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वेद-सार: August 2010
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सुधी पाठकों! Monday, August 30, 2010. शांति दर्शन - हमारी धरोहर. ओम् वो यजस्य प्रसाधनः तन्युः देवेषु आततः ।. तं आहुतं नशीमहि ।।. ओम् मनोन्वा हुवामहे नाराशंसेन सोमेन ।. पितृणां च मन्महि ।।. ऋग्वेद - १०/१९/२. हम अमन चाहते हैं , हम चमन चाहते हैं. हम प्रेम-सुधा से पोषित , यह वतन चाहते हैं. यदि कोई हमारे घर में करने अशांति आएगा. वह अमन चैन का दुश्मन , अपने मुंह की खायेगा. कमजोर कोई न समझे , ना रहम चाहते हैं. Posted by Mahendra Arya. Wednesday, August 25, 2010. दूरङ्गमं ज्योतì...Our mind travels with amazi...
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वेद-सार: निशा मन्त्र
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सुधी पाठकों! Friday, January 30, 2015. निशा मन्त्र. निशा मन्त्र - १. यज्जाग्रतो. दूरमुदैति. सुप्तस्य. तथैवैति. दूरङ्गमं. ज्योतिषां. ज्योतिरेकं. सन्कल्पमस्तु. यजुर्वेद. Our mind travels with amazing speed. It takes us to the unbelievable distances when we are awake. It makes us travel far and wide even when we are asleep. The mind is free of restrictions. May this mind of mine be of divine qualities and of noble thoughts! क्यों. क्यों. क्यों. सीमाओं. क्यों. इच्छाओं. क्यों. सुविचार. धीराः. Mind that is the...
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वेद-सार: January 2015
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सुधी पाठकों! Friday, January 30, 2015. निशा मन्त्र. निशा मन्त्र - १. यज्जाग्रतो. दूरमुदैति. सुप्तस्य. तथैवैति. दूरङ्गमं. ज्योतिषां. ज्योतिरेकं. सन्कल्पमस्तु. यजुर्वेद. Our mind travels with amazing speed. It takes us to the unbelievable distances when we are awake. It makes us travel far and wide even when we are asleep. The mind is free of restrictions. May this mind of mine be of divine qualities and of noble thoughts! क्यों. क्यों. क्यों. सीमाओं. क्यों. इच्छाओं. क्यों. सुविचार. धीराः. Mind that is the...
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वेद-सार: June 2014
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सुधी पाठकों! Thursday, June 26, 2014. ईशोपनिषद मन्त्र - १७. हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम. यो सावादित्ये पुरुषः सोसावाहम्. औम खं ब्रह्म. तू है व्याप्त सदा इस जग में. सूर्य चन्द्र ग्रह. तारों में. तेरा रूप सदा दिखता. फूलों और बहारों में. यह मेरा ही अंधापन है. मुझको नहीं दिखाई दे. जग की झूठी चमक दमक में. तेज तेरा न दिखाई दे. मेरे ये चक्षु खोल दो. तुझको जान सकूं. मैं क्या हूँ. मुझमें क्या है. इतना पहचान सकूँ. Posted by Mahendra Arya. ईशोपनिषद मन्त्र -१६. Posted by Mahendra Arya. जीवन के. विध&#...
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सर्वधर्म भजन: यज्ञ एक क्रांति है
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सर्वधर्म भजन. लहरों सा उठता गिरता ये मानव मन निर्माण करता है मानवीय मानस चित्रण का. Wednesday, July 6, 2011. यज्ञ एक क्रांति है. श्रेष्ठ कर्म यज्ञ है , परम धर्म यज्ञ है. आपस के प्रेम का , सत्य मर्म यज्ञ है. यज्ञ विश्व शांति है , यज्ञ बिन अशांति है. जीवन के तिमिर में, यज्ञ एक क्रांति है. यज्ञ वेद गीत है, यज्ञ विश्व मीत है. यज्ञ के बिन हार है , यज्ञ से ही जीत है. यज्ञ तो सुगंध है , यज्ञ गुण अबंध है. वायु के सुधार का, यज्ञ ही प्रबंध है. Labels: यज्ञ क्रांति. Subscribe to: Post Comments (Atom). आनंद द&...
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सर्वधर्म भजन: तन मंदिर
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सर्वधर्म भजन. लहरों सा उठता गिरता ये मानव मन निर्माण करता है मानवीय मानस चित्रण का. Wednesday, February 16, 2011. तन मंदिर. जीवन को अर्थ दीजिये. सांसे मत व्यर्थ लीजिये. क्षण क्षण का मोल बहुत है. हर दिन कुछ कर्म कीजिये. जीवन को अर्थ दीजिये. मंदिर है तन आपका. सांसे हैं क्रम जाप का. ईश्वर साक्षात् आत्मा. ईश्वर की भक्ति कीजिये. जीवन को अर्थ दीजिये. बुद्धि है चिंतन मनन. मन जिसमे भगवत भजन. भोजन नैवैध्य देव का. भावना से भोग कीजिये. जीवन को अर्थ दीजिये. ईश्वर की पूजा है कर्म. Subscribe to: Post Comments (Atom).
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सर्वधर्म भजन: मुझे सुख दे !
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सर्वधर्म भजन. लहरों सा उठता गिरता ये मानव मन निर्माण करता है मानवीय मानस चित्रण का. Saturday, January 29, 2011. मुझे सुख दे! मुझे सुख दे! मुझे सुख दे! प्रभो मेरे , मुझे सुख दे! मगर इतना ना दे मुझको. अति सुख ही, अति दुःख दे! मुझे धन दीजिये इतना. कि मैं जीवन बसर कर लूँ. मेरे परिवार को पालूं. कि पूरी हर कसर कर लूँ. मगर दर पे कोई आये. वो खाली हाथ ना जाए. धरा की सारी निर्धनता. तुम्हारे धन से मैं हर लूँ. प्रभो करबद्ध विनती है. दया कर दान दे देना. मुझे वह ज्ञान दे देना. रह जाए ना बाकी. अनादि तु...कष्...
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सर्वधर्म भजन: September 2012
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सर्वधर्म भजन. लहरों सा उठता गिरता ये मानव मन निर्माण करता है मानवीय मानस चित्रण का. Monday, September 10, 2012. निरांत. प्रशांत. सूक्ष्म. श्रृष्टि. श्रृष्टि. निर्माण. श्रृष्टि. निराकार. सम्पूर्ण. निर्विकार. न्यायी. कृपालु. विद्यमान. सर्वशक्तिमान. Subscribe to: Posts (Atom). शक्ति दो. शक्ति दो प्रभु , शक्ति दो! शक्ति दो प्रभु , शक्ति दो! सर्वे भवन्तु सुखिनः. यज्ञ एक क्रांति है. आनंद दायक है प्रभु. सब दिख रहा चारों . 160; पंछियों के कलरव में जंगल&#...जब मंजिल कहीं नजर नही...तन मंदिर. जीवन कí...
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वेद-सार: June 2011
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सुधी पाठकों! Monday, June 20, 2011. औम जिव्हया अग्रे मधुमे , जिव्हामूले मधुलकं I. मम इत् अहः ऋतो असः , मम चित्तं उपयासि II. औम मधुमत् मे निष्क्रमणं मधुमत मे परायणं i. वाचा वदामि मधुमद भूयासं मधुसन्द्रष्यः II. अथर्व: १/३४/२ व १/३/३. There be honey at the tip of my tongue, abundance of honey at the root of my tongue , honey in my behaviour and my dealings ; come and stay - O Honey , in my heart . इतना मीठा जीवन हो कि , मैं मधु जैसा हो. Posted by Mahendra Arya. Labels: मधुर वचन. Sunday, June 19, 2011. He is...