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मेरी भावनायें...

शोर से अधिक एकांत का असर होता है, शोर में एकांत नहीं सुनाई देता -पर एकांत मे काल,शोर,रिश्ते,प्रेम, दुश्मनी,मित्रता, लोभ,क्रोध, बेईमानी,चालाकी … सबके अस्तित्व मुखर हो सत्य कहते हैं ! शोर में मन जिन तत्वों को अस्वीकार करता है - एकांत में स्वीकार करना ही होता है

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शोर से अधिक एकांत का असर होता है, शोर में एकांत नहीं सुनाई देता -पर एकांत मे काल,शोर,रिश्ते,प्रेम, दुश्मनी,मित्रता, लोभ,क्रोध, बेईमानी,चालाकी … सबके अस्तित्व मुखर हो सत्य कहते हैं ! शोर में मन जिन तत्वों को अस्वीकार करता है - एकांत में स्वीकार करना ही होता है
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1 वह सुबह
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मेरी भावनायें... | lifeteacheseverything.blogspot.com Reviews

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शोर से अधिक एकांत का असर होता है, शोर में एकांत नहीं सुनाई देता -पर एकांत मे काल,शोर,रिश्ते,प्रेम, दुश्मनी,मित्रता, लोभ,क्रोध, बेईमानी,चालाकी … सबके अस्तित्व मुखर हो सत्य कहते हैं ! शोर में मन जिन तत्वों को अस्वीकार करता है - एकांत में स्वीकार करना ही होता है

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मेरी भावनायें...: 6/1/15 - 7/1/15

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मेरी भावनायें. शोर में मन जिन तत्वों को अस्वीकार करता है - एकांत में स्वीकार करना ही होता है. 27 जून, 2015. कुछ भी असंभव नहीं. आँधियाँ सर से गुजरी हों. टूट गया हो घर का सबसे अहम कोना. तो तुम दुःख के सागर में डूब जाओ. कि अब कुछ शेष नहीं रहा. तो तुम्हें एक बार बताना होगा. तुम ऐसा कैसे सोच सकते हो? घर का कोना सिर्फ तुमसे ही तो नहीं था. कई पैरों ने की होंगी चहकदमियाँ उस ख़ास कोने में. उस ख़ास घर में …. फिर से एक महत्वपूर्ण कोना नहीं बना सकते? मजबूत छतें बनाओ. उन पर भरोसा रखो! फिर देखो,. 12 जून, 2015. वीर...

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मेरी भावनायें...: 12/1/14 - 1/1/15

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मेरी भावनायें. शोर में मन जिन तत्वों को अस्वीकार करता है - एकांत में स्वीकार करना ही होता है. 30 दिसंबर, 2014. किंकर्तव्यविमूढ़ मैं. तबके अलग अलग होते हैं. यूँ कहो. बना दिए जाते हैं …. कामवाली बाई -. नाम जानकर क्या होगा? यह एक दृश्य है स्थितिजन्य. एक सा - झोपड़पट्टी और ऊँचे घरों का. कमला,विमला, … जो कह लो …. नीचे रो रही है. घुटने फूटे हुए हैं. पूछने पर कहती है. पानी भरने में गिर गई. आगे बढ़ती हूँ तो दूसरी बाई पूछती है. क्या कहा उसने? गिरेगी ही! पति छोड़ गया. एक बेटा है. दीदी जी,. पर नहीं …. शैक्ष...एक व&#237...

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मेरी भावनायें...: 7/1/15 - 8/1/15

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मेरी भावनायें. शोर में मन जिन तत्वों को अस्वीकार करता है - एकांत में स्वीकार करना ही होता है. 01 जुलाई, 2015. ईश्वर अपनी ओर खींचता है. जीवन के किसी मोड़ पर. अचानक हमें लगता है -. हम हार गए हैं,. ज़िन्दगी ऊन के लच्छे सी उलझ गई है" …. पर किसी न किसी तरह. कोई न कोई. खासकर माँ. उसे पूरा दिन. पूरा ध्यान लगाकर सुलझाती है. समस्या का चेहरा कितना भी विकराल हो. उससे निबटने का हल होता है,. कोई न कोई मजबूत हथेली मिल ही जाती है …. निःसंदेह,. मन अकुलाता है. न भूख लगती है. न प्यास. पाने का. न दब्बूपन. सहने की. समाज...

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मेरी भावनायें...: 1/1/15 - 2/1/15

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मेरी भावनायें. शोर में मन जिन तत्वों को अस्वीकार करता है - एकांत में स्वीकार करना ही होता है. 01 जनवरी, 2015. 2015 मंगलमय हो. पुराने वर्ष ने उतार दिया है अपना पुराना वस्त्र. नई ताजगी, नए हौसलों के साथ. 2015 की आयु लिए. खड़ा है नया वर्ष! जन्मदिन की ढेरों बधाई वर्ष :). बढ़ाओ अपने अनुभवी कदम. जिन्होंने खून की होली खेली. तुम्हारे वस्त्रों को दागदार किया. उन्हें दो गज ज़मीन भी न नसीब हो. दिखा दो …. हर बच्चों को अपनी सी लम्बी आयु दो. उनके भीतर हर मौसम की खासियत भर दो. संकल्प लो. कहो न सबसे. मैं 2015. हज़&#2...

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मेरी भावनायें...: 5/1/14 - 6/1/14

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मेरी भावनायें. शोर में मन जिन तत्वों को अस्वीकार करता है - एकांत में स्वीकार करना ही होता है. 30 मई, 2014. बंधन और बाँध - में फर्क है! कोई बंधन में डाले. या हम स्वयं एक बाँध बनाएँ. दोनों में फर्क है! तीसरा कोई भी जब रेखा खींचता है. तो उसे मिटाने की तीव्र इच्छा होती है. न मिटा पाए. तो एक समय आता है. जब वह बोझ लगने लगता है! प्यार, विश्वास का रिश्ता हो. हम उसकी महत्ता समझें. तो हम स्वयं बंध जाते हैं. कोई रेखा खींचने की ज़रूरत नहीं होती! अंकुश की ज़रूरत. वो भी एक हद तक. जीतकर क्या? हम चाहें. फिर - आज न कल.

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सृजन _शिखर: December 2012

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सृजन शिखर : मेरे ख्यालों का खुला आसमां. अब तक कितने. लेख / अन्य. क्षणिकायें. 169; कापीराइट. आपको ये ब्लाग कितना % पसंद है? मेरे बारे में. परिचय के लिए कृपया फोटो पर क्लिक करें. Monday, December 24, 2012. कुछ क्षणिकायें. हम तो थे परिंदा. हमारी हर उड़ान के साथ. अपने लोग भी हमें. अपने दिलों से. उड़ाते गये. आलम अब ये है की. हम याद भी करें तो. उनको याद नहीं आते है।।. हमें आदत थी. उनके हर चीज को. सम्हालकर रखने की. उनके दिए हर दर्द को भी. हम दिल में. सम्हालकर रखते गए. उनके हर इल्जाम. यह होगा. Links to this post.

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सृजन _शिखर: July 2011

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सृजन शिखर : मेरे ख्यालों का खुला आसमां. अब तक कितने. लेख / अन्य. क्षणिकायें. 169; कापीराइट. आपको ये ब्लाग कितना % पसंद है? मेरे बारे में. परिचय के लिए कृपया फोटो पर क्लिक करें. Thursday, July 21, 2011. जो लौट के घर ना आयें.(कारगिल युद्द - मई से जुलाई 1999 ). जो लौट के घर ना आयें. दुश्मनों को इस सरजमीं से खदेड़ हमने अपना वादा निभाया. लो सम्हालो ये देश प्यारों अब अलविदा कहने का वक्त आया .।।. नापाक इरादे. कर आये थे वे पलभर. में हमने खाक कर दिया. उपेन्द्र नाथ. Links to this post. Labels: कविता. नये&#160...

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शब्द-गुंजन: September 2009

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शब्द-गुंजन. कुछ शब्दों के बहाने, चले हैं हम भी अपना हाल-ऐ-दिल सुनाने। अब बस इतनी सी है ख्वाहिश- हम रहे या न रहे, ये शब्द यूँ ही गुंजित रहे - रोहित. मुखपृष्ठ. ब्लॉग के बारे में. सोमवार, 14 सितंबर 2009. वो रात. वो रात यूँ गुजरी की,कुछ पता न चला,. क्यों दो दिलो के बीच,आ गया. था फासला ।. तन्हाइयों ने मुझे ,इस कदर घेर लिया था ,. भीड़ में भी ये मन ,अकेला था हो चला ।. न चाहत थी शोहरत की , न जन्नत माँगी थी,. अब न खुदा से,मैं कुछ और मांगता हूँ ,. मेरे मित्र ' अरुल. श्रीवास्तव. लेबल: कविता. नई पोस्ट. कुछ म&#2...

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सृजन _शिखर: August 2011

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सृजन शिखर : मेरे ख्यालों का खुला आसमां. अब तक कितने. लेख / अन्य. क्षणिकायें. 169; कापीराइट. आपको ये ब्लाग कितना % पसंद है? मेरे बारे में. परिचय के लिए कृपया फोटो पर क्लिक करें. Sunday, August 7, 2011. हिना रब्बानी की मुस्कराहट और उनके चेलों का कारनामा. Courtesy:- Himalini Hindi Mgzn). पाकिस्तानी. आतंकवादियों ने दो. जवानों. धड़ से अलग कर दिए. में सिर ले गए।इस नृशंस घटना से भारतीय सेना. खबरों के मुताबिक इस बात की पुष्टि की. एक अपील मिडिया और मानव अधिकारो&#230...उपेन्द्र नाथ. Links to this post. नये द...

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मौन के खाली घर में... ओम आर्य: August 2010

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मौन के खाली घर में. ओम आर्य. यही करता रहा है. Friday, August 20, 2010. अब और बंजर होने की जगह नहीं हो. वे टूटें. भूकंप के मकानों की तरह. और फटें. बादलों की तरह. हम कहीं दूर सूखे में बैठ कर. देखें उनका टूटना और फटना. लिखे उनके दुख और खुश होवें. टूट पड़ें सड़क पे. लाल बत्ती के हरी होते हीं. और बाजू में. बच कर निकलने के लिए संघर्ष करते. साइकिल वाले की साँसों का. उथल-पुथल देखते हुए. पार कर जाएँ सफ़र. रात की तेज बारिश में. बह गयी हों सारी यादें. तब भी सुबह उठ कर हम टाल जाएँ. अपनी मासूमियत. उधर पत्थर फ&#23...

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मन का पाखी: September 2011

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मन का पाखी. Sunday, September 25, 2011. दो वर्ष पूरा होने की ख़ुशी ज्यादा या गम. और मैने ". हाथों की लकीरों सी उलझी जिंदगी. लिख डाली. मैने समीर जी. से वादा भी किया था.कि डा. समीर. सब जैसे मेरे जाने-पहचाने हैं. प्रसंगवश ये भी बता दूँ कि ये 'नाव्या'. नाम मैने कहाँ से लिया था? मैने कहीं ये पढ़ा और ये नाव्या नाम तभी भा गया. नाम ऐसे ही चुना था :). हाथों की लकीरों सी उलझी जिंदगी. एक पोस्ट. Links to this post. Subscribe to: Posts (Atom). View my complete profile. उड़न तश्तरी . Dr Smt. Ajit Gupta.

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जीवन धारा: April 2009

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जीवन धारा. Wednesday, April 29, 2009. एक सपने के टूट जाने से जिंदगी ख़त्म नही हो जाती . जीवन एक संगिनी की तरह है । हमेशा आपके साथ । राह में हर मोड़ पर कदम मिलाते हुए ।. कुछ ख़त्म हो गया तो क्या हुआ । बहुत कुछ अभी बाकी है , मेरे दोस्त .कहाँ खो गए ।. एक सपने के टूट जाने से जिंदगी ख़त्म नही हो जाती । बहुत से सपने अभी भी बुने. जा सकते है । टूटने दो यार एक सपने को .वह टूटने के लिए ही था ।. जम कर करो ,इन्तजार ।. Posted by mark rai. Links to this post. Labels: जिंदगी. Tuesday, April 14, 2009. साथी . खुल&#...

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चलो यूँ ही सही...: 2010-05-09

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चलो यूँ ही सही. Friday, May 14, 2010. याद करने के लिए उम्र पड़ी हो जैसे- अहमद फराज. ऐसे चुप हैं, कि यह मंजिल की कड़ी हो जैसे. तेरा मिलना भी जुदाई की घड़ी हो जैसे. अपने ही साए से हर गाम लरज जाता हूँ. रास्ते में कोई दीवार खड़ी हो जैसे. कितने नादां हैं तेरे भूलने वाले कि तुझे. याद करने के लिए उम्र पड़ी हो जैसे. तेरे माथे की शिकन पहले भी देखी थी मगर. यह गिरह अब के मेरे दिल में पड़ी हो जैसे. मंजिलेँ दूर भी है, मंजिलेँ नजदीक भी है. Sunday, May 9, 2010. उम्र भर हम सोचते ही रह गए हर मोड़ पर. Subscribe to: Posts (Atom).

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मेरी भावनायें. शोर में मन जिन तत्वों को अस्वीकार करता है - एकांत में स्वीकार करना ही होता है. 27 मार्च, 2018. कहो यशोधरा. कहो यशोधरा. सिद्धार्थ के महाभिनिष्क्रमण के बाद. तुम्हारे अंदर कैसे उतरी थी? क्या वह गौरैया उस दिन तुम्हें दिखी थी. जो हर दिन नियम से. तुम्हारी खिड़की पे आ बैठती थी. चीं चीं पुकार कर तुम्हें. तुम्हारी नर्म हथेलियों पर दाना चुगती थी. सुनाई पड़ी थी उसकी मीठी चीं चीं? या लोगों के सवालों के शोर में. उस शोर की तंग गलियों में. बह रही थी गंगा! उन लकीरों में. समय से पहले,. बहुत पहले. राह&#...

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