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काथम: February 2014
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कुछ यादें-बातें पुरानी. बस यूँ ही. मेरी कविताएँ. मेरी कहानियाँ. ये सच डराता है. हाशिए पर औरत. Monday, February 17, 2014. जब कीचड़ में कमल खिला. मैं एकदम रुआँसी हो उठी थी.। लबालब पानी में झोलों को नीचे भी नहीं रख सकती थी। आँचल उठा कर कैसे अपने शरीर को ढाँकू? कमल कीचड़ में ही तो खिलते हैं न? प्रेम गुप्ता `मानी'. Links to this post. Wednesday, February 5, 2014. औरत- गाथा. औरत- गाथा. औरत बनने से पहले. वह एक बच्ची थी. जो माँ की उँगली पकड कर. मचलती थी. घर में-. बाज़ार में-. औरत होने से पहले. सडकों पर. प्र&#...
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काथम: August 2011
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कुछ यादें-बातें पुरानी. बस यूँ ही. मेरी कविताएँ. मेरी कहानियाँ. ये सच डराता है. हाशिए पर औरत. Thursday, August 18, 2011. शर्म भी शर्मसार है. शर्म भी शर्मसार है. मुझे,. शर्म आती है ऐसे देश पर. जहाँ नेता. बच्चों की तरह बिहेव करते हैं. मुझे घिन आती है. ऐसे घरौंदे पर. जहाँ बाप. बेटी से ही रेप करते हैं. मुझे नफ़रत है ऐसे माहौल से. जहाँ,. मुद्दों की आड़ में. भाई और भाई लड़ते हैं. मुझे दुःख है ऐसे देश पर. जहाँ अन्न के भंडार हैं. पर फिर भी. भूख से लाखों मरते हैं. दोस्तों,. उस देश से. जहाँ सभी. Links to this post.
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काथम: November 2010
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कुछ यादें-बातें पुरानी. बस यूँ ही. मेरी कविताएँ. मेरी कहानियाँ. ये सच डराता है. हाशिए पर औरत. Thursday, November 18, 2010. दर्द की यह कौन सी ‘ मंडी ’ है? किस्त- अठ्ठारह ). ऐसे में उन ‘कुछ’ डाक्टरों की काबिलियत और ईमानदारी पर अविश्वास किया जाए? घबरा कर मैने उसे चुमकारा , " नहीं.तुम नहीं , घबराओ नहीं.ये दूसरे के लिए बात कर रहे हैं.। ". उसने आँखें तो बन्द कर ली थी लेकिन एक अनजाना सा जो भय उसके चेहरे पर च...यह कैसा क्रूर मज़ाक था? अरे तो क्या? तुम सुबह का सूरज सच में न ...आज मैं इन पन्न&...उनके ज...
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काथम: August 2013
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कुछ यादें-बातें पुरानी. बस यूँ ही. मेरी कविताएँ. मेरी कहानियाँ. ये सच डराता है. हाशिए पर औरत. Monday, August 5, 2013. सदियों तक. गुंजित होती रहेगी. बाबा केदारनाथ की धरती पर. सहसा ही रच गई प्रलय-कथा. इतिहास के पन्नों पर. दर्ज़ रहेंगी कुछ चीखें. अपनों को तलाशती आँखें. माँ.दादी.नानी को पुकारती आवाज़ें. लाशों का अम्बार. और धूँ-धूँ करती चिताओं पर. जलती मानवीय संवेदनाएँ. सरकारी दफ़्तरों में. रोज़ घटते-बढ़ते हुए. लापता लोगों के आँकड़े. न जाने कितने घर सूने हो गए. अब भी इंतज़ार है. सदियों तक. Links to this post.
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काथम: December 2011
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कुछ यादें-बातें पुरानी. बस यूँ ही. मेरी कविताएँ. मेरी कहानियाँ. ये सच डराता है. हाशिए पर औरत. Tuesday, December 6, 2011. लड़ाई जारी है. लड़ाई जारी है. बीच चौराहे पर. लाल ईंटों वाले घेरे में. खडे होकर. मन्नू चीख रहा है. लोग आते हैं- चले जाते हैं. पर बच्चे खुश हैं. ताली बजा रहे हैं. बहुत दिन बाद. गर्मी की छुट्टी में. डुगडुगी बजाता नट. तमाशा दिखा रहा है. बच्चे नहीं जानते. यह " तमाशा" नहीं. तमाचा" है. आदमियत के गाल पर. मन्नू शरीर से नहीं. मन से बच्चा है. वह भी नहीं जानता. मन्नू के लिए. वह नहीं,. गंग...
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काथम: April 2011
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कुछ यादें-बातें पुरानी. बस यूँ ही. मेरी कविताएँ. मेरी कहानियाँ. ये सच डराता है. हाशिए पर औरत. Wednesday, April 27, 2011. स्त्री होने का ग़ुनाह. स्त्री होने का ग़ुनाह. मैं गुड़िया होती. तो सिर फोड़ती दीवारों से. और पूछती अपने ख़ुदा से. मुझे औरत क्यों बनाया. और बनाया तो. ज़ुबाँ को क्यों दी. अधकचरी गूंगी भाषा. तेरी कूची में क्या रंग नहीं थे? या अल्लाह,. सारी दुनिया में बिखरे हैं बहुतेरे रंग. मेरा नसीब फीका क्यों है? मेरी ज़िन्दगी में. सच्चा प्यार बेनूर रहा. पर फिर भी. ऐ ख़ुदा,. तू दब-कुचल गई. अपने ह&#...
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काथम: April 2012
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कुछ यादें-बातें पुरानी. बस यूँ ही. मेरी कविताएँ. मेरी कहानियाँ. ये सच डराता है. हाशिए पर औरत. Monday, April 23, 2012. एक शाश्वत सच. एक शाश्वत सच. नीले आसमान से. छिटक कर चाँद. सहसा ही. मेरी कोमल.गोरी नर्म हथेली की ज़मीन पर. और ज़िद कर बैठा. मेरी आँखों के भीतर दुबके बैठे-सपनों से. आँखमिचौली का "खेल" खेल कर थक गए थे. कुछ देर सोना चाहते थे. पर चाँद की ज़िद. बस एक बार और.आँखमिचौली का खेल. सपना पल भर ठिठका. और फिर खिल-खिल करते. उसने भी छलाँग लगा दी. जो मेरे नटखट बचपन के घर के. पर फिर भी. और मैं? अपनी आ&#...
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काथम: November 2011
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कुछ यादें-बातें पुरानी. बस यूँ ही. मेरी कविताएँ. मेरी कहानियाँ. ये सच डराता है. हाशिए पर औरत. Sunday, November 20, 2011. मेरी कविता - हिन्दी टाइम्स मे. नमस्कार,. तो आप भी मेरी यह कविता प्रकाशित रूप में देख कर अपनी अमूल्य प्रतिक्रिया दे. प्रेम गुप्ता `मानी'. Links to this post. Labels: मेरी कविताएँ. Monday, November 14, 2011. मेरी कविता. अक्सर मै. ऐसे ही लिख जाती हूँ. किसी सर्द रात में. चुपके से. याद तुम्हारी आती है. या फिर. किसी चाँदनी रात में. सारी रात आकाश को. पता नहीं कब. ऐसे में. Links to this post.
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