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mushaira: March 2009
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सोमवार, 30 मार्च 2009. ज़रा सी देर में दिलकश नज़ारा. सी देर में दिलकश नज़ारा डूब जायेगा. ये सूरज देखना सारे का सारा डूब जायेगा. नजाने फिर भी क्यों साहिल पे तेरा नाम लिखते हैं. हमें मालूम है इक दिन किनारा डूब जायेगा. सफ़ीना हो के हो पत्थर हैं हम अंज़ाम से वाकिफ़. तुम्हारा तैर जायेगा हमारा डूब जायेगा. समन्दर के सफ़र में किस्मतें पहलु बदलती हैं. अगर तिनके का होगा तो सहारा डूब जायेगा. मिसालें दे रहे थे लोग जिसकी कल तलक हमको. प्रस्तुतकर्ता. 15 टिप्पणियां:. इस संदेश के लिए लिंक. तशनगी - प्यास. जिस की ब&...14 टì...
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mushaira: July 2009
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सोमवार, 20 जुलाई 2009. हम अपने दिल को समझाते रहते हैं. हम अपने दिल को समझाते रहते हैं. सावन-भादो आते जाते रहते हैं. प्यार के पंछी कब रुकते हैं उड़ने से. दुनिया वाले शौर मचाते रहते हैं. महफिल-महफिल हंसते हैं मुस्काते हैं. तन्हाई में अश्क़ बहाते रहते हैं. चाँद, हवा, फूल, किताबें, जुगनू, तितली. मिल कर मेरा जी बहलाते रहते हैं. बादल, चिड़िया, तोता, दरिया और 'परवाज़'. अपना-अपना दर्द सुनते रहते हैं. प्रस्तुतकर्ता. 3 टिप्पणियां:. इस संदेश के लिए लिंक. रविवार, 5 जुलाई 2009. नई पोस्ट. Read in your own script.
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mushaira: हम अपने दिल को समझाते रहते हैं
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सोमवार, 20 जुलाई 2009. हम अपने दिल को समझाते रहते हैं. हम अपने दिल को समझाते रहते हैं. सावन-भादो आते जाते रहते हैं. प्यार के पंछी कब रुकते हैं उड़ने से. दुनिया वाले शौर मचाते रहते हैं. महफिल-महफिल हंसते हैं मुस्काते हैं. तन्हाई में अश्क़ बहाते रहते हैं. चाँद, हवा, फूल, किताबें, जुगनू, तितली. मिल कर मेरा जी बहलाते रहते हैं. बादल, चिड़िया, तोता, दरिया और 'परवाज़'. अपना-अपना दर्द सुनते रहते हैं. प्रस्तुतकर्ता. 3 टिप्पणियां:. 20 जुलाई 2009 को 2:41 am. Bahut hi badhiya.khubsurat rachana.
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mushaira: गुमसम तनहा बेठा होगा
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शुक्रवार, 22 मई 2009. गुमसम तनहा बेठा होगा. गुमसमतनहा बेठा होगा. सिगरट के कश भरता होगा. उसने खिड़की खोली होगी. और गली में देखा होगा. ज़ोर से मेरा दिल धड़का है. उस ने मुझ को सोचा होगा. सच बतलाना के़सा है वो. तुम ने उस को देखा होगा. मैं तो हँसना भूल गया हूँ. वो भी शायद रोता होगा. अपने घर की छत पे बेठा. शायद तारे गिनता होगा. ठंडी रात में आग जला कर. मेरा रास्ता तकता होगा. प्रस्तुतकर्ता. 5 टिप्पणियां:. श्यामल सुमन. 22 मई 2009 को 5:31 am. श्यामल सुमन. उत्तर दें. 22 मई 2009 को 6:39 am. Achchhi lagi aapki ghazal.
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mushaira: January 2009
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गुरुवार, 29 जनवरी 2009. यार पुराने छूट गए तो छूट गए. कांच के बर्तन टूट गए तो टूट गए. सोच समझ कर होंट हिलाने पड़ते हैं. तीर कमाँ से छूट गए तो छूट गए. शहज़ादे के खेल खिलोने थोड़ी थे. मेरे सपने टूट गए तो टूट गए. इस बस्ती में कौन किसी का दुख रोये. भाग किसी के फूट गए तू फूट गए. छोड़ो रोना धोना रिश्ते नातों पर. कच्चे धागे टूट गए तो टूट गए. अब के बिछड़े तो मर जाएंगे 'परवाज़'. हाथ अगर अब छूट गए तो छूट गए. जतिन्दर परवाज़. हेलो - 9868985658. प्रस्तुतकर्ता. 3 टिप्पणियां:. नई पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. Read in your own script.
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mushaira: February 2009
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शुक्रवार, 27 फ़रवरी 2009. ख़्वाब देखें थे घर में क्या क्या कुछ. ख़्वाब देखें थे घर में क्या क्या कुछ. मुश्किलें हैं सफ़र में क्या क्या कुछ. फूल से जिस्म चाँद से चेहरे. तैरता है नज़र में क्या क्या कुछ. तेरी यादें भी अहल-ए-दुनिया भी. हम ने रक्खा है सर में क्या क्या कुछ. ढूढ़ते हैं तो कुछ नहीं मिलता. था हमारे भी घर में क्या क्या कुछ. शाम तक तो नगर सलामत था. हो गया रात भर में क्या क्या कुछ. हम से पूछो न जिंदगी 'परवाज़'. थी हमारी नज़र में क्या क्या कुछ. जतिन्दर परवाज़. प्रस्तुतकर्ता. 1 टिप्पणी:. मेरी ...न जा...
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mushaira: आँखें पलकें गाल भिगोना ठीक नहीं
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रविवार, 5 जुलाई 2009. आँखें पलकें गाल भिगोना ठीक नहीं. आँखें पलकें गाल भिगोना ठीक नहीं. छोटी-मोटी बात पे रोना ठीक नहीं. गुमसुम तन्हा क्यों बेठे हो सब पूछें. इतना भी संज़ीदा होना ठीक नहीं. कुछ और सोच ज़रीया उस को पाने का. जंतर-मंत्र जादू-टोना ठीक नहीं. अब तो उस को भूल ही जाना बेहतर है. सारी उम्र का रोना-धोना ठीक नहीं. मुस्तकबिल के ख्वाबों की भी फ़िक्र करो. यादों के ही हार पिरोना ठीक नहीं. दिल का मोल तो बस दिल ही हो सकता है. कब तक दिल पर बोझ उठायोगे 'परवाज़'. प्रस्तुतकर्ता. उत्तर दें. कब तक दिल पर ब...
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mushaira: ग़ज़ल
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शनिवार, 14 मार्च 2009. शजर पर एक ही पत्ता बचा है. हवा की आँख में चुबने लगा है. नदी दम तोड़ बैठी तशनगी से. समन्दर बारिशों में भीगता है. कभी जुगनू कभी तितली के पीछे. मेरा बचपन अभी तक भागता है. सभी के खून में गैरत नही पर. लहू सब की रगों में दोड़ता है. जवानी क्या मेरे बेटे पे आई. मेरी आँखों में आँखे डालता है. चलो हम भी किनारे बैठ जायें. ग़ज़ल ग़ालिब सी दरिया गा रहा है. तशनगी - प्यास. प्रस्तुतकर्ता. 5 टिप्पणियां:. 14 मार्च 2009 को 3:53 am. खुबसूरत ग़ज़ल है! उत्तर दें. नीरज गोस्वामी. उत्तर दें. नई पोस्ट. मेर&#...
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mushaira: May 2009
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शुक्रवार, 22 मई 2009. गुमसम तनहा बेठा होगा. गुमसमतनहा बेठा होगा. सिगरट के कश भरता होगा. उसने खिड़की खोली होगी. और गली में देखा होगा. ज़ोर से मेरा दिल धड़का है. उस ने मुझ को सोचा होगा. सच बतलाना के़सा है वो. तुम ने उस को देखा होगा. मैं तो हँसना भूल गया हूँ. वो भी शायद रोता होगा. अपने घर की छत पे बेठा. शायद तारे गिनता होगा. ठंडी रात में आग जला कर. मेरा रास्ता तकता होगा. प्रस्तुतकर्ता. 5 टिप्पणियां:. इस संदेश के लिए लिंक. नई पोस्ट. पुराने पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. Read in your own script.
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mushaira: ख़्वाब देखें थे घर में क्या क्या कुछ
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शुक्रवार, 27 फ़रवरी 2009. ख़्वाब देखें थे घर में क्या क्या कुछ. ख़्वाब देखें थे घर में क्या क्या कुछ. मुश्किलें हैं सफ़र में क्या क्या कुछ. फूल से जिस्म चाँद से चेहरे. तैरता है नज़र में क्या क्या कुछ. तेरी यादें भी अहल-ए-दुनिया भी. हम ने रक्खा है सर में क्या क्या कुछ. ढूढ़ते हैं तो कुछ नहीं मिलता. था हमारे भी घर में क्या क्या कुछ. शाम तक तो नगर सलामत था. हो गया रात भर में क्या क्या कुछ. हम से पूछो न जिंदगी 'परवाज़'. थी हमारी नज़र में क्या क्या कुछ. जतिन्दर परवाज़. प्रस्तुतकर्ता. बहुत खूब. नई पोस्ट. ख़्व...