि कोई ख़्वाब बुनें ......: कभी लिखा था ...

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आओ कि कोई ख़्वाब बुनें . कभी लिखा था . जज़्बातों की उठती आँधी. हम किसको दोषी ठहराते. लम्हे भर का कर्ज़ लिया था. सदियां बीत गई लौटाते ।. वो लड़ना झगड़ना रूठना और मनाना. किस्से सभी ये पुराने हुए हैं. वो कतरा के छुपने लगे हैं हमीं से. महबूब मेरे सयाने हुए हैं ।. अनूप भार्गव. अनूप शुक्ल. ईद के चांद होली में दिखे। सही है दिखे तो सही।. 10:40 pm, March 21, 2008. कंचन सिंह चौहान. 4:43 am, March 22, 2008. 6:36 am, March 22, 2008. सुनीता शानू. 11:24 pm, March 22, 2008. 3:24 am, March 23, 2008. अनूप भाई,. अनूप ज&#...

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आओ कि कोई ख़्वाब बुनें ......: मुक्तक

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आओ कि कोई ख़्वाब बुनें . वो लाज को आँखों में छुपाये तो छुपाये कैसे. वो मुझ से दूर भी अगर जाये तो जाये कैसे. वो मेरी रूह की हर रग रग में शामिल है. वो मुझ से बदन को चुराये तो चुराये कैसे? अनूप भार्गव. Labels: मुक्तक. अनूप शुक्ला. बढ़िया है! बहुत दिन बाद बुनाई-कताई हुयी ख्वाब की! 1:35 pm, April 06, 2007. राकेश खंडेलवाल. लाज आती तो मेरी बाँह में आते वो नहीं. दूर रहना था अगर पास में आते वो नही. रूह की प्यास का होता न ख्याल उनको अगर. खूबसूरत मुक्तक है आपका. 2:43 pm, April 06, 2007. 4:26 pm, April 06, 2007.

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आओ कि कोई ख़्वाब बुनें ......: दूसरी हत्या

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आओ कि कोई ख़्वाब बुनें . दूसरी हत्या. बापु ,. देखो आज हम. तुम्हारी समाधि धोने आये हैं,. ये बात अलग है कि साथ में. लाठी, पत्थर और आँसू गैस के खिलौने लाये हैं,. लेकिन सच सच बतायें बापु,. ये समाधि को धोना वोना. तो बेकार की बात है ,. अरे हम तो इस युग के नाथू राम गोड़से हैं. जो अपना अपना अधूरा काम करनें आये हैं. शरीर से तो तुम्हे कब का मार चुके. आज तुम्हारी आत्मा तमाम करने आये हैं ।. अनूप भार्गव. Labels: कविता. बहुत सुन्दर कविता।. 2:08 am, January 30, 2007. संजय बेंगाणी said. 3:34 am, January 30, 2007. इस&#2368...

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आओ कि कोई ख़्वाब बुनें ......: दो मुक्तक

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आओ कि कोई ख़्वाब बुनें . दो मुक्तक. तुम को देखा तो चेहरे पे नूर आ गया. हौले हौले ज़रा सा सुरूर आ गया. तुम जो बाँहों में आईं लजाते हुए. हम को खुद पे ज़रा सा गुरूर आ गया. ज़िन्दगी गुनगुनाई , कहो क्या करें? चाँदनी मुस्कुराई, कहो क्या करें? मुद्दतों की तपस्या है पूरी हुई. आप बाँहों में आईं, कहो क्या करें? अनूप भार्गव. Labels: मुक्तक. चाँद को देखकर मौज़ें उठी. चाँदनी भी उतर लहरों पर चली. चाँद समन्दर की बाहों में. आगोश की चाह में आरज़ू जली. 1:29 am, December 24, 2006. बहुत बढिया. 3:02 am, December 24, 2006.

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आओ कि कोई ख़्वाब बुनें ......: कौन कहता है

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आओ कि कोई ख़्वाब बुनें . कौन कहता है. कौन कहता है. भाग्य की रेखाएं. बदल नहीं सकती? मुझे याद है. जब तुमने पहली बार. अपनी कोमल उँगलियों से. मेरी हथेली को कुरेदा था ,. कौन कहता है. भाग्य की रेखाएं. बदल नहीं सकती? अनूप भार्गव. सुंदर रचना, बधाई अनूप भाई! 3:43 pm, April 14, 2007. बहुत सुंदर! 1:00 am, April 15, 2007. अनूप भाई,. स स्नेह,लावण्या. 3:24 am, April 15, 2007. बहुत सुन्दर! घुघूती बासूती. 4:09 pm, April 15, 2007. पूनम मिश्रा. नए साल में. एक लकीर नई. हाथ तुम्हारा. 1:04 am, April 16, 2007. एक कशिश स&...

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An Indian Woman's Journey to Balancing a Career, Marriage and Motherhood like a Pro. So it’s only when I’m settled in and have mentally noted the speed I need to be driving at to reach on time, that I get into my moment of zen. Shraddha Sharma of Hale-E-Dil. Meghna Mishra of Main Kaun Hoon. My latest obsession is Grace Vanderwaal, winner of the eleventh season of America’s Got Talent:. How do you make time to rejuvenate and keep yourself going as a working mom? February 10, 2018. What’s your fight? After...

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कव त क श म खप ष ठ. आर थ क सह यत द. फ़ न ट पर वर तक. स झ म च (ई-पत र क ए ). बह भ ष य शब दक श. कव त क श क ल ण डर 2018. स ह त य क क र यक रम. रचन क र क स च. प र रण त मक. क ल-आध र त. दल त व मर श. भ ष और स ह त य पर ल ख. ध र म क ल क रचन ए. ह म चल प रद श. उत तर प रद श. मध य प रद श. उत तर ख ड. अन य महत त वप र ण पन न. महत त वप र ण कड य. नए ज ड पन न क स च. क ई भ एक पन न. व यक त क औज र. भ रत क स स क त क ल ए. भ ष क उन नत क ल ए. स ह त य क प रस र क ल ए. महत त वप र ण कड़ य. आपक ट प पण य. य गद नकर त. कव त क श व श ष क य ह?

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कव त क श क च थ वर षग ठ. ज ल ई 5, 2010 by. 30,000 स ग रह त रचन ए. 100,000 आग त क हर मह न आत ह. 15 million पन न हर मह न द ख ज त ह. 40 million ह ट स प रत म ह. 3700 फ़ न स ह फ़ सब क पर. 80 न यम त य गद नकर त. 4500 प ज क त प रय क त. कव त क श क व क स म ह थ ब ट न क उद द श य स क श स ज ड न व ल य गद नकर त ओ क स ख य इस वर ष भ न र तर बढ त रह स थ ह प र न य गद नकर त ओ न भ अपन य गद न बन य रख इस वर ष कव त क श ट म. म स प दक श र अन ल जनव जय. न त ज स य गद न करत ह ए 3000 स अध क पन न क न र म ण क य कव त क श ट म. र ज व र जन प रस द.

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कविता कोश के पन्नों से. 160;  कविता को समझने का प्रयास. रविवार, 2 अगस्त 2009. जिसने ख़ून होते देखा / अरुण कमल. जिसने ख़ून होते देखा / अरुण कमल. नहीं, मैंने कुछ नहीं देखा. मैं अन्दर थी। बेसन घोल रही थी. नहीं मैंने किसी को. समीर को बुला देंगी. समीर, मैंने पुकारा. और वह दौड़ता हुआ आया जैसे बीच में खेल छोड़. कुछ हाँफता. नहीं, नहीं, मैं चुप रहूंगी, मेरे भी बच्चे हैं, घर है. वह बहुत छोटा था अभी. एकदम शहतूत जब सोता. बहुत कोमल शिरीष के फूल-सा. मैंने किसी को. कि अचानक. दूध और ख़ून. धीरे-धीर&#237...और वह दौड...

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