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मेरी लेखनी मेरे भाव....: December 2009
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मेरी लेखनी मेरे भाव. मन के भाव पता नहीं कब एक कविता का रूप ले लेते हैं और लहरों की तरह बहते चले जाते हैं. सीधी-खरी बात. तुम्हीं हो . 160;Sunday, 20 December 2009. मत पूछो मेरे दिल से, मेरे दिल की चाह को।. पहली से आख़िरी सभी चाहत में तुम्हीं हो ॥. हो चाहें जितनी दुनिया, हों चाहे राहें कितनी? शुरुआत से अभी भी मेरी ज़न्नत में तुम्हीं हो।. हर एक की दुआ है कि, मिल जाये साथ तेरा ।. उठते हुए हर हाथ की मन्नत में तुम्हीं हो ॥. प्रस्तुतकर्ता Dr Ashutosh Shukla. 2 टिप्पणियाँ. लेबल: कविता. मन की चाहत. कुछ ऐस&#...
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मेरी लेखनी मेरे भाव....: June 2013
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मेरी लेखनी मेरे भाव. मन के भाव पता नहीं कब एक कविता का रूप ले लेते हैं और लहरों की तरह बहते चले जाते हैं. सीधी-खरी बात. 160;Thursday, 20 June 2013. रूद्र रूप. महारुद्र,. ये रौद्र रूप. तुम मत धारो . तुम विष को धारण. करते हो,. अपने जन को. मत संहारो . तुम भोले हो. तुम अविनाशी,. हो शांत. नहीं अब नाश करो . तुम ज्ञानी हो. सर्वज्ञ तुम्हीं,. हम अज्ञानी. मत क्रोध करो . बद्री विशाल! तुम हो विशाल,. भोले के तांडव. को रोको . हम तो सेवक. तेरे केदार,. त्रिनेत्र को बंद करो . विश्वनाथ अब. स्थिर होकर,. घर वापसी.
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मेरी लेखनी मेरे भाव....: December 2010
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मेरी लेखनी मेरे भाव. मन के भाव पता नहीं कब एक कविता का रूप ले लेते हैं और लहरों की तरह बहते चले जाते हैं. सीधी-खरी बात. साल कोई फिर ऐसा आये. 160;Friday, 31 December 2010. उगता सूरज, खिलती धरती, नीला अम्बर फिर मुस्काए! जीवन बने सरल हम सबका, साल कोई फिर ऐसा आये! हार जाएँ अब ये आतंकी, अमन चैन जब पंख पसारे! हों राहें खुशहाल हमारी, साल कोई फिर ऐसा आये! धरती उगले फिर से सोना, फसल खेत में फिर लहराए! भूखे पेट कोई न सोये, साल कोई फिर ऐसा आये! मेरी हर धड़कन भारत के लिए है. 0 टिप्पणियाँ. राजनीति.
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मेरी लेखनी मेरे भाव....: March 2012
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मेरी लेखनी मेरे भाव. मन के भाव पता नहीं कब एक कविता का रूप ले लेते हैं और लहरों की तरह बहते चले जाते हैं. सीधी-खरी बात. 160;Wednesday, 21 March 2012. वो आरज़ू भी जुस्तजू भी और सब भी हैं. मेरे नहीं तो खुद कहो वो और किसके हैं? पाया उन्हें जो दिल से तो फिर चाह न रही. उनको बना के जान अब जिंदा हुआ हूँ मैं. प्रस्तुतकर्ता Dr Ashutosh Shukla. 3 टिप्पणियाँ. Subscribe to: Posts (Atom). पिछली पांच रचनाएँ. मेरे बारे में. View my complete profile. घर वापसी. चुनाव नेता व्यंग. चुनाव व्यंग. बाल कविता. लव जिहाद.
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मेरी लेखनी मेरे भाव....: November 2009
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मेरी लेखनी मेरे भाव. मन के भाव पता नहीं कब एक कविता का रूप ले लेते हैं और लहरों की तरह बहते चले जाते हैं. सीधी-खरी बात. मेरे अरमां. 160;Thursday, 12 November 2009. मेरे अरमां मचल रहे हैं,. तेरे अब मचलेंगें कब? थोड़ी मेहर जो रब की हो तो,. पूरे होंगे अबकी सब. थोड़ी झिझक बची है मुझमें,. थोड़ी तुझमें है बाकी. तू जो हाथ थाम ले मेरा,. चाँद के पार चलेंगें हम. घने कुहासे की चादर में. दिल ने फिर अंगडाई ली है. याद वही फिर से आता है,. तेरी आहट मिलती जब. दिल के अरमां पलते हैं. लेबल: कविता. Subscribe to: Posts (Atom).
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मेरी लेखनी मेरे भाव....: August 2009
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मेरी लेखनी मेरे भाव. मन के भाव पता नहीं कब एक कविता का रूप ले लेते हैं और लहरों की तरह बहते चले जाते हैं. सीधी-खरी बात. १०० दिन का काम. 160;Saturday, 29 August 2009. गाँवों में अब हो रहा १०० दिन का व्यापार,. नेता बाबू लूटते जनता की सरकार ॥. मीरा जी ने कह दिया हो चाहे तकरार,. हर सांसद को चाहिए १०० दिन का रोज़गार।।. १०० दिन का रोज़गार मचाएं जितना हल्ला,. खाने को तो मिले मलाई और रसगुल्ला ।।. प्रस्तुतकर्ता Dr Ashutosh Shukla. 0 टिप्पणियाँ. लेबल: कविता. क्यों? 160;Thursday, 27 August 2009. उसके साथ. पिछ...
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मेरी लेखनी मेरे भाव....: August 2010
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मेरी लेखनी मेरे भाव. मन के भाव पता नहीं कब एक कविता का रूप ले लेते हैं और लहरों की तरह बहते चले जाते हैं. सीधी-खरी बात. सावन में पानी? 160;Wednesday, 11 August 2010. क्यों नहीं आख़िर. क्यों नहीं? सावन में क्यों नहीं बरसता? जीवन में सूखे ठूंठों पर,. मुरझाई हुई आशाओं पर. पथराती हुई आँखों से,. झूठी मुस्कुराहटों तक. कहीं कुछ तो ज़रूर है,. तभी तो नहीं बरसता. सावन में पानी? अपनों के रिश्तों से,. परायों के बंधन तक. सूखती हुई दोस्ती पर. हरियाती हुई दुश्मनी में. तभी तो नहीं बरसता. मन के मचलने तक.
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मेरी लेखनी मेरे भाव....: December 2012
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मेरी लेखनी मेरे भाव. मन के भाव पता नहीं कब एक कविता का रूप ले लेते हैं और लहरों की तरह बहते चले जाते हैं. सीधी-खरी बात. नया वर्ष? 160;Monday, 31 December 2012. क्या उपलब्धि है हमारी. क्या ख़ास किया हमने इस वर्ष? क्या करने की अभिलाषा है. हम सब की अगले वर्ष? ऐसे ही पन्ने पलटते जायेंगें. कैलेंडर्स के . हम गिनते रह जायेंगें 13 /14 / 15. और भी न जाने कितने. नए वर्ष ऐसे ही आते जायेंगें? क्या कभी हम पुरुषत्व के उस. दल दल से बाहर आकर. समझ सकेंगें. नारी के कोमल मन को? वह माँ की कोख़ से . सूखी हुई ...चलो फ...
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मेरी लेखनी मेरे भाव....: October 2009
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मेरी लेखनी मेरे भाव. मन के भाव पता नहीं कब एक कविता का रूप ले लेते हैं और लहरों की तरह बहते चले जाते हैं. सीधी-खरी बात. तुमको आते देखा जब. 160;Monday, 26 October 2009. मौसम में फिर प्यार घुला है,. जीवन में बदला है सब ।. दिल ने फिर अंगडाई ली है. तुमको आते देखा जब।।. हरी घास पर ओस की बूँदें,. बैठी रहती धूप चढ़े तक।. हौले हौले भाप हो गयीं. तुमको आते देखा जब॥. इंतज़ार में अब तक तेरे,. घना कुहासा बढ़ता है।. सूरज फिर से निकल रहा है. तुमको आते देखा जब॥. तुमको आते देखा जब॥. लेबल: कविता. 160;Monday, 12 October 2009.