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चर्चामंच: बावरे लिखने से पहले कलम पत्थर पर घिसने चले जाते हैं; चर्चा मंच 1967
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Wednesday, May 06, 2015. बावरे लिखने से पहले कलम पत्थर पर घिसने चले जाते हैं चर्चा मंच 1967. बावरे लिखने से पहले. कलम पत्थर पर. घिसने चले जाते हैं. सुशील कुमार जोशी. उलूक टाइम्स. राजपथ तक पहुंचाते हाथ. KAVYASUDHA ( काव्य सुधा ). वही होता है जो निर्णायक चाहता है! कालीपद "प्रसाद". मेरे विचार मेरी अनुभूति. मील का पत्थर. अरुण चन्द्र रॉय. भोर का सपना". मेरा मन". यूं राजनीति में सभी भिखारी तो होते हैं. पर ४२ साल का बच्चा होने का अपना ही सुख है. ताक-झांक :. लो क सं घ र्ष! आवारा बादल. येल्लो! ओ बी ओ. तुम&#...
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तिमिर-रश्मि: February 2012
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बाल कविता. यात्रा-वृत्तान्त. व्यंग्य. बुधवार, 22 फ़रवरी 2012. इस जीवन से सम्पृक्त हुआ. हम बहुत चले, हम बहुत खिले. उत्तंग पहाड़ों की चोटी पर,. हम शिखरों से गले मिले. उन बर्फीली राहों में हम. गिरे-उठे-फिसले-संभले. पुष्पाच्छादित तरल ढलानों पर. हमने कितना विश्राम किया. सूंघा-सहलाया-तोड़ा भी. उन पर सोकर आराम किया।. जब धूप चढ़ी तब देवदारु के. नीचे भी विश्राम किया. फिर जल-प्रपात में खड़े-खड़े. बालू रगड़ा स्नान किया।. निर्वसन रहे पर फ़िक्र नहीं. वो इन्द्रासन पर्वत है और. हर ओर धवल चहुं ओर धवल. निर्मम...ख़&...
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तिमिर-रश्मि: December 2011
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बाल कविता. यात्रा-वृत्तान्त. व्यंग्य. शनिवार, 31 दिसंबर 2011. गुरु द्रोण चीरहरण कर रहे हैं. गुरुतर भार था जिनके कन्धों पर. संवारने और सजाने का. नयी दिशा-नयी दृष्टि-नयी सोच से. नयी फ़सल उगाने का,. जिनसे अपेक्षा थी, विभिन्न वादों-. विवादों के भंवर से साफ़ बचाकर. निकाल ले जाने का,. जिनसे आशा थी, नवीनता के नाम पर. बौद्धिक अतिरेकता से परहेज की,. वे स्वयं आधुनिकता के नाम पर. अश्लीलता का वरण कर रहे हैं,. दुःशासन दूर खड़ा देखता है. प्रस्तुतकर्ता. प्रतिक्रियाएँ:. 6 टिप्पणियां:. लेबल: कविता. याद करता ...भरमा...
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तिमिर-रश्मि: February 2014
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बाल कविता. यात्रा-वृत्तान्त. व्यंग्य. शनिवार, 22 फ़रवरी 2014. बुद्धि बड़ी की बड़ा है बल? बाल कविता. बुद्धि बड़ी की बड़ा है बल. प्रश्न नहीं है बहुत सरल. असुर बहुत बलशाली थे. पर बुद्धि से खाली थे. गया हार उनका छल-बल. देव बुद्धि से हुए सबल. हनुमान सुरसा के मुख से. छोटे होकर गये निकल. लक्छ्मन जी को तीर लगा. मूर्छित हो गए राम विकल. हनुमान को अतुलित बल. औषधि लाने गए निकल. समझ न पाए औषधि कौन. बुद्धि यहाँ पर हो गयी मौन. उठा लिया पर्वत को तौल. यहाँ काम आया था बल. अवसर ही बतलाता है. नई पोस्ट. कुछ और कुछ और. शिवक...
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तिमिर-रश्मि: January 2012
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बाल कविता. यात्रा-वृत्तान्त. व्यंग्य. शनिवार, 14 जनवरी 2012. आज के दोहे-. सत्य-अहिंसा रह गयीं, बातें केवल आज।. हिंसक, झूठे, भ्रष्ट सब पहने हैं अब ताज।।. शान्ति कमेटी के प्रमुख, गुप-चुप बुनते जाल।. दो वर्गों को लड़ाकर, कैसे लूटें माल।।. राजनीति के आड़ में हो गये मालामाल।. लखपति कैसे हो गये, कल थे जो कंगाल।।. छपते हैं अखबार में, अक्सर जिनके नाम।. दिखते कितने सभ्य हैं, छपते देकर दाम।।. लेते धरम का नाम सब, मुल्ला और महन्त।. प्रस्तुतकर्ता. प्रतिक्रियाएँ:. 15 टिप्पणियां:. इसे ईमेल करें. कहलाते ह&#...सार...
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तिमिर-रश्मि: August 2011
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बाल कविता. यात्रा-वृत्तान्त. व्यंग्य. शनिवार, 27 अगस्त 2011. भीड़ के एकान्त में मंथन चले जब. दीप के अवसान पर ज्वाला बने लौ. ध्यानस्थ निश्चलता बने जब. आधार झंझावात का. सुर-असुर के द्वन्द्व में. मुश्क़िल बताना कौन क्या है? खोजता मैं मौन की गहराइयों में,. उस ध्येय को, उद्देश्य को,. इस जन्म के निहितार्थ को. कर्म के अनगिनत श्रृंगों पर. कौन सी मेरी शिला है! कौन सा संधान मेरी प्रतीक्षा में. मूक-निश्चल इंगितों से है बुलाता. पर नहीं इस कलम की वाचालता. प्रस्तुतकर्ता. इसे ईमेल करें. लेबल: कविता. शोभित क...इसमे...
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तिमिर-रश्मि: August 2013
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बाल कविता. यात्रा-वृत्तान्त. व्यंग्य. गुरुवार, 15 अगस्त 2013. नंगा नाचे फाटे का? कहते हैं राजनीति गन्दी हो गयी अरे! ये साफ़ ही कब थी? फर्क ये है कि पहले. ऊँट चरावे निहुरे निहुरे ". नंगा नाचे फाटे का? पहले लोक लाज का डर था. बड़े बुज़ुर्ग थे - पञ्च प्रवरथा. राजनीति में पहले भी अनीति थी. अब भी है . फर्क ये है कि अब. जब नाचै तब घूघट का? राजा का पुत्र पहले भी राजा होता था. अब भी होता है . चाहे वे इंदिरा-राजीव-राहुल हों. चाहे दामाद वाड्रा. अखिलेश -सचिन -राबड़ी हों. अगर आप सफाई कर्मी है. नई पोस्ट. टूट जा...
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तिमिर-रश्मि: February 2015
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बाल कविता. यात्रा-वृत्तान्त. व्यंग्य. मंगलवार, 24 फ़रवरी 2015. आया फागुन आया बसंत. आया फागुन आया बसंत. सूखे ठिठुरे थे जाड़े भर. वे पादप भी है बौरमंत. अनगिन पुष्पों के सौरभ से. गर्भित होकर आया बसंत. उज्जवल बालों पिचके गालों. में भी रस भर देता बसंत. कोयल की टीस भरी बोली. पी पी पुकारती कहाँ कंत? आया फागुन आया बसंत. ए कामदेव के पुष्प बाण. कोमल किसलय से सजे वृक्छ. ए मंद पवन की सुखद छुवन. ए महक-चहक़ से भरे बाग़. बच के रहना सब साधु -संत. आया फागुन आया बसंत. प्रस्तुतकर्ता. इसे ईमेल करें. नई पोस्ट. बेसुर...शुभ...
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तिमिर-रश्मि: माँ
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बाल कविता. यात्रा-वृत्तान्त. व्यंग्य. रविवार, 30 मार्च 2014. यादों में तू है बसी सुन्दर और समर्थ।. प्रतिक्षण मेरे पास है क्यों रोऊँ मै व्यर्थ।।. अनसुलझे जो प्रश्न हैं मैं सुलझाऊँ मौन,. सूक्ष्म रूप में प्रेरणा देता मुझको कौन? योगी थी तुम कर्म की अब कर्मों से मुक्त।. मै तेरा ही अंश हूँ रहू कर्म संयुक्त।।. जो आया सो जायगा सुना सैकड़ों बार ।. घूम घामकर लौट आ दिल की यही पुकार।।. किसको मै अम्मा कहूँ किससे दिल दूँ खोल ।. प्रस्तुतकर्ता. प्रतिक्रियाएँ:. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! उत्तर दें. नई पोस्ट. डाय...