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मस्तराम का दर्शन और साहित्य: जिन्दगी का सच कोई नहीं जानता-हिंदी शायरी
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मस्तराम का दर्शन और साहित्य. मस्तराम "आवारा" कभी कभी कविता और कहानी लिखने की भी मूर्खता करता है,. Saturday 5 April 2008. जिन्दगी का सच कोई नहीं जानता-हिंदी शायरी. कुछ सवालों के जवाब नहीं होते. कुछ सवाल ही अपने आप में जवाब होते. लाजवाब हैं वह लोग जो. सवालों के जाल से दूर होते. किसी के सवाल को दो जवाब. कुछ का कुछ समझ जाये. तो फिर बवाल मच जाये. न दो जवाब तो भी मुसीबत. ऐसे में बेहतर हैं न किसी की सुने. न किसी को कुछ बताएं. जिन्दगी के कई सवाल ऐसे हैं. वह कभी नहीं होते. व्यंग्य. साहित्य. उसे जल्द&#...हमने...
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#दर्द के #व्यापारी-#हिन्दीकवितायें | *** दीपक भारतदीप की हिंदी सरिता-पत्रिका*** mastram Deepak Bharatdeep ki hindi patrika***
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द पक भ रतद प क ह द सर त -पत र क * * mastram Deepak Bharatdeep ki hindi patrika* *. ल खक स प दक- द पक भ रतद प, ग व ल यर. दर द क #व य प र -#ह न द कव त य. अनज न म भटक. स झ सकत ह. ज नकर चल तब ह क र स त. उस समझ त ह ए अपन अक ल क. च र ग ब झ सकत ह. कह द पक ब प शहर बड़ ह. ह दस क डर स सहम ज त. एक वहम स बचत. अ ग र ज म भटक इस तरह. उनक ख श करन क ल य. च ह जब ब झ सकत ह. 8212;—————. कभ अपन च हर पर भ. जख म कर ल त ह. तब भर ब ज़ र रक त. बह न क रस म भ कर ल त ह. कह द पक ब प ख श स. ज न नह स ख ज़म न. झगड़ क ढ ढत बह न. वह अमन क घर भ.
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मस्तराम का दर्शन और साहित्य: देखने का होता है अपना-अपना नजरिया-हिंदी शायरी
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मस्तराम का दर्शन और साहित्य. मस्तराम "आवारा" कभी कभी कविता और कहानी लिखने की भी मूर्खता करता है,. Sunday 13 April 2008. देखने का होता है अपना-अपना नजरिया-हिंदी शायरी. देखने का होता है. नजरिया अपना-अपना. किसी के लिये कोई चीज हकीकत है. किसी के लिये होती है सपना. कोई कार पर कार बदलता है. कोई पैदल ही चलता. उसके लिए अपनी कार होती है सपना. कोई रहता है ऊंची इमारतों और. चमकदार महलों में. तो कोई ईंट और पत्थर ढोकर. उनका निर्माण कर मजदूर. और अपनी देह पर भी होता बस. अपने दिल का सच बताकर वह. व्यंग्य. अपनी ध...
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दीपक भारतदीप | दीपक भारतदीप की धर्म सन्देश-पत्रिका
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द पक भ रतद प क धर म सन द श-पत र क. ल खक स प दक द पक भ रतद प,ग व ल यर (मध य प रद श). Author Archives: द पक भ रतद प. स च स र ह ई जर र ह -ह द श यर. May 8, 2016. क य क प रज स वय क. स ह क र स वय क धन. क य क गर ब स वय क. कह द पकब प स च स. आदत ह ज य. तभ क ई ज दग समझ. 8212;——-. ल खक एव कव -द पक र ज क कर ज ‘ भ रतद प,. ग व ल यर मध यप रद श. Writer and poem-Deepak Raj Kukreja “”Bharatdeep””. कव , ल खक एव स प दक-द पक ‘भ रतद प’,ग व ल यर. Poet, Editor and writer-Deepak ‘Bharatdeep’,Gwalior. पर ल ख गय ह अन य ब ल ग.
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मनस्वी पुरुष ही जीवन का आनंद उठाते हैं-गुरू पूर्णिमा पर विशेष हिन्दी लेख | दीपक भारतदीप की धर्म सन्देश-पत्रिका
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द पक भ रतद प क धर म सन द श-पत र क. ल खक स प दक द पक भ रतद प,ग व ल यर (मध य प रद श). मनस व प र ष ह ज वन क आन द उठ त ह -ग र प र ण म पर व श ष ह न द ल ख. July 12, 2014. भर त हर न त शतक म कह गय ह क. 8212;——————–. क वच त प थ व शय य क वच दप च पर वङ कशयन क वच छ क ह र क वच दप च श ल य दनर च. क वच त कन ध ध र क वच दप च द व य भवरधर मनस व क र य र थ न गपयत द ख न च स खम. द पक र ज क कर ज ‘ भ रतद प’. ग व ल यर मध यप रद श. Deepak Raj Kukreja “Bharatdeep”. कलक, ल खक और स प दक-द पक र ज क कर ज ‘भ रतद प’,ग व ल यर. 2शब दल ख स रथ.
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BADFAITH: October 2009
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Friday, October 23, 2009. रोज एक दुनिया लेती है जन्म. और रोज मर जाती है एक दुनिया।. रोज एक हौसला होता है बलंद,. और रोज ही पस्त होता है एक हौसला।. रोज उगती है एक उम्मीद,. और एक उम्मीद रोज दम भी तोड़तीहै।. रोज परवान चढ़ता है एक प्यार का बुखार,. और रोज उतर जाता है एक खुमार प्यार का।. कौन कहता है कि आयेगी एक दिन कयामत? कयामत तो होती है रोज, क्यों कि -. रोज ही मरता है एक आदमी,. रोज उजड़ जाती है दुनिया किसी की,. कोई नही आता है काम,. न कोई रहबर , न मसीहा, न सरकार।. फिर भी. और जग जाती है,. View in your script:.
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BADFAITH: August 2010
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Wednesday, August 4, 2010. मुझे प्यार है तुमसे और नफरत भी. आखिर क्यों लिखता हूँ मै? मै लिखता हूँ , की मुझे प्यार है तुमसे और नफरत भी . मै लिखता हूँ , की यही मुसीबत है मेरी और मसर्रत भी . मै लिखता हूँ , की कोई बेचैन सी खलिश चीरती है मुझे. और कोई अनजाना सा दर्द पुकारता है ,. मुझमे जगता है एक दीवानगी का सुरूर. और बुझ जाता है मेरे अन्दर वजूद का गुरुर. मै लिखता हूँ , की यही काम है मेरा और फितरत भी. और ख़याल में वो गहराई नहीं है . की एक बच्चा बेचता है सड़क पर अख़बार. मै लिखता हूँ , ...मै लिखता ...मै लì...
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BADFAITH: April 2011
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Tuesday, April 19, 2011. वो आसमान था और सर झुकाए बैठा था . Labels: tribute to great sachin bhaumiick. Subscribe to: Posts (Atom). View my complete profile. View in your script:. विजेट आपके ब्लॉग पर. Tribute to great sachin bhaumiick. अपने ही गिराते है नशेमन पर बिजलियाँ. कहां हैं नाज़ी. दुरास्था. मुझे प्यार है तुमसे और नफरत भी. मुर्दों से खेलते हो बार-बार किस लिए. मै ही तुम्हारे प्यार के काबिल नही. ये जो है आदमी. शेर की खाल उतार कर कुत्ता हो जाऊं. हाय माइकल. 2404;।अर्थकाम।।. जानकी पुल. जाहिल&#...तुम...
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