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सागर: कविता बनकर उतरी तुम..... !!!
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मैं सागर हूँ ,इस सागर की बस इतनी सी परिभाषा है! जो बूँद-बूँद में भर जाता,पर बूँद-बूँद को प्यासा है! Saturday, 26 November 2011. कविता बनकर उतरी तुम! जब-जब अंतस की खाई में,. गुमसुम होकर तन्हा बैठा. जाने-अनजाने से मुझमे,. इक कविता बनकर उतरी तुम. स्मृतियों के हिमपातो. में,. मैं विरह ताप में जब झुलसा. मेरे सीने के गोमुख से,. इक कविता बन कर उतरी तुम. मेरी रेखाओं के विलोम,. मैं तेरा ही पर्याय रहा. तुम मोती बन अनमोल हुई,. मैं सीप वर्म असहाय रहा. तेरे दरवाज़े से जब भी,. इक जलती अगन छुआ करती. बहुत खूब! वाह ...
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सागर: नये वर्ष पर कुछ नया गीत हो....!!!
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मैं सागर हूँ ,इस सागर की बस इतनी सी परिभाषा है! जो बूँद-बूँद में भर जाता,पर बूँद-बूँद को प्यासा है! Tuesday, 27 December 2011. नये वर्ष पर कुछ नया गीत हो! नये वर्ष पर कुछ नया गीत हों . नये वर्ष पर कुछ नया गीत हों. नये गीत में कुछ नये बोल हो. नयी थाप गूंजे,जो अनमोल हो. मिलन बासुंरी में नयी धुन छिड़े,. नहीं अब विरह की कोई रीत हो. नये वर्ष पर कुछ. नये छंद हों,कुछ नये रस बहे,. नये अर्थ कुछ,सर्ग-प्रत्यय नये. नये रूपलंकार पर शोध हो. नये हर क़दम पर नयी जीत हो. नये वर्ष पर कुछ . नये वर्ष पर कुछ. आने वì...
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सागर: December 2011
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मैं सागर हूँ ,इस सागर की बस इतनी सी परिभाषा है! जो बूँद-बूँद में भर जाता,पर बूँद-बूँद को प्यासा है! Tuesday, 27 December 2011. नये वर्ष पर कुछ नया गीत हो! नये वर्ष पर कुछ नया गीत हों . नये वर्ष पर कुछ नया गीत हों. नये गीत में कुछ नये बोल हो. नयी थाप गूंजे,जो अनमोल हो. मिलन बासुंरी में नयी धुन छिड़े,. नहीं अब विरह की कोई रीत हो. नये वर्ष पर कुछ. नये छंद हों,कुछ नये रस बहे,. नये अर्थ कुछ,सर्ग-प्रत्यय नये. नये रूपलंकार पर शोध हो. नये हर क़दम पर नयी जीत हो. नये वर्ष पर कुछ . नये वर्ष पर कुछ.
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सागर: August 2012
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मैं सागर हूँ ,इस सागर की बस इतनी सी परिभाषा है! जो बूँद-बूँद में भर जाता,पर बूँद-बूँद को प्यासा है! Saturday, 18 August 2012. एक नया स्रजन. भावनाओं के खेत में बोये थे चंद बीज़. के एक रोज़ प्रेम की फसल लहलहाएगी ,. मिलन के फूल खिलेंगे ,. स्पर्श की खुश्बू बिखरेगी,. एक नया स्रजन होगा! पर जीवन की आपाधापी में. हम सींच ना सके,. प्रेमांकुर तो फूटने से पहले ही. विलीन हो गए,. उसी भावनाओं के खेत में. और स्वतः उग गए -. कुछ खरपतवार! ईर्ष्या,दर्द , नफ़रत. और सूनापन तो ऐसा उगा. मोथरी हो चली. Saturday, 11 August 2012.
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सागर: March 2011
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मैं सागर हूँ ,इस सागर की बस इतनी सी परिभाषा है! जो बूँद-बूँद में भर जाता,पर बूँद-बूँद को प्यासा है! Saturday, 26 March 2011. मेरा पुराना घर. मैने सोचा था , कि बैसाखी बनेगा तू मेरी. मेरे बच्चे तू आया है ,गिराने मुझको. एक-एक फूस को आंधियों में भी संभाले रखा. तू सालों बाद आया भी तो जलाने मुझको. मै खड़ा देख ही रहा था अपने पुराने मकाँ की तरफ़. बहुत धीमी सी आवाज़ नीव की ईट से आयी. तेरे दादा ने यहाँ रखा था बेटा मुझको. तभी अचानक दीवारें भी ललकार उठीं. ऐसा लगता था कि रूहों...भागता क्यो...ये सच ह&#...
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सागर: February 2015
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मैं सागर हूँ ,इस सागर की बस इतनी सी परिभाषा है! जो बूँद-बूँद में भर जाता,पर बूँद-बूँद को प्यासा है! Friday, 20 February 2015. प्रेम के गीत कुछ! प्रेम के गीत कुछ, शब्द में ढल गये. प्राण चेतन हुये,तन रतन हो गये,. रूह इक थाल में,द्वार पर रख गया,. जल उठे सब दिये,जागरन हो गये. सांझ तक प्रश्न ही प्रश्न थी ज़िन्दगी,. एक उत्तर उगा,सब निरुत्तर हुये,. न विजय शेष थी,न पराजय बची,. सप्तस्वर भी मिटे,रिक्त अक्षर हुये. तुम उतरते गये,तुम ही तुम रह गये,. बज उठा नाद अनहद,प्रभा खिल उठी,. Subscribe to: Posts (Atom).
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सागर: August 2011
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मैं सागर हूँ ,इस सागर की बस इतनी सी परिभाषा है! जो बूँद-बूँद में भर जाता,पर बूँद-बूँद को प्यासा है! Saturday, 27 August 2011. कई दफ़े सोचता हूँ! कई दफ़े सोचता हूँ कि तुम कहाँ हो? कि इस आंगन में पाँयजेबर की कोई खनक ही नही. कि सामने मेहंदी के पेड़ की एक पत्ती भी तो न टूटी. कि कुआं तो अब भी प्यासा हैं रस्सी की इक छुअन के लिये. कि उस तार पर भीगी कोई चुनरी नही सूखी अब तक. कि माँ के हथफूल अब तक कपड़े में लिपटे रखे. बहोत दफ़े सोचता हूँ-. कि तुम थी भी,. ग़र नही थी,. पर कोई हैं,. Monday, 22 August 2011. कि ...
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सागर: प्रेम के गीत कुछ...!!
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मैं सागर हूँ ,इस सागर की बस इतनी सी परिभाषा है! जो बूँद-बूँद में भर जाता,पर बूँद-बूँद को प्यासा है! Friday, 20 February 2015. प्रेम के गीत कुछ! प्रेम के गीत कुछ, शब्द में ढल गये. प्राण चेतन हुये,तन रतन हो गये,. रूह इक थाल में,द्वार पर रख गया,. जल उठे सब दिये,जागरन हो गये. सांझ तक प्रश्न ही प्रश्न थी ज़िन्दगी,. एक उत्तर उगा,सब निरुत्तर हुये,. न विजय शेष थी,न पराजय बची,. सप्तस्वर भी मिटे,रिक्त अक्षर हुये. तुम उतरते गये,तुम ही तुम रह गये,. बज उठा नाद अनहद,प्रभा खिल उठी,. 20 February 2015 at 10:07.
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सागर: एक नया स्रजन
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मैं सागर हूँ ,इस सागर की बस इतनी सी परिभाषा है! जो बूँद-बूँद में भर जाता,पर बूँद-बूँद को प्यासा है! Saturday, 18 August 2012. एक नया स्रजन. भावनाओं के खेत में बोये थे चंद बीज़. के एक रोज़ प्रेम की फसल लहलहाएगी ,. मिलन के फूल खिलेंगे ,. स्पर्श की खुश्बू बिखरेगी,. एक नया स्रजन होगा! पर जीवन की आपाधापी में. हम सींच ना सके,. प्रेमांकुर तो फूटने से पहले ही. विलीन हो गए,. उसी भावनाओं के खेत में. और स्वतः उग गए -. कुछ खरपतवार! ईर्ष्या,दर्द , नफ़रत. और सूनापन तो ऐसा उगा. मोथरी हो चली. 18 August 2012 at 10:19.
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सागर: July 2013
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मैं सागर हूँ ,इस सागर की बस इतनी सी परिभाषा है! जो बूँद-बूँद में भर जाता,पर बूँद-बूँद को प्यासा है! Tuesday, 23 July 2013. कभी चट्टान का सीना. कभी दो बाँहों की गुड़िया. कभी सवालों की बोझिल सांझ. कभी इतराती गुनगुनी सुबह …! कभी अंतहीन ख़ामोशी. कभी चीखती लहरें. कभी अहिल्या सी निश्चल. कभी नदी सा बदलाव! कभी सूनी चौखट. कभी चुभती शेहनाई. कभी ढहती दीवारें. कभी नींव की पहली ईंट! कभी शब्द. कभी अर्थ. कभी मैं. कभी तुम. कभी शून्य. कभी रिक्त. तुम ……! Subscribe to: Posts (Atom). मेरा परिचय. View my complete profile.
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