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लेखनी : July 2013
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लेखनी से निकले हुए शब्द उन पलों का अहसास है जो वक़्त की समय रेखा पर समय ही लिखवाता है. Monday, July 29, 2013. खामोश शब्द. न कहते हुए. खामोशी से. हाथ थम लेना. बहुत कुछ कहता है।. आंखो से बहते अशकों को. अपनी आँखों में. चुपके से समेट लेना।. बहुत कुछ कहता है।. थके हुए कदमों में. अपने कदमों को. मिला देना. बहुत कुछ कहता है।. खामोश निगाहों को. अपने नजारों से. महका देना. बहुत कुछ कहता है।. Sunday, July 14, 2013. बारिश की बूंदों में. बारिश की बूंदों में. एक खास कशिश होती है. हर बूंद एक में एक. हर पल आग सी. Memories...
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लेखनी : August 2013
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लेखनी से निकले हुए शब्द उन पलों का अहसास है जो वक़्त की समय रेखा पर समय ही लिखवाता है. Thursday, August 29, 2013. अधूरे सवाल. हर रिश्ते को अपनाता मन. कब कोई बहुत अकेला हो जाता है. क्या जानता है कोई. दुनिया की भीड़ में. रिश्तों के मेले में. हंसी का मुखौटा पहने. कब कहीं. खामोशी का गहना पहना है किसी ने. क्या जानता है कोई. हर सवाल का. जवाब देते हुए. हर मोड की सलवटों को. दूर करते हुए. कब कैसे. अपने में ही उलझ गया कोई. क्या जानता है कोई. Tuesday, August 6, 2013. अनूठे सवाल. अध्मुंदे नयन. किनारे. व्यकî...
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लेखनी : February 2015
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लेखनी से निकले हुए शब्द उन पलों का अहसास है जो वक़्त की समय रेखा पर समय ही लिखवाता है. Thursday, February 19, 2015. यादें. ये यादें भी बहुत अजीब होती हैं. कुछ यादें. बुरा स्वप्न सी. सीने में दफ्न हो जाती हैं. तो कुछ यादें. जीवन-बन को महका देती हैं।. मुस्काते लबों पर. अश्रु-शबनम बिखेर देती हैं. पर कुछ यादें. रोती आँखों को मुस्कुराहट से भर देती हैं।. बड्ते कदम को रोक. देती हैं ये यादें. तो कुछ. रोके कदमों में. जान डाल देती हैं ये यादें।. कुछ यादें. जीवन भर का. साथ बन जाती हैं. वहीं कुछ. तो कुछ. व्यक&#...
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लेखनी : November 2014
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लेखनी से निकले हुए शब्द उन पलों का अहसास है जो वक़्त की समय रेखा पर समय ही लिखवाता है. Friday, November 14, 2014. धरा का दुख न देखा किसी ने न जाना. धरा का प्रेम न छुआ किसी ने न माना. अंतस गहराई से बिंधी गई. बार बार छिली गई दुहराई गई. फिर भी मुस्कुराते हुए. नव कोंपल का उपहार जग को सौंप दिया. इक बूंद ओस की आस में. तड़कते मन को सम्हाले हुए. अमृत के मीठे जल को. नदी रूप में सागर को सौंप दिया. धरा फिर भी धारणी है. असीम दुख मन में धरण किये. असीम प्रेम जग को सौंप दिया. Subscribe to: Posts (Atom). व्यक्...Those who...
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लेखनी : October 2012
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लेखनी से निकले हुए शब्द उन पलों का अहसास है जो वक़्त की समय रेखा पर समय ही लिखवाता है. Saturday, October 13, 2012. ज़िंदगी का सफर. पल पल बदलते अहसासों के साथ जीना आसान नहीं. फिर भी चलना तो है. पाँव नंगे हो तो क्या. धूप में फिर भी. झुलसती सड़क से गुजरना तो है ।. अपनों की. आशाओं और उम्मीदों को पूरा करने के लिए. नवजात स्वप्न समय की गर्द में दफना दिये जाते हैं. होठों पर मुस्कान. आवाज में खनक लेकर. साथ चलते हुए कदमों का. हँसते हुए साथ देना तो है।. हँसते हुए. थोड़ा रुकते हुए. क्यूंकी. Subscribe to: Posts (Atom).
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लेखनी : April 2013
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लेखनी से निकले हुए शब्द उन पलों का अहसास है जो वक़्त की समय रेखा पर समय ही लिखवाता है. Tuesday, April 23, 2013. परों की परवाज को तोलता. नीले आकाश को पंखों से नापता. नया जीवन जीने की चाह में. सुनहले कल की कामना. अधीर मन में समाये. बंद पिंजरे को मुंडेर समझ बैठा. बेबस पंछी. सोने की जंजीर में कैद होकर. पुराने रिश्ते नाते खो कर. अपना अस्तित्व नए आज में मिलाकर. सिर झुका कर. दिन औ रात नए सपने बुनने लगा. एक नया बंधन. अतीत की हर डोर को. काटता रहा. एक नई डोर. हर दिशा में एक नया. ढूंढने लगा. घायल पंख. मन की लगन.
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लेखनी : August 2014
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लेखनी से निकले हुए शब्द उन पलों का अहसास है जो वक़्त की समय रेखा पर समय ही लिखवाता है. Thursday, August 7, 2014. कुछ सवाल बाकी हैं. कितनी गिरहें खोली हैं. कितनी गिरहें और बाकी हैं।. हर कदम हर राह पर. ज़िंदगी के हर मोड पर. कितने उतार उतरे हैं. कितने उतार और बाकी हैं।. साँस के हर तार में. जीवन की हर धार में. कितने सुर बजते हैं. कितने सुर और बाकी हैं।. लेखनी की स्याही में. स्याही की हर बूंद में. कितने रंग घोले हैं. कितने रंग बाकी हैं।. Subscribe to: Posts (Atom). अहिल्या. किनारे. क्षितिज. मन प्रवाह. व्य...
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लेखनी : August 2012
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लेखनी से निकले हुए शब्द उन पलों का अहसास है जो वक़्त की समय रेखा पर समय ही लिखवाता है. Friday, August 24, 2012. ज़िंदगी . ज़िंदगी की राह में. फूलों की सेज़ ही नहीं. काँटों का बाग भी है. मन को सहलाने वाली. ठंडी बयार ही नहीं. तन को जलाने वाली॰. आग भी है।. इस राह में . क्षितिज पर मुस्काने वाला सपना ही नहीं. हर मोड़ पर इंतज़ार करने वाला तीखा मोड़ भी है।. उम्र भर का साथ निभाने का वादा करके. साथ झटकने वाले साथी हैं. हमकदम बन कर हमदम बन जाएँ. वो अंजान हमसफर भी हैं।. क्या कहूँ. तो कहीं. Subscribe to: Posts (Atom).
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लेखनी : September 2012
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लेखनी से निकले हुए शब्द उन पलों का अहसास है जो वक़्त की समय रेखा पर समय ही लिखवाता है. Saturday, September 29, 2012. ज़िंदगी के कुछ पल. गुजरा हुआ हर पल ,. अंजाना सा लगता है. ज़िंदगी से भरा पैमाना जैसा ,. तो कभी. गम का कोई फसाना सा लगता है।. समय की गोद से निकल कर,. मुसकुराता हुआ एक पल ,. मुकम्मल जहां की खुशी दे जाता है ,. वहीं एक कोने से,दूसरा पल. ज़िंदगी को कड़वा मोड दे जाता है।. हमनशीन, हमनफ़्ज़, हमदर्द बनकर,. साथ चला तो कभी,. वक़्त की गर्द में खो गया ,. ज़िंदगी भर की याद बन कर. Subscribe to: Posts (Atom). व...