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LIFE: AS I SEE ITFor Dreams, Love and Memories.. Good Ones :)
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LIFE: AS I SEE IT | paridhijha.blogspot.com Reviews
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LIFE: AS I SEE IT: अनर्गल
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For Dreams, Love and Memories. Good Ones :). View my complete profile. Saturday, April 7, 2012. बारिश की बूँदें, माटी की खुशबू और नीला. मीठी सी फिर चलने लगी कैसी ये पवन? सपने नए बुन ने लगा आज फिर मेरा मन. नीला गगन, चंचल पवन, झूमे मेरा मन. कोंपल फटी, कलियाँ खिली, धरती फिर हंसी. फूलों के रस में भीगी हुई है भौरों की ख़ुशी. अच्छी लगे चेहरे पे पड़ती सूरज की तपन. धरती सुनहरी सजी पा के अपने सूरज की तपन. पी को पुकारे बाट निहारे वो हो के मगन. अति सुन्दर. August 7, 2012 at 2:24 AM.
LIFE: AS I SEE IT: माँ
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For Dreams, Love and Memories. Good Ones :). View my complete profile. Friday, September 12, 2014. सुबह सुबह जब धूप सलोनी. आँख से नींद उड़ा जाती है. मंद चल रही हवा प्यार से. बालों को सहला जाती है. लगता है जैसे ये सब, करती हैं. जो तुम करवाती हो. माँ, इतना क्यों याद आती हो? राह चलूँ तो कभी कभी. नन्ही सी बछिया दिख जाती है. कभी दौड़ती यहां वहाँ और. कभी बिदक माँ तक जाती है. नन्ही बछिया- गाय के जोड़े. में भी तुम दिख ही जाती हो. माँ, इतना क्यों याद आती हो? कभी कभी तिनके बटोरते. March 2, 2015 at 6:18 AM.
LIFE: AS I SEE IT: बदलते रिश्ते
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For Dreams, Love and Memories. Good Ones :). View my complete profile. Saturday, June 7, 2014. बदलते रिश्ते. हेलो,. एक बार मिलने आ सकोगी आज शाम? हाँ, एक कॉफ़ी तो बनती है. हाँ तो ये कोई तरीका है मिलने का.… घर आ जाते, भला कोई रोकता थोड़ी घर आने से." मैंने भी बैठते हुए फिकरा कस ही दिया. हाँ हाँ, कोई नहीं मैडम जी. चाय लेंगी या कॉफ़ी? वो सब छोड़िये सर जी, ऐसे अचानक क्यों बुलाया? ये सही हो रहा है ना? हमारे बीच कुछ बदलेगा तो नहीं? अचानक मेरे मुह से निकल ही गया. पागल हो? Subscribe to: Post Comments (Atom).
LIFE: AS I SEE IT: पूर्ण विराम
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For Dreams, Love and Memories. Good Ones :). View my complete profile. Friday, May 29, 2015. पूर्ण विराम. अचानक उच्छ्वास छोड़कर मैं पलट गया. बेकार ही आया यहाँ, बेवजह मन खट्टा और.… मैं वहीँ ठिठक गया. कैसे बढ़ता? मैं तो पंगुसम खड़ा रह गया. उसकी आवाज की कंपकपाहट आश्चर्य थी या सिसकी, ये कह नहीं सकता।. हेलो, कैसी हो? मुझे विश्वास नहीं हुआ कि ये संयत आवाज़ मेरी ही थी. ठीक हूँ,. और। तुम? ओह…पर… इस से पहले दिखे तो नहीं,.". क्या फिर कभी? बात पूरी नहीं कर सकी थी वो. ठीक है फ़िर…". ट्रिन ट्रिन. मोबाइल एक म&#...मै&...
LIFE: AS I SEE IT: Tumhare liye
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For Dreams, Love and Memories. Good Ones :). View my complete profile. Saturday, January 18, 2014. हाथ थाम कर एक दूजे का, चलो आज फिर दौड़ लगाएं. चाँद की फांक की नाव बना कर, स्वप्न समंदर फिर तर जाएँ. जब चंदा से जुदा चाँदनी अपने पीछे पीछे आये. छोर पकड़ लेना उसका यूँ , वो फिर चंदा से जुड़ जाए. आशाओं के फूल मिलेंगे बहते जब लहरों लहरों पे. ऐसी जुगत भिड़ाएं हम तुम, सब अपनी मुट्ठी आ जाएँ. हवा सुनाई देगी जब पत्तों- डालों पर ताल जमाते. February 2, 2014 at 7:55 AM. Subscribe to: Post Comments (Atom).
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बातें अपने दिल की : June 2015
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Monday, June 29, 2015. एक साँप के प्रति. बात बस इतनी सी थी. कि उसने अपनी टाँगे मेरे टाँगों पर रख दी थी. और सोचा था. कि जैसे नदी ने अपने में आकाश भर रखा है. जैसे एक ऑक्टोपस ने एक मछली का सर्वांग दबा रखा है. वैसे एक सांप और सेब के गिरफ्त में सारी पृथ्वी है. मैंने कई बार चाहा है कि मुझे एक पवित्र सांप मिले. एक पवित्र सांप. जो चुपके से आये और कुछ पावन कर जाए. पावन, अति-पावन. लेकिन सदियों से. मुझे, या भाई अमीरचंद फोतेदार. को वो सांप नहीं मिलता है. मिलता है. एक तक्षक सांप. काला सांप और. अपना अपना अ...परखनì...
बातें अपने दिल की : April 2015
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Friday, April 10, 2015. तुम हड्डियाँ चबाओ. जो बिलखते हैं उन्हें और बिलखाओ. मगर मेरे दोस्त! तुम हड्डियाँ चबाओ. यहाँ जगत की उर्वशियाँ और सबके कुबेर. कोई आधा-पौने नहीं, सब सेर सवा सेर. किसकी आत्मा? किसकी करुणा? किसकी किस्मत का फेर? यौवन के उफान पर फिर मूंछ लो टेर. 8216;रिब्स’ पर ‘बारबेक्यू’ न सही ‘बफैलो’ ही लगाओ. मगर मेरे दोस्त! तुम हड्डियाँ चबाओ. क्या है मृत्यु, क्या है जीवन, क्या लवण है? कौन सीता, कौन शंकर? क्या भजन है? मगर मेरे दोस्त! तुम हड्डियाँ चबाओ. दूध किसका? और मेरे दोस्त! आह उट्ठे! मगर क्र&#...
बातें अपने दिल की : November 2015
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Thursday, November 26, 2015. छोटी सी बात. अपने ही ह्रदय की. अनिश्चित सीमाओं में. और अनिश्चितताओं के बीच. बंधी है अब भी वही तस्वीर. वही गीत (‘होरी’ गीत). वही संगीत, कल्पना और उसका रोमांच. और अपनी जमीन का वह विशाल चुम्बक. मेरे खेत, धान की बालियाँ और मेरी माँ. छोटा सा दिन और छोटा सा जीवन. अपनी अँजुरी में क्या-क्या लूँ. अपनी बातों में क्या-क्या कहूं. सुबह होती है, शाम होता है. जीवन का बस इतना काम होता है. निहार रंजन, बनगाँव, २७ नवम्बर २०१५). निहार रंजन. Subscribe to: Posts (Atom). बहुत दिनो...प्या...
बातें अपने दिल की : September 2015
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Wednesday, September 30, 2015. ले लिया मौसम ने करवट. ले लिया मौसम ने करवट. व्योम से बादल गए हट. कनक-नभ से विहग बोले. 8216;तल्प-प्रेमी' उठो झटपट. ले लिया मौसम ने करवट. खिली कोंढ़ी, जगे माली. कुसुम-पूरित हुई डाली. गई पीछे रात काली. वेणी भरने चली आली. श्लेष-वांछित, तप्त-रदपट. ले लिया मौसम ने करवट. रहे कब तक धरती सोती. किसानों ने खेत जोती. क्पोत-क्पोती कब से बैठे. फिर भी क्यों न बात होती. यही पृच्छा मन में उत्कट. ले लिया मौसम ने करवट. जग उठे हैं श्वान सारे. उनकी वेदना है. खोल दो लट. Sunday, September 20, 2015.
बातें अपने दिल की : December 2015
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Saturday, December 26, 2015. प्राण मेरे तुम कहाँ हो. उठ चुकी हैं सर्द आहें. कोसती है रिक्त बाहें. उर की वीणा झनझना कर पूछती है आज मुझसे. गान मेरे तुम कहाँ हो. प्राण मेरे तुम कहाँ हो? दिन ये बीते जा रहे हैं, रात लम्बी हो रही है. पा रहा है क्या ये जीवन, क्या ये दुनिया खो रही है. क्या पता था दो दिनों का साथ देकर मान मेरे ? मान मेरे तुम कहाँ हो. प्राण मेरे तुम कहाँ हो? क्षितिज में है शून्यता, छाया अँधेरा. जम चुका है तारिकाओं का बसेरा. चान मेरे तुम कहाँ हो. निहार रंजन. Subscribe to: Posts (Atom). बहुत द...
बातें अपने दिल की : February 2016
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Tuesday, February 9, 2016. बाइबल से निकले हुए भाव थे शायद-. 8220;गॉड कैननॉट गिव यू मोर दैन यू कैन टेक”. कर्ण-विवरों में आशा की ध्वनियाँ. कोठे पर नाचनेवाली की पायल. अक्सर, अच्छी लगती है- बहुत अच्छी. और साथ ही यह भी-. 8220;व्हाटऐवर हैप्पेंस, हैप्पेंस फॉर द बेस्ट”. जुमले नहीं है ये. सिद्धहस्तों के सूत्र हैं-जीवन सूत्र. लेकिन मेरे ही पड़ोस में रहती है-. श्रीमती(? महलखा चंदा. बर्तन धोती है, बच्चों के पेट भरती है. कितने नालायक बच्चे है. जबसे स्कूल छूटा . बस आवारागर्दी. दो बरस से जब. पूछ लूँ? बहुत दि...रेड...
बातें अपने दिल की : August 2015
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Monday, August 31, 2015. मैंने उस छोर पर देखा था. विशाल जलराशि. और पास आकर देखा तो सब मृगजल था. सब रेगिस्तान था. मकानों में लोग थे, हवस और शान्ति थी. वातायन था, झूठ था, जीवन था. लेकिन मेरा दम घुट रहा था. और कुछ लोगों से मुझसे कह दिया था. 8220;माँ रेवा! तेरा पानी निर्मल’’. मैं भागता नर्मदा के पास चला आया. दुर्गावती की निशानियाँ धूल बन रही थी. फिर पानी का गिलास उठाकर. ज्ञात हुआ इसमें जहर है. मैं यहाँ भी प्यासा रह गया. उस छोर पर पानी बिन प्यास. इस छोर पर पानी संग प्यास. निहार रंजन. Subscribe to: Posts (Atom).
बातें अपने दिल की : November 2016
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Sunday, November 13, 2016. मुरैनावाले के लिए. तुम्हारे शब्द ध्वनिमात्र थे या. खून का रिसता दरिया. पता नहीं चल पाया कि तुम्हारे आत्मा की आवाज़. या तुम्हारे सिगरेट का का धुंआ. इसी व्योम की अप्रतिबंधित यात्रा को निकले थे. बस निकल कर विलीन होने को). बहुत अँधेरे में जीते थे तुम. और तुम्हारी फूलन देवी). प्रेम शब्द जीवन में छलावा भर से ज्यादा है? अपने ही घोंसले में कैद थे तुम. कितने छद्म की गांठों पर. बहुत महीनी से तलवार चलायी तुमने. मन, हृदय और लिंग. इसका पता किसे है? निहार रंजन. Subscribe to: Posts (Atom).
बातें अपने दिल की : October 2016
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Saturday, October 22, 2016. विचयन-प्रकाश. तुमने मुझे खून दिया. मैंने तुम्हारा खून लिया. तुमने मुझे खून से सींचा. और मैंने चाक़ू मुट्ठी में भींचा. शब्द नवजात की तरह नंगे हो गए. बस अफवाह पर दंगे हो गए. परकीया के हाथ पर बोला तोता. तुमने ही चूड़ियाँ बजाई, तुमने ही खेत जोता. झंडे पर शार्दूल, ह्रदय में मार्जार. रसूलनबाई का हाल ज़ार-जार. धान के खेतों के बीच की चमकती दग्धकामा. बिदेसिया के प्रीत रामा! हो रामा! लालारुख का अंगीठिया रुखसार. जैसे कोई आयुध, वैसी रतनार. मेरी मनस्कांत. निरिच्छ. निहार रंजन. मैं ...अपना...
बातें अपने दिल की : October 2015
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Thursday, October 8, 2015. ना कोई ‘प्रील्यूड’, ना ‘इंटरल्यूड’. बस शब्दों का संगीत है. कुछ ध्वनियाँ ह्रदय से, नभ से. शेष इसी दुनिया के ध्वनियों का समुच्चार है. आपका बहुत आभार है. बीड़ियाँ सुलगती रही और ह्रदय. अविरत, निर्लिप्त. प्रेम, परिवार और समाज. कुछ स्याह अँधेरा, कुछ धुँआ. अंध-विवर से दूर दीखता एक वातायन. जीवन, संघर्ष या सामूहिक पराजय. यह किसने तय किया कि सफलता. या चाँदनी की निमर्लता. सबका ध्येय नहीं, प्रमेय नहीं. तो क्या मृत्यु का वीभत्स रूप. रोक सका है. तय कर सकता है काल. निहार रंजन. परखना, महस...
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For Dreams, Love and Memories. Good Ones :). View my complete profile. Friday, May 29, 2015. पूर्ण विराम. अचानक उच्छ्वास छोड़कर मैं पलट गया. बेकार ही आया यहाँ, बेवजह मन खट्टा और.… मैं वहीँ ठिठक गया. कैसे बढ़ता? मैं तो पंगुसम खड़ा रह गया. उसकी आवाज की कंपकपाहट आश्चर्य थी या सिसकी, ये कह नहीं सकता।. हेलो, कैसी हो? मुझे विश्वास नहीं हुआ कि ये संयत आवाज़ मेरी ही थी. ठीक हूँ,. और। तुम? ओह…पर… इस से पहले दिखे तो नहीं,.". क्या फिर कभी? बात पूरी नहीं कर सकी थी वो. ठीक है फ़िर…". ट्रिन ट्रिन. मोबाइल एक म&#...मै&...
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Sunday, June 24, 2007. Hey,Finally Got some Spare time To create this piece of Art. Posted by P A R I D H I.P at 5:02 AM. Friday, May 11, 2007. Well I created this for some Indian Mythological stories "Panchatantra".Created entirely in Flash. We are creating a series of panchatantra stories in my office this is just one screen shot of the story"The daughter who never greeted well". Some stories are really weird! Posted by P A R I D H I.P at 8:45 AM. Here's a Bg i know not so good.but still okay. I AM CRA...
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