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स्पंदन: स्पंदन के बारे में
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साहित्य एवं संस्कृति की रचनाशीलता का रेखांकन. सम्पादक मंडल. स्पंदन के बारे में. रचनाकारों से. सम्पादकीय सम्पर्क. मुख्य पृष्ठ. I पुराने अंक. स्पंदन के बारे में. साहित्य एवं संस्कृति की रचनाशीलता का. रेखांकन. सम्पादक मंडल. स्पंदन के बारे में. रचनाकारों से. सम्पादकीय सम्पर्क. मुख्य पृष्ठ. पुराने अंक. 160; © Free Blogger Templates.
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स्पंदन: सम्पादक मंडल
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साहित्य एवं संस्कृति की रचनाशीलता का रेखांकन. सम्पादक मंडल. स्पंदन के बारे में. रचनाकारों से. सम्पादकीय सम्पर्क. मुख्य पृष्ठ. I पुराने अंक. सम्पादक मंडल. डॉ0 दुर्गा प्रसाद श्रीवास्तव. श्रीमती ऊषा सक्सेना. डॉ0 दिनेश चन्द्र द्विवेदी. श्री विनोद गौतम. प्रधान सम्पादक. डॉ0 ब्रजेश कुमार. डॉ0 कुमारेन्द्र सिंह सेंगर. प्रबंध संपादक. डॉ0 दुर्गेश कुमार सिंह. डॉ0 लखनलाल पाल. आवरण परिकल्पना. पुष्पांजलि राजे. सम्पादक मंडल. स्पंदन के बारे में. रचनाकारों से. सम्पादकीय सम्पर्क. मुख्य पृष्ठ.
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स्पंदन: रानी की तलवार -- कविता
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साहित्य एवं संस्कृति की रचनाशीलता का रेखांकन. सम्पादक मंडल. स्पंदन के बारे में. रचनाकारों से. सम्पादकीय सम्पर्क. मुख्य पृष्ठ. I पुराने अंक. रानी की तलवार - कविता. बुन्देलखण्ड विशेष. बुन्देली कविता. अजीत श्रीवास्तव. रानी की तलवार. परी थीं म्यान में सोईं. जगायें सें उठीं।. छोर के अंधयाई बे. चमचमा के उठीं।. हती रानी की तलवार. शान से उठीं।. कड़तई बे बाहरे बे सूदे. असमान में उठीं।. गाज सी उठी चमक की. बिजली गिर परी।. चली जौन ओर से. रखत वर्षात हो परी।. उतायें खों चल परी।. सपर सपर के खून से. जौ तरवार ...भई झन...
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स्पंदन: कहौ जू कैसें इतै निवायं -- बुन्देली कविता
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साहित्य एवं संस्कृति की रचनाशीलता का रेखांकन. सम्पादक मंडल. स्पंदन के बारे में. रचनाकारों से. सम्पादकीय सम्पर्क. मुख्य पृष्ठ. I पुराने अंक. कहौ जू कैसें इतै निवायं - बुन्देली कविता. बुन्देलखण्ड विशेष. बुन्देली कविता-. चौरसिया. कहौ जू कैसें इतै निवायं. कहौ जू कैसें इतै निवायं. करिया सांप फिरें डग डग पे कां लौं दूध पिआयं।. बस भर लये चुरू में इनकौ सबमें हयो काबें. दिन खां रात काय तौ हम सोउ तारे बतलाबें।. इतनौ करत रांय तउँ जब तब मसकइं से डस खायं।. सीताराम कालोनी. सम्पादक मंडल.
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स्पंदन: जुंदइया -- बुन्देली कविता
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साहित्य एवं संस्कृति की रचनाशीलता का रेखांकन. सम्पादक मंडल. स्पंदन के बारे में. रचनाकारों से. सम्पादकीय सम्पर्क. मुख्य पृष्ठ. I पुराने अंक. जुंदइया - बुन्देली कविता. बुन्देलखण्ड विशेष. बुन्देली कविता. चतुर्वेदी. जुँदईया. सबकों जी चुरात है तें वारी! जुँदईया. मनखाँ भौत भात है तें प्यारी जुँदईया।. रूखन की ई डगांर ऊ डगांर पें. टुनग-टुनग कुदकवें मतवारी जुँदईया।. पत्त के कौंचा संग पोर तक दिखें. परत जबईं ऊपरें उजियारी जुँदईया।. हिंचरू सी सबरें जब लिपट जात है. प्रेमगंज. झांसी-. सम्पादक मंडल.
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स्पंदन: आ गओ बसन्त -- बुन्देली ग़ज़ल
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साहित्य एवं संस्कृति की रचनाशीलता का रेखांकन. सम्पादक मंडल. स्पंदन के बारे में. रचनाकारों से. सम्पादकीय सम्पर्क. मुख्य पृष्ठ. I पुराने अंक. आ गओ बसन्त - बुन्देली ग़ज़ल. बुन्देलखण्ड विशेष. श्याम बहादुर श्रीवास्तव. आ गओ बसन्त. लीक छोड़ मन हमाव काए चल उठो. कौन चल उठी हबा कि मन मचल उठो।. झूल रहीं बिरछन कीं बाँह बल्लरीं. मदन छाती पै दार दर उठो।. कोइल की कूक. जिया बिलबिलात है. कीन्सें कयँ आम अपँव फूल-फल उठो।. चूमत मुख फूलन के मधुप मनचले. देख बदन ईरखा की ज्वाल जल उठो।. आ गओ बसंत. सम्पादक मंडल.
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स्पंदन: मयंक जी के गीतों में राष्ट्रीयता -- आलेख
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साहित्य एवं संस्कृति की रचनाशीलता का रेखांकन. सम्पादक मंडल. स्पंदन के बारे में. रचनाकारों से. सम्पादकीय सम्पर्क. मुख्य पृष्ठ. I पुराने अंक. मयंक जी के गीतों में राष्ट्रीयता - आलेख. बुन्देलखण्ड विशेष. सुरेन्द्र प्रताप सिंह. मयंक जी के गीतों में राष्ट्रीयता. नवीन चेतना को जगाने का प्रयास. आधुनिक नवनिर्माण के लिए मूल्यों पर विचार. उतरा है आजाद सबेरा. महलों की मीनार पर. अभी उसे ले जाना है. हर घर की हर दीवार पर. अभी देश में न्याय नीति भी. समर्थ का हर रहे समर्थन. पदरज को छू सकीं न अब तक. राष्टî...यही...
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स्पंदन: बुन्देलखण्ड के स्थान-नामों में लोक-संस्कृति -- आलेख
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साहित्य एवं संस्कृति की रचनाशीलता का रेखांकन. सम्पादक मंडल. स्पंदन के बारे में. रचनाकारों से. सम्पादकीय सम्पर्क. मुख्य पृष्ठ. I पुराने अंक. बुन्देलखण्ड के स्थान-नामों में लोक-संस्कृति - आलेख. बुन्देलखण्ड विशेष. कामिनी. बुन्देलखण्ड के स्थान-नामों में लोक संस्कृति. पाणिनि कालीन भारतवर्ष. प्रकृति राजनीति के साथ व्यक्ति को नामकरण का आधार मानते हैं। डॉ. केशव नंदनंदन. बिहारीजू. जुगल किशोर और कन्हैया के साथ राधा. किसोरीजू. लोक संस्कृति. घर-गृहस्थी. खजांची. नानीखेड़ा (रायसेन). चेरीताल (जबलपì...चौपरì...
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स्पंदन: बुन्देली दोहे
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साहित्य एवं संस्कृति की रचनाशीलता का रेखांकन. सम्पादक मंडल. स्पंदन के बारे में. रचनाकारों से. सम्पादकीय सम्पर्क. मुख्य पृष्ठ. I पुराने अंक. बुन्देली दोहे. बुन्देलखण्ड विशेष. बुन्देली दोहे. रामचरण शर्मा. कछु दोहन में घाम है. कछु में गहरी छाँव।. कछु दोहा सहरी भये. कछू बसत है गाँव।।. पनहारिन अब लौट जा. इतै न कौनउँ घाट।. कूरा-करकट मल भरो. उखर गये सब पाट।।. पनहारिन जल. भर चली करकें नीची आँख।. तीन गगरियाँ सिर धरैं. दो दाबैं है काँख।।. धरती ऐसी लग रई. बिना ऊन की भेड़।।. टैगोर नगर. ग्वालियर (म.