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अरुण कुमार निगम (हिंदी कवितायेँ): April 2015
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Tuesday, April 28, 2015. 8220;शब्द गठरिया बाँध" छन्द संग्रह का विमोचन इलाहाबाद में. छत्तीसगढ़ अंचल के कवि अरुण निगम की छन्द संग्रह की किताब "शब्द गठरिया बाँध" का. विमोचन अंजुमन. प्रकाश मिश्र सभागार. महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्व विद्यालय. क्षेत्रीय केन्द्र इलाहाबाद में संपन्न हुआ. इलाहाबाद के प्रसिद्ध गीतकार श्री यश मालवीय ने कार्यक्रम का सफल सञ्चालन किया. अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com). Subscribe to: Posts (Atom). अरुण कुमार निगम. ब्लॉग्स. Arun Kumar Nigam Tippani.
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अरुण कुमार निगम (हिंदी कवितायेँ): July 2015
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Wednesday, July 1, 2015. एलोरा :. एलोरा :. बियाबान. चमगादड़ कर गये बसेरा. सूने और वीरान. सदियों. गुमान खंडहर. पत्थरों. ऊँकेरी किसने. कह न सके. बेजुबान. पाषाणी जीवंत मूर्तियाँ. बता रहीं प्रमाण खंडहर. दीवारों की अद्भुत नक्काशी. करती हैं हैरान खंडहर. प्रकृति की विनाश लीलायें देखी. मिट न सकी पहचान खंडहर. वैभवकालीन. निगम - -. अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com). Labels: एलोरा :. Subscribe to: Posts (Atom). अरुण कुमार निगम. ब्लॉग्स. श्रीमती सपना निगम (हिंदी). Arun Kumar Nigam Tippani. एलोरा :.
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अरुण कुमार निगम (हिंदी कवितायेँ): December 2014
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Monday, December 15, 2014. भारत बनाम इण्डिया. भारत बनाम इण्डिया. बाबूजी जब डैड हो गये , माता हो गई माम. पूरब में उस दौर से छाई,. एक साँवली शाम. अब गुरुकुल गुरु-शिष्य कहाँ, बस कागज के अनुबंध. सर-मैडम, अंकल-आंटी में, सरसे कहाँ सुगंध. कहाँ कबड्डी, गिल्ली-डंडा, छुआ छुऔवल खेल. कहाँ अखाड़े कंदुक-क्रीड़ा, छुक-छुक करती रेल. खेल फिरंगी अब क्रिकेट का,दिखलाता है शान. समय-शक्ति का नाश कर रहा,फिर भी पाता मान. एबीसीडी. सिर चढ बैठी , पश्चिम वाली डॉल. असहाय - सी अआइई ,. भटक रही बदहाल. Subscribe to: Posts (Atom).
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अरुण कुमार निगम (हिंदी कवितायेँ): June 2014
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Sunday, June 1, 2014. आम पीर सहता क्यों, गुठलियाँ समझती हैं. संत - साधना कैसी , वेदियाँ समझती हैं. लाल की जवानी का , जश्न हो चुका काफी. खैर क्या मनाना अब, बकरियाँ समझती हैं. सास आज स्वागत में, सौंपने लगी किस्मत. नव-वधू करेगी क्या , चाबियाँ समझती हैं. छुप-छुपा के आया है , पास अपनी दादी के. कौन खुश हुआ ज्यादा, कुल्फियाँ समझती हैं. बात संसकारों की , फालतू नहीं होती. वक़्त बीत जाने पे , पीढ़ियाँ समझती हैं. भीड़ है हजारों की , कौन-कौन सच्चा है. अरुण कुमार निगम. Subscribe to: Posts (Atom). Arun Kumar Nigam Tippani.
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अरुण कुमार निगम (हिंदी कवितायेँ): February 2015
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Sunday, February 22, 2015. कुकुभ छन्द. चित्र ओबीओ से साभार). कुकुभ छन्द – पहला दृश्य. एक सरीखी प्रात: संध्या,जीवन की सच्चाई रे. एक सूर्य को आमंत्रण दे , दूजी करे विदाई रे. कालचक्र की आवा-जाही, देती किसे दिखाई रे. तालमेल का ताना-बाना, सुन्दर बुनना भाई रे. कुकुभ छन्द – दूसरा दृश्य. दादा की बाँहों में खेले , बड़भागी वह पोता है. एकल परिवारों में पोता , मन ही मन में रोता है. हर घर की यह बात नहीं पर , अक्सर ऐसा होता है. कुकुभ छन्द – तीसरा दृश्य. अरुण कुमार निगम. Labels: कुकुभ छन्द. Subscribe to: Posts (Atom).
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अरुण कुमार निगम (हिंदी कवितायेँ): September 2014
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Thursday, September 4, 2014. शिक्षक दिवस पर जनहित में जारी. क्या यह यूरोप का शहर है दोस्तों. हर शाला में “मैडम” और “सर” है दोस्तों. 8220;गुरुजी” का सम्बोधन कब. क्यों खो गया. खो जाये ना संस्कृति – डर है दोस्तों. 8220;गुरु” में श्रद्धा थी. आदर- सम्मान था. गुरु थे आगे फिर पीछे भगवान था. 8220;सर” का सम्बोधन बेअसर है दोस्तों. 8220;मैडम” आई और “बहन जी” खो गई. पावन रिश्ते का सम्बोधन धो गई. पश्चिमी संस्कृति का असर है दोस्तों. गुरु-शिष्य. पिता-पुत्र. सा नाता था. अरुण कुमार निगम. आदित्य नगर.
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अरुण कुमार निगम (हिंदी कवितायेँ): February 2014
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Thursday, February 6, 2014. मुझको हे वीणावादिनी वर दे. कल्पनाओं को तू नए पर दे. अपनी गज़लों में आरती गाऊँ. कंठ को मेरे तू मधुर स्वर दे. झीनी झीनी चदरिया ओढ़ सकूँ. मेरी झोली में ढाई आखर दे. विष का प्याला पीऊँ तो नाच उठूँ. मेरे पाँवों को ऐसी झाँझर दे. सुनके अंतस् को मेरे ठेस लगे. मेरी रत्ना को ऐसे तेवर दे. साँस सौरभ समाए शामोसहर. मुक्त विचरण करूँ वो अम्बर दे. सूर बन कर चढ़ाऊँ नैन तुझे. इन चिरागों में रोशनी भर दे. अरूण कुमार निगम. आदित्य नगर. दुर्ग (छत्तीसगढ़). Labels: शुभ-वसंत. Monday, February 3, 2014. पढ़...
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अरुण कुमार निगम (हिंदी कवितायेँ): March 2015
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Wednesday, March 4, 2015. छत्तीसगढ़ के जनकवि :कोदूराम “दलित”. ५ मार्च को एक सौ पाँचवीं जयन्ती पर विशेष. छत्तीसगढ़ के सुप्रसिद्ध कहानीकार और वरिष्ठ साहित्यकार श्री परदेशीराम वर्मा जी की किताब. अपने लोग. के प्रथम संस्करण २००१ से साभार संकलित}. छत्तीसगढ़ के जनकवि :कोदूराम. भुलाहू झन गा भइया. हमारा छत्तीसगढ़ भी एक ऐसा क्षेत्र है जिसे हक्कोहुकूक. की समझ ही नहीं थी परम श्रद्धालु, परोपकारी,. मेहमान-नवाज,. मैंने उन्हें प्रणाम किया. 8216;मेरे पूजन आराधन को. जब मेरी कमजोरी कहकर. कोदूराम. शोषण की चक्क...कवि ल...
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अरुण कुमार निगम (हिंदी कवितायेँ): April 2014
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Tuesday, April 29, 2014. नजदीक घर के आपके थाना तो है नहीं. बुड्ढा दरोगा आपका. नाना तो है नहीं. तुड़वा के हाथ पैर करे प्यार आपसे. दिल इतना बेवकूफ दीवाना तो है नहीं. सूरत पे मर मिटे अरे वो लोग और थे. झाँसे में आपके हमें आना तो है नहीं. तालाब छोड़ गाँव का,. गमछा धरे चले. काशी में जाके तुमको नहाना तो है नहीं. सबकी क्षुधा मिटाने का दावा तो कर दिया. चाँवल का घर में एक भी दाना तो है नहीं. सत्ता की बागडोर भी तो उस्तरा ही है. अरुण कुमार निगम. आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़). Tuesday, April 15, 2014. चादर सी. अरु...
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अरुण कुमार निगम (हिंदी कवितायेँ): May 2014
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Thursday, May 15, 2014. स्वागतम सोलह मई. सोलह की महिमा में सोलह पंक्तियाँ. सोलह लिये गोटियाँ. खेल चुके शतरंजी चाल. मई बताने वाली. किसने कैसा किया कमाल. सोलह कला सुसज्जित कान्हा ने छेड़ी बंसी की तान. सबका जीवन सफल बनाने. सिखलाया गीता का ज्ञान. मानव जीवन में पावनता. मर्यादा के हैं आधार. ऋषियों मुनियों के बतलाये. जीवन में सोलह संस्कार. सोमवार व्रत करके. पाओ मनचाहा भरतार. सोलह आने जब मिल जाते. तब लेता रुपिया आकार. उम्र शुरू हो सोलह की तो. आता अपने आप निखार. बीत गई तब जीवन भर के. सोलह चंद्र.