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मेरी नज़र से: August 2013
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मेरी नज़र से. गुरुवार, 29 अगस्त 2013. मेरी नज़र से कुछ मील के पत्थर - 8 ). मनोज: फ़ुरसत में . तीन टिक्कट महा विकट. जब घर से तीन जने निकलते, तो कोई न कोई टोक देता कि तीन मिलकर मत जाओ, तो दो आगे एक पीछे से आता, या एक आगे, दो पीछे से आते। एक मिनट-एक मिनट! तीन पूरे हुए! अब तो चौथ है! तीन पूरे हुए,. अब तो चौथ है! सोचता हूँ. कैसा ये एहसास है? या कोई पूर्वाभास है? फ़ुरसत में. फ़ुरसत से ही. लिखने बैठा हूं,. सीधा नहीं. पूरी तरह से ऐंठा हूं. इतने दिनों के बाद. मैं सोचता हूँ. अपनी मौत से पहले. बहुत ही कम. सर्...
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मेरी नज़र से: May 2013
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मेरी नज़र से. मंगलवार, 14 मई 2013. दिया बन जल रहा हूँ रात के किनारे पर . दिशाएँ अनगिनत. पर रुकावट भी सहस्त्र. ईश्वर देता है. पर प्रयास का अर्घ्य भी माँगता है. कोई इसे हां मान लेता है. कोई जीत की आहटें पाता है. दुनिया दो है . एक प्रत्यक्ष. दूसरा अप्रत्यक्ष - जिसमें प्रवेश निशेध नहीं. बस सामर्थ्य और विश्वास की ज़रूरत है . रश्मि प्रभा. दिया बन जल रहा हूँ. रात के किनारे पर. पर एक परिधि है मेरी. जहाँ तक पहुँच कर. रुक जाता हूँ. थम जाता हूँ. और तिमिर आकाश का विस्तार. एक सीमा के बाहर. मेरे लिए. बाह्य...एक छí...
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चर्चामंच: "झुकी पलकें...हिन्दी-चीनी भाई-भाई" {चर्चा अंक - 1977}
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Saturday, May 16, 2015. झुकी पलकें.हिन्दी-चीनी भाई-भाई" {चर्चा अंक - 1977}. मित्रों।. शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है।. देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।. डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'). झुकी पलकें. मन का पंछी. पर शिवनाथ कुमार. दोहे "करो आज शृंगार". जिनके घर के सामने, खड़ा हुआ है नीम।. उनके घर आता नहीं, जल्दी वैद्य-हकीम।।. प्राणवायु देते हमें, बरगद-पीपल नीम।. भूल रहे हैं आज सब, पुरखों की तालीम. तीन कहानियाँ-. जो बदल सकती हैं आपकी ज़िन्दगी! काव्य मंजूषा. पर स्वप्न मञ्जूषा. 8216;सूट-बूट की,. रूप नय...