srijanshikhar.blogspot.com
                                        
                                        सृजन _शिखर: December 2012
                                        http://srijanshikhar.blogspot.com/2012_12_01_archive.html
                                        सृजन शिखर : मेरे ख्यालों का खुला आसमां. अब तक कितने. लेख / अन्य. क्षणिकायें. 169; कापीराइट. आपको ये ब्लाग कितना % पसंद है? मेरे बारे में. परिचय के लिए कृपया फोटो पर क्लिक करें. Monday, December 24, 2012. कुछ क्षणिकायें. हम तो थे परिंदा. हमारी हर उड़ान के साथ. अपने लोग भी हमें. अपने दिलों से. उड़ाते गये. आलम अब ये है की. हम याद भी करें तो. उनको याद नहीं आते है।।. हमें आदत थी. उनके हर चीज को. सम्हालकर रखने की. उनके दिए हर दर्द को भी. हम दिल में. सम्हालकर रखते गए. उनके हर इल्जाम. यह होगा. Links to this post. 
                                     
                                    
                                        
                                            
                                            srijanshikhar.blogspot.com
                                        
                                        सृजन _शिखर: July 2011
                                        http://srijanshikhar.blogspot.com/2011_07_01_archive.html
                                        सृजन शिखर : मेरे ख्यालों का खुला आसमां. अब तक कितने. लेख / अन्य. क्षणिकायें. 169; कापीराइट. आपको ये ब्लाग कितना % पसंद है? मेरे बारे में. परिचय के लिए कृपया फोटो पर क्लिक करें. Thursday, July 21, 2011. जो लौट के घर ना आयें.(कारगिल युद्द - मई से जुलाई 1999 ). जो लौट के घर ना आयें. दुश्मनों को इस सरजमीं से खदेड़ हमने अपना वादा निभाया. लो सम्हालो ये देश प्यारों अब अलविदा कहने का वक्त आया .।।. नापाक इरादे. कर आये थे वे पलभर. में हमने खाक कर दिया. उपेन्द्र नाथ. Links to this post. Labels: कविता. नये ...
                                     
                                    
                                        
                                            
                                            shabdgunjan.blogspot.com
                                        
                                        शब्द-गुंजन: September 2009
                                        http://shabdgunjan.blogspot.com/2009_09_01_archive.html
                                        शब्द-गुंजन. कुछ शब्दों के बहाने, चले हैं हम भी अपना हाल-ऐ-दिल सुनाने। अब बस इतनी सी है ख्वाहिश- हम रहे या न रहे, ये शब्द यूँ ही गुंजित रहे - रोहित. मुखपृष्ठ. ब्लॉग के बारे में. सोमवार, 14 सितंबर 2009. वो रात. वो रात यूँ गुजरी की,कुछ पता न चला,. क्यों दो दिलो के बीच,आ गया. था फासला ।. तन्हाइयों ने मुझे ,इस कदर घेर लिया था ,. भीड़ में भी ये मन ,अकेला था हो चला ।. न चाहत थी शोहरत की , न जन्नत माँगी थी,. अब न खुदा से,मैं कुछ और मांगता हूँ ,. मेरे मित्र ' अरुल. श्रीवास्तव. लेबल: कविता. नई पोस्ट. कुछ म...
                                     
                                    
                                        
                                            
                                            srijanshikhar.blogspot.com
                                        
                                        सृजन _शिखर: August 2011
                                        http://srijanshikhar.blogspot.com/2011_08_01_archive.html
                                        सृजन शिखर : मेरे ख्यालों का खुला आसमां. अब तक कितने. लेख / अन्य. क्षणिकायें. 169; कापीराइट. आपको ये ब्लाग कितना % पसंद है? मेरे बारे में. परिचय के लिए कृपया फोटो पर क्लिक करें. Sunday, August 7, 2011. हिना रब्बानी की मुस्कराहट और उनके चेलों का कारनामा. Courtesy:- Himalini Hindi Mgzn). पाकिस्तानी. आतंकवादियों ने दो. जवानों. धड़ से अलग कर दिए. में सिर ले गए।इस नृशंस घटना से भारतीय सेना. खबरों के मुताबिक इस बात की पुष्टि की. एक अपील मिडिया और मानव अधिकारोæ...उपेन्द्र नाथ. Links to this post. नये द...
                                     
                                    
                                        
                                            
                                            ombawra.blogspot.com
                                        
                                        मौन के खाली घर में...                                                   ओम आर्य: August 2010
                                        http://ombawra.blogspot.com/2010_08_01_archive.html
                                        मौन के खाली घर में. ओम आर्य. यही करता रहा है. Friday, August 20, 2010. अब और बंजर होने की जगह नहीं हो. वे टूटें. भूकंप के मकानों की तरह. और फटें. बादलों की तरह. हम कहीं दूर सूखे में बैठ कर. देखें उनका टूटना और फटना. लिखे उनके दुख और खुश होवें. टूट पड़ें सड़क पे. लाल बत्ती के हरी होते हीं. और बाजू में. बच कर निकलने के लिए संघर्ष करते. साइकिल वाले की साँसों का. उथल-पुथल देखते हुए. पार कर जाएँ सफ़र. रात की तेज बारिश में. बह गयी हों सारी यादें. तब भी सुबह उठ कर हम टाल जाएँ. अपनी मासूमियत. उधर पत्थर फ...
                                     
                                    
                                        
                                            
                                            mankapakhi.blogspot.com
                                        
                                        मन का पाखी: September 2011
                                        http://mankapakhi.blogspot.com/2011_09_01_archive.html
                                        मन का पाखी. Sunday, September 25, 2011. दो वर्ष पूरा होने की ख़ुशी ज्यादा या गम. और मैने ". हाथों की लकीरों सी उलझी जिंदगी. लिख डाली. मैने समीर जी. से वादा भी किया था.कि डा. समीर. सब जैसे मेरे जाने-पहचाने हैं. प्रसंगवश ये भी बता दूँ कि ये 'नाव्या'. नाम मैने कहाँ से लिया था? मैने कहीं ये पढ़ा और ये नाव्या नाम तभी भा गया. नाम ऐसे ही चुना था :). हाथों की लकीरों सी उलझी जिंदगी. एक पोस्ट. Links to this post. Subscribe to: Posts (Atom). View my complete profile. उड़न तश्तरी . Dr Smt. Ajit Gupta. 
                                     
                                    
                                        
                                            
                                            markrai.blogspot.com
                                        
                                        जीवन धारा: April 2009
                                        http://markrai.blogspot.com/2009_04_01_archive.html
                                        जीवन धारा. Wednesday, April 29, 2009. एक सपने के टूट जाने से जिंदगी ख़त्म नही हो जाती . जीवन एक संगिनी की तरह है । हमेशा आपके साथ । राह में हर मोड़ पर कदम मिलाते हुए ।. कुछ ख़त्म हो गया तो क्या हुआ । बहुत कुछ अभी बाकी है , मेरे दोस्त .कहाँ खो गए ।. एक सपने के टूट जाने से जिंदगी ख़त्म नही हो जाती । बहुत से सपने अभी भी बुने. जा सकते है । टूटने दो यार एक सपने को .वह टूटने के लिए ही था ।. जम कर करो ,इन्तजार ।. Posted by mark rai. Links to this post. Labels: जिंदगी. Tuesday, April 14, 2009. साथी . खुल&#...
                                     
                                    
                                        
                                            
                                            karnanupam.blogspot.com
                                        
                                        चलो यूँ ही सही...: 2010-05-09
                                        http://karnanupam.blogspot.com/2010_05_09_archive.html
                                        चलो यूँ ही सही. Friday, May 14, 2010. याद करने के लिए उम्र पड़ी हो जैसे- अहमद फराज. ऐसे चुप हैं, कि यह मंजिल की कड़ी हो जैसे. तेरा मिलना भी जुदाई की घड़ी हो जैसे. अपने ही साए से हर गाम लरज जाता हूँ. रास्ते में कोई दीवार खड़ी हो जैसे. कितने नादां हैं तेरे भूलने वाले कि तुझे. याद करने के लिए उम्र पड़ी हो जैसे. तेरे माथे की शिकन पहले भी देखी थी मगर. यह गिरह अब के मेरे दिल में पड़ी हो जैसे. मंजिलेँ दूर भी है, मंजिलेँ नजदीक भी है. Sunday, May 9, 2010. उम्र भर हम सोचते ही रह गए हर मोड़ पर. Subscribe to: Posts (Atom). 
                                     
                                    
                                        
                                            
                                            karnanupam.blogspot.com
                                        
                                        चलो यूँ ही सही...: 2010-04-18
                                        http://karnanupam.blogspot.com/2010_04_18_archive.html
                                        चलो यूँ ही सही. Saturday, April 24, 2010. सौदेबाज़ों से दोस्ती न की , वो दोस्ती में खूब सौदा करना. मंज़र-ए-इश्क का फूलना फलना. ये दरिया-ए-मय है या फिर कोई दवाखाना. देर शब् तेरी जुम्बिश की आखिरी वो खलिश. हमने खोया था तुझे अब तेरा पाना. रूह को भी गम है तेरे फिराक का. कैडे हयात में इक आस्तां है सागर-ओ-मीना. तुम थे तो एक शहर थी हयात में. अब एक दलील हूँ उस्सक बूटों का बना. इश्क एक दरिया-ए-ज़ख्म है या बाज़ीचा-ए-अत्फाल. Labels: अनुपम कर्ण. Monday, April 19, 2010. आये बनकर उल्लास अभी. आबाद रहे रì...हम सî...
                                     
                                    
                                        
                                            
                                            shalini-anubhooti.blogspot.com
                                        
                                        मेरी कलम मेरे जज़्बात: तल्खियाँ ( gazal)
                                        http://shalini-anubhooti.blogspot.com/2015/06/gazal.html
                                        मुख्य पृष्ठ. मेरा ब्लॉग परिचय. मेरी रचनाएँ. मेरी नज्में. ब्लोगर पर. गूगल प्लस पर. फेसबुक पेज. Wednesday, 3 June 2015. तल्खियाँ ( gazal). हालात अक्सर ज़ुबानों पर, तल्खियाँ रख देते हैं,. रेशमी से अहसास पर ये, चिंगारियां रख देते हैं . मुश्किल नहीं इस कदर यूँ तो, ये बयाँ जज़्बात का. ये लफ्ज़ आ बीच में क्यों, दुश्वारियाँ रख देते हैं. मासूमियत छीन कर ज़ालिम, दाँव ये ज़माने के. इक बार फिर जी लें जी भर, बचपन का वो भोलापना. सुशील कुमार जोशी. 3 June 2015 at 17:57. खुद्दारियाँ. बहुत सुंदर! 4 June 2015 at 00:41. दि...