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माही....: April 2010
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रविवार, 11 अप्रैल 2010. मैं बदल गया. मैं बदल गया. मैं बदल गया उसे बदलने के लिए,. पर वो ही न बदला कभी, बस मेरे लिए. मर गया मैं आज, उसकी ख़ुशी के लिए,. पर तब भी वो न आया मेरी, मय्यत के संग चलने के लिए. हर ख़ुशी को उसके कदमों पे ला दिया,. उसके लिए खुद को एक कहानी बना दिया,. पर समय तक न निकाला कभी, मुझे पढने के लिए. जिसने सिखाया था मुझे के "बदलाव ही जिंदगी है.",. आज वो ही मुझसे है कह रहा के. और आज देखो,. दर पर खड़ा है वो मेरे,. मैं तो बस बदल गया. प्रस्तुतकर्ता. इसे ईमेल करें. वो कौन था? हमें लग&#...पलके...
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माही....: December 2010
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शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010. इल्तिजा. न दे जवाब ऐ दिल मेरे,. शायद तूने भी धड़कना बंद कर दिया. मर गया इन्सां आज इसीलिए तो अब. शरीर ने भी अब फड़कना बंद कर दिया. कैसा था वो रहमो - करम उस खुदा का,. के उसके बन्दों ने भी अब सदके पे उसकी झुकना बंद कर दिया. खो गई हैं राहे - इबादत,. के लोगों ने अब बहकना बंद कर दिया. फ़ैलने लगा है राज शैतान का इस कदर,. के खुदा ने भी शायद इस तरफ देखना बंद कर दिया. फिर भी कायम है किसी दिल में खुदा की सल्तनत,. सो गया है ज़मीर आज इंसान का,. 20th Aug. 2010. या आने वाल...जाने...
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माही....: September 2011
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मंगलवार, 27 सितंबर 2011. वो एहसास. पहले हम दोस्त बने,. कुछ दिन बाद,. हमारी दोस्ती. दोस्ती से भी बढ़ कर हो गई. वो एहसास. न तो दोस्ती थी. और न ही प्यार था. वो जो कुछ भी था. शायद हमारी किस्मत को नागवार था. के अब दरमियाँ हमारे,. न तो दोस्ती रही. और न ही प्यार. और न ही रहा अब. दोस्ती से भी बढ़कर कुछ और. और जानिएं. प्रस्तुतकर्ता. 12 टिप्पणियां:. इस संदेश के लिए लिंक. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. Pinterest पर साझा करें. लेबल: एहसास. दोस्ती. लेबल: इक नई सरगम. मे...
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माही....: May 2011
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मंगलवार, 31 मई 2011. मैं तो बस मोमबत्ती हूँ. तिल-तिल करके जलती हूँ,. जग को रौशन करती हूँ,. शाम से लेकर रात तक. हर बूँद मैं पिघला करती हूँ. अंधियारे के संग लड़ती हूँ,. हर पल खुद का दमन करती हूँ,. जल-जल के ही तो मरती हूँ,. के हर बूँद मैं पिघला करती हूँ. किसी ने यूँ ही,. तो किसी ने मूर्त (रूप) देके मुझको जलाया,. गम इसका कभी नहीं करती हूँ,. के हर बूँद मैं पिघला करती हूँ. मेरी हर मौत को उसने,. न जाने कैसे था भुलाया,. के जब भी जला करती हूँ,. घर उसका रौशन करती हूँ. प्रस्तुतकर्ता. लेबल: कवि. तेरी क&#...अजी...
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माही....: December 2009
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मंगलवार, 29 दिसंबर 2009. किसी को याद करने की कोशिश में लगा हूँ मैं ,. पर वो कौन है? ये भी भूल गया हूँ मैं ।. उसी की चाह में, दर दर भटक रहा हूँ मैं,. पर उसे पाने में कहाँ अटक रहा हूँ मैं ।. अब उसे याद करने में कोई तो करे मेरी मदद,. क्योंकि उसे याद करते जमाना हो गया एक अदद ।. अब मुझे उसकी कोई तो निशानी दे दो,. उसे याद करते - करते बूढा हो गया हूँ मैं, अब तो कोई मेरी जवानी दे दो ।. फिर भी मेरी तरफ से कोशिश जारी है,. दुआ करो की वो मुझे याद आ जाए,. आज नहीं तो कल आ जाए ।. महेश बारमाटे. पहले तो म...उनके...
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माही....: January 2010
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गुरुवार, 14 जनवरी 2010. मंज़िल. मंज़िल. हर सफ़र की मंजिल मशहूर नज़र आती है,. पर मेरी किस्मत ही कुछ ऐसी है कि हर बार दिल्ली दूर नज़र आती है. जो आँखे देती थीं कभी हौसला हमको,. आज जाने क्यों वो मजबूर नज़र आती हैं? पूरी होती नहीं कोई आश मेरी,. जाने क्यों किस्मत को मेरी हर सोच "नामंजूर" नज़र आती है? आँखों के सामने से मंजिल अक्सर, दूर और भी दूर होती जाती है. पर फिर भी एक आख़िरी आश के साथ, निकल पड़ता है " महेश. हर बार,. नज़र आती है. Jan 11, 2010. प्रस्तुतकर्ता. 4 टिप्पणियां:. इसे ईमेल करें. बल्कि इस FAS...फिर...
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माही....: June 2011
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रविवार, 26 जून 2011. वो गए, दिल गया. नज़रें मिला के वो दिल चुरा के ले गए,. दिल बहला के वो हमको अपना बना के ले गए,. पर वो जो गए, तो भी गम न किया हमने कभी,. के अब कि बार वो दिल हमारा अपना बना के ले गए. वो गए, दिल गया. फिर भी उनकी यादों यादों के सहारे हम जीते चले गए,. बिताये जो लम्हे संग उनके हमनें,. वो सारे पल भी वो अपना बना के ले गए. वो मेरी हर बात पे उनका मुस्काना,. कभी रूठना उनका तो कभी मेरा मनाना,. वो बीता हुआ कल,. उनके संग बीता मेरा हर एक पल,. कॉलेज का हर एक दिन,. I miss you my friends. के द...
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माही....: November 2011
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रविवार, 13 नवंबर 2011. एक चाहत थी. एक चाहत थी,. तुमसे मिलने की. गर पूरी हो पाती तो. एक चाहत थी,. तेरे संग कुछ वक़्त साथ बिताने की. गर पूरी हो पाती तो. एक चाहत थी,. तेरे संग हंसने गाने की. गर पूरी हो पाती तो. एक चाहत थी,. तेरी हर ख़ुशी - ओ - गम में तेरा हर पल साथ निभाने की. गर पूरी हो पाती तो. एक चाहत थी,. बहुत कुछ समझने - समझाने की. गर पूरी हो पाती तो. और आज पूछ रही हो तुम,. के क्या चाहत है मेरी. अब कैसे कहूँ तुमसे मैं. के मेरी तो बस चाहत थी यही. बन के तेरा "माही". इसे ईमेल करें. नई पोस्ट. शिकî...
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माही....: April 2011
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मंगलवार, 26 अप्रैल 2011. दूरियाँ हैं बढ़ने लगीं दरमियाँ हमारे. अनचाही सरहदें हैं खिंचने लगीं, अब दरमियाँ हमारे. बेवजह ही दूरियाँ हैं बढ़ने लगीं, अब दरमियाँ हमारे. तेरा आना ज़िन्दगी में मेरी,. अब एक ख्वाब हो गया है. के पल-पल में ही टूटने लगे हैं रिश्ते,. अब नींद और दरमियाँ हमारे. जनता हूँ के हम कुछ भी न थे कभी ज़िन्दगी में उनकी,. पर दूरियाँ इतनी भी न थी कभी दरमियाँ हमारे. अब तो लगता है. के जान - पहचान का ही रह गया है. बस रिश्ता दरमियाँ हमारे. के आज उसका शोना - माही. एक बार तो जरा,. 26th Apr. 2011. तो...
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