manjarisurabhi.blogspot.com
अभिनव रचना (Hindi Poems): June 2015
http://manjarisurabhi.blogspot.com/2015_06_01_archive.html
अभिनव रचना (Hindi Poems). सूर्योदय. Friday, June 19, 2015. अपने ऐशोआराम का इन्तजाम है ’लाल सलाम’. रोते रहे गरीबों पर,. गरीबी पर. फूस की छप्पर पर,. उससे बरसात में टपकते पानी पर. भीगते बिछौने पर. खुद का आशियाना बनाने की बात आयी. तो वो छप्पर भी उजाड़ दिया।. रोते रहे भुखमरी पर. गरीबी पर. रोटी की तड़प पर. चूल्हे की बुझती राख पर. पर खुद के जठरानल की शान्ति के लिये. चूल्हा ही उजाड़ दिया॥. ढपली की थाप देकर. गरीबों, असहायों,. शोषितों, पीड़ितों,. दलितों एवं महिलाओं. से कन्धा लेकर,. शोषण खत्म करना,. लाल सलाम.
manjarisurabhi.blogspot.com
अभिनव रचना (Hindi Poems): August 2012
http://manjarisurabhi.blogspot.com/2012_08_01_archive.html
अभिनव रचना (Hindi Poems). सूर्योदय. Monday, August 27, 2012. वन-कानन औ बाग बगीचे,. निज अपने जल से है सींचे ।. भीषण तप्त रवि किरणों को,. छुपा लिया निज तन पीछे ॥. तप्त और बेहाल धरा को,. नवजीवन का दान दिया है ।. निरीह निर्जल नयनों को,. जीवन का वरदान दिया है ॥. साकार सृष्टि सागर से पाकर,. हिमगिरि को भी मान दिया है ।. प्रतीक्षारत प्यासे कण्ठों को,. शीतलता ससम्मान दिया है ॥. प्रेरणास्पद औ रोचक कितना,. तेरे जन्म-बलिदान का किस्सा ।. 8217;परहित हेतु समर्पित होना’,. ममता त्रिपाठी. Subscribe to: Posts (Atom).
manjarisurabhi.blogspot.com
अभिनव रचना (Hindi Poems): September 2013
http://manjarisurabhi.blogspot.com/2013_09_01_archive.html
अभिनव रचना (Hindi Poems). सूर्योदय. Tuesday, September 24, 2013. पितरों को अर्पित. पितृपक्ष पितरों को अर्पित,. उनको श्रद्धासुमन समर्पित ।. उनके प्रति हो कृतज्ञ आज. श्रद्धा का कण. कण समर्पित ॥. अगियारों की मधु-सुगन्ध से,. पुष्पों के बहुरूप-वर्ण से,. आँगन-द्वार-पिछवार सुगन्धित,. हर घर की ड्योढी है सज्जित ॥. प्रथम वस्तु है अर्पित उनको,. पुष्प, दुग्ध, घृत, अगरु, चन्दन ।. सुस्वादु, सरस, मधुमिश्रित,. बहुविधि रुचिभरे व्यञ्जन ॥. इस जीवन के स्थूल सत्य का. अनुपम यह पखवारा है ।. Monday, September 23, 2013. शो...
manjarisurabhi.blogspot.com
अभिनव रचना (Hindi Poems): July 2014
http://manjarisurabhi.blogspot.com/2014_07_01_archive.html
अभिनव रचना (Hindi Poems). सूर्योदय. Wednesday, July 2, 2014. सुखकर है ये वर्षाजल,. उठतीँ गिरतीँ बूँदेँ चञ्चल।. आसमान के मेघकोष से. आतीँ देखो बूँदेँ छन-छन।।. यह बिन्दु-बिन्दु है नेह भरी,. अभिसिञ्चित जैसे स्नेह स्वजन।. वर्षोँ की लम्बी विरह-प्रतीक्षा,. अनुभव करती ज्योँ अपनापन।।. ममता त्रिपाठी. Subscribe to: Posts (Atom). राष्ट्रध्वज. ममता त्रिपाठी. शोध छात्रा जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय नई दिल्ली. View my complete profile. मेरे अन्य ब्लॉग. अभिव्यक्ति. नवांकुर. प्रेक्षकगण.
manjarisurabhi.blogspot.com
अभिनव रचना (Hindi Poems): December 2013
http://manjarisurabhi.blogspot.com/2013_12_01_archive.html
अभिनव रचना (Hindi Poems). सूर्योदय. Sunday, December 22, 2013. विकास या विनाश. जंगल उजड़ते रहे,. उपवन उजड़ते रहे,. खेत और खलिहान उजड़ते रहे. अट्टालिकाओं के शहर सजते रहे,. इस सजावट की चाहत में,. बुलबुले बनते और सिमटते रहे ।. ममता त्रिपाठी. देशद्रोही.विषधर. देशद्रोहियों को गले लगाना. सिर पर चढ़ाना. और उनको कन्धे पर लेकर ठुमके लगाना. अब "कुछ" लोगों की नियति बन गयी है ।. ये प्रथम "देशद्रोही" हैं,. अब पहचानों इनको. क्योंकि. इनसे राष्ट्रवाद की ठन गयी है ॥. एक-एक कर निकालना है ।. कोई रहा खरीद,.
manjarisurabhi.blogspot.com
अभिनव रचना (Hindi Poems): August 2014
http://manjarisurabhi.blogspot.com/2014_08_01_archive.html
अभिनव रचना (Hindi Poems). सूर्योदय. Saturday, August 30, 2014. प्रकृति. अनगिन लड़ियाँ,. नव कोपल,. नव-नव पंखुड़ियाँ।. ताम्र-पल्लवों से. प्रफुल्लित. प्रमुदित. विहँसित. वन-वाटिका-वल्लरियाँ॥. ममता त्रिपाठी. क्षणिक अनुराग।. राग-विराग. क्षणिक अनुराग।. अन्ततः बनता जो अनुताप. जीवन का सह्य-असह्य सन्ताप।. न थाह, नहीं कोई परिमाप॥. अपनी ही है रचित तूलिका. अपना ही रचना-विस्तार।. अपने ही बहुरंगी पन्ने,. अपना ही उनका आकार,. फिर क्यों इतना हाहाकार? ज्वालाओं का पारावार? करता उसको तार-तार।. Subscribe to: Posts (Atom).
manjarisurabhi.blogspot.com
अभिनव रचना (Hindi Poems): March 2014
http://manjarisurabhi.blogspot.com/2014_03_01_archive.html
अभिनव रचना (Hindi Poems). सूर्योदय. Monday, March 31, 2014. चैत्र शुक्ल प्रतिपदा पर विशेष. चैत्र शुक्ल प्रतिपदा. मंगलमय सर्वदा. नूतन परिधान हो. निर्मल वितान हो. प्रकृति का शृंगार हो. दानवता का संहार हो. मानवता विजित हो. पशुता पराजित हो. सृष्टि. स्वस्ति भावना. जन में जाग्रत हो. मोह त्यागें सब. निद्रा से जागे सब. भेदभाव त्यागकर. एक्य मार्ग पर चलें. भोगवाद छोड़कर. सर्वे भवन्तु सुखिनः. कण्ठ-कण्ठ अब कहे ॥. ममता त्रिपाठी. Sunday, March 23, 2014. वीर बलिदानियों को नमन. गहन निशा. प्रकाश न क्षण भर. तू हì...
manjarisurabhi.blogspot.com
अभिनव रचना (Hindi Poems): June 2014
http://manjarisurabhi.blogspot.com/2014_06_01_archive.html
अभिनव रचना (Hindi Poems). सूर्योदय. Sunday, June 22, 2014. निशा सजाये थाल खड़ी है. हीरा, मोती, मणियोँ को।. सोम सोमरस बाँट रहा है. कली और पँखुड़ियो को ।।. ममता त्रिपाठी. Friday, June 13, 2014. जीवन फिर विस्तीर्ण हुआ।।. इधर हृदय के हंस उड़े और,. उधर महासर क्षीण हुआ।. जीवन फिर विस्तीर्ण हुआ।।. पुष्प पुष्प मकरन्द उड़ाकर. उपवन पवन प्रकीर्ण हुआ।. जीवन फिर विस्तीर्ण हुआ।।. ममता त्रिपाठी. जैसा बोओ वैसा काटो. जो हलाहल बोता है वह अमृत न पीता है।. ममता त्रिपाठी. ममता त्रिपाठी. Subscribe to: Posts (Atom).
manjarisurabhi.blogspot.com
अभिनव रचना (Hindi Poems): June 2011
http://manjarisurabhi.blogspot.com/2011_06_01_archive.html
अभिनव रचना (Hindi Poems). सूर्योदय. Tuesday, June 28, 2011. लो आ गयी ऋतु वर्षा मनभावन. पंक्तिबद्ध पिपीलिका, मोहक मयूरनर्तन।. शीतल समीर वाह घोर मेघ-गर्जन।. लो आ गयी ऋतु वर्षा मनभावन।।. हर्षित-पुलकित-प्रफुल्लित है जन-जन।. आशा-विश्वास से आपूरित कृषक-मन।।. भीनीं फुहारों से पतित हुए रज-कण।. तेज बौछारों से धुल गया वन-उपवन।।. हरीतिमा से धूल हटी,. सत्वर निखर गयी।. धरती ने मानो पहनी धानी चुनरी नयी।।. द्वार पर खड़ा है सावन मनभावन।. स्वागतम् मेघ बरसो तुम छन-छन।. ममता त्रिपाठी. पिपीलिका. Subscribe to: Posts (Atom).
mamtatripathi.blogspot.com
अक्षर: December 2010
http://mamtatripathi.blogspot.com/2010_12_01_archive.html
A SANSKRIT LITERATURE AND CULTURE BLOG. Thursday, December 30, 2010. वेदाङ्गानि. पठ्यते।. ज्योतिषामयनं. चक्षुर्निरुक्तं. श्रौतमुच्यते॥. शिक्षा. घ्राणं. व्याकरणं. स्मृतम्।. तस्मात्. साङ्गमधीत्यैव. ब्रह्मलोके. महीयते॥. पाणिनीय. शिक्षा. इदानीं. प्रत्येकं. वेदाङ्गानां. संक्षिप्तं. लक्षणमस्ति।. वेदाङ्गम्।. वेदाङ्गं. शृङ्गाणि. शिक्षा. निरुक्तं. ज्योतिषं. व्याकरणम्. शिक्षा. व्याकरणं. निरुक्तं. ज्योतिषं. कल्पोचेति. षडङ्गानि. वेदस्यार्षमनीषिणः॥. विद्यायाः. विभागद्वयं. मुण्डकोपनिषदि. तत्रापरा. चतुर्व&#...श्र...
SOCIAL ENGAGEMENT