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पूर्णिमा

पूर्णिमा. शुक्रवार, 27 फ़रवरी 2015. स्त्री हूँ. मैं कौन हूँ? अपने बचपने में. किया था यह सवाल. मैंने तुमसे. सोचा भी नहीं था. कि तुम पीले पन्नों वाली किताब के. वह लाल आँखों वाले जादूगर हो. जो कभी सच नहीं बोलता. और रेगिस्तान में बने. जादू के महल में. कैद करके रखता है. ढेर सारी शहजादियों को . इसीलिए मैंने नादानी में पूछा था तुमसे -. मैं कौन हूँ? हीरे, पन्ने, माणिक, पुखराज और नीलम. जडी अंगूठियों वाली अपनी अंगुलियाँ. तांत्रिक अंदाज़ में. कहा था -. तुम धरती हो.'. धरती बन गई. और कभी धराधिप. सब सहती रही. मेर...

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पूर्णिमा | purnima65.blogspot.com Reviews
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पूर्णिमा. शुक्रवार, 27 फ़रवरी 2015. स्त्री हूँ. मैं कौन हूँ? अपने बचपने में. किया था यह सवाल. मैंने तुमसे. सोचा भी नहीं था. कि तुम पीले पन्नों वाली किताब के. वह लाल आँखों वाले जादूगर हो. जो कभी सच नहीं बोलता. और रेगिस्तान में बने. जादू के महल में. कैद करके रखता है. ढेर सारी शहजादियों को . इसीलिए मैंने नादानी में पूछा था तुमसे -. मैं कौन हूँ? हीरे, पन्ने, माणिक, पुखराज और नीलम. जडी अंगूठियों वाली अपनी अंगुलियाँ. तांत्रिक अंदाज़ में. कहा था -. तुम धरती हो.'. धरती बन गई. और कभी धराधिप. सब सहती रही. मेर...
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1 तुमने
2 धरती
3 जगदीश्वर
4 आसमान
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तुमने,धरती,जगदीश्वर,आसमान,purnima sharma,पिता,बहेलिए,चित्र,भाषा,समर्थक,लेबल,sound cloud,आलेख,ऑडियो,कविता,कहानी
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पूर्णिमा | purnima65.blogspot.com Reviews

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पूर्णिमा. शुक्रवार, 27 फ़रवरी 2015. स्त्री हूँ. मैं कौन हूँ? अपने बचपने में. किया था यह सवाल. मैंने तुमसे. सोचा भी नहीं था. कि तुम पीले पन्नों वाली किताब के. वह लाल आँखों वाले जादूगर हो. जो कभी सच नहीं बोलता. और रेगिस्तान में बने. जादू के महल में. कैद करके रखता है. ढेर सारी शहजादियों को . इसीलिए मैंने नादानी में पूछा था तुमसे -. मैं कौन हूँ? हीरे, पन्ने, माणिक, पुखराज और नीलम. जडी अंगूठियों वाली अपनी अंगुलियाँ. तांत्रिक अंदाज़ में. कहा था -. तुम धरती हो.'. धरती बन गई. और कभी धराधिप. सब सहती रही. मेर...

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पूर्णिमा: 01/01/2015 - 02/01/2015

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पूर्णिमा. शनिवार, 31 जनवरी 2015. बेटियाँ हैं हम. बेटियाँ हैं हम. हम सिर्फ चिड़ियाँ नहीं हैं,. बेटियाँ हैं हम. तुम्हारा आँगन लीपती हैं,. रंगोली सजाती हैं,. गीत गुनगुनाती हैं. और सोचती हैं –. तुम हमारे हो,. तुम्हारा यह चौड़ा सीना हमारा है,. तुम्हारा यह आँगन हमारा है. पर निर्दयी पिता,. तुम हमें रोज याद दिलाते हो –. 8216;बेटियाँ तो पराया धन होती हैं’. 8216;बेटियों को तो परदेस जाना है’. और सौंप देते हो. किसी एक शुभ मुहूर्त में. पुण्य लूटते हो कन्यादान का. और चलती बेर. 8216;बेटियो,. 8216;बेटियो,. झोल&#2379...

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पूर्णिमा: 02/01/2015 - 03/01/2015

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पूर्णिमा. शुक्रवार, 27 फ़रवरी 2015. स्त्री हूँ. मैं कौन हूँ? अपने बचपने में. किया था यह सवाल. मैंने तुमसे. सोचा भी नहीं था. कि तुम पीले पन्नों वाली किताब के. वह लाल आँखों वाले जादूगर हो. जो कभी सच नहीं बोलता. और रेगिस्तान में बने. जादू के महल में. कैद करके रखता है. ढेर सारी शहजादियों को . इसीलिए मैंने नादानी में पूछा था तुमसे -. मैं कौन हूँ? हीरे, पन्ने, माणिक, पुखराज और नीलम. जडी अंगूठियों वाली अपनी अंगुलियाँ. तांत्रिक अंदाज़ में. कहा था -. तुम धरती हो.'. धरती बन गई. और कभी धराधिप. सब सहती रही. मेर...

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पूर्णिमा: 11/01/2012 - 12/01/2012

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पूर्णिमा. रविवार, 18 नवंबर 2012. छाया सीता. अवधपुरी के राजमहल के. कलशों पर जलती. दीपशिखाओं के बीच. खड़ी एक छाया सोचती है-. क्या कीर्ति और यश की. इसी दीपमाला को पाने के लिए. ली गई थी वहाँ लंका में. स्त्री जाति के प्रेम और विश्वास की. अग्नि-परीक्षा? और जलने लगते हैं. धरती की बेटी के तन-बदन में. सूरज, चाँद ,तारे. और अनगिनत दिये. अग्नि में तप कर. कुन्दन हो गई थी सीता. पिघल कर बह गया था पति राम. कैसी दीपावली, हे राजा राम! तुम अकेले ही लौटे थे लंका से. पूर्णिमा शर्मा. प्रस्तुतकर्ता. नई पोस्ट.

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पूर्णिमा: 04/01/2014 - 05/01/2014

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पूर्णिमा. बुधवार, 9 अप्रैल 2014. हिंदी भाषा : उद्भव और विकास / Hindi : Genesis and Development. प्रस्तुतकर्ता. ऋषभ देव शर्मा. इस संदेश के लिए लिंक. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. Pinterest पर साझा करें. लेबल: छात्रोपयोगी. प्रेजेंटेशन. नई पोस्ट. पुराने पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. सदस्यता लें संदेश (Atom). काव्य शास्त्र. क्षणिका. छात्रोपयोगी. पत्रकारिता. प्रकाश किरण. प्रेजेंटेशन. फोन वार्ता. मेरा कविता संग्रह. मेरी पुस्तक. रेडियो वार्ता. संगोष्ठी.

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पूर्णिमा: हिंदी भाषा : उद्भव और विकास / Hindi : Genesis and Development

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पूर्णिमा. बुधवार, 9 अप्रैल 2014. हिंदी भाषा : उद्भव और विकास / Hindi : Genesis and Development. प्रस्तुतकर्ता. ऋषभ देव शर्मा. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. Pinterest पर साझा करें. लेबल: छात्रोपयोगी. प्रेजेंटेशन. नई पोस्ट. पुरानी पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. काव्य शास्त्र. क्षणिका. छात्रोपयोगी. पत्रकारिता. प्रकाश किरण. प्रेजेंटेशन. फोन वार्ता. मेरा कविता संग्रह. मेरी पुस्तक. रेडियो वार्ता. संगोष्ठी. समीक्षा. साहित्य का इतिहास. सुनो तो सही. ऋषभ देव शर्मा.

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तनिष्क: May 2012

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Wednesday, 23 May 2012. तेलुगु साहित्य : एक अवलोकन' पर चर्चा और कवि गोष्ठी. पहले सत्र में डॉ गुर्रमकोंडा नीरजा की नई ताजी किताब 'तेलुगु साहित्य : एक अवलोकन. पर चर्चा हुई. श्री लक्ष्मीनारायण अग्रवाल. अध्यक्ष आसन से संबोधित करते हुए डॉ ऋषभ देव शर्मा. भीड़ में अकेला. बीच में जल-पान की भी व्यवस्था थी. अच्छा घरेलू-सा माहोल बन गया था. बढ़िया लगा. डॉ.बी.बालाजी. Labels: गतिविधि. Subscribe to: Posts (Atom). हैदराबाद से. तेलुगु ग्राम-जीवन की कहानियाँ. सागरिका. संज्ञान. गर्भ में. प्रफुल्लता. View my complete profile.

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अर्पणा दीप्ति: August 2010

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अर्पणा दीप्ति. शनिवार, 21 अगस्त 2010. प्रेम के लिए देह नहीं, देह के लिए प्रेम ज़रूरी! मैत्रेयी पुष्पा. मैत्रेयी पुष्पा का 2004 में प्रकाशित उपन्यास. कही ईसुरी फाग'. बड़ा खतरनाक होता है, जंगलों , पहाड़ों और समुद्र का आदिम सम्मोहन .हम बार-बार उधर भागते हैं किसी अज्ञात के दर्शन के लिए ।'. दर्शक उठकर खड़े हो जाते हैं रघु नगड़िया वाला आकर कहता है -. काकी के कोप का आधार? ईसुरी ने अपनी ओर से रज्जो को नाम दिया - रजऊ ।. रज्जो सास के हाथों पर घाव के भयानक...काकी हम जिस रजऊ का नाम फ&#2...सरस्वती द&#2375...मीर...

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तनिष्क: हिंदी प्रशिक्षण कार्यक्रम का उद्घाटन

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Thursday, 2 August 2012. हिंदी प्रशिक्षण कार्यक्रम का उद्घाटन. भारत डायनामिक्स लिमिटेड. मेदक में. दिनांक. हिंदी शिक्षण योजना के अंतर्गत हिंदी प्रशिक्षण कार्यक्रम के सत्र जुलाई-नवंबर. उद्घाटन संपन्न हुआ. दिनांक. से नियमित रूप से. का उद्घाटन करते हुए भानूर इकाई के महा प्रबंधक (उत्पादन) श्री पी के दिवाकरन ने. प्रेरित करना चाहिए. हिंदी सीखने के बाद उसका यथावश्यक. भी करना चाहिए. हिंदी का प्रचार-प्रसार. करना केवल. का दायित्व. है. यह. के प्रत्येक. का कर्तव्य. से प्रस्तुत. के कर्मचारी. में सफल. हिंद&...को ...

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अर्पणा दीप्ति: April 2011

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अर्पणा दीप्ति. गुरुवार, 14 अप्रैल 2011. सहजता में गहराई: 'अहसासों के अक्स'. डॉ.शकुंतला किरण. की पुस्तक. 8217;अहसासों के अक्स’. घावों का सागर अति गहरा,/सपनों पर विरहा का पहरा,/ फिर विरहिन के नयनों में यह-/ निंदिया क्यों घिर आई ।". मुक्ति थी जिसके बंधंन में.पृ.सं.19). शब्द तुम्हारे दे रहे, यूँ अब भी अधिकार।/अर्थ दूर क्यों जा बसे, सात समन्दर पार ॥". अर्थ दूर क्यों जा बसे.पृ.सं.11). यह कैसी नियति है! अभिशप्त-पृ.सं.69). कहने को तो हम आज स्त्री सशक्तीकरण की...बधाई लो मनु अपनी इस सफलत&#2...जहाँ एक त...विर...

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तनिष्क: September 2011

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Friday, 30 September 2011. एक मैंने. अपने बच्चे को खरीद कर दी. उसकी जिद्द थी. दुनिया को रंगीन. देखने की. दुकान पर की रंगीन ऐनकें. बारी-बारी से चढ़ा. अपनी आखों पर. कभी हँसता. कभी ताली बजाता. सफ़ेद शीशे वाली ऐनक. पहनकर उसने पाया. दुनिया रंगीन अच्छी नहीं लगती. साफ़-सफ़ेद अच्छी लगती है. बिना ऐनक के सुन्दर दिखती है'. डॉ.बी.बालाजी. Labels: कविता. Friday, 9 September 2011. गणेश मंडप-विचार विमर्श-2. चंद्रमौलेश्वर प्रसाद जी. डॉ.बी.बालाजी. Labels: त्यौहार. Wednesday, 7 September 2011. प्रणाम सर. प्रणाम सर. है&#4...

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तनिष्क: May 2011

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Sunday, 15 May 2011. चुप रहो! सुन तो मैं. सब कुछ रहा था. बोलना चाहते हुए भी. मित्र ने कहा-. तुम कुछ बोलते क्यों नहीं? केवल मुस्कुराया. मुस्कान देखकर. वह भी चुप हो गयी।. बहस करने वाले. चुप हो गए।. मैंने. उठते हुए. अपने -आप से कहना चाहा. लोग बहुत बोलते हैं. कभी -कभी. कुछ. करें. चुप रहें. डॉ.बी.बालाजी. Labels: कविता. Friday, 13 May 2011. सिक्का उछालके. आओ करें हम फैसला सिक्का उछालके,. तकदीर अपनी सँवार लें सिक्का उछालके. आओ करें हम फैसला सिक्का उछालके,. डॉ.बी.बालाजी. Labels: कविता. Wednesday, 11 May 2011.

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अर्पणा दीप्ति: December 2012

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अर्पणा दीप्ति. सोमवार, 10 दिसंबर 2012. अल्मा कबूतरी में सामाजिक यथार्थ. अर्पणा दीप्ति. मैत्रेयी पुष्पा कृत ’अल्मा कबूतरी’. घोषित कर दिया था। यह प्रथा आज तक चली आ रही है। डॉ. डी. एन मजमूदार के अनुसार-. मैत्रेयी पुष्पा ने 'अल्मा कबूतरी'. 8217;अल्मा कबूतरी’. १जात-पात तथा ऊँच-नीच की समस्या. २अनैतिक संबंधों की समस्या. ३अंधविश्वास की समस्या. ४निर्धनता एंव बेरोजगारी की समस्या. ५अशिक्षा. जाति घोषित कर न केवल तथाकथित ’सभ्य समाज’. समाज से जिन्हें वे ’कज्ज&#2366...औ र ’कबूतरा’. बनने की कोशिश...अ)"इज्जत बच&#23...

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तनिष्क: August 2011

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Tuesday, 30 August 2011. बिल्ली का घर. बिल्ली को कोई हक्क नहीं. कि वह किसी के घर. अपने बच्चे जने. गंदा करे, अपवित्र करे. शोर मचाए. म्याऊँ-म्याऊ. बिल्लों की गंध घर भर में भर जाए. दूध के लिए. यहाँ-वहाँ ताक-झाँक करे. चूहों को ढूँढे. अधमरे चूहों को न पकड़ पाए. मरे चूहों की गंध से घर. भर जाए बार-बार. बिल्ली तो घर बदलती रहती है. सात घर बदलती है. अपने बच्चों को बचाने. उसे तो हक्का नहीं. किसी एक घर को अपना बनाने. क्योंकि. अंततः वह माँ है, माँ है. डॉ.बी.बालाजी. Labels: कविता. Sunday, 28 August 2011. और भीतर,.

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अर्पणा दीप्ति. सोमवार, 1 नवंबर 2010. राष्ट्रीय मात्स्यिकी विकास संस्थान में हिंदी-समारोह. प्रस्तुतकर्ता. कोई टिप्पणी नहीं:. इस संदेश के लिए लिंक. लेबल: फोटो. नई पोस्ट. पुराने पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. सदस्यता लें संदेश (Atom). मेरी ब्लॉग सूची. अर्पणा दीप्ति. तेलुगु ग्राम-जीवन की कहानियाँ. सागरिका. गर्भ में. पंक्तियाँ. अमेरिका में उग्र विरोधप्रदर्शन क्यों. हिंदी सबके लिए HINDI FOR ALL. बहुत दिन बीते . ऋषभ की कविताएँ. प्रफुल्लता. पूर्णिमा. पकने लगी फसल, रीझता किसान. चिट्ठा चर्चा. नव्यदृष्टि.

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पूर्णिमा. शुक्रवार, 27 फ़रवरी 2015. स्त्री हूँ. मैं कौन हूँ? अपने बचपने में. किया था यह सवाल. मैंने तुमसे. सोचा भी नहीं था. कि तुम पीले पन्नों वाली किताब के. वह लाल आँखों वाले जादूगर हो. जो कभी सच नहीं बोलता. और रेगिस्तान में बने. जादू के महल में. कैद करके रखता है. ढेर सारी शहजादियों को . इसीलिए मैंने नादानी में पूछा था तुमसे -. मैं कौन हूँ? हीरे, पन्ने, माणिक, पुखराज और नीलम. जडी अंगूठियों वाली अपनी अंगुलियाँ. तांत्रिक अंदाज़ में. कहा था -. तुम धरती हो.'. धरती बन गई. और कभी धराधिप. सब सहती रही. मेर...

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