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काव्य वाटिकाकविता विकास
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कविता विकास
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काव्य वाटिका | kavitavikas.blogspot.com Reviews
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काव्य वाटिका: September 2013
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इस ब्लॉग से मेरी अनुमति के बिना. कोई भी रचना कहीं पर भी प्रकाशित न करें।. मैं समझ जाती. रंज ओ गम में कोई टूट रहा. कोई ख़्वाबों में ही मगरूर रहा. ख्वाहिश दिल की बस इतनी थी. क्या उसकी हालत भी मेरे जैसी थी. वह मचलता मेघ. मैं मयूर बन गयी. प्यार में उसके मैं धरती बन गयी. इंतज़ार में जिसके ज़र्रा. ज़र्रा बंज़र है. बदल कर बरसता है।. इतना ही तो चाहा था ज़िन्दगी से. कभी वह भी याद करता संजीदगी से. अनायास कभी हिचकियाँ बंध जातीं. कोई याद कर रहा है. मैं समझ जाती।. 160; Posted by Kavita Vikas. 160; . 160; . भा...
काव्य वाटिका: October 2016
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इस ब्लॉग से मेरी अनुमति के बिना. कोई भी रचना कहीं पर भी प्रकाशित न करें।. बड़ी करिश्माई है अहसासे मुहब्बत. जीवन नहीं कभी बंज़र होता है।. संग मौसम उतर जाओ फ़िज़ाओं में. तुमसे ही शादाब मेरा शज़र होता है।. रात कट जाती है आँखों में अक्सर. उधर भी क्या यही मंज़र होता है।. अजाबे इश्क़ भी अज़ीज़ होता है ,पास. जब तुम्हारी बांहों का पिंजर होता है।. दिल की बात आती नहीं जुबां पे. दिल पे चलता तब खंज़र होता है।. 160; Posted by Kavita Vikas. 160; . 160; . कोरी थी जीवन की किताब यह. 160; Posted by Kavita Vikas. 160; . 15 जí...
काव्य वाटिका: January 2014
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इस ब्लॉग से मेरी अनुमति के बिना. कोई भी रचना कहीं पर भी प्रकाशित न करें।. फासले क्यूँ हैं. गुज़र जाते हो हवा की मानिंद पल भर में. ख्वाब बन कभी तो रात में ठहर जाओ. पास होकर भी फासले क्यूँ हैं दरम्यां में. अपनी ही आग में मत यूँ जल जाओ. खुद से भी दूर हो जाती तन्हाई के आलम में. हौले से आकर कभी ज़ेहन में समा जाओ. जीने की आरज़ू है तुम्हारे पहलु में. हर मौसम में खुद को ढाल उतर जाओ. मुद्दतों से बर्फ जमा है दरीचों में. आंच से अपनी कभी तो पिघला जाओ. साहिल बन कभी तो गले लगा जाओ. 160; Posted by Kavita Vikas. 160; .
काव्य वाटिका: August 2016
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इस ब्लॉग से मेरी अनुमति के बिना. कोई भी रचना कहीं पर भी प्रकाशित न करें।. बना दो या बिगाड़ दो आशियाँ दिल का. हाथ में ये तेरे है ,नहीं काम कुदरत का।. तोड़ दो यह ख़ामोशी ,खफ़गी भी अब. सर ले लिया अपने, इल्ज़ाम मुहब्बत का।. जी करता है बिखर जाऊं खुशबू बन. तोड़ कर बंदिशें तेरी यादों के गिरफ्त का।. बज़्मे जहान में कोई और नहीं जंचता. कुर्बत में तेरे जवाब है हर तोहमत का।. उम्मीदों का दीया जलता है मुसलसल. 160; Posted by Kavita Vikas. 160; . 160; . Subscribe to: Posts (Atom). फेमिना. हरिभूमि ". सौरभ दर्शन ". ट्र&#...
काव्य वाटिका: March 2015
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इस ब्लॉग से मेरी अनुमति के बिना. कोई भी रचना कहीं पर भी प्रकाशित न करें।. आज नया गीत लिखूँ. नैनों की भाषा का मौन प्रतीक लिखूँ. जी चाहता है आज नया गीत लिखूँ।. मन आँगन में गूंजता कलरव पाखी का. रोम - रोम में नया स्फुरण सा लगता है. यूँ तो मौसम है अभी पतझड़ का. पर हर शाख में वसंत दिखता है।. प्रियतम तुम्हारे जादुई सम्मोहन का. रग - रग में छलकता प्रीत लिखूँ. जी चाहता है आज नया गीत लिखूँ।. दिन सुवासित ,रात महका सा रहता है. तन दहका मन बहका सा लगता है।. तुमसे मिल जीवन सरस लगता है. 160; Posted by Kavita Vikas. 15 ज&#...
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समय-सुनीता: July 2012
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समय-सुनीता. मुख्य पृष्ठ. डैश बोर्ड. समालोचन: मैं कहता आँखिन देखी : अनामिका. Posted by डॉ.सुनीता. On Monday, 23 July 2012. समालोचन: मैं कहता आँखिन देखी : अनामिका. Posted by डॉ.सुनीता. On Saturday, 21 July 2012. कुछ न कुछ. घटना दर घटना रोज होते हैं. सुनसान सड़कों पर बच्चे चिल्लाते हैं. दूर खड़ी माँ फफ़क-फफ़क कर रोती है. क्रूर सामज में यह हत्या आत्महत्या नहीं होती है. गम-ए-गुबार क्या था खबर नहीं. ख्वारि में तन्हा चले थे मंजिल को. जलालत में जलने का हुनर रखना. सूरज सी तेज समझ. On Tuesday, 17 July 2012. मí...
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समय-सुनीता: December 2013
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समय-सुनीता. मुख्य पृष्ठ. डैश बोर्ड. वक्त की चौखट पर कवितई. Posted by डॉ.सुनीता. On Wednesday, 4 December 2013. डॉ.सुनीता. सहायक प्रोफ़ेसर, नई दिल्ली. साहित्य की सपनीली दुनिया में मूल्यांकन का स्तर सिमटता जा रहा है. जुही की कली. में ऐसा क्या नहीं था? जिसे ‘सरस्वती’ में स्थान देने से संपादक झिझकते रहे/ कतराते रहे. सवाल शून्य के किसी खोह में ध्वनित है.मुंडे-मुंडे मतिर भिन्ने. बाकी फिर कभी. लोकप्रिय पोस्ट्स. भूतपूर्व में घटित घटनाये जब याद आती हí...160; आने के...एक साहसी स्त...जिस त...
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समय-सुनीता: December 2012
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समय-सुनीता. मुख्य पृष्ठ. डैश बोर्ड. परिधि से मेल. Posted by डॉ.सुनीता. On Tuesday, 18 December 2012. डॉ.सुनीता. असिसटेंट प्रोफ़ेसर,नई दिल्ली. पेट के परिधि से मेल नहीं खाता. उदर भूख प्रेम से परे. प्रेणना के गीत. गरीबी के कढ़ाई में खौलते तेल. सरकता,पसीजता रिश्ता. रहम से जीवन बसर करता एक परिंदा. सागर के लहरों में ज्वालामुखी. जंगल के भीड़ में शरीर. सोहराते बरगद बगुले के शोर. यातना के गर्भ गृह में गाय सी स्त्री. गोल चाँद की परिकल्पना करती. कहन से अलग. कहाँ खो गयी. वह एक प्रियतमा. कब्र खोदते. उस एक दरार ...
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समय-सुनीता: May 2012
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समय-सुनीता. मुख्य पृष्ठ. डैश बोर्ड. Posted by डॉ.सुनीता. On Tuesday, 1 May 2012. डॉ.सुनीता. 01/04/2012,नई दिल्ली. आज एक दिवस है. कोई विवस,लाचार और बेकल है. कुछ नहीं है उसके आटी में. सब कुछ तलासते बीते माटी में. उनके सपने अपने होने से रहे. चाँद चढने की कुब्बत कभी रही नहीं. रोटी की कीमत ही सदैव बढ़ी रही. मोती छूने की. जिद कैसी. हमारे ही हड्डियों पर टिका है. देश का एक-एक किला. हमें ही कटघड़े में रखते हैं. शर्म करो हे भेड़िये! किस भ्रम में जिन्दा हो. बताओ मजदूर कौन है? बटा है,समझाये? जुगाड़...नून,प...
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समय-सुनीता: November 2012
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समय-सुनीता. मुख्य पृष्ठ. डैश बोर्ड. जीवटता को सलाम. Posted by डॉ.सुनीता. On Monday, 19 November 2012. 22 अप्रैल 2003 को सोनाली. करते हुए.उन्हें ही समर्पित! डॉ.सुनीता. सहायक प्रोफ़ेसर,नई दिल्ली. तेजाब के तेज को हर लिया. हौसलों के ऊँची उड़ान ने. दम तोड़ दिया व्यवस्था ने. व्याकुल लोग देखते रहे. वह निकल पड़ी दुनिया के आकाश में. आँखों में मोती लिए दर्द के. हृदय में कसक लिए जन्म के मर्म की. मुस्कुराती संध्या को सुंगंध दे गयी. एक अमर किला की महरानी. जख्म को फूल की माल मानकर. On Thursday, 15 November 2012. ह...
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समय-सुनीता: July 2011
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समय-सुनीता. मुख्य पृष्ठ. डैश बोर्ड. लमही' से प्रेमचंद गायब,आजादी के इन्जार में होरी . Posted by डॉ.सुनीता. On Sunday, 31 July 2011. प्रेमचंद की कलम जिस दौर में अंग्रेजों के लिए बारूद साबित हो रही थी, वह दौर परतंत्रता का था. आज सोचती हूँ.मंथन करती हूँ. उस समय के हालात बदतर थे कि आज का समय बेहतर हैं. जिस समय उन्होंने एक से बढकर एक कालजई रचना की उसका आज भी कोई विकल्प नहीं है. पर ही आधुनिक रचना का इतिहास खड़ा हुआ कहा जाये तो ...साहित्य महकमा इस बात से इंकार नह&...जिसके नीचे बैठक...गाँव मे&#...छतीसगढ...
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समय-सुनीता: December 2011
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समय-सुनीता. मुख्य पृष्ठ. डैश बोर्ड. जाने से पहले! Posted by डॉ.सुनीता. On Monday, 19 December 2011. शहर के भीड़ से. शोर के चिंघाड से. धुल-धुआँ के अजाब से. एकाकीपन के नाद से. हृदय के अहलाद से. मौसम के फरियाद से. दूर कहीं गांव के. हरियाली के छाँव से. अपना गहरा नाता है. उसके चंचल-शोख आवाज़ ने. हमें पुकारा है. दोस्तों बुरा न मानना. आज माँ-बापू ने. दिल से गोहराया है. मीठी बोली को. ममता की झोली को. नकार न सके. उससे मिलने को. धडकने सुनने को. आज निकल पड़ी हूँ. एक साल बाद होगी. एक मिशन होगा. आप सब ज्या...
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समय-सुनीता: June 2012
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समय-सुनीता. मुख्य पृष्ठ. डैश बोर्ड. Posted by डॉ.सुनीता. On Saturday, 9 June 2012. कई बार देखा. डॉ.सुनीता ०९/०६/२०१२. एक बार नहीं कई बार देखा है. जीवन के पतझड़ में आंसुओं. अदभुत रेखा है. चलते-चलाते चौखट तक आती आवाजें. चाक पर रखे मिटटी के धोने सा घुमती. पृथ्वी के धुरी पर चक्कर काटती कुछ याद दिलाती हैं. हम उलझे रहे कर्मपथ के अमराई में. तरुण चांदनी पुकारे जीवन के अंगनाई में. दौड़ती-धुपती धूल से यह कंचन काया. मोह के बंधन अनमोल अलख जगाते. बार-बार जल के भी जलन न गई. On Monday, 4 June 2012. खेतो...हेल...
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समय-सुनीता: March 2012
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समय-सुनीता. मुख्य पृष्ठ. डैश बोर्ड. दुश्मनों का डेरा. Posted by डॉ.सुनीता. On Wednesday, 28 March 2012. जिस मंच से मित्रता की बात होती थी. उस पर अब एक शिगूफा छाया है. अभी-अभी एक फरमान आया है. जहां पर दोस्तों का मेला था. अब वहाँ पर दुश्मनों का डेरा होगा. एक से बढ़कर एक झमेला होगा. अपनत्व के नाम पर खुली छूट थी. उस पर वैट जैसा वैन लगेगा. तहरीरों के स्थान पर तस्वीरों की बात होगी. समाज को छोड़कर संविधान बनेगा. लिस्ट का अंदाज़ क्या होगा? मंथन का अंजाम क्या होगा? डॉ.सुनीता. On Tuesday, 27 March 2012. इस तरह क&#...
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समय-सुनीता: April 2012
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समय-सुनीता. मुख्य पृष्ठ. डैश बोर्ड. रंगे-ए-जिंदगी! Posted by डॉ.सुनीता. On Tuesday, 17 April 2012. डॉ.सुनीता. 17/04/2012 नई दिल्ली. उल्टा तवा के भांति सृष्टि सृजन पलट दिया. रुमाल फेंककर जिश्म-दर-जिश्म रौंद दिया. कुकर्म के अदृश्य यातना से तन-वदन उबल पड़ा. निगाहों के सामने पड़े आईने ने अपना. दिखा दिया. उन्मत किरणें जब दस्तक दें दिल के दरवाजे पर. दिखावा वो शर्म के झूठे अनंत चादर ओढ़ लेना. आतीं हैं आती रहेंगी ये कान काटने. जिसे सदैव समझा कोख का हिरा. खून-पसीने के कमाई को ख...नादान बच्चí...उजालí...
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कविता के बहाने
कविता के बहाने. अनुभूति और अभिव्यक्ति की यात्रा कथा . Friday, July 24, 2015. ईश्वर की संताने. वे बच्चे. किसके बच्चे हैं. नाम क्या है उनका. कौन हैं इनके माँ बाप. कहाँ से आते हैं इतने सारे. झुण्ड के झुण्ड,. उन तमाम सरकारी योजनाओ के बावजूद. जो अखबारों और टीवी के. चमकदार विज्ञापनों में. कर रही हैं हमारे जीवन का कायाकल्प,. कालिख और चीथड़ो के ढकी. बहती नाक और चमकती आँखों वाली. जिजीविषा की ये अधनंगी मूर्तियाँ. जो बिखरी हुयी हैं. चमचमाते माल्स से लेकर. अभिशप्त बचपन में ही. अनवरत संघर्षरत. Tuesday, July 21, 2009.
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Kavita Venkateswar | Bharatanatyam Dancer
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कवितायें और कवि भी.. | जो दूसरों की हैं,कवितायें हैं। जो मेरी हैं, -वितायें हैं। आगे के खालीपन में 'स' लगे, 'क' लगे, कुछ और लगे या खाली ही रहे; परवाह नही। … प्रवाह को बस शब्द देता हूँ।
कव त य और कव भ . ज द सर क ह ,कव त य ह ज म र ह , -व त य ह आग क ख ल पन म 'स' लग , 'क' लग , क छ और लग य ख ल ह रह ; परव ह नह … प रव ह क बस शब द द त ह. Skip to primary content. Skip to secondary content. अप र ल 8, 2013. छन छप ह ध प बग च ब च स बह स बह. न फ ल हरस ग र तल त म ह र ह स स! ट ग ओस अदद एक शम क झ क पत त पर. सद य:स न त क श ब द अक ल नयन बस स! उजल जम फ क गय क ई ल ल फ ल कन ल तल. ट न ट टक व र सब ग र ह थ म हद कस स. 8230;व आय ग. जनवर 30, 2013. और हम न समझ प य ग! जनवर 6, 2013. कभ ऐस भ ह त ह क. शब द ख न लगत ह.
काव्य वाटिका
इस ब्लॉग से मेरी अनुमति के बिना. कोई भी रचना कहीं पर भी प्रकाशित न करें।. बड़ी करिश्माई है अहसासे मुहब्बत. जीवन नहीं कभी बंज़र होता है।. संग मौसम उतर जाओ फ़िज़ाओं में. तुमसे ही शादाब मेरा शज़र होता है।. रात कट जाती है आँखों में अक्सर. उधर भी क्या यही मंज़र होता है।. अजाबे इश्क़ भी अज़ीज़ होता है ,पास. जब तुम्हारी बांहों का पिंजर होता है।. दिल की बात आती नहीं जुबां पे. दिल पे चलता तब खंज़र होता है।. 160; Posted by Kavita Vikas. 160; . 160; . कोरी थी जीवन की किताब यह. 160; Posted by Kavita Vikas. 160; . पलक ब...
કોફી હાઉસ
કોફી હાઉસ. મારી કવિતા. કોફી હાઉસ: સ્મરણ. રવિવાર, 11 સપ્ટેમ્બર, 2011. રવિવાર, સપ્ટેમ્બર 11, 2011. કોફી હાઉસ: સ્મરણ. Links to this post. રવિવાર, સપ્ટેમ્બર 11, 2011. તને જોયાને. કેટ કેટલા વરસ વહી ગયા. તારું સ્મણ થાય છે ત્યારે. તારા ચહેરાની આછી પાતળી રેખાઓને. દોરુ છું. ત્યારે થાય છે તારા હાથ વડે તું. મને કેમ જકડી નથી રાખતી? પરંતુ મને એવુ લાગે. એ રેખાઓ માં. આજે હુ કેમ અટ વાતો હોય. એમ લાગે? Links to this post. શુક્રવાર, 3 સપ્ટેમ્બર, 2010. શુક્રવાર, સપ્ટેમ્બર 03, 2010. ઝાકળ કાય. પાણી નથી. Links to this post.
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होना ही चाहिए आंगन
Sunday, March 26, 2006. 01 भ म क आद म ल कर ग तल शत कव त ए - श र रम श दत त द ब. 02 भ म क अपन धरत क तल श- श र न दक श र त व र. 01 जब कभ ह ज क र म र. 02 सबस अच छ परज. 04 अनन त ब ज व ल प ड. 05 ल ग म लत गय क फ ल बढ त गय. 07 आय ग क ई भग रथ. 08 प र यश च त. 09 खतर म ह बचपन. 11 अक ल म ग व त न च त र. 12 म लन प ठ. 13 अभ स र. 14 कह क छ ह गय ह. 16 उह प ह. 17 ख शगव र म सम. 19 अब ज द न आय ग. 20 न कल आ. 22 क छ बच य न बच. 23 ल ख द श मन ब ल द न य क ब वज द. 25 बह त क छ ह अपन जगह. 28 वनद वत स प छ ल. 29 स घड त. 31 ज न स पहल.