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पंचलड़ीमंगलवार, 22 मार्च 2011. राजस्थानी रा नामी कवि श्री ओम पुरोहित 'कागद' री एक पंचलड़ी निज़र है आपरी. तकलीफ़ां चावै सवाई कर ।. पण दरद री भी तो दुवाई कर ॥. नीं सरी रोटी-गाभा-मकान ।. पण बातां तो नीं हवाई कर ॥. थूं बपरा सातूं सुख भलांई ।. म्हरी छाती भी निवाई कर ॥. थारलो देश थूं क्यूं लूंटै ।. थोडी़ भोत तो समाई कर ॥. उठज्या ओ छेकड़ला माणस ।. अब तो कीं दांत पिसाई कर ॥. प्रस्तुतकर्ता. चैन सिंह शेखावत. 5 टिप्पणियां:. इस संदेश के लिए लिंक. रविवार, 13 मार्च 2011. पंचलड़ी: पंचलड़ी. पंचलड़ी. पंचलड़ी. पण बैरì...
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