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अग्निगर्भा अमृता: 03/01/2014 - 04/01/2014
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अग्निगर्भा अमृता. विचारशून्य अज्ञात से विचारयुक्त ज्ञात की ओर. सोमवार, 10 मार्च 2014. चरित्रहीन थी. को जोड़ दो देह से. बहुत आसान है. जोड़ देना चरित्र से. चरित्र को देह से. भोर : 5: 00. 3 टिप्पणियां:. Links to this post. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. Pinterest पर साझा करें. Labels: लम्हा लम्हा. सारी दुनिया को. अपनी गोद में छिपाए. रत्नगर्भा के हिस्से में. नहीं है. कोई अपना आलोक. कोई टिप्पणी नहीं:. Links to this post. इसे ईमेल करें. Links to this post.
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अग्निगर्भा अमृता: 02/01/2014 - 03/01/2014
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अग्निगर्भा अमृता. विचारशून्य अज्ञात से विचारयुक्त ज्ञात की ओर. शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2014. कितना अच्छा होता है. कितना अच्छा होता है. एक दूसरे को जाने बगैर. पास-पास होना. और उस संगीत को सुनना. जो धमनियों में बजता है. उन रंगों में नहा जाना. जो बहुत गहरे चढ़ते-उतरते हैं।. शब्दों की खोज शुरू होते ही. हम एक-दूसरे को खोने लगते हैं ,. और उपके पकड़ में आते ही. एक-दूसरे के हाथों से. मछली की तरह फिसल जाते हैं।. हर जानकारी में बहुत गहरे. कुछ भी ठीक से जान लेना. और अपने ही भीतर. Links to this post. छोड़...
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अग्निगर्भा अमृता: 11/01/2011 - 12/01/2011
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अग्निगर्भा अमृता. विचारशून्य अज्ञात से विचारयुक्त ज्ञात की ओर. शनिवार, 19 नवंबर 2011. तुम और मैं. तुम्हारे साथ. तुम्हारे बिन. छीजती खामोशी . दरकती दीवार. तुम और मैं . बस तुम और मैं. अपने साथ.।. कोई टिप्पणी नहीं:. Links to this post. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. Pinterest पर साझा करें. Labels: मेरी कविताएं. मंगलवार, 15 नवंबर 2011. उसके बाद. 3 टिप्पणियां:. Links to this post. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Links to this post. Faceboo...
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अग्निगर्भा अमृता: 04/01/2016 - 05/01/2016
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अग्निगर्भा अमृता. विचारशून्य अज्ञात से विचारयुक्त ज्ञात की ओर. रविवार, 10 अप्रैल 2016. सवाल और भी हैं. समय की वॉल पर आईना. देखने का वक्त है यह. चेतावनियों और चुनौतियों का समय है. जब क़ीमती है तुम्हािरी बस एक चाल. तब ख़ामोश बैठने. परंपराओं के समय के साथ जाने. उनको बदलने के लिए ख़ुद को बदलने के समय. चुप बैठने से नहीं चलने वाला काम. चुप्पी को तोड़ने. झकझोरने के वक्तल. सही को चुनने की चुनौती भी है. पर एक सवाल फिर भी. विकल्प कहां है. कौन है. क्या है. देश मर रहा है. एक नए महाभारत की. Links to this post.
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अग्निगर्भा अमृता: 08/01/2012 - 09/01/2012
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अग्निगर्भा अमृता. विचारशून्य अज्ञात से विचारयुक्त ज्ञात की ओर. बुधवार, 22 अगस्त 2012. हारने का शाप. मुझे ही क्यों देती है. मां गांधारी. जो हर बार. रचता हूं एक नई गीता. बनाता हूं. एक नया अर्जुन. करता हूं. पांचजन्य का उद्घोष. कहता हूं. लड़़ने के लिए स्थितप्रज्ञ हो. आज मैं क्यों कमज़ोर पड़ता जा रहा हूं. क्यों खींचते हैं. आज मेरे हाथों को. गोपिकाओं के आंचल. क्यों बुलाती है. राधा की. रंगीली बांसुरी. क्यों अकुलाती है. यशोदा की ममता. क्यों.।. कोई टिप्पणी नहीं:. इसे ईमेल करें. Links to this post. मí...
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अग्निगर्भा अमृता: 10/01/2012 - 11/01/2012
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अग्निगर्भा अमृता. विचारशून्य अज्ञात से विचारयुक्त ज्ञात की ओर. गुरुवार, 4 अक्तूबर 2012. आज की सुबह. सुनहरी सुबह. सिंदूरी पूरब. चांदी सा पच्छिम. डूबते हुए भी चमकते. मुस्कराते चांद की सुबह. आसमानी आंचल पर. सिंदूरी रेखाओं के बीच. झिलमिलाते सितारों की टिमटिमाती रौशनियां. सिंदूरी प्राची. सपनीले धनक के पच्छिम. दो दिशाओं के बीच. दो पंछी. एक मैं. उम्मीदों की सुबह. और गर्वीले चमकीले अंत के साथ.।. कोई टिप्पणी नहीं:. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. सुन्दर है. धूप की चादर. सदस्यतì...
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अग्निगर्भा अमृता: 10/01/2016 - 11/01/2016
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अग्निगर्भा अमृता. विचारशून्य अज्ञात से विचारयुक्त ज्ञात की ओर. गुरुवार, 13 अक्तूबर 2016. बेचैन आत्मा सी भागती कहां जा रही हो. ये तीव्र आकुलता. और ये पथरीला रास्ता. तुम्हारे रेशमी दुपट्टे में लगे हैंं घाव कितने. पांव आहत हृदय भीगा भग्न. किस ठौर ठहरेगी, रूकेगी. पांचाली. तुम्हारी बेचैन आत्मा. कब सूखेंगें. वैदेही. तुम्हारे पथराये नयनों के अश्रु. कहां पूर्ण होगी. राधिेके. तुम्हारी प्रतीक्षा. कब तुम्हारे कक्ष में लौटेंगे. तुम्हारे बुद्ध. अपने गौतम के साथ. या कि. उर्मिला. Links to this post. मे...
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अग्निगर्भा अमृता: 01/01/2012 - 02/01/2012
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अग्निगर्भा अमृता. विचारशून्य अज्ञात से विचारयुक्त ज्ञात की ओर. बुधवार, 11 जनवरी 2012. 23 मार्च. अनुयायी. ज़ुल्. 8205; फों. ढूंढने. 8205; हें. 8205; हें. 23 मार्च. Friday, April 1, 2011. कोई टिप्पणी नहीं:. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. Pinterest पर साझा करें. Labels: मेरी कविताएं. संबंधों को. तोड् देते हैं. कितनी निर्ममता से. बनने ही नहीं देते. बनते हुए संबंध को ठहरा देते हैं. कुछ संकोच. कोई हिचक. कुछ झूठ. कुछ अभिमान. कुछ अहं. कुछ आक्रोश. कुछ दुख. सबसे...
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अग्निगर्भा अमृता: 10/01/2014 - 11/01/2014
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अग्निगर्भा अमृता. विचारशून्य अज्ञात से विचारयुक्त ज्ञात की ओर. शनिवार, 4 अक्तूबर 2014. गर्म माथे पर रखा हुआ हाथ वो. सर्द कब हो गया कुछ पता न चला. सब भिगोते रहे आंसुओं से ज़मीं. वो चला कब गया कुछ पता न चला. एक मुद्दत रहा सायबां की तरह. कब हवा हो गया कुछ पता न चला. उसकी नाराज़गी को न समझा कोई. क्यूं ख़फ़ा हो गया कुछ पता न चला. उम्र भर तो कोई भी उसे न मिला. सब मिले जब उसे कुछ पता न चला. अब ये पूछो अगर है कहां आजकल. क्या बताएं अभी कुछ पता न चला. 2 टिप्पणियां:. Links to this post. नई पोस्ट. मेर...
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अग्निगर्भा अमृता: 01/01/2014 - 02/01/2014
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अग्निगर्भा अमृता. विचारशून्य अज्ञात से विचारयुक्त ज्ञात की ओर. गुरुवार, 16 जनवरी 2014. स्वामी का अधिकार नहीं है तुम्हें. मेरी इस अस्मिता से सहम क्यों जाते हो तुम. मानव होने के मेरे उद्घोष को. पचा क्यों नहीं पाते तुम. तुम्हें पता है कि. इसके बाद वस्तु नहीं रह जाउंगी मैं. जिसे तुम इस्तेमाल करो और फेंक दो. तुम्हें पता है कि तकिया भर नहीं रह जाउंगी मैं. जिसकी छाती में मुहं छिपाकर रो लो तुम. और फिर लतिया दो. और मुझे रौंद दो. रह जाउंगी मैं. तुमने छला मुझे. नियम बनाए. और आज तुम. Links to this post. Labels: ...