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कविता के रंग...: April 2014
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कविता के रंग. Tuesday, 8 April 2014. तुम आये हो तो मैं आती हूँ. तुम आये हो तो मैं आती हूँ. राज कुछ दिल के समझाती हूँ. इन बंद दरवाजों की जंजीरों को खोल दूं जरा. इन चंद दीवारों का दामन छोड़ दूं ज़रा. दर्द के कितने किस्से आकर सुनाती हूँ. कौन दुःख आया मेरे हिस्से सब बतलाती हूँ. गम में डूबा रहा रात भर उस दिल को निचोड़ लूं ज़रा. पुर्जा पुर्जा हो गयी उस तस्वीर को जोड़ लूं ज़रा. कुछ पुराने जख्म तुम्हें दिखलाती हूँ. साथ अपने कोई मरहम ले आती हूँ. Subscribe to: Posts (Atom). कुछ अनछुए पहलु . View my complete profile.
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कविता के रंग...: June 2013
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कविता के रंग. Friday, 28 June 2013. तो चलो मेरे साथ. अगर चल सकते हो तो चलो मेरे साथ. इन हवाओं से आगे इस जहाँ से आगे. आकाश की चादर को उस कोने से उतार कर. तुम्हारे क़दमों के नीचे डाल दिया है. सूरज की तपती गर्मी न सताए इसलिए. कुछ देर को कोठरी में डाल दिया है. चाँद तारे बिछ गए हैं राहों में. सारे नज़ारे सिमट गए हें बाँहों में. ये सफ़र बेहद खूबसूरत होगा. उस मंजिल की जरूरत होगा. अधखुली आँखों के आगे जो. हलकी रौशनी टिमटिमा रही है. आते जाते कितने ही असंख्य. इन से अहसासों का रंग. Wednesday, 26 June 2013. तुम...
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कविता के रंग...: September 2013
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कविता के रंग. Thursday, 19 September 2013. आत्मा मैं. युगों. ब्रह्माण्ड. सदियों. कालांतर. ब्रह्माण्ड. क्यों. अस्तित्व. सृष्टि. अन्तरिक्ष. मैंने. लाखों. मीलों. मैंने. प्रस्तुत. हजारों. पुंजों. ध्वस्त करता. गंगाओं. पृथ्वी. परमात्मा. निष्क्रिय. पीड़ादायक. कुठाराघात. चट्टानों. बूंदें. पीड़ा. विस्तार. मृत्यु. मुश्किल. द्वारा. परमात्मा. विद्यमान. रहस्यात्मक. मुझमें. उधेड़बुन. Subscribe to: Posts (Atom). कुछ अनछुए पहलु . रंगों के माध्यम से एक प्रयास भर . View my complete profile. पड़ जाये र...माँ...मर्...
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कविता के रंग...: October 2013
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कविता के रंग. Saturday, 26 October 2013. लक्ष्मण रेखा. र्यादा. सदियों. जिंदगी. क्यों. पुरुषों. दूसरों. बिछौने. काँटों. चारों. अयाशियों. अश्रुओं. बेड़ियों. उन्हें. डुबोती. कर्तव्यों. दायित्व. निभाते. Thursday, 10 October 2013. शाखाओं. स्वर्णिम. परियों. बूँदें. कुम्हलाया. उदासियों. सुन्दरता. ठिठोली. गुन गुन. सुनाते. व्याख्या. गुब्बार. Subscribe to: Posts (Atom). कुछ अनछुए पहलु . रंगों के माध्यम से एक प्रयास भर . View my complete profile. एक लम्हा कर्ज".कहानी. भीगे भीगे एहसास. पड़ जाये र&#...माँ...मर्...
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कविता के रंग...: July 2015
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कविता के रंग. Friday, 24 July 2015. एक लम्हा कर्ज".कहानी. क्या वो सपना अनुष्का और गौतम दोनों का है या सिर्फ और सिर्फ अनुष्का का? गौतम, मैं अलका बोल रही हूँ " थोड़ा विस्मय भरे अंदाज में गौतम ने कहा "अरे बुआ आप, आप कैसी हैं? अनुष्का अब एक प्रोफेसर बन चुकी थी क्या यही वजह थी? या गौतम का कलर्क होना अब उसे अखरने लगा था आखिर अनुष्का ने ऐसा क्यों किया? प्रिय गौतम. अनुष्का. कोई कहता कि वो अपने गावं वापिस चला. Saturday, 18 July 2015. कुल्लू श्रृंखला.भाग-1. स्वर्णिम. मुखों. स्वर्णिम. गाथाओं. बातें. बड़ा...
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कविता के रंग...: February 2014
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कविता के रंग. Sunday, 16 February 2014. अपना सा आकाश. आँखें. जिंदगी. आवाजाही. मिजाजी. क्यों. सिकुड़ती. एहसासों. खिड़कियां. विश्वासों. झोंकें. सुगबुगाहट. खामोशियों. रिश्तों. परिभाषाएं. आँखों. सींचती. पत्तों. कमजोरियों. बेगाना. प्रयासों. कयासों. कोंपले. अस्तित्व. Subscribe to: Posts (Atom). कुछ अनछुए पहलु . रंगों के माध्यम से एक प्रयास भर . डिजिटल दुनिया में छपी कवितायेँ. View my complete profile. मेरी बेहतरीन रचनाएँ इस काव्य संकलन में. बड़ा विचित्र है नारी मन. भीगे भीगे एहसास. माँ मै...मर्यì...
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कविता के रंग...: January 2014
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कविता के रंग. Sunday, 26 January 2014. तुम हो तो मैं सब कर लूंगा माँ. माँ मैंने तुम्हें देखा है आज. नजदीक से. तुम्हारे चेहरे पर इतनी झुर्रियां. कैसे पड़ गयी. माँ तुम इतनी जल्दी बूढ़ी कैसे. हो गयी. क्या ये असमय पड़ रही रेखाएं. मेरे लिए की गयी जन्म से लेकर. आज तक की चिंताएं हैं. जब मैं ठिठुरती ठंड में अपनी. जुराबें उतार कर नंगे पावं. बरामदे में दौड़ पड़ता. उस ठण्ड में भी तुम पसीने से. भर जाती. और हाथ पावं ठंडे पड़ जाते. कहीं मैं बीमार न हो जाऊं. भूल पायी. होकर देखती है. जीवन गुजर गया. तुम हो त&...मैद...
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कविता के रंग...: August 2015
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कविता के रंग. Monday, 31 August 2015. नागफणी और मैं. समय की रेत में तपती. नागफणी और मैं. क्या अभयदान के जैसा जीवनदान होगा. हम दोनों का. पीड़ा की अनेक गाथाएं रची जा रही हैं. मेघों की पहली बूंद से फूटती तुम. दर्द की कविता सी फलती मैं. कांटों का. नुकीलापन. अंतर्द्वंद्वों का संताप. बेदनाओं की सीमा से परे. कठोर दर कठोर हुई आदतन. Friday, 14 August 2015. समीक्षा ."आधी रात के रंग" Midnight colors. है ,. अस्तित्व. बिखेरते. हैं,. गिरहें. सृष्टि. सम्पूर्ण. सौंदर्य. व्याख्या. आनंददायी. रंगों. शब्दों. हुई ,. हु...
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कविता के रंग...: May 2015
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कविता के रंग. Saturday, 9 May 2015. जो आदि है वही अंत है. हाल ही में उजड़े हैं कुछ लोग. हर बार उजड़ते हैं. कितने ही कारणों से. पानी से. मिटटी से. हवा से. और मैं देखती हूं. उन्हें उजड़ते हुए. जीवन से मौत में तब्दील होते. अचरज होता है. जहाँ जीवन है वही मौत है. यही सब मेरे आसपास है. मेरे जीवन के स्रोत भी यही हैं. आग हवा मिटटी और पानी है. एक वृत्त बना है मेरे चारों तरफ. इस पर विश्वास करना बेहद मुश्किल है. जो आदि है वही अंत है. Subscribe to: Posts (Atom). कुछ अनछुए पहलु . View my complete profile. पड़ ज...
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