29rakeshjain.blogspot.com
कुछ कहूँ....?: January 2010
http://29rakeshjain.blogspot.com/2010_01_01_archive.html
कुछ कहूँ? Sunday, January 31, 2010. कदम-कदम पर ख़ार. कुछ ऐसे रिश्ते, जो बहुत करीब होते है, फिर भी पूरी तरह हक़ मे नहीं. इतना भी नहीं हक़,. इक बार लूँ पुकार।. ज़िन्दगी ने मिला दिया,. दिया नहीं अधिकार॥. नीरस,निराश, बेबस बैठा,. देखूं. पल-पल राह।. पर पुकार न पाऊं,. हूँ लाचार॥. तुम भी हो पाबंद-बंद,. नहीं सब द्वार।. इतनी मज़बूरी रख कैसे,. करते हमसे प्यार॥. कहते हो सर्वस्व मुझे,. सर्वस्व नहीं मेरा।. ताक़त मेरी मौन सदा,. के इस व्यवहार॥. करूँ मुआफ,या माँगू माफ़ी,. विनय या क्रोध॥. हम बेतार॥. मिलन बस,. से मन,. भì...
29rakeshjain.blogspot.com
कुछ कहूँ....?: July 2015
http://29rakeshjain.blogspot.com/2015_07_01_archive.html
कुछ कहूँ? Friday, July 24, 2015. प्रेयसी. परिणिता. कहीं,. साथ।।. सामने,. सुंदरी. नूर।।. चाहना,. नाविका,. मल्लाह।।. सांसों. साँस।. विश्वास।।. राकेश जैन. Links to this post. Subscribe to: Posts (Atom). दोस्तों,. अपने बारे मे क्या कहूँ, हमेशा कुछ न कुछ बदलता रहता है,. कुछ बदलाव मैं मौन हो कर जी लेता हूँ, कुछ कह लेता हूँ,. कुछ अनुभव कवितायेँ बन जाते है,. कुछ विचार भी कवितायेँ हो जाते हैं,. ज़िन्दगी हमे अपने मुताबिक,आजमाती रहती है,. उसके साथ आगे चले जाते हैं. विजेट आपके ब्लॉग पर. आशीर्वाद. कंचन दी.
29rakeshjain.blogspot.com
कुछ कहूँ....?: October 2009
http://29rakeshjain.blogspot.com/2009_10_01_archive.html
कुछ कहूँ? Friday, October 30, 2009. एक ख़त सनम का. कम्युनिकेशन के युग मे ख़त इत्तेफाक हो गए हैं, अब तो मोबाइल, बैंक खाते के ब्यौरे और कई ज़ुरूरी कागज़ भी. एक कागज़,. कागज़ नही रहा,. हो गया है वोः,. एक हवाई जहाज़॥. शीश महल और,. अंतरिक्ष. का एक,. महत्त्वपरक हिस्सा,. तुमने लिख दि. ये हैं उसमे,. ज़िन्दगी के,. कुछ पल,. अब मैं बिताना चाहता हूँ,. कुछ समय,. उसे देख कर।. बनाना चाहता हूँ ,. अपनी जिंदगी के कुछ क्षण,. बेशकीमती॥. घर मे खाली पडी है,. एक दीवार,. बहुप्रीतिक्षित॥. भरे चित्र से ,. उम्र भर॥. अपने ब...
29rakeshjain.blogspot.com
कुछ कहूँ....?: September 2009
http://29rakeshjain.blogspot.com/2009_09_01_archive.html
कुछ कहूँ? Thursday, September 10, 2009. का बरखा जब कृषि सुखानी. कल से हो रही बेसुध बारिश से मन मे उपजी एक विचार चेतना,. एक बेसुध बारिश,. खबर से परे,कि,. अब तक रुका नहीं,. कोई किसान,. उसका एहसान लेने. कईयों ने फेक दिया बीज,. माँ धरती कि कोख मे,. सोचे बिना,. कि तुम आओगे या नहीं,. करने उन्हें फलित,. करने सम्भोग. तुम तो हो गए हो,. आवारा, मेघ,. कर्त्तव्य विमूढ़ शायद,. जब चाहो,. रखते हो मौन,. चाहे जब गरजना,. चालू कर देते हो. कितनो ने तो,. छोड़ ही रखा है,. खाली का खाली,खेत. धूल उड़ गई,. उड़ गई रेत,. धरती उम...
29rakeshjain.blogspot.com
कुछ कहूँ....?: October 2011
http://29rakeshjain.blogspot.com/2011_10_01_archive.html
कुछ कहूँ? Saturday, October 22, 2011. प्रिय कविता के लिए! इस बात पर न रख सवाल के अब तक कहाँ रहे. बस पूछ लो कि अब हाल कैसा है! प्रिय कविता के लिए! अतीत में, कविता अक्सर ही,. करती थी चुहल,. रंगरेलिओं. की पहल।. आकर, छू लेती थी सअधिकार,. और चूम कर अंकित कर देती थी,. उसके दहकते होंठ, मेरे चेहरे पे कई बार।. मेरे पलंग, मेरे सिरहाने में,. मेरी Diary के लिहाफ में अक्सर ही,. दुबक और निकल आती थी. और रगड़ खाती थी मुझसे, मेरे स्नानागार मे,. छुपकर तौलिए के बीच।. वो रखने लगी है अंतर ,. आप बीती,. Links to this post.
29rakeshjain.blogspot.com
कुछ कहूँ....?: May 2010
http://29rakeshjain.blogspot.com/2010_05_01_archive.html
कुछ कहूँ? Sunday, May 9, 2010. कविता बन बह जाती माँ! मेरी नहीं, न मेरे बच्चों की ही,. सबकी ही होती है,. सबसे ज्यादा अच्छी माँ॥. ममता का वरदान बांटती,. आंच न आये बच्चों को,. जतन यही वो रखे लगा कर,. तब कहलाती अच्छी माँ॥. एक माँग पर अगर मना हो,. फुला के मुंह, हम बैठे कोने,. छाती में अपनी भर-भर कर,. अच्छा बुरा बताती माँ॥. मन उदास हो, रूखा हो मन,. झगडा कर आया है बेटा।. देख समझती. माँ॥. मौन रहो तो पूछे,क्यूँ चुप? बोलो ज़्यादा तो भी टोके,. फुनगी पर से शोर मचाते,. आज बैठ कर दिवस मनाते,. बन बह जाती. पल्लव...
29rakeshjain.blogspot.com
कुछ कहूँ....?: April 2012
http://29rakeshjain.blogspot.com/2012_04_01_archive.html
कुछ कहूँ? Tuesday, April 24, 2012. अब अखबार मंगाने मे. लगता है डर. एक रोज़ गलती से,. पड़ गया पानी,. शब्द स्याही कि जगह,. लहू बन के बह निकले. कुछ और नहीं होता,. मौत और मौत,. बस मौत छपी होती है,. झरोखे सी कोई जगह हो. तो कोइ अबला,. इज्ज़त के लिए रोती है. कोई छोड़ गया होता है. रोता हुआ बच्चा,. किसी माँ का तो आता ही नहीं. जो पढने गया था सुबहा. कोई मुक्कम्मल सी बजह नहीं. कि अब अख़बार पढ़ें घर में. अब तो दिल पत्थर का हो तो. अख़बार लगे घर में. कि ख़बर पढ़ता हूँ, तभी. मगर झीना था बहुत. लगता है डर. Links to this post.
29rakeshjain.blogspot.com
कुछ कहूँ....?: February 2010
http://29rakeshjain.blogspot.com/2010_02_01_archive.html
कुछ कहूँ? Sunday, February 21, 2010. है बसंत आमंत्रित! स्वागत करें ऋतुराज का. शिराओं में जैसे. खलबला कर दौड़ा हो खूँ,. स्पंदनों ने जकड ली हो,. भागते घोड़ों की टापें॥. साँसे बह रही. अनियंत्रित. है बसंत, आमन्त्रित॥. मदन की आँखों का रंग. चढ़ गया टेसू के फूल,. बौराए हैं घबराये से. आम के पेड़,. कोयल कुहुक रही. मिष्ट-अमित. है बसंत आमन्त्रित॥. फुनगी पे चिडयाँ. काम मे हैं ली न,. दुपहरी की वायु में. नशा है संगीन,. चलने से पहले पद हुए. है बसंत आमंत्रित॥. धरते ही पग अब. उड़ने लगी धूल,. सजने लगे फूल,. Links to this post.
29rakeshjain.blogspot.com
कुछ कहूँ....?: June 2010
http://29rakeshjain.blogspot.com/2010_06_01_archive.html
कुछ कहूँ? Sunday, June 27, 2010. कविताएँ. अपनी diary के पन्नों को पलट रहा हूँ, सोचा ये दो कविताएँ आपसे भी बाँटू . १) तितलियाँ. दरवाजा खुलने की आहट हो,. कि लगता है, तुम आई हो॥. तुम तो जानती हो कि,. मैं भूल जाता हूँ॥. भूल जाता हूँ कि,. तितलियों के आने में,. न आहट जुरुरी है,. न दरवाजा खुलना॥. बस जुरुरी है तो इतना,. कि अन्दर कोई महक,. उनका स्वागत कर रही हो॥. वो आ जाती हैं,दरख्तों से,. झोंको से,वातायनों से,. और नहीं तो वो पैदा हो जाती है,. उस ख़ुश्बू मे खुद -ब-. २) मैं! मगर वो सफल हैं,. Links to this post.